चरण सिंह
त्यौहार कोई सा भी हो। सभी त्यौहार गांवों से जुड़े हैं। गांवों की सौंधी खुशबू हर त्यौहार में महसूस की जा सकती है। दिवाली का त्यौहार भी मिट्टी के दीये जलाने के रूप में जाना जाता है। आज की तारीख में भले ही दिवाली का स्वरूप बदल गया हो पर किसी समय गांवों में जब अमावस्या की रात में मिट्टी के दीये जलाये जाते थे तो दृश्य देखने लायक होता था। कहने के लिए दिवाली मनाने का मकसद भगवान राम के रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटने पर घी के दीये जलाकर खुशी मनाने के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली त्यौहार में मिट्टी के दीये का मतलब गांवों से जुड़ी यादों से है। वह गांव की सौंधी मिट्टी ही है कि त्योहारों में आदमी को अपनी ओर खींच लाती है। आदमी कितना भी बड़ा बन जाए। कितनी भी दूर चला जाए, वह किसी न किसी रूप में गांव की यादों से जुड़ा रहता है। इसमें दो राय नहीं कि आदमी यदि अपनी जड़ें छोड़ दे तो उसका कोई वजूद नहीं रह जाता है। हर आदमी का वजूद उसकी पृष्ठभूमि से जुड़ा होता है। कुछ लोग अपने गांव का नाम अपने नाम के आगे लगाते हैं। आज की तारीख में दिवाली पर कितना भी खर्च कर लें पर एक समय था भले ही लोग अभाव में हो पर गांवों में जो आत्मीयता के संबंधों के साथ दिवाली मनाई जाती थी उसमें खुशियां थी। समर्पण था। गांवों में एक दूसरे के यहां मिठाई नहीं बल्कि दीये पहुंचाये जाते थे। मतलब अपने घर की रोशनी से पड़ोसी के घरों में रोशनी करने का सर्मपण लोगों में था। एक पड़ोसी अपने घर का जला दीया पड़ोसी के घर जाता था तो दूसरा पड़ोसी उसे मिठाई खिलाता था।
एक दूसरे के घर पर दिवाली पूजवाने का परंपरा गांवों में ही रही है। शहरों की चकाचौंध भले ही लोगों में आकर्षित करती है पर गांवों की मिट्टी की सौंधी खुशबू की अपनी अलग पहचान है। पूजा का मूर्हत तो आज का चौंचले हो चले हैं। नहीं तो अमावस्या को दिवाली उसके दिन गोवर्धन पूजा और उसके भैया दूज। यही चला आ रहा था। दरअसल चाहे दिवाली हो, गोवर्धन पूजा हो, भैया दूज हो या फिर गंगा स्नान सभी त्योहार लगातार आते हैं ऐसे में यह माना जाता है कि नवरात्र से शुरू हुए त्यौहार होली तक लगातार चलते रहते हैं। भारत में त्यौहार प्रकृति और फसल से जुड़े होते हैं। त्योहारों को हम एक औपचारिकता न समझकर इनसे सीख लेने की कोशिश करें। ये त्योहार हमारे पूर्वजों ने किस मकसद से मनाने शुरू किये थे। हमारे समाज में इनका कितना महत्व था। त्यौहार समाज को किस तरह से जोड़े रखते थे।
त्यौहार कोई सा भी हो। सभी त्यौहार गांवों से जुड़े हैं। गांवों की सौंधी खुशबू हर त्यौहार में महसूस की जा सकती है। दिवाली का त्यौहार भी मिट्टी के दीये जलाने के रूप में जाना जाता है। आज की तारीख में भले ही दिवाली का स्वरूप बदल गया हो पर किसी समय गांवों में जब अमावस्या की रात में मिट्टी के दीये जलाये जाते थे तो दृश्य देखने लायक होता था। कहने के लिए दिवाली मनाने का मकसद भगवान राम के रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटने पर घी के दीये जलाकर खुशी मनाने के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली त्यौहार में मिट्टी के दीये का मतलब गांवों से जुड़ी यादों से है। वह गांव की सौंधी मिट्टी ही है कि त्योहारों में आदमी को अपनी ओर खींच लाती है। आदमी कितना भी बड़ा बन जाए। कितनी भी दूर चला जाए, वह किसी न किसी रूप में गांव की यादों से जुड़ा रहता है। इसमें दो राय नहीं कि आदमी यदि अपनी जड़ें छोड़ दे तो उसका कोई वजूद नहीं रह जाता है। हर आदमी का वजूद उसकी पृष्ठभूमि से जुड़ा होता है। कुछ लोग अपने गांव का नाम अपने नाम के आगे लगाते हैं। आज की तारीख में दिवाली पर कितना भी खर्च कर लें पर एक समय था भले ही लोग अभाव में हो पर गांवों में जो आत्मीयता के संबंधों के साथ दिवाली मनाई जाती थी उसमें खुशियां थी। समर्पण था। गांवों में एक दूसरे के यहां मिठाई नहीं बल्कि दीये पहुंचाये जाते थे। मतलब अपने घर की रोशनी से पड़ोसी के घरों में रोशनी करने का सर्मपण लोगों में था। एक पड़ोसी अपने घर का जला दीया पड़ोसी के घर जाता था तो दूसरा पड़ोसी उसे मिठाई खिलाता था।
एक दूसरे के घर पर दिवाली पूजवाने का परंपरा गांवों में ही रही है। शहरों की चकाचौंध भले ही लोगों में आकर्षित करती है पर गांवों की मिट्टी की सौंधी खुशबू की अपनी अलग पहचान है। पूजा का मूर्हत तो आज का चौंचले हो चले हैं। नहीं तो अमावस्या को दिवाली उसके दिन गोवर्धन पूजा और उसके भैया दूज। यही चला आ रहा था। दरअसल चाहे दिवाली हो, गोवर्धन पूजा हो, भैया दूज हो या फिर गंगा स्नान सभी त्योहार लगातार आते हैं ऐसे में यह माना जाता है कि नवरात्र से शुरू हुए त्यौहार होली तक लगातार चलते रहते हैं। भारत में त्यौहार प्रकृति और फसल से जुड़े होते हैं। त्योहारों को हम एक औपचारिकता न समझकर इनसे सीख लेने की कोशिश करें। ये त्योहार हमारे पूर्वजों ने किस मकसद से मनाने शुरू किये थे। हमारे समाज में इनका कितना महत्व था। त्यौहार समाज को किस तरह से जोड़े रखते थे।