प्रोफेसर राजकुमार जैन
आजकल आज़ादी का जश्न सरकारी तौर पर ज़ोर शोर से मनाया जा रहा है। मगर हकीकत यह है कि अवाम के स्तर पर रस्मी तथा छुट्टी के आनंद, खाने-पीने, सैर सपाटे,हफ़्ते भर के बचे हुए कामों को निपटाने के तौर पर मनाया जाता है। इसमें कुसूर जनता का नहीं, हमारे सरकारी तौर तरीकों, सियासी पार्टियों के वक्ती तौर पर नेताओं की तस्वीर चमकाने, घीसे-पीटे नारो के शौर गुल तक ही महदूद रहती है। आज लाल किले के परकोटे से वजीरे आजम की तकरीर इसकी ताजा नजीर है।
इन्सान की तड़फ, आँसू, जुड़ाव, मौहब्बत, त्याग करने की भावना तभी पैदा होती है जब उसे आज़ादी मिलने के पीछे का इतिहास कुर्बानियों से वाकिफ़ करवाया जाए। हकीकत यह है, आज के दिन, बच्चों के सामने, अरबों रुपयों के खर्चों से चमक-दमक पैदा कर आज के नेताओं के बदशक्लों को लीपापोती कर चमकाने का नाटक किया जाता है। प्रधानमंत्री से लेकर, सुबाई मुख्यमंत्री, वजीर तक का इतिहास खोजे तो प्रेरणा का तो सवाल ही नहीं, गुस्सा पैदा हो जाएगा।
सैकड़ों साल की बर्तानिया गुलामी के खि़लाफ़ जगें आज़ादी में अपने ज्ञान-हुनर, काबलियत से एैशो-आराम की ज़िन्दगी बसर कर सकने वालों ने गांधी का सत्याग्रही सिपाही बन अपने को उस लड़ाई में झौंककर अंग्रेज़ी फौज पुलिस की गोली-लाठी, अश्रु गैस के गोलो की मार सहते हुए लम्बी-लम्बी जेल यातनाएँ भौगी थी, तब जाकर आज आज़ादी का जश्न मनाने का मौका मिला था।
परंतु अफ़सोस हमारी नयी पीढ़ी तवारिख की इन लोमहर्षक गाथाओं से नावाकिफ है,उसका आदर्श, सपना, तमन्ना कुछ और ही है। यूँ तो आज़ादी की जंग में लाखों हिन्दुस्तानियों ने अपनी-अपनी तरह से त्याग किया था, आज़ादी के इस दिन ज़्यादा से ज़्यादा उनके ज्ञान त्याग, संघर्ष की गाथाओं की कहानी, दोहराने, बतलाने कलमबंद करने की लाजमी ज़रूरत है। आज मैं संयोगवश बापू ए यूनीक एसोसिएशन वॉल्यूम वन Ghanshyam Das बिरला पढ़ रहा था, तो मुझे मेरे पुरखे जयप्रकाश नारायण के बारे में 147 पन्ने पर महात्मा गांधी द्वारा 29 जुलाई, 1930 को पूना की जेल से घनश्यामदास जी (बिरला) के नाम लिखा खत पढ़ने को मिला। पत्र को पढ़कर आँखों से आँसू निकल आये, भावुकता के इसी आवेश में मैंने इस किस्से को कलमबंद कर पेश किया है।
तवारिख गवाह है कि महात्मा गांधी के सिपहसालारों की लंबी फेहरिस्त है। खान अब्दुल गफ्फार खान (सरहदी गांधी) पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जैसे अनेकों उनके अनुयायियों की कुर्बानी से मोटे तौर पर आम हिंदू हिंदुस्तानी वाकिफ है परंतु इस कड़ी में उस वक्त के दो ऐसे भी नौजवान शामिल थे जो खासतौर पर गांधी जी के लाडले थे। जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर लोहिया जयप्रकाश नारायण अमेरिका से तथा डॉ॰ राम मनोहर लोहिया जर्मनी से यूनिवर्सिटी की पीएचडी की डिग्री लेकर वापिस हिंदुस्तान आकर गांधी की फौज में शामिल होकर आज़ादी की जंग में कूद पड़े। अंग्रेज़ी हुकूमत की जेलों, ख़ास तौर से लाहौर किला जेल में मिली अमानुषिक यातनाओं पर गांधी जी ने बाल्मीकि मंदिर, रेडिंग रोड, नई दिल्ली से 2 अप्रैल 1946 को लॉर्ड पेथिक लारेंस, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इण्डिया नई दिल्ली को लिखा था :
प्रिय लॉर्ड लारेंस
श्री जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर लोहिया को अब बंद रखना हास्यास्पद है, दोनों ही विद्वान और सुसंस्कृत व्यक्ति हैं जिन पर कोई भी समाज गर्व कर सकता है और न अब कोई ऐसा मौका है कि हम किसी को भूमिगत कार्यकर्त्ता कहे इनकी रिहाई के प्रश्न को आगामी राष्ट्रीय सरकार के जिम्मे डाल देना ऐसा क़दम होगा जिसे न कोई समझेगा और न कोई सराहना करेगा। स्वाधीनता अपनी गरिमा खोदेगी।
भवदीय,
मो॰क॰ गांधी
13 अप्रैल 1946 को नई दिल्ली की प्रार्थना सभा में गांधी ने प्रवचन देते हुए कहा था “आप लोग जयप्रकाश नारायण और डॉ॰ लोहिया को जानते हैं। दोनों ही साहसी और विद्वान आदमी है। वह आसानी से धनी बन सकते थे पर उन्होंने त्याग और सेवा का रास्ता अपनाया। देश की गुलामी की जंजीर तोड़ना ही उनका मिशन बन गया। स्वाभाविक था कि विदेशी सरकार उन्हें अपने लिए ख़तरनाक समझे और उन्हें जेल में डाल दे। हमारा गुण को नापने का अलग पैमाना है। उन्हें हम देशभक्त समझते है जिन्होंने देश के लिए या जिसने उन्हेंै जन्म दिया। प्रेमवश सब कुछ बलिदान कर दिया।”
यही जयप्रकाश नारायण जब अमेरिका से अपनी तालीम समाप्त कर वापिस हिंदुस्तान लौटते है तो गांधी जी घनश्यामदास बिड़ला को लिखते है:
FROM JAIL,
December 2, 1930
BHAI GHANSHYAMDASJI.
This letter is about Jayaprakash Narayan. He hails from a distinguished family of Bihar and is the son-in-law of that pro vince’s great worker, Brijkishore Babu. Till now he has been with Pandit Jawaharlal in the Congress office. He studied in America for seven years. Now that his mother is dead, he feels the need co earn something. His requirements will be covered by Rs. 300 per month. Jaya Prakash is a qualified young man. I would like him to be employed somewhere under your auspices with a monthly salary sufficient enough to meet his needs. The rest he will tell you himself. I know Babu Brijkishore’s daughter very well indeed. She has lived in the Ashram for a number of years. I have come across few such dutiful and purposeful girls.
Yours,
Mohandas
Jayaprakash informs me that, although you are not recruit ing any new people just now, he will be absorbed somewhere because of my recommendation. I certainly hold that Jaya prakash is an able young man but I do not wish that a post be created where none exists today.
इस खत से दो बातें साफ़ तौर पर उभर कर आती है। एक, जयप्रकाश नारायण, उस ज़माने के इतने बड़े तालिमयाफ्ता, जो बड़ी आसानी से अच्छी नौकरी पाकर ऐशो आराम की ज़िन्दगी बरस कर सकते थे, उसकी जगह 1933 में नासिक जेल, 1940 में जमशेदपुर में गिरफ़्तार 9 महीने की सजा, 4 जनवरी 1941 में बम्बई में गिरफ़्तार कर देवली कैम्प जेल में बंदी 1942 में हजारी बाग जेल 18 सिंतबर 1943 को गिरफ़्तार कर लाहौर किला जेल जनवरी 1945 को आगरा जेल, कुल मिलाकर लगभग 7 साल मुल्क की आज़ादी के लिए जेल के सींकचों में यातना सहकर गुजारे।
मैंने अपने एक सोशलिस्ट पुरखे की कहानी लिखी है, मेरे ख़ानदान में ऐसे कई मरदे मुजाहिद है जिनकी कुबार्नियों की कहानी एक दूसरे से बढ़ चढ़कर है।
मेरे लिए आज का दिन उनको याद कर कुछ सबक लेने का है।