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दिल्ली हमारे आपकी, नहीं किसी के बाप की

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सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 150 लद्दाखियों के साथ लद्दाख से पैदल चलकर आज दिल्ली में गांधी जी की समाधि पर पहुंचने वाले थे। वे लद्दाख को राज्य का दर्जा देने, लद्दाख को 6वीं अनुसूची में शामिल करने, लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीट बनाने, लद्दाख में विशेष भूमि और स्थानीय लोगों को नौकरी के अधिकार देने तथा पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना की मांग को लेकर लद्दाख से चलकर दिल्ली पहुंचने वाले थे लेकिन उन्हें दिल्ली की सीमा पर हिरासत में लेकर मुंदड़ा थाने ले जाया गया।


पुलिस की यह कार्यवाही गैरकानूनी और असंवैधानिक है। भारत का संविधान देश के नागरिकों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति, एकजुट होने और देश में कहीं से कहीं भी जाने का अधिकार देता है। दिल्ली पुलिस ने इन संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात किया है।
देश भर के जन संगठन सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं लेकिन संवैधानिक अधिकारों पर चोट करने वाली इस पुलिसिया कार्यवाही को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने कोई संज्ञान नहीं लिया है जबकि उससे यह अपेक्षा की जा रही थी कि प्रधानमंत्री जब राजघाट जाएंगे तब सोनम वांगचुक से मुलाकात कर लद्दाखियों के दुखदर्द को सुनकर उसे दूर करने का प्रयास करेंगे। लेकिन बातचीत करने की बजाय केंद्र सरकार ने सोनम वांगचुक को गिरफ्तार करवा दिया । केंद्र सरकार को इस बात की चिंता नहीं है कि सोनम वांगचुंग और 150 लद्दाखियों की गिरफ्तारी का जम्मू कश्मीर -लद्दाख की जनता और देशभर में लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध नागरिकों पर इसका क्या असर पड़ेगा ।
2014 से मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार को देश और दुनिया में तानाशाही पूर्ण सरकार माना जाता है, जिसने विपक्ष की 10 चुनी हुई राज्य सरकारों के विधायकों की खरीदफरोख्त कर, दल बदल कर कब्जे में लिया है। सीबीआई, ईडी, आईटी जैसी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर तमाम विपक्षी नेताओं को डरा धमकाकर और ब्लैकमेल कर मोदी वाशिंग मशीन में साफ कर अपनी पार्टी और सरकार में शामिल किया है।


जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का हर नागरिक यह मानता है कि उसके साथ आजादी के बाद से ही केंद्र सरकार ने भेदभाव किया है तथा कश्मीरियत को खत्म करने और कश्मीरियों की आवाज को कुचलने का काम किया है।
मोदी सरकार के सोनम वांगचुक के प्रति अपनाए गए रवैये से कश्मीरियों में आक्रोश और ज्यादा बढ़ेगा।
भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में चुनावी तिकड़म कर सत्ता हासिल करने का रास्ता बनाने की कोशिश की है। 8 अक्टूबर को पता चलेगा कि यह कोशिश कितनी सफल होती है।
जम्मू-कश्मीर में अब तक हुए चुनाव में चुनाव के दौरान तमाम गड़बड़ियां और शिकायतें सामने आई है ।
जानकारों का कहना है कि यदि सरकार ने आजादी के बाद लोकतांत्रिक तरीके से निष्पक्षता पूर्वक चुनाव करवाए होते तो हालत इतने खराब नहीं होते। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार जम्मू कश्मीर की जमीन को तो अपने पास रखना चाहती है लेकिन वहां के लोगों को सम्मान देने को तैयार नही है ।
पहले भी देश के किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आना चाहते थे लेकिन उनसे बातचीत के बदले सरकार ने सड़कों पर कंटीले तार, नुकीली किले गाड़ी और पक्की दीवारें खड़ी कर उन्हें रोकने की कोशिश की थी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में किसानों ने 380 दिन तक सड़कों पर सत्याग्रह किया, जिसमें 750 किसान शहीद हुए। मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून तो वापस ले लिए लेकिन किसानों से बातचीत नहीं की। आखिरी में भारत सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को एक आश्वासन पत्र देकर आंदोलन को स्थगित करवा दिया लेकिन उस आश्वासन पत्र के अनुसार एमएसपी की कानूनी गारंटी नही दी।
संयुक्त किसान मोर्चा का आज भी आंदोलन जारी है। दो किसान संगठनों के द्वारा दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन किया जा रहा है जिन्हें हरियाणा सरकार द्वारा बॉर्डर पर ही रोक दिया गया है।
देखना है कि 8 अक्टूबर को हरियाणा चुनाव का नतीजा क्या आता है? यदि नतीजा कांग्रेस के पक्ष में आता है तो क्या वह किसानों को दिल्ली जाने का रास्ता देती है या नहीं ? किसान यदि हरियाणा पार करके चले भी जाते हैं तो सोनम वांगचुक की तरह ही दिल्ली के बाहर रोक दिया जाएगा या गिरफ्तार कर लिया जाएगा ?
देशभर से सोनम वांगचुक को समर्थन मिल रहा है। उसने जरूर लद्दाख से पूरे भारतवर्ष का नजदीकी रिश्ता बनाने का काम किया है लेकिन लगता है कि सरकार लद्दाखियों को भारत वर्ष से जोड़ना नहीं, तोड़ना चाहती है। जिस तरह से कश्मीरियों के साथ जो खड़ा हो उसे आतंकवादी, पृथकतावादी, देशद्रोही बताया जाता है, उसी तरह सोनम वांगचुक और लद्दाखियों के साथ देश के जो भी लोग खड़े हैं उन्हें भी सरकार आतंकवादी, पृथकतावादी, देशद्रोही साबित करना चाहती है। लेकिन हमें उम्मीद है कि सरकार के नापाक इरादे सफल नहीं होंगे तथा जिस तरह देश किसानों के साथ खड़ा रहा, वैसे ही सोनम वांगचुक और लद्दाखियों के साथ खड़ा होगा।

लद्दाख के नागरिकों के समर्थन मे सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, किसान नेता डॉ सुनीलम, पर्यावरणविद् सौम्य दत्ता, ग्रीन नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रफुल्ल सामंतरा , कृपाल सिंह मंडलोई सहित 11 साथियों को हिरासत में लिया गया लेकिन बाद में सभी को छोड़ दिया गया।