चरण सिंह
राजपूत समाज को उदासीन समाज माना जाने लगा था पर जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बाद अब सपा सांसद रामजीलाल सुमन की राणा सांगा पर की गई गलत टिप्पणी के विरोध में राजपूत समाज ने हुंकार भरी है उससे राजपूत समाज अब जागरूक दिखाई दे रहा है। जमीनी हकीकत यह है कि आगरा में हुई राजपूतों की रैली राजपूत समाज में उत्साह भर गई। दरअसल आगरा में जिस तरह से राजपूत लाठी डंडे, चाकू और तलवारों के साथ पहुंचे। यह राजपूतों का आक्रोश और शक्ति प्रदर्शन माना गया। क्या राजपूतों को लगने लगा था कि अब वोटबैंक की राजनीति के चलते उनको हल्के में लिया जा रहा है ?
दरअसल राजपूतों की जो इतिहास रहा है। उसके अनुसार राजपूत अपनी मातृभूमि पर जान न्योछावर करने वाले रहे हैं। उनकी वीरता की कहानी घर घर में कही और सुनी जाती रही है। इतिहास में एक से बढ़कर एक पराक्रमी राजपूत हुए हैं। चाहे अमर सिंह राठौर हों, राणा सांगा हों महाराणा प्रताप हों, पृथ्वीराज चौहान हों, पृथ्वी सिंह हों। तमाम राजपूतों के पराक्रम और बलिदान से इतिहास पटा है। ऐसे में वोटबैंक के लिए कोई भी राजपूतों के बारे में कुछ भी टिप्पणी कर दे रहा है।
लोकसभा चुनाव ने दलितों का वोट हासिल करने के लिए बीजेपी नेता पुरुषोत्तम रुपाला ने एक कार्यक्रम में बोल दिया कि राजपूत शासकों के आक्रांताओं से बेटी और रोटी के रिश्ते रहे हैं। लोकसभा चुनाव में जब राजपूतों के रुपाला से माफ़ी मांगने की बात कही तो बीजेपी नेतृत्व की शह पर रुपाला ने माफ़ी नहीं मांगी। राजपूतों ने पंचायत कर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हरवा दिया। चुनाव में सबसे अधिक असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहा था। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर पर राजपूतों की पंचायत का सीधा असर देखा गया था। जिसका फायदा कांग्रेस और सपा को हुआ।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूतों की पंचायत का नेतृत्व किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर पूरन सिंह ने किया था। ठाकुर पूरन सिंह ने सपा सांसद रामजीलाल सुमन का इलाज बीजेपी की तरह करने की बात की है। तो क्या समाजवादी पार्टी को रामजी लाल सुमन के राणा सांगा को गद्दार कहने का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ेगा ? राणा सांगा के नाम पर सपा से बड़े स्तर पर यादव भी नाराज हो रहे हैं।
यादवों की ओर से राजपूतों को समर्थन दिया जा रहा है। वैसे भी दलितों और यादवों के बीच में पुराने घाव हैं। मायावती राज में यादवों का उत्पीड़न किया जाता था तो मुलायम और अखिलेश यादव के शासनकाल में दलितों का। इसलिए यादव और दलित आपस में मिल नहीं पाते हैं। लोकसभा चुनाव में तो मायावती के हथियार डाल देने और संविधान और आरक्षण की वजह से सपा की 37 सीटें आ गईं।
दरअसल सपा की रणनीति यह है कि बाबर के नाम पर मुसलमान तो रामजी लाल सुमन के नाम पर दलित वोट बैंक को साध लिया जाए। सपा को समझना होगा कि रामजी लाल सुमन को दलित समाज अपना नेता नहीं मानता है। ऐसे ही राणा सांगा और रामजी लाल सुमन के इस विवाद में मुसलमान भी कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रहा है।
दरअसल आगरा में क्षत्रिय करणी सेना के कार्यकर्ता राणा सांगा की जयंती मनाने के लिए जिस उत्साह से पहुंचे थे। जिस तरह से रामजीलाल सुमन के विवादित बयान के बाद ‘रक्त स्वाभिमान रैली’ के तहत करणी सेना राणा सांगा की जयंती मनाई गई। तलवारों और चाकुओं के साथ हंगामा हुआ। रामजीलाल सुमन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। बताया जा रहा है कि कार्यक्रम स्थल पर पुलिस के पहुंचने पर आक्रोश बढ़ गया। इसके बाद वहां लोग नाराज हो गए। पुलिस के सामने ही करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने तलवार और डंडे लहराए और पुलिस आक्रोशित भीड़ को देखकर वापस चली गई। हालांकि क्षत्रिय सभा के आयोजक आए और उन्होंने भीड़ को शांत किया।
जानकारी मिल रही है कि रैली में सुरक्षा के इंतजाम के लिए अलग-अलग जिलों से 5-6 हजार की तादाद में पुलिसकर्मियों को बुलाया गया था। पीएसी की भी कई बटालियन बुलाई गई थी। इसके बावजूद यहां पुलिस बेबस दिखाई दी। ऐसे में सुरक्षा में किसी भी तरह की चूक न हो इसके लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस प्रशासन अलर्ट मोड पर था। राणा सांगा जयंती के मौके पर करणी सेना के द्वारा आगरा में रैली को लेकर आगरा प्रशासन पहले से ही अलर्ट था। इसके साथ समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के घर के बाहर पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई थी। . आगरा को छावनी में तब्दील कर दिया था। इस रैली के आयोजकों ने एक लाख लोगों के पहुंचने का दावा किया है। लगभग दस संगठनों की संयुक्त यह रैली बताई जा रही है।
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