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मरे न कन्या गर्भ में

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पूजा करते शक्ति की, जिनको देवी मान।
उसे मिटाते गर्भ में, ले लेते हो जान।।

कैसे कोई काट दे, सौरभ अपनी चाह।
ममता का दुर्भाग्य है, भरते तनिक न आह।।

चीर-फाड़ से काँपती, गूँगी चीख-पुकार।
करते बेटों के लिए, कन्या का संहार।।

लिंग भेद करते रहे, बेटी का संहार।
दर्जा देवी का दिया, सुता नहीं स्वीकार।।

मरे न कन्या गर्भ में, करो न सौरभ भूल।
उसमें भी तो प्राण हैं, है जगती की मूल ।।

बेटी तो अनमोल है, जग की पालनहार।
आने दो संसार में, रहे इसे क्यों मार।।

कन्या हत्या गर्भ में, कितनी दूषित सोच।
जिसका पूजन है करे, रहे उसे ही नोच।।

बेटी जग रचना करे, उससे ये संसार।
गर्भ भ्रूण हत्या करें, दिया आज दुत्कार।।

रक्षित हों कन्या सदा, दे जीवन अधिकार।
बेटी की चाहत जगे, तभी बचे संसार।।

डॉ. सत्यवान सौरभ