राजाजी टाइगर आरक्षित वन्य जीव उद्यान में ग्रिफान गिद्धों का डेरा

इस उद्यान की मोतीचूर रेंज में इन दिनों आईयूसीएन की लाल सूची तथा विलुप्ति के कगार पर पहुंचे हिमालय ग्रिफॉन गिद्धों ने डेरा जमाया हुआ है।

वन्य जीव विशेषज्ञ, पर्यावरणविद् और उद्यान के अधिकारी भी हतप्रभ और सुखद अनुभव कर रहे हैं क्योंकि कई साल बाद इस प्रजाति के गिद्ध राजाजी टाइगर आरक्षित वन्यजीव उद्यान में दिखाई दिए हैं। पर्यावरण की दृष्टि से यह शुभ संकेत है।  राजाजी टाइगर आरक्षित वन्य जीव उद्यान में देखे जा रहे ग्रिफान गिद्ध

 

उद्यान के मोतीचूर क्षेत्र में मौजूद जंगल साल भर हरे-भरे रहते हैं। इस स्थान पर कई तरह के वन्यजीव प्राणी हैंं। साथ ही पक्षियों की कई प्रजातियां भी हैं। कुछ साल में यह क्षेत्र प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध हुआ है। राजाजी टाइगर आरक्षित वन उद्यान के मोतीचूर क्षेत्र के अलावा चीला क्षेत्र में भी ये दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध नजर आते हैं।

संकटग्रस्त प्रजाति के हैं ये गिद्ध

हिमालय ग्रिफान गिद्ध उच्च हिमालयी क्षेत्रों तथा तिब्बती पठार में पाए जाते हैं। इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। यह अपने चौड़े और शक्तिशाली पंखों के बूते पांच हजार 500 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से उड़ सकते हैं। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा विलुप्त वन्य पक्षी के रूप में सूचीबद्ध हैं।

मोतीचूर रेंज के वन क्षेत्राधिकारी आलोकि के अनुसार विलुप्त प्रजाति के गिद्धों की मोतीचूर परिक्षेत्र में मौजूदगी की वजह से यहां की निगरानी बढ़ा दी गई है। वन्यजीवों के जानकार सुनील पाल का कहना है कि इन गिद्धों की क्षेत्र में उपस्थिति यहां की पर्यावरण की गतिविधियों और पारिस्थितिकीय के लिए शुभ संकेत है।

पर्यावरणविद स्वरूप पुरी का कहना है कि इस विलुप्त प्रजाति के पक्षियों के यहां आने से यह साबित होता है कि यह जगह इनके लिए अनुकूल है। इन गिद्धों की दैनिक गतिविधियों पर वन विभाग और वन्य जीव विशेषज्ञ तथा पर्यावरणविद् अपनी निगाह बनाए हुए हैं। इनकी रोजाना की दिनचर्या का आकलन किया जा रहा है। डाटा तैयार किया जा रहा है।

पर्यावरण की रक्षा करते हैं गिद्ध

पक्षियों की श्रेणी में गिद्ध शिकारी पक्षियों में गिने जाते हैं परंतु ये शिकार नहीं करते बल्कि मृत पशुओं या शवों को खाकर भोजन प्राप्त करते हैं। वे प्रकृति के सफाईकर्मी माने जाते हैं। गिद्ध मृत प्राणियों के अवशेषों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह वे पर्यावरण की रक्षा में मनुष्यों की सहायता करते हैं। साथ ही कई तरह की गंभीर संक्रामक बीमारियों से मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं।

भारत में गिद्धों की प्रजातियां

भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें लंबी चोंच वाला गिद्ध, सफ़ेद पीठ वाला काला गिद्ध, लाल सर वाला या राज गिद्ध, छोटा सफ़ेद गिद्ध, पतली चोंच वाला गिद्ध, हिमालयन गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, सिनेरियस गिद्ध, बेअरडेड गिद्ध या लेमेरगियरर ।

गिद्धों के अस्तित्व पर संकट

अंतरराष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पर्यावरण विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा दिनेश चंद्र भट्ट का कहना है कि 90 के दशक से पहले जब कहीं भी कोई जानवर मर जाता था तो आसमान गिद्धों से भर जाता था। चारों तरफ यही पक्षी नजर आते थे और जानवरों के शव की हड्डियों का ढांचा मात्र रह जाता था।

परंतु 90 के दशक के बाद ये पक्षी एकदम गुम से हो गए और विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए । 90 के दशक के आसपास जीव वैज्ञानिकों ने यह पाया कि गिद्धों की तादाद बहुत तेजी से कम हो रही है। भारत में गिद्धों की प्रजाति 90 फीसद तक समाप्त हो चुकी है। इनके विलुप्त होने का कारण मृत पशुओं के शरीर में ह्यडाइक्लोफेनाक सोडियमह्ण दर्द निवारक का होना है जो जीवित पशुओं के इलाज में प्रयोग की जाती हैं। यह दवा गिद्धों के लिए सबसे अधिक घातक साबित हुई। वही कई वर्षों से विभिन्न पर्यावरणविद और पक्षी विज्ञानी गिद्धों को बचाने की कवायद में लगे हैं।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *