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Firozabad news : डायरिया में उपचार के साथ आहार भी जरूरी : डॉ. गुप्ता

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बच्चों में डायरिया का प्रमुख कारण है रोटावायरस : सीएमओ

फिरोजाबाद । बरसात के मौसम के बाद गंदगी और संक्रमण के कारण अनेक बीमारियाँ पैर फैलाती हैं, इनमें से एक है डायरिया। अमूमन दस्त लगना एक आम बात है, लेकिन यदि स्थिति गंभीर है तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, विशेष रूप से बच्चों में। डायरिया के समय बच्चों को विशेष आहार की आवश्यकता होती है जिससे वे शीघ्र स्वस्थ हो सकें।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. डी के प्रेमी का कहना है कि इस वर्ष लगभग 1172 बच्चे डायरिया संक्रमित मिले हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी तथा शरीर में पोषक तत्वों की कमी के कारण वह आसानी से डायरिया के संक्रमण में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण रोटावायरस है। यह विषाणु बच्चों की अंतडियों को संक्रमित कर आंत की अंदरूनी परत को क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे बच्चे बार-बार मल त्यागते हैं और उल्टी भी करते हैं। इसके बचाव के लिए टीका लगवाना चाहिए।
नोडल ऑफिसर डॉ. के के वर्मा का कहना है कि बदलते मौसम में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और हाथ धुलने के ‘सुमन-के’ के फार्मूले पर अमल करना चाहिए। क्योंकि बच्चों में डायरिया होने के मुख्य कारणों में से एक हाथों की गंदगी है। बच्चे गंदे हाथों को ही मुंह में डाल लेते हैं या उससे कुछ भी खा लेते हैं।
जिला अस्पताल फिरोजाबाद में तैनात बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एलके गुप्ता का कहना है कि डायरिया होने के समय प्राथमिक उपचार जैसे ओआरएस घोल, हल्का खाना आदि से बच्चे एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। उपचार के साथ ही उनके आहार पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। शिशुओं को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ, हल्का भोजन बराबर दिया जाना चाहिए जिससे बच्चों में डिहाइड्रेशन ना हो सके और छोटे शिशुओं का स्तनपान भी जारी रखना चाहिए।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि डायरिया के प्रथम चरण में तरल पदार्थ, ओआरएस घोल, नारियल पानी, मां का दूध आदि से पूर्णतया रोकथाम संभव है।
डॉ. गुप्ता का कहना है कि दस्त होने पर केला बहुत लाभकारी होता है, चावल का पानी जो पेट की गर्मी को शांत कर करता है, दही या छाछ का सेवन, नींबू और नारियल पानी, भी डायरिया में कारगर साबित होता है। साथ ही हल्का खाना खिचड़ी, दलिया आदि भी डायरिया में दिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों में इन्फेक्शन का खतरा ज्यादातर दूध की बोतल से भी होता है क्योंकि दूध की बोतल को माताएं दिन में एक या दो बार ही गर्म पानी से धोती हैं और दूध का सेवन बच्चों को दिन में कई बार कराती हैं जिससे बच्चे तुरंत संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। कम बच्चे ही डायरिया की गंभीर स्थिति में पहुंचते हैं, ज्यादातर बच्चों को प्रथम चरण में उपचार से ही ठीक कर लिया जाता है।