Freedom Struggle :अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर अकेले ही मोर्चा संभाल लिया था बलिया के जांबाज ने
Freedom Struggle : भले ही लोग Freedom Struggle को भूलते जा रहे हों। राजनीतिक दलों का मकसद बस किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो पर क्या आज की तारीख में लोगों इस बात का थोड़ा सा भी एहसास है कि किन परिस्थितियों में किन-किन क्रांतिाकरियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया। वो कौन से क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजों हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले बगावत की थी। आज जिस तरह से देश में आपाधापी का माहौल है ऐसे में आजादी की लड़ाई और लड़ाई में सब कुछ न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारियों के बारे में बताना जरुरी हो गया है। हमारे देश में पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ मानते हैं।
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यह 1857 का स्वतंत्रता संग्राम ही था कि Freedom Struggle इस संग्राम से मिली प्रेरणा से ही लड़ाई गई। यह भी जमीनी हकीकत है कि एक ओर क्रांतिकारी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे वहीं कई रियासतें अंग्रेजों का साथ दे रही थीं। बताया जाता है कि देश तो 1857 में ही आज़ाद हो जाता पर ग्वालियर, रामपुर और पटौती जैसी रियासतों ने देश से गद्दारी कर इस स्वतंत्रता संग्राम को कुचलवा दिया था।
Revolt of Mangal Pandey : बात जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की हो रही है तो मंगल पांडे का नाम न लिया जाये, ऐसा हो ही नहीं सकता है। दरअसल 1857 के स्वतत्रंता संग्राम के नायक मंगल पांडे ही थे। दरअसल यह दांस्ता बंगाल की बैरकपुर छावनी में भारतीय सिपाहियों द्वारा की गई बगावत की है। बात 29 मार्च 1857 की है। वैसे यह महीना मंगल पांडेय के जन्मदिन का था। 19 जुलाई 1827 को मंगल पांडे का जन्म हुआ था। वह मांगल पांडे ही थे, जिन्होंने बैरकपुर छावनी की बगावत की अगुआई की थी। वह मंगल पांडे ही थे, जिनकी बंदूक से निकली गोलियों ने उस वक्त अंग्रेजी अफसरों को सबसे पहले जद में लिया और इसके कुछ समय बाद ही हजारों हिन्दुस्तानी लड़ाकों ने अंग्रेजों को अपनी ताकत का एहसास कराया।

मंगल पांडे के जन्म स्थान को लेकर कुछ भ्रम भी है। कहीं कोई किताबें बयां करती हैं कि मंगल पांडे की पैदाइश उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गांव नगवा में हुई थी तो कुछ लोग उनकी पैदाइश अकबरपुर में मानते हैं। इन दो के अलावा एक तीसरी कहानी यह भी है कि कुछ लोग मंगल पांडे की जन्मस्थली बुंदेलखंड के ललितपुर में भी मानते हैं। हालांकि सरकारी दस्तावेजों में मंगल पांडे का जन्मस्थान बलिया के नगवा में ही बताया जाता है।
यदि मंगल पांडे की पृष्ठभूमि की बात की जाये तो मंगल पांडे के पिता दिवाकर पांडे खेती किसानी किया करते थे और मां अभय रानी घर का काम संभालती थीं, घर में हिन्दू महजब के रस्मो रिवाज सख्ती से अमल में लाये जाते थे। जाहिर है कि मंगल पांडे के दिल ओ दिमाग पर हिन्दू मजहब के रस्मो रिवाज पूरी तरह से हावी रहे होंगे। मंगल पांडे 21 साल की उम्र में फौज में भर्ती हो गये थे। बात 1849 की है। उस दौर में अंग्रेजों ने अपनी फौज में हिन्दुस्तानियों के लिए अलग पलटन बना रखी थी। उसी में एक 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री थी।
मंगल पांडे सिपाही के ओहदे पर इसी बटालियन में तैनात हुए। यहां शुरू-शुरू में तो सब ठीक-ठाक रहा लेकिन दिक्कत तब हुई जब 1855 के आसपास अंग्रेजों ने नई बंदूकें फौज में शामिल कीं। इन बंदूकों का नाम इनफील्ड-53 था। इन नई बंदूकों के लिए नए कारतूस आए जो बवाल की जड़ बन गये। दरअसल इन नए कारतूसों पर खास तरह की परत होती थी, जिसे मुंह से छीलकर कारतूस को बंदक में भरना पड़ता था। इन कारतूसों के बाबत फौज में यह खबर फैली कि इन पर जो परत है, वह गाय और सूअर के मांस की चर्बी है। खबर यह भी थी कि अंग्रेजों ने जानबूझकर ये बंदोबस्त किया है ताकि हिन्दुओं और मुसलमानों को उनके मजहब से हटाया जा सके।
दरअसल हिन्दू गाय के मांस से परहेज करते हैं जबकि मुसलमानों में सूअर के मांस से दिक्कत होती है। कारतूसों में गाय और सूअर के मांस की चर्बी होने की वजह से अंग्रेजों के साथ काम करने वाले हिन्दू और मुस्लिम दोनों कौम के फौजी इस खबर से परेशान थे। तभी दो वाकिये हुए पहला वाकिया इस तरह हुआ कि 34वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री में एक अफसर आए कर्नल एस व्लीलर, वे ईसाइयत के पक्के मानने वाले थे। वे साथी फौजियों को भी उसे मानने-अपनाने पर जोर दे रहे थे।
दरअसल हुआ यूं कि 56वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के एक अफसर कैप्टन विलियम हॉलीडे की बेगम ने ईसाइयों की पाक किताब बाइबिल को फौजियों के बीच बंटवाना शुरू कर दिया।
दरअसल हुआ यूं कि 56वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के एक अफसर कैप्टन विलियम हॉलीडे की बेगम ने ईसाइयों की पाक किताब बाइबिल को फौजियों के बीच बंटवाना शुरू कर दिया।
अंग्रेजों ने इस किताब का खास तौर पर हिन्दी और उर्दू भाषा में अनुवाद कराया था। यही किताबें हिंदुस्तानियों फौजियों को बांटी जा रही थी, ताकि वे अपनी भाषा में वह सब समझ सकें, जो बाइबिल में लिखा है। हालांकि अंग्रेजों की इस कोशिश को हिन्दुस्तानी फौजियों ने यूं समझा कि अंग्रेज उनका मजहब उनसे छीन लेने के इंतजाम कर रहे हैं। कारतूस का मसला तो पहले से था ही। बस फिर क्या था कि इस मामले ने आग में घी डालने का काम किया।
इस आग ने सबसे पहले जिसे जद में लिया था वह मंगल पांडे थे। यह Revolt of Mangal Pandey ही थी कि उनके लिए यह बर्दाश्त से बाहर था। वह 1857 का 29 मार्च था कि मंगल पांडे बैरक के बाहर टहल रहे थे। गुस्सा काबू से बाहर हो रहा था। दोपहर का वक्त था। बताया जाता है कि मंगल पांडेय मैदान में टहलते हुए अपने साथी फौजियों को आवाजें लगा रहे थे। बाहर आओ, हथियार उठाओ, नहीं तो ये अंग्रेज हमें विधर्मी बनाकर ही छोड़ेंगे। उन्हें इस हाल में देखकर किसी ने ऊपर के अफसरों को यह खबर दे दी। इन अफसरों में एक थे, सार्जेंट मेजर जेम्स ह्यूसन, दूसरे थे लेफ्टिनेंट हेनरी बाफ।
आनन-फानन में थोड़े से वक्त के फासले पर दोनों ही छावनी पहुंचे। Revolt of Mangal Pandey को दबाने के लिए ह्यूसन ने पहले सिपाहियों से ऊंचे ओहदे वाले हिन्दुस्तानी अफसर जमादार ईश्वरी प्रसाद को बुलाया, उन्हें हुक्म दिया कि तुरंत मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लें। लेकिन ईश्वरी प्रसाद ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। यह कहकर कि मंगल पांडे के सिर पर खून सवार है। वे अकेले नहीं पकड़ सकते। कोई दूसरा सिपाही इस काम में उनकी मदद के लिए तैयार नहीं होगा। उधर घोड़े पर सवार हेनरी बाफ अकेले ही सीधे मंगल पांडे को काबू करने जा पहुंचे। अंग्रेज बाबू यह गलती कर बैठे थे। शायद मंगल पांडे अब तक भरी हुई बंदूक के साथ क्वार्टर गार्ड की इमारत की आड़ ले चुके थे।
उन्होंने वहीं से Henri Baff was shot. दरअसल मंगल पांडे ने अपने साथियों से वादा किया था किया था कि आज जो अंग्रेज उनके सामने आएगा वह उनके हाथ से मारा जाएगा। उसी वादे के मुताबिक उन्होंने काम किया। हालांकि पहली बार में निशाना चूक गया। घोड़े को गोली लगी और वह सवार के साथ जमीन पर आ गिरा, इतने में बाफ ने फुर्ती से अपने आप को बचाते हुए अपनी पिस्ताौल से जवाबी गोली चलाई, लेकिन वह बेकार गई। तब तक मंगल पांडे तलवार लेकर खुले मैदान में आ चुके थे। उन्होंने बड़ी तेजी से सीधे बाफ पर हमला बोल दिया। बाफ अपनी तलवार निकाल पाते कि तब तक मंगल पांडे बाफ को घायल कर चुके थे।
Front taken from James Hewson
इस फसाद की खबर जेम्स ह्यूसन को मिल चुकी थी वे भी अब मौके पर आ चुके थे। ह्यूसन अपनी बंदूक से जब तक मंगल पांडे पर निशाना साधते कि उन पर भी हमला बोल दिया गया। बंदूक के पिछले हिस्से से मारकर पांडे ने ह्यूसन को नीचे गिरा दिया। इसी बीच हिन्दुस्तानी फौजियों में एक सिपाही शेख पलटू लगातार मंगल पांडे को पकड़ने की कोशिश कर रहा था, जबकि बैरक से निकलकर मैदान में आ चुके बाकी सिपाही पलटू पर पत्थरों और जूतों की बरसात कर रहे थे ताकि वह मंगल पांडे पर अपनी पकड़ न बना सके। उधर ऊपर के अफसरों को इस बारे में खबरें दी जा चुकी थीं। कंपनी के कमांडिंग अफसर जनरल हियरसे दो अंग्रेज अफसरों के साथ छावनी में आ चुके थे। वे सब मिलकर अब मंगल पांडे को काबू में करने की कोशिश कर रहे थे। इससे वे घायल हुए पर जान नहीं गई।
मंगल पांडे गिरफ्तार हो चुके थे। हफ्ते भर में ही उनके खिलाफ मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। उनकी मदद के जुर्म में जमादार ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी की सजा सुनाई गई। तारीख मुकर्रर हुई कि मंगल पांडे को 18 और प्रसाद को 21 अप्रैल को फांसी दी जाएगी लेकिन अंग्रेजों को डर लगा कि मंगल पांंडे को इतने दिन जिंदा रखा तो दूसरे फौजी भी कहीं बगावत न कर दें। लिहाजा Hanged on 8th April.
प्रसाद की फांसी की तारीख वही रही। अंग्रेजों की मदद करने वाले शेख पलटी को तरक्की दे दी गई। उसे हवलदार बना दिया गया था। हालांकि पड़ताल आगे जारी रही। इसमें पाया गया कि पलटन के करीब-करीब सभी हिंदुस्तानी फौजी मंगल पांडे का साथ दे रहे थे। लिहाजा 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री खत्म कर दी गई। बतौर सजा तारीख थी छह मई 1857। हालांकि कि इंफेंट्री खत्म होती उससे पहले शेख पलटू को किसी ने खत्म कर दिया। मगर बगावत का सिलसिला जो शुरू हुआ वह खत्म न हो सका। यह Freedom Struggle ही था कि आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
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