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जलता कैसे दीप।।

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शुभ दीवाली आ गई, झूम रहा संसार।
माँ लक्ष्मी का आगमन, सजे सभी घर द्वार।।
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सुख वैभव सबको मिले, मिले प्यार उपहार।
सच में सौरभ हो तभी, दीवाली त्यौहार।।
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दीवाली का पर्व ये, हो सौरभ तब खास।
आ जाए जब झोंपड़ी, महलों को भी रास।।
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जिनके स्वच्छ विचार हैं, रखे प्रेम व्यवहार।
उनके सौरभ रोज ही, दीवाली त्यौहार।।
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दीवाली उनकी मने, होय सुखी परिवार।
दीप बेच रोशन करे, सौरभ जो घर द्वार।।
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मैंने उनको भेंट की, दीवाली और ईद।
जान देश के नाम कर, जो हो गए शहीद।।
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फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग।
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग।।
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नेह भरे मोती नहीं, खाली मन का सीप।
सूख गई हैं बातियाँ, जलता कैसे दीप।।
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बाती रूठी दीप से, हो कैसे प्रकाश।
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश।।
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दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
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दीया बाती ने किया, प्रेमपूर्ण व्यवहार।
जगमग हुई मुँडेर है, प्रकाशमय घर द्वार ।।
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दीया -बाती- सी परी, तेरी -मेरी प्रीत।
हर्षित हो उल्लास उर, गाये मिलकर गीत।।
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दीया में बाती जले, पावन ये व्यवहार।
अन्तर्मन उजियार ही, है सच्चा श्रृंगार।।
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सदा शहीदों का जले, इक दीया हर हाल।
मने तभी दीपावली, देश रहे खुशहाल ।।
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दीया- बाती- सा बने, आपस में विश्वास।
चिंता सारी दूर हो, खुशियां करे निवास।।
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तपती बाती रात भर, लिए अटल विश्वास।
तब जाकर दीया भरे, है आशा उल्लास।।
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दीये सा जीवन करे, इस जगती के नाम।
परहित हेतु जो है मिटे, जीवन उनका धाम।।
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दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।

 

डॉ. सत्यवान सौरभ