धरती पर बरस रही आग तो आसमान की तरफ चढ़ चला पारा
राम विलास
राजगीर। पंच पहाड़ियों के लिए मशहूर राजगीर और इसके आसपास में भीषण गर्मी पड़ रही है। बुधवार को नौ तपा के पांचवे दिन पर्यटक शहर में भीषण गर्मी में लोग अच्छे खासे परेशान रहे। इन दिनों भीषण गर्मी के कारण पिछले छह साल का रिकार्ड टूटा है। बुधवार की चिलचिलाती धूप के बीच ऐसा महसूस हो रहा है मानो आसमान से ‘अग्निवर्षा ‘ हो रही हो।
तेज धूप से शरीर में जलन का अहसास हो रहा है। जो जहां है वहीं परेशान है। इन दिनों राजगीर में राजस्थान जैसी गर्मी का अहसास हो रहा है। तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि से शहरवासी चिंतित है। शहर में पहुंचे पर्यटक भी गर्मी के कारण बेहाल हैं। वे दिन में ठीक से नहीं घूम पा रहे हैं। शहर की सड़कें और पर्यटन स्थल वीरान लग रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि राजगीर की पहाड़ियों पर दरख्त नहीं हैं। वन क्षेत्र लगातार सिकुड़ती जा रही है। आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। पहाड़ियों पर छायादार पेड़ पौधारोपण नहीं होना और ग्लोबल वार्मिंग आदि के कारण लगातार तापमान बढ़ने का प्रमुख कारण है। स्थानीय नागरिकों की माने तो पहले भी गर्मी पड़ती थी, लेकिन इतनी अधिक गर्मी नहीं पड़ती थी।
अभी तापमान आसमान की तरफ चढ़ता दिख रहा है। दिन में भीषण गर्मी के कारण सड़कें सुनसान रहती है। छांव देने के लिए छायादार वृक्ष भी कहीं नहीं दिखती है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से संपन्न शहरवासी इस भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं, जबकि गरीब परिवार हाथ पंखा झल रहा है।
अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ धीरेन्द्र उपाध्याय कहते हैं कि राजगीर पंच पहाड़ियों के लिए मशहूर है। लेकिन यहां की पहाड़ियों पर बरगद, पीपल, नीम, गूलड़ आदि छायादार वृक्ष खोजने पर भी नहीं मिलते हैं। सबसे बड़ा कारण जंगल और पहाड़ियों पर बड़े और छायादार पेड़ों का नहीं होना और राजगीर का कंक्रीट के शहर में तब्दील होना भी है।
पहले यहां के पहाड़ियों पर बड़ी संख्या में छायादार पेड़ होते थे। अब खोजने पर भी नहीं मिलते हैं। यह राजगीर के हित में नहीं है। राजगीर – तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा कमिटी के प्रवक्ता सुधीर कुमार उपाध्याय कहते हैं कि पहले भी भीषण गर्मी पड़ने का रिकॉर्ड रहा है। लेकिन राजगीर में आज की तरह गर्मी कभी नहीं पड़ी। गर्मी के पीछे सबसे बड़ा कारण बरगद, पीपल, नीम जैसे बड़े पेड़ों का नहीं होना है।
वन क्षेत्र हो या पहाड़ियां पौधारोपण के नाम पर सब जगह खानापूर्ति हो रहे हैं। निर्माण के नाम पर बड़े पेड़ कट रहे हैं, लेकिन छोटे पौधे भी उस अनुपात में नहीं लग रहे हैं। छोटा पौधा देखभाल के अभाव में कब बड़ा होगा उसकी कोई गारंटी नहीं है। रिटायर स्टेशन सुपरिटेंडेंट और पर्यावरण प्रेमी मंतोष कुमार मिश्रा कहते हैं कि राजगीर में वृक्षों का दोहन जिस गति से हो रहा है, उस गति से छायादार पेड़ों का पौधारोपण नहीं हो रहा है।
यही कारण है कि राजगीर के मौसम सदाबहार होने के बजाय प्रभावित हो रहा है। जिस गति से निर्माण कार्य हो रहे हैं और छायादार वृक्षों की संख्या कम हो रही है। एसी और कार्बनयुक्त वाहनों की संख्या लगातार बढ़ने के कारण भी शहर के तापमान में बदलाव हो रहा है। प्रकृति के अध्यक्ष नवेन्दू झा कहते हैं कि राजगीर राज्य का सबसे बड़ा हिल स्टेशन है।
यहां हिल तो है, लेकिन उसपर छायादार वृक्ष नहीं हैं। चौड़ी पत्ती के पेड़ खोजने के बाद भी पर्यटक शहर में मुश्किल से मिलते हैं। जरुरत है राजगीर की पहाड़ियों पर और जंगलों तथा आसपास के इलाकों में छायादार व चौड़ी पत्ते के वृक्षों का बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कराने की। उन्होंने कहा कि छायादार और चौड़ी पत्ते के पौधे धरती तथा पत्थर के तापमान भी नियंत्रित करता है।
धरती का तापमान रोकने के लिए पहाड़ों पर छायादार और बांज का पेड़ सबसे कारगर होता है। राजगीर को बचाने के लिए अगर कोई ठोस प्लान नहीं बनाया गया, तो राजगीर के मौसम पर तो असर पड़ेगा ही पर्यटन भी प्रभावित हो जाएगा।