‘Mother India’ Oscar में दूसरे स्थान तक पहुंची!
Mother India: “संसार का भार उठा लोगी देवी, ममता का भार नहीं उठेगा! माँ बन कर देखो तुम्हारे पांव भी डगमगा जाएंगे” भारत में “माँ” शब्द के क्या मायने है ये तो सभी जानते है। एक दौर था जब इस शब्द के मायने तो थे मगर इस भाव को लोग दर्शा नही पाते थे। तभी भारतीय सिनेमा ने इसका जिम्मा उठाया और बनी, भारत की पहली बड़ी Female Oriented Film “Mother India”।
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साल 1957 में फिल्म “Mother India” Release हुई और भारतीय सिनेमा की कभी ना भूले जाने वाली फिल्म बन गई। आजादी के बाद जो फिल्में भारत का नाम विदेशो में रोशन कर रही थी ये फिल्म उनमें से एक थी।
कैसे हुआ फिल्म बनाने का फैसला?
निर्देशक महबूब खान इस विषय पर पहले भी 1940 में फिल्म “औरत” बना चुके थे। ‘Mother India’ एक तरह से उस फिल्म का Improvisation था। महबूब को इसकी Inspiration मिली थी Hollywood की एक फिल्म ‘Good Earth’ , अमेरिकी लेखिका Pearl S. Buck की एक कहानी जो उन्होंने एक चीनी परिवार के इर्द गिर्द लिखी थी, जिसमें उन्होंने एक माँ के संघर्ष को दर्शाया था और Russian Writer मैक्सिम गोरकी मशहूर नॉवेल ‘Mother’ से। इस तरह से “औरत”, ‘Good Earth’ और ‘Mother’ के Combination से बनी भारतीय नारीत्व को Intensity से दर्शाती फिल्म ‘Mother India’।
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महबूब ख़ान ने इस फिल्म का Idea सबसे पहले अपने करीबी दोस्त अभिनेता दिलीप कुमार से Share किया। महबूब की बात सुन दिलीप कुमार ने उन्हें Suggest किया फिल्म में जो बेटे बिरजू को रोल उसे फिर से लिखा जाए और बेटे और बाप दोनो की भूमिका में दिलीप कुमार हो।
महबूब मान गए और अपने Writing Team को निर्देशन दिए कि किस तरह से उस भूमिका में बदलाव लाना है। मगर Writing Team ने महबूब को समझाया कि वो दोबारा से इस बारे में सोच ले क्योंकि पुराने किरदार में ज्यादा दम है। महबूब मान गए और दिलीप कुमार से इस बारें में बात की तो दिलीप ने फिल्म करने से मना कर दिया और फिर ये रोल मिल गया अभिनेता सुनील दत्त को जिनके साथ मेन रोल में थी अभिनेत्री नर्गिस।
अब बात करते है कि आखिर फिल्म की कहानी थी क्या?
“Mother India” फिल्म की शुरुआत वर्तमान काल में गाँव के लिए एक पानी की नहर के पूरा होने से होती है। राधा (नर्गिस), गाँव की माँ के रूप में, नहर का उद्घाटन करती है और अपने भूतकाल पर नज़र डालती है जब वह एक नई दुल्हन थी।
राधा और श्यामू (राज कुमार) की शादी का खर्चा राधा की सास ने सुखीलाला से उधार लेकर उठाया था। इस के कारण गरीबी और मेहनत के कभी न खत्म होने वाले चक्रव्यूह में राधा फँस जाती है। उधार की शर्तें विवाद वाली होती है लेकिन गांव के सरपंच सुखीलाला के हित में फैसला सुनाते हैं जिसके तहत श्यामू और राधा को अपनी फसल का एक तिहाई हिस्सा सुखीलाला को 500 रुपये के ब्याज के तौर पर देना होगा।
अपनी गरीबी को मिटाने के लिए श्यामू अपनी जमीन की और जुताई करने की कोशिश करता है लेकिन एक पत्थर के नीचे उसके दोनों हाथ कुचले जाते है। अपनी मजबूरी से शर्मिंदा और औरों से की गई बेइज्जती के कारण वो फैसला करता है कि वो अपने परिवार के किसी काम का नहीं और उन्हें छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाता है।
जल्द ही राधा की सास भी गुज़र जाती है। राधा अपने दोनों बेटों के साथ खेतों में काम करना जारी रखती है और एक और बेटे को जन्म देती है। सुखीलाला उसे अपनी गरीबी दूर करने के लिए खुद से शादी करने का प्रस्ताव रखता है पर राधा खुद को बेचने से इंकार कर देती है।
एक तूफ़ान गाँव को अपनी चपेट में ले लेता है और सारी फ़सल खराब हो जाती है। तूफ़ान में राधा का छोटा बेटा मारा जाता है। गाँव वाले गाँव छोड़ने लगते है लेकिन राधा के मनाने पर सब रुक कर वापस गांव को स्थापित करने की कोशिश करते है।
फ़िल्म कई साल आगे पहुँचती है जब राधा के दोनों बचे हुए बेटे, बिरजू (सुनील दत्त) और रामू (राजेंद्र कुमार) अब बड़े हो चुके है। बिरजू अपने बचपन में सुखीलाला के बर्ताव का बदला लेने के लिए गांव की लड़कियों को छेड़ना शुरू कर देता है, खास कर सुखीलाला की बेटी को। इसका उल्टा रामू बेहद शांत स्वभाव का है और जल्द ही शादी कर लेता है। हालांकि अब वो एक पिता है पर उसकी पत्नी जल्द ही परिवार में मौजूद गरीबी का शिकार हो जाती है। बिरजू का ग़ुस्सा आखिरकार ख़तरनाक रूप ले लेता है और उकसाने पर सुखीलाला और उसकी बेटी पर हमला कर देता है।
उसे गाँव से निकाल दिया जाता है और वो एक डाकू बन जाता है। सुखीलाला की बेटी की शादी के दिन वह बदला लेने वापस आता है और सुखीलाला को मार कर उसकी बेटी को भगा ले जाने की कोशिश करता है। राधा, जिसने यह वादा किया था कि बिरजू किसी को कोई हानि नहीं पहुँचाएगा, बिरजू को गोली मार देती है जो उसकी बाँहों में दम तोड़ देता है। फ़िल्म वर्तमान काल में राधा द्वारा नहर खोले जाने पर लाल रंग के बहते हुए पानी से समाप्त होती है जो धीरे धीरे खेतों में पहुँच जाता है।
ये फिल्म न केवल नरगिस के पूरे करियर की सबसे बड़ी फिल्म थी बल्कि इस फिल्म ने भारत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। ये फिल्म Oscar में दूसरे स्थान तक पहुंची थी। ‘Mother India’ भारत की इतिहास की सबसे उम्दा फिल्मों में से एक है।