समीक्षतामक बैठक में कुलपति ने दिऐ कई तकनीकी निर्देश
सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित विद्यापति सभागार में शनिवार को क्लाइमेट रेजिलियंट एग्रीकल्चर परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के बीच समीक्षात्मक बैठक हुई। जिसकी अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ पीएस पांडेय ने कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा बैठक आयोजित की गई।
बैठक में निदेशक अनुसंधान डॉ एके सिंह, कार्यक्रम के समन्वयक डॉ रत्नेश झा, और विश्वविद्यालय के जुड़े 14 कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के वैज्ञानिक ने शिरक़त की और जलवायु अनुकूल खेती के वार्षिक परिणाम प्रस्तुत किया गया। बैठक के दौरान उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कुलपति डॉ पीएस पांडेय ने कहा कि इस कार्यक्रम को और प्रभावी बनाने के लिए समीक्षा बैठक आयोजित की गई है।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर कृषि पर गंभीर रूप से हो रहा है इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने में नई दृष्टिकोणों और नवोन्मेषी अनुसंधान की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन किसानों पर नकारात्मक प्रभाव डालने जा रहा है और वैज्ञानिकों को एक पूर्ण सुरक्षित योजना के साथ तैयार रहना चाहिए ताकि किसानों पर इसका प्रभाव शून्य हो सके।
उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत विकसित देश बनने की आकांक्षा रखता है और कृषि की वृद्धि इसका महत्वपूर्ण पहलू होगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को जीन संपादन के साथ नए जलवायु प्रतिरोधी जातियों का विकास करने की ओर तेजी से अग्रसर होना होगा। अनुसंधान निदेशक डॉ एके सिंह ने जलवायु प्रतिरोधी कृषि कार्यक्रम के भविष्य की योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी और विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को पुनः प्रकट करते हुए, किसान समुदायों के लाभ के लिए प्राकृतिक कृषि अभ्यासों को बढ़ावा देने की योजनाओं की भी चर्चा की।
कार्यक्रम समन्वयक डा रत्नेश झा ने राज्य के विभिन्न जिलों में चल रहे जलवायु अनुकूल खेती के बारे में जानकारी दी।कुलपति डॉ पांडेय ने कार्यक्रम की निरंतर मॉनिटरिंग और मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए और कहा किसानों और कृषि की बदलती आवश्यकताओं के साथ कार्यक्रम को तारतम्य बना कर चलना होगा।
जलवायु परिवर्तन के कृषि पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने में नवाचारी दृष्टिकोण और सहयोगी प्रयासों की महत्वपूर्णता पर भी गंभीर चर्चा की गई। किसानों को बदलते जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूल होने के लिए आवश्यक ज्ञान और उपकरण प्रदान किया जा रहा है। वहीं 14 कृषि विज्ञान केंद्रों की सक्रिय भागीदारी से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम का प्रभाव 18 हजार एकड़ भूमि पर उत्तर बिहार के ग्यारह जिलों में सफल रहा है। कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के विभिन्न वैज्ञानिक पदाधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।