अलग-अलग विचारधारा होने के बावजूद, तकरीबन 55 साल से एक साथ !

प्रोफेसर राजकुमार जैन
फोटो मे बांये से, अशोक टंडन, (प्रमुख पत्रकार एवं अटल बिहारी वाजपेई के मीडिया इंचार्ज,) प्रोफेसर योगेश गोंडल, हिंदुस्तान टाइम्स के ब्यूरो चीफ, पंकज बोरा, प्रोफेसर राजकुमार भाटिया, (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के भू ,पू राष्ट्रीय सचिव) अजीत सिंह, (दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष) राजकुमार जैन, (दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के भूतपूर्व उपाध्यक्ष) सुभाष गोयल, (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के भू पू अध्यक्ष,)
पीछे की कतार में भगवान सिंह, (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के भूतपूर्व अध्यक्ष) हर चरण सिंह जोश, (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के भूतपूर्व अध्यक्ष) कुलबीर सिंह (दिल्ली यूनिवर्सिटी लॉ फैकल्टी के प्रेसिडेंट) अमरजीत सिंह चंडोक, (दयाल सिंह कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष एवं दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के भूतपूर्व अध्यक्ष,) आर के चुध, (दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के वाइस प्रेसिडेंट),
कमाल इस बात का है कि पार्टी को आयोजित करने वाले साथी, प्रोफेसर विनोद सेठी फोटो खींचने मे ही मस्त रहे। आखिरकार ढूंढने पर एक फोटो मे कतार मे.सबसे पहले खडे मिल ही गए।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक वक्त अलग-अलग कॉलेज, फैकल्टी, विषयो में पढ़ने वाले यह भूतपूर्व छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी में अलग-अलग छात्र संगठनों, विचारधारा से जुड़े रहे हैं।
आज के राजनीतिक कटुता के माहौल में जहां अलग विचारधारा से ताल्लुक रखने का मतलब, दुश्मनी सा बन गया है, वहां इनमें भी यूनिवर्सिटी के जमाने में वैचारिक घमासान कम न था। एक दूसरे के खिलाफ चुनाव में भिढ़ने का भी इतिहास है। परंतु वैचारिक मतभेद कभी मनभेद में नहीं बदला। जम्हूरियत की यही सबसे खूबसूरत खूबी है। दोस्तों के मिलने की शुरुआत मरहूम अरुण जेटली ने विजय मेहता के साथ मिलकर शुरू की थी। कई बार इस तरह का जमघट हुआ है, और एक बार रमाशंकर सिंह के इसरार पर ग्वालियर में भी महफिल जमी थी। दोस्तों की फेहरिस्त काफी बड़ी है। हमें फख्र है कि हमने दिल्ली यूनिवर्सिटी में न केवल पारंपरिक पढ़ाई पढ़ी, वैचारिक राजनीतिक सबक की तालीम सड़क के संघर्षों के तजुर्बे के साथ भी हासिल की। उस समय के राजनीतिक संघर्ष अब हमारी मीठे यादें हैं,जहां कटुता नहीं, मजाक, ठिठोली, पुरानी कारस्तनियों को याद करके साथीपन,खुलूश एक दूसरे की शुभता की चाहत बन गई है।
एक ही उदाहरण से संबंधों की गर्माहट का अन्दाजा लगाया जा सकता है। साथी अशोक टंडन जो आज मुल्क के नामवर पत्रकार हैं, पीटीआई के लंदन में ब्यूरो चीफ के अलावा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के मीडिया रिलेशंस के इंचार्ज, एडिशनल सेक्रेटरी जैसे पदों पर रह चुके हैं से मेरी मुलाकात 1965 -66 में हुई, जब वे देशबंधु गुप्ता कॉलेज कालकाजी के छात्र थे, और मैं किरोड़ीमल कॉलेज नॉर्थ केंपस मैं पढ़ता था। हम दोनों उस वक्त मुख्तलिफ कॉलेजो में आयोजित होने वाली इंटर कॉलेज डिबेट में अपने-अपने कॉलेज के प्रतिनिधि बनकर हिस्सा लेते थे। हम अक्सर दूसरे पक्ष के समर्थन मे बहस करते थे। अशोक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जो की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा है उसके कर्मठ कार्यकरता थे, मैं समाजवादी युवजन सभा का। मै दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडैन्ट यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहा था, अशोक ने चुनाव में मेरा डटकर विरोध किया। परंतु हमारा वैचारिक मतभेद कभी आपसी तालुकात की मिठास में कसैला पन पैदा नहीं कर पाया। आज भी हम अलग-अलग विचारधारा होने के बावजूद एक साथ हैं।

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