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विरासत है ‘भिवानी के बड़वा गाँव’ की समृद्ध होली परम्परा

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गांव के प्राचीन झांग आश्रम में गांव की सबसे बड़ी डफ मंडली बसंत पंचमी के साथ ही धमाल मचाना शुरू कर देती है और वह आश्रम से लेकर गांव के विभिन्न हिस्सों से गुजरती हुई धमाल पर नृत्य करती हुई गांव के कोने-कोने तक पहुंचती है. इसी प्रकार बाबा रामदेव मेला मंदिर प्रांगण में मनाई जाने वाली होली एक विशेष रूप लिए हुए हैं. होली के अवसर पर मंदिर प्रांगण में एक विशाल डफ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमें उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों की सर्वश्रेष्ठ डफ और धमाल टीम भाग लेती है. राजपूतों के गढ़ में होली मनाई जाती है. जहाँ तरह -तरह के गुलाल लगाकर आपसी भाईचारे का सन्देश देते हुए रंग-बिरंगी होली खेली जाती है. बड़वा में राजपूत घराने के लोग बसंत पंचमी के दिन गांव में होली के उत्सव को मनाना शुरू करते हैं और गणगौर तक उत्साह बरकरार रहता है।

डॉ. सत्यवान सौरभ

भारत के सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़े त्योहारों में से एक होली है। यह 2 दिन तक चलने वाला त्योहार है, पहले दिन को ‘छोटी होली’ मतलब होलिका दहन और दूसरे दिन को ‘रंगवाली होली’ यानी फाग कहा जाता है। पहले दिन शाम को होलिका दहन का आयोजन किया जाता है जहां लोग भगवान से अपनी आंतरिक बुराई को दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं। दूसरे दिन सुबह से ही लोग रंगों और पानी से होली खेलना शुरू कर देते हैं। भारत में होली के दिन होली के रंग या रंगीन पानी फेंकने के लिए एक दूसरे का पीछा करने का सीन सामान्य है, जिसमे खासतौर पर हरियाणा की देवर-भाभियों की कोरडा मार होली यानी फाग का एक अलग ही मजा है। हालांकि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इस शानदार त्योहार को अलग तरह से मनाते हैं।

देशभर में हरियाणा के सिवानी के बड़वा गाँव की होली प्रसिद्ध है। यहां डेढ़ महीने तक होली का जश्न मनाया जाता है। सिवानी के गांव बड़वा की होली में सैकड़ों सालों से राजपूत घराने के लोग धमाल मचाते आ रहे हैं। भिवानी जिले के गांव बड़वा की होली देश भर में अपने अलग अंदाज के लिए जानी जाती है। गांव बड़वा के युवा लेखक दम्पति डॉ सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ बताते है कि गाँव में होली मनाने की परंपरा बसंत पंचमी से शुरू हो जाती है और गणगौर पूजा तक चलती है। भिवानी जिले के खंड सिवानी के गांव बड़वा को एक धार्मिक गाँव माना जाता है। यहां की संस्कृति लाजवाब है। यहां के 36 बिरादरी के लोग आज भी आपसे भाईचारे से अपना जीवन यापन करते हैं और अपनी परंपराएं और रीति रिवाजों को तीज-त्योहारों में संजोये हुए हैं।

होली के अवसर की बात जाए तो गांव बड़वा में होली गाँव के अलग-अलग कोनों के साथ कई मुख्य स्थानों पर विशेष तौर पर मनाई जाती है। गांव के प्राचीन झांग आश्रम में गांव की सबसे बड़ी डफ मंडली बसंत पंचमी के साथ ही धमाल मचाना शुरू कर देती है और वह आश्रम से लेकर गांव के विभिन्न हिस्सों से गुजरती हुई धमाल पर नृत्य करती हुई गांव के कोने-कोने तक पहुंचती है। इसी प्रकार बाबा रामदेव मेला मंदिर प्रांगण में बनने वाली होली एक विशेष रूप लिए हुए हैं। होली के अवसर पर मंदिर प्रांगण में एक विशाल डफ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। जिसमें उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों की सर्वश्रेष्ठ डफ और धमाल टीम भाग लेती है और पूरी रात धमाल नृत्य का आयोजन किया जाता है। विजेता टीम को नकद धनराशि देकर सम्मान किया जाता है। इस दौरन पूरा गाँव धमाल नृत्य देखने बाबा रामदेव मंदिर प्रांगण में पंहुचता है।

राजपूतों के ऐतिहासिक गढ़ में होली मनाई जाती है। जहाँ तरह -तरह के गुलाल लगाकर आपसी भाईचारे का सन्देश देते हुए रंग-बिरंगी होली खेली जाती है। बड़वा में राजपूत घराने के लोग बसंत पंचमी के दिन गांव में होली के उत्सव को मनाना शुरू करते हैं। इस कार्यक्रम में अधिकतर लोग राजपूत घराने के ही डफ बजाने का काम करते हैं जो कि उनका एकमात्र शौक है। स्टेप कार्यक्रम में अन्य जातियों के लोग भी शिरकत करके उसकी रौनक बढ़ाते हैं तथा अलग-अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। आबादी और क्षेत्र के हिसाब से गांव बड़वा काफी बड़ा है। यहाँ की मुख्य गली के साथ हर मोहल्ले की छोटी गलियां जहाँ मिलती है वहां एक चौक बन जाता है। इसी चौक में फाग के अवसर पर आपको देवर- भाभियों की कोरडा मार होली देखने को मिल जाएगी। जो अब हरियाणा भर से गायब हो रही है। मगर गाँव बड़वा में गलियों के इन चौक में फाग के दिन आपको बड़े-बड़े पानी के कड़ाहे या टब मिलेंगे और चारों तरफ देवर-भाभियों की टोलियां। जहाँ कोरडा मार होली का एक जोशीला अंदाज आपके मन को प्रफुलित करेगा। इसके साथ में आपको गीत बजते सुनाई देंगे।

फाग से पहले वाले दिन गांव बड़वा के गुलिया और रोहसड़ा जोड़ पर लोग पूजा अर्चना के साथ होलिका को विराजित करते हैं। और बाद में पूरे दिन समस्त गांव के लोग पूजा अर्चना करते आते हैं। होली पूजन करते हैं। इसके तत्पश्चात देर शाम को मुहूर्त के मुताबिक होलिका का दहन होता है। इस मौके पर पूरे गाँव के लोग शामिल होते हैं। बदलते दौर में गाँव के सबसे पुराने युवा मंडल शिवालिक युवा मंडल ने पानी कि बचत और जहरीले रंगों के दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए लीक से हटकर गुलाल तिलक और फूलों की होली खेलने की नई परंपरा शुरू की है। जो समयानुसार सही भी है।

गाँव में पुरुषों द्वारा होली धमाल प्रमुखता से गायी जाती है और गली-गली गायी जाती है। दो व्यक्ति में आमने सामने डफ बजाते हैं। बीच में ढोल बजाने और मजीरे वाला मजीरे बजाता है। सब पक्तिबद्ध. खड़े होकर गोल घेरा बनाकर गाते हैं। गाँव के प्राचीन सपेरे बीन बजाते हुए घुमकर गाते है। यहां पर बीन वाले को रुपये मेहनताना हर घर से मिलता है। एक घर से दूसरे घर तक जाने पर बीन और बाजा बजाता है। जिसमें सभी होलार नाचते हुए पूरी मस्ती में जाते हैं। जिसमें बीच-बीच में उत्साहवर्धक स्वर निकाले जाते हैं ताकि जोश और मस्ती कायम रहे।

बड़वा गाँव की होली क्या शानदार होली होती है गांव की। एक अलग ही परम्परा है। सारे साल की थकान मिटा देती है ये होली। आज मनोरंजन के इतने साधन होने के बाद भी बड़वा गाँव में सामूहिक मनोरंजन कला सस्कृति का यह माध्यम उतना ही लोकप्रिय है जितना पहले हुआ करता था। गाँव की विशेषता अभी तक भी ये है कि रंग डालना, अबीर गुलाल लगाना सभी सभ्य तरीके से होता है।