देश में ऐसे कैसे हो पाएंगे एक साथ चुनाव?

चरण सिंह

जैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख आगे बढ़ाई गई थी ऐसे ही केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा उप चुनाव की तारीख बढ़ाकर १३ की जगह २० नवम्बर कर दी गई है। ऐसा बताया जा रहा है कि गंगा स्नान त्यौहार का हवाला देकर कांग्रेस और बीजेपी ने चुनाव आयोग से २० नवम्बर को चुनाव कराने की अपील की थी। ऐसे में प्रश्न उठता है कि बीजेपी जो एक देश एक चुनाव का दंभ भर रही है तो पूरे देश के चुनाव एक साथ कैसे होंगे ? जब राज्यों में विधानसभा चुनाव में तारीख की फेरबदल करने के बाद अब उप चुनाव में फेरबदल करनी पड़ी। जब महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं कराये जा सके। जब उप चुनाव की तारीख बदलनी पड़ी। तो एक साथ पूरे देश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव कैसे हो पाएंगे ? क्या तब त्यौहार नहीं होंगे ? या फिर जो चुनाव आयोग चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा सकता ? वह पूरे देश के आम चुनाव और विधानसभा चुनाव कैसे करा पाएगा ?
दरअसल केंद्र के साथ ही विभिन्न राज्यों में बीजेपी की सरकार है। एक साथ पूरे देश के चुनाव कराने में बीजेपी को फायदा है। क्योंकि सरकारी मशीनरी बीजेपी के हाथ में है। विपक्ष में मुख्य रूप से क्षेत्रीय दल नहीं चाहते कि देश में सभी चुनाव एक साथ हों। उससे क्षेत्रीय दलों को नुकसान होने की आशंका है। दरअसल पूरे देश में जब चुनाव होंगे तो वे क्षेत्रीय दलों पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर होंगे। राष्ट्रीय मुद्दों पर क्षेत्रीय दल पिछड़ जाते हैं। ऐसे में बीजेपी के साथ ही कांग्रेस को भी एक साथ चुनाव होने का फायदा हो सकता है। पर क्षेत्रीय दलों को उसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दल एक साथ चुनाव का विरोध कर रहे हैं।

दरअसल केंद्र ने गत लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘एक राष्‍ट्र, एक चुनाव’ की राह में बड़ा कदम उठाया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने देश में एक साथ चुनाव को लेकर तैयार अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत कर रहे हैं। माना जा रहा है कि 2029 में देश में एक साथ चुनाव हो सकते हैं. हालांकि, ‘एक देश, एक चुनाव’ नया विचार नहीं है. देश में पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं।
‘एक राष्‍ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे को उस समय हवा मिली जब 2018 में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि क्या देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं? फिर उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक भी बुलाई। इस दौरान उन्होंने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सभी राजनीतिक दलों की राय मांगी थी। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही चुनाव आयोग ने कहा था कि इस बार देश में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हो पाएगा। आयोग ने कहा है कि इसके लिए कई कानूनी प्रक्रिया सरकार को पूरा करनी होंगी। फिर कोरोना महामारी के दौरान ये मुद्दा पूरी तरह से ठंडा पड़ गया था। अब इस दिशा में केंद्र ने बड़ा कदम उठा लिया है।
देखने की बात यह है कि देश में एक या दो बार नहीं, बल्कि चार बार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो चुके हैं। आजादी के बाद 1951 से 1967 तक देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ हुए थे। देश में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था। इस दौरान राज्यों में विधानसभा चुनाव भी कराए गए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे।

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