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Hasdeo Forest Area : प्रस्तावित कोयला परियोजनाओं के विरोध में खड़ा हुआ बड़ा आंदोलन 

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Hasdeo Forest Area : मध्य प्रदेश के फेफड़े कहे जाने वाले वन इकोसिस्टम को है खतरा 

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का स्थानीय एवम प्रदेश भर के आदिवासी विरोध कर रहे हैं। इससे राज्य के ‘फेफड़े’ कहे जाने वाले वन इकोसिस्टम को खतरा है। यह क्षेत्र जैव विविधता में समृद्ध है और हसदेव तथा मांड नदियों के लिए जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) है, जो राज्य के उत्तरी और मध्य मैदानी इलाकों की सिंचाई करते हैं।

यह सर्वविदित है कि राहुल गांधी ने 2015 में पहले लंदन में और बाद में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में जाकर कहा था कि जंगल के पेड़ों की कटाई नहीं होगी तथा आदिवासियों की आजीविका पर आंच नहीं आएगी।
लेकिन कांग्रेस सरकार ने राहुल गांधी के विरोध को दरकिनार कर   27 सितंबर को 6  घंटे में दो हजार पेड़ काट दिए गए। अभी ग्यारह सौ हेक्टेयर का जंगल काटा जाना बाकी है।

कुछ महीने पहले  छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव (बाबा साहब) ने कहा था कि यदि गोली चलेगी तो सबसे पहले मुझ पर चलेगी। तब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि बाबा यदि नहीं चाहेंगे तो, एक डगाल भी नहीं काटी जाएगी। लेकिन अडानी कोल ब्लॉक के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री  ने राहुल गांधी की बात मानने से भी इंकार कर दिया है।  नागरिक समाज के जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ की सरकार लाई थी वहीं आज भूपेश बघेल के सामने हसदेव अरण्य बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। 142 दिनों से बिलासपुर में हसदेव के  आदिवासियों के समर्थन में जो
आंदोलन चल रहा था उसके दो नेताओं ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है, जिसका आज तीसरा दिन है।

दरअसल खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने गत छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी। यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई है।

एक अध्ययन के हवाले से बताया कि वनों के कटाई और खनन से 700 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की संभावना होगी और इससे क्षेत्र के आदिवासी समुदायों की स्वतंत्रता और उनकी आजीविका को खतरा है। परसा कोयला ब्लॉक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया है, जबकि अडाणी एंटरप्राइजेज को माइन डेवलेपर और ऑपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है। विरोध प्रदर्शन के तहत आदिवासी परिवार पेड़ों की सुरक्षा करने के लिए शिफ्टवार तरीके से जंगलों में डेरा डाले हुए हैं। छह अप्रैल को कटाई को मंजूरी मिलने के बाद क्षेत्र की महिलाओं ने पेड़ों को गले लगा लिया, जिसने चिपको आंदोलन की यादों को ताजा कर दिया है।