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दुःख से मत भयभीत हो

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उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात ।
आशाओं के रंग से, भर लो फिर ज़ज़्बात ।।

छोड़े राह पहाड़ भी, नदियाँ मोड़ें धार ।
छू लेती आकाश को, मन से उठी हुँकार ।।

हँसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार ।
उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार ।।

हँसकर साथी गाइये, जीवन का ये गीत ।
दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत ।।

सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत ।
जी लें, जी भर जिंदगी, हार मिले या जीत ।।

खुद से ही कोई यहाँ, बनता नहीं कबीर ।
सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर ।।

दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात ।
सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात ।।

चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार ।
चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार ।।

काँटें बदले फूल में, महकेंगे घर-द्वार ।
तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार ।।

डॉ. सत्यवान सौरभ