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ऐसा फैसला तो नहीं दे दिया सुप्रीम कोर्ट ने ?

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चरण सिंह 
एससीएसटी कोटे में से कोटा का मामला कोई केंद्र सरकार का तो है नहीं। यह तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। यह तो सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सीवर की सफाई करने वाले और बुनकर दूसरे दलितों से पिछड़े हुए हैं। ऐसा भी नहीं है कि सभी दलितों में समानता है। अंतर तो होता ही है। प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि क्रीमीलेयर का मामला अलग है। ऐसा भी नहीं है कि दलितों का आरक्षण छीनकर ओबीसी या फिर जनरल को देने की बात की जा रही हो। यह तो एससीएसटी आरक्षण में ही व्यवस्था की बात है।
दरअसल आदिवासी संगठनों ने हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था। नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी मांगों की एक लिस्ट भी जारी की। यह आह्वान सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST आरक्षण में क्रीमीलेयर और उपवर्गीकरण करने के फैसले के खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ मोर्चा ने किया था। क्रीमीलेयर के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कई दलित और आदिवासी संगठनों ने ये बंद बुलाया था। वैसे तो लगभग हर राज्य में भारत बंद का मिलाजुला असर रहा पर  बिहार में इसका आंशिक असर देखा गया।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एक फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि सभी SC-ST जातियां और जनजातियां समान वर्ग नहीं हैं। कई जातियां ज्यादा पिछड़ी हो सकती हैं। इसके लिए अदालत ने सीवर की सफाई करने वाले और बुनकर का काम करने वालों का उदाहरण दिया था। उन्होंने कहा कि ये दोनों ही जातियां SC कैटेगरी में आती हैं। इस जाति से आने वाले लोग बाकी लोगों से ज्यादा पिछड़े हैं। इंदौर में इस बंद का कोई खास असर नजर नहीं आया।