आगरा सेंट्रल जेल से डॉ. लोहिया का उषा मेहता के लिए खत 

प्रोफेसर राजकुमार जैन

यरवदा जेल में उषा मेहता बंद थी। उधर जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर राममनोहर लोहिया को गिरफ्तार कर लाहौर किला जेल में यातनाएं दी जा रही थी। इसे जानकर गांधी जी ने 2 अप्रैल 1946 को वाल्मीकि मंदिर रीडिंग रोड नई दिल्ली, से एक खत लॉर्ड पेथिक लॉरेंस( सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट इंडिया) को लिखा।

प्रिय लॉर्ड लॉरेंस,
” श्री जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर लोहिया को अब बंद रखना हास्यास्पद है, दोनों ही विद्वान और सुसंस्कृत व्यक्ति हैं, जिन पर कोई भी समाज गर्व कर सकता है और न अब कोई ऐसा मौका है कि हम किसी को भूमिगत कार्यकर्ता कहे, उनकी रिहाई के प्रश्न को आगामी राष्ट्रीय सरकार के जिम्मे डाल देना ऐसा कदम होगा जिसे न कोई समझेगा और न कोई सराहना करेगा। स्वाधीनता अपनी गरिमा खो देगी।
भवदीय
मो. क. गांधी

13 अप्रैल 1946 को नई दिल्ली की प्रार्थना सभा में गांधी जी ने प्रवचन देते हुए कहा था
” आप लोग जयप्रकाश नारायण ,डॉक्टर लोहिया को जानते हैं, दोनों ही साहसी और विद्वान आदमी है, वे आसानी से धनी बन सकते थे पर उन्होंने त्याग और सेवा का रास्ता अपनाया। देश की गुलामी की जंजीर तोड़ना ही उनका मिशन बन गया। स्वाभाविक था कि विदेशी सरकार उन्हें अपने लिए खतरनाक समझे और उन्हें जेल में डाल दे। हमारा गुण मापने का अलग पैमाना है, उन्हें हम देशभक्त समझते हैं जिन्होंने देश के लिए या जिसने उन्हें जन्म दिया प्रेमवश सब कुछ बलिदान कर दिया।”
गांधी जी की अपील के बाद डॉक्टर लोहिया को आगरा जेल भेज दिया गया। उषा मेहता अभी भी जेल में बंद थी।
डॉ लोहिया ने उषा मेहता के संदर्भ में एक खत प्रोफेसर हेराल्ड लास्की को लिखकर उषा मेहता की शख्सियत से वाकिफ कराया,
“कुमारी उषा मेहता नाम की एक नौजवान महिला मुंबई जेल में बंद है, उस प्रोविंस में शायद यही एक अकेली महिला कैदी है, जिनको आजाद रेडियो संचालित करने के लिए 4 साल की कठोर सजा दी गई है। मैं उनको दी गई सजा पर विवाद नहीं कर रहा, तथापि यह नौजवान महिला जो की विरल प्रतिभा, साहस से भरी है,अगर यह स्पेनिश अथवा रुसी होती तो आपके मुल्क के लोग हीरोइन के रूप में उसका फोटो लगाते।

मार्च 1946 में यरवदा जेल से उषा मेहता को रिहा कर दिया गया। पुणे से मुंबई जाने वाली रेल में उषा जी की रवानगी हो गई । रास्ते में पडने वाले मुख्य रेलवे स्टेशनो पर जनता द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया।
दादर स्टेशन पर बहुत बड़ा जन-समुदाय जिसकी अगवाई सोशलिस्ट नेता कर रहे थे। ट्रेन काफी देर तक स्टेशन पर रुकी रही । बड़ी तादाद में लोग उनके कंपार्टमेंट में दाखिल हो गए । जो विक्टोरिया टर्मिनल तक उनके साथ गए ।
वीटी स्टेशन पर लोग खुशी से ढोल- नगाड़ों ,बिगुल बजाकर झूमते हुए ,नाच और गाकर अभिनंदन कर रहे थे। स्वागत करने वालों में उषा जी की मां और पिता सहित सगे संबंधी, पुराने सहयोगी साथी ,कांग्रेस पार्टी के नेता कार्यकर्ता शामिल थे । 25000 के तकरीबन विशाल जन समुदाय का जमावड़ा वहां मौजूद था ।
उषा जी इस स्वागत से अभिभूत थी। उन्होंने अपार भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि ” आज यहां मौजूद सभी पुरुष ,महिलाएं ,बच्चे, छात्र नेता और डॉक्टर, शहर के सभी वर्गों के लोग कांग्रेस रेडियो समूह की उषा मेहता का केवल स्वागत करने के लिए नहीं बल्कि उन सभी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित करने के लिए जिन्होंने संघर्ष में भाग लिया था और मातृभूमि के खातिर कष्ट सहे थे”.
भीड़ में से कांपते हाथों से एक बूढ़ा आदमी उषा के पास आया और उनके हाथ में भगवान कृष्ण की एक छोटी सी चांदी की मूर्ति रख गया। उसको उषा ने अपनी माता जी को दे दी । उनकी मां कृष्ण भक्त थी। उन्होंने उषा से पूछा कि तुम्हें मूर्ति किसने दी? तब तक वह बूढ़ा आदमी भीड़ में कहीं गुम हो गया। इस पर उनकी मां ने कहा मेरे रणछोड़राय तुम्हें आशीर्वाद देने आए थे। आइए हम उन्हें नमन करें और प्रार्थना करें कि भारत जल्द ही आज़ाद हो जाए।”

…………….जारी है….

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