वैद्य-सर्जन के साथ, था दावा भूत-प्रेत के संहार का
डॉ. सविता मिश्रा मागधी
दुखद ही नहीं, बहुत मार्मिक घटना घटित हुई है हाथरस में. अंदाजा है। दो लाख से ऊपर की भीड़ आई थी उनके दर्शन और प्रवचन सुनने को।“पर उपदेश कुशल बहुरेते” की पंक्तियों में जीने वाला भौकाली बाबा, जनता को सादगी से जीवन बिताने और माया-मोह से दूर रहने की हिदायतदेते हुए स्वयं सूट-बूटटाईमंहगे चश्मे से सुसज्जित हो लर्जरी गाड़ी से उतरताथा सत्संग को संबोधित करने के लिए. निजी बॉडी गॉर्ड, अपनी नारायणी सेना और लर्जरी काफिले को साथ लिए हुए चलने वाले का कहना है,‘वह किसी भक्त से कोई चढ़ाव नहीं लेता, न ही किसी को डरा-धमका कर उसकी जायजाद पर कब्जा किया है। ’बाबाजी तो सचमुच के चमत्कारी हैं. उनके पास कुबेर का अथाह खजाना है, जिससे वह कई राज्यों में सुविधाजनक आश्रम पर आश्रम खुलते गए। नारायणी सेना की टीम बना लिया। भर्ती युवाओं को उसके शिविर में ट्रेनिंग दी जाती है।
ये वही बाबा हैं जो पुलिस की नौकरी के कार्यकाल में यौन शोषण के दोषी पाए जाने पर अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे थे। बाद में हाईकोर्ट में अपनी याचिका दायर कर पुन: बहाली ले ली थी. 1990 के दशक में वीआरएस ले अपने गाँव कासगंज लौट गए। लोगों का दावा है कि उनके चेलों में बड़े-बड़े अधिकारी और राज नेताओं की भरमार है। बाबा के अंध भक्तों का कहना है, ‘हमारे बाबा असाध्य रोगों का निवारण कर देते हैं. कासगंज के आश्रम में उनके लगाए गए हैंडपंप का पानी पीने से कैंसर तक ठीक हो जाता है,’जिसकी बीमारी ठीक हो जाती है वह एक नया हैंडपंप लगवाता है। ऐसा था तो, उनकी दत्तक पुत्री को कैंसर से नहीं मारना चाहिए था। बाबा की राजनीति साठ-गांठ बहुत जबरदस्त है। बसपा सरकार ने तोउनकी गाड़ी में लाल बत्ती तक लगवा दी थी। सूरज पाल जाति से जाटव है, जिस वजह से उसने दलित और ओबीसी में अपनी गहरी पैठ बना रखी है। सपा सुप्रीमो उसके सत्संग में आशीर्वाद लेते रहते थे, जिसका लाभ उन्हें वर्तमान चुनाव में प्रचुर मात्रा में मिला।
बाबा के एक पूर्व सेवादार ने उनके बारे में बताया कि उनके हर आश्रम में रंगमहल भी मौजूद है, जिसमें सोलह से अट्ठारह वर्ष की लड़कियों के साथ रंग-रलियाँ मनाया करता था। आश्रम में एक खुफिया सुरंग नुमा रास्ता भी बना रखा है. छापामारी से संबंधित किसी प्रकार की थोड़ी-सी भी आहट मिलते ही, सबसे पहले उन लड़कियों को बाहर निकाल जाता था, जो बाबा की सेवा में लगी रहती थीं. सत्संग को संबोधित करते समय बाबा साथ में अपनी पत्नी को जरूर रखते। आश्चर्य तो यह है कि रंगरेलियाँ मनाते बाबा की रखवाली उसकी पत्नी, रंग महल के द्वार पर बैठ,पहरा देती थी।
दो से ढाई टन बुरादे की रंगोली बनाई गई थी. जिस पर चढ़ बाबा जी अपने चांदी के सिंहासन तक पधारे थे. उनके एजेंटों ने हवा फैलाई थी कि बाबा जी की रज-रंगोली को माथे पर लगाने और घर में रखने से, धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती. रोष तो इन अंधभक्तों पर भी बहुत आता है. “घर की चाकी कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार” कबीर दास जी ने सही कहा था. क्या जरूरत थी उस पाखंडी की रज-रंगोली के लिए आपाधापी करने की. जो शख्स अपनी सगी भाभी को भरी सभा में पहचानने से इनकार कर दे, जिसकी विधवा भाभी को मजदूरी कर अपना घर चलाना पड़ता हो, वह किसी भक्त का क्या होगा. समय बड़ा बलवान है, अच्छे या बुरे कर्मों की गांठ खुल ही जाती है। अभी उसके डर से कोई नहीं बोलरहा, किसकी कितनी संपत्ति हड़पी गई है. जाने कैसा भय समाया है कि ईंट भट्टे के मालिक बोल रहे हैं, ‘मैंने अपने मन से भट्टे का नाम बाबा के नाम किया है।