पख्तूनों के सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए की ‘खुदाई खिदमतगार’ संगठन की स्थापना

बादशाह खान के स्मृति में

नीरज कुमार 

त्तमंजई में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था | इस सभा में बादशाह खान (खान अब्दुल गफ्फार खां) ने एक यादगार भाषण दिया कि किस तरह पख्तून लोग और राष्ट्र तरक्की कर सकते हैं और किस तरह पूरी दुनिया और भारत में राष्ट्रवादी भाईचारे की भावना पनप रही हैं | पख्तूनों के सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्होंने सितम्बर 1929 में ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संगठन की स्थापना की | जो कोई भी व्यक्ति स्वयं को खुदाई खिदमतगार घोषित करना चाहता था उसे यह शपथ लेनी पड़ती – “मैं खुदाई खिदमतगार हूँ | और जैसे ईश्वर को सेवा की कोई आवश्यकता नहीं है इसी प्रकार उसके बनाए प्राणी-जगत की निस्वार्थ सेवा कर मैं उसकी सेवा करूँगा | मैं कभी हिंसा नहीं करूँगा | मैं कभी बदला नहीं लूँगा | जो व्यक्ति मेरे खिलाफ काम करेगा मैं उसे क्षमा करूंगा | मैं प्रत्येक पख्तून के साथ अपने भाई तथा कामरेड की तरह व्यवहार करूँगा | मैं बुरी-प्रथाओं और रीति-रिवाजों का त्याग कर दूंगा | मैं साधारण जीवन जीऊंगा और अच्छे काम करूँगा | और अच्छी आदते अपनाऊंगा | मैं आलस्य नहीं करूँगा | मैं अपनी सेवा के बदले कुछ भी पाने की उम्मीद नहीं रखूँगा | मैं निर्भय रहूँगा और स्वयं को किसी भी बलिदान के लिए तैयार रखूँगा |”
बादशाह खान (खान अब्दुल गफ्फार खां) ने हज यात्रा से लौटने के बाद सामाजिक और राजनीतिक सुधारों का सन्देश देते हुए लम्बी पैदल यात्राएं की | उन्होंने मई 1928 में पश्तो भाषा के मासिक समाचार ‘पख्तून’ का प्रकाशन शुरू किया | इससे प्राप्त सारा लाभ राष्ट्रवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाना था | बादशाह खान को अप्रैल 1930 में जेल भेजा गया तो इसे प्रतिबंधित कर दिया गया | उनकी रिहाई के साथ ही ‘पख्तून’ का प्रकाशन भी फिर शुरू किया गया | लेकिन 1931 में बादशाह खान के जेल जाने के साथ इसका प्रकाशन फिर बंद कर दिया गया | बादशाह खान को 1937 में सीमांत प्रान्त में प्रवेश करने की अनुमति देने के साथ ही ‘पख्तून’ के प्रकाशन की अनुमति भी दे दी गई | अब यह महीने में 3 बार प्रकाशित होता था | ‘पख्तून’ 1947 तक प्रकाशित होता रहा |

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *