जब राजनीतिक दल नफरत परोसेंगे तो अमन चैन कैसे बना रहेगा ?

0
14
Spread the love
चरण सिंह 

जब कोई दंगा हो जाता है तो उसके बाद तमाम बातें होती हैं। क्या इस बात पर मंथन नहीं होना चाहिए कि आखिर बहराइच जैसे दंगों के पीछे क्या कारण हैं ? क्या इस तरह के दंगों के पीछे जाति और धर्म पर आधारित राजनीति नहीं है ? क्या राजनीतिक दल समाज में जाति और धर्म के नाम पर नफरत का जहर नहीं घोल रहे हैं ? दुर्गा प्रतिमा की विसर्जन यात्रा में जो उत्पात मचा। एक युवक जो हंगामे की भेंट चढ़ गया। शो रूम, अस्पताल और घरों में जो आगजनी हुई। क्या इसे मात्र पुलिस की लापरवाही मानकर चला जा सकता है ? क्या इस तरह की घटनाओं के पीछे नेताओं के भड़काऊ भाषण, बयान और जाति-धर्म पर आधारित राजनीति नहीं है ? योगी सरकार इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने जल्दी दंगे पर काबू पा लिया। योगी सरकार यह क्यों नहीं बताती कि यह दंगा हुआ ही क्यों ?
क्या देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री के बंटेंगे तो कटेंगे वाले बयान जायज ठहराया जा सकता है ? यदि सत्ता के लोग धर्म तो विपक्ष में बैठे लोग जाति आधारित राजनीति करेंगे तो समाज में अमन चैन बना रह सकता है ? भाईचारा बढ़ेगा बना रह सकता है ? क्या आज के नेता धर्म और जाति पर आधारित राजनीति नहीं कर रहे हैं ? क्या सभी दलों का मकसद किसी भी तरह से सत्ता हथियाना नहीं रह गया है ?
जो नेता मात्र हिन्दुओं की बात करते हैं, जो नेता मात्र मुस्लिमों की बात करते हैं या फिर जो नेता ओबीसी और एससीएसटी की बात करते हैं। इन सभी नेताओं को इन लोगों के वोट से मतलब है, इनके लिए करना कुछ नहीं है। बीजेपी ने हिन्दुओं के लिए अलग से क्या कर दिया ? अखिलेश यादव ने पीडीए के लिए क्या कर दिया ? ओबीसी में उन्हें बस अपना परिवार दिखाई देता है। अल्पसंख्यक के लिए वह क्या करेंगे ? आजम खान की तो अपने परिवार के लिए राजनीतिक बलि ले ली। क्या जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं से समाज के भले की कुछ उम्मीद की जा सकती है ?
क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हर बयान हिन्दू वोटबैंक को साधने के लिए नहीं होता है ? उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के मुखिया अखिलेश यादव बस पीडीए का राग वोटबैंक के लिए नहीं अलापते हैं ? क्या बसपा मुखिया मायावती भी वोट के लिए दलितों को नहीं साधती हैं ? वह बात दूसरी है कि उन्होंने दलितों को वोटबैंक ही समझा। यहां तक किसी दलित को नेता नहीं बनाया। उत्तराधिकारी बनाने की बात आई तो उन्हें अपना भतीजा ही दिखाई दिया। कांग्रेस को बस जातीय जनगणना ही दिखाई देगी तो देश और समाज की बात कौन करेगा ?
क्या हिन्दुओं मात्र से देश का उद्धार हो जाएगा ? क्या पीडीए मात्र से देश का निर्माण हो जाएगा ? क्या मुस्लिम मात्र से देश आगे बढ़ जाएगा ? क्या जातीय जनगणना होने से देश की सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी ? मतलब सभी पार्टियां सत्ता के लिए बस वोटबैंक की राजनीति कर रही हैं। देश और समाज की चिंता उनके आचरण में कहीं से नहीं दिखाई दे रही है।  जब नेता वोटबैंक के लिए भड़काऊ भाषण देंगे। भड़काऊ बात करेंगे। धर्म विशेष की बात करेंगे। जाति विशेष की बात करेंगे तो फिर भाईचारा कैसे बना रहेगा ? कैसे हिन्दू-मुस्लिमों के दिल मिलेंगे ?
जिस तरह से एक विशेष धर्म के युवक ने एक धर्म विशेष के व्यक्ति के घर पर उनके धर्म का झंडा उतारकर भगवा झंडा लहराया। क्या उसे जायज ठहराया जा सकता है ? जिस युवक की नई-नई शादी हुई हो वह दूसरे धर्म के किसी व्यक्ति के मकान पर चढ़कर भगवा झंडा लहरा रहा है। यह माहौल किसने बनाया ? किन लोगों के विचार से यह प्रभावित हुआ था। इन सब बातों पर मंथन करने की जरूरत है।
क्या यह माहौल शांति बनाने वाला है ? जब इस युवक को धर्म विशेष के लोग घसीट कर ले गये  तो पुलिस प्रशासन कहां था ? वे कौन लोग हैं जिन्होंने इस युवक को मारने का दुस्साहस किया ? क्या धर्म आधारित यात्राओं में भड़काऊ गाने नहीं बजते हैं ? क्या भड़काऊ नारे नहीं लगाए जाते हैं ? पुलिस प्रशासन क्या करता है ? क्या बहराइच में हुए दंगे के लिए डीएम और एसएसपी भी जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या ये दोनों अधिकारी सस्पेंड नहीं होने चाहिए ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here