चरण सिंह राजपूत
देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अंतिम चरणों में पहुंच रहा है। लगभग सभी दलों के नेता चुनावी समर में हुंकार भर रहे हैं। आरोप प्रत्यारोप का दौर जमकर चल रहा है। यदि कहीं नहीं है तो वह जमीनी मुद्दे। उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है। भाजपा सपा पर परिवारवाद का आरोप लगाकर निशाना साध रहा है तो सपा भाजपा को साम्प्रदायिक पार्टी बता रही है। यहां तक प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी भी सपा को परिवारवादी बताकर अपने को साबित करते दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चुनावी समर में हैं। यही हाल विपक्ष में बैठी दूसरी पार्टियों, बसपा, राजद, कांग्रेस का है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा कांग्रेस से प्रभारी प्रियंका गांधी चुनावी प्रचार कर रही हैं। न तो बेरोजगारी पर बात हो रही है और न ही महंगाई पर। कोरोना काल में कितनी जान और माल की हानी हुई, लोगों को कितनी परेशानी हुई किसी को न कुछ याद है और न ही कोई इस बात पर बारत करना चाहता है । गत दिनों युवाओं का नौकरी मिली तो है ही नहीं साथ ही बड़े स्तर पर लोगों की नौकरियां चली गईं। सेलरी कटी अलग से। इनमें से कुछ भी मुद्दा नहीं बन रहा है। सभी दलों का यह प्रयास है कि किसी तरह से भावनात्मक मुद्दों में उलझाकर वोट हासिल कर लिये जाएं। ये चुनाव में भावनात्मक मुद्दों का हावी होना ही है कि हिजाब, कैराना, राम मंदिर, अयोध्या, मथुरा, राम, श्रीकृष्ण शब्द चुनावी सभाओं में सुनने को मिल रहे हैं। नहीं मिल रहे हैं तो वह हैं महंगाई और बेरोजगारी। आज ही एलपीजी गैस पर 105 रुपये बढ़े हैं पर किसी को कोई मतलब नहीं। सबसे बड़ी समस्या तो बेरोजगारी की है पर राजनीतिक दलों ने युवाओं को जाति और धर्म की ऐसी घुट्टी पिला रखी है कि स्वजातीय और स्व धर्म के नेताओं के पिछलग्गू बनने में अपना भविष्य संवारने की गलत फहमी पाले बैठे हैं।
उत्तर प्रदेश में भी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। जनवरी में रोजगार पर एक रिपोर्ट आई थी जिससे पता चला है कि यूपी में पिछले पांच साल में बेरोजगारी लगातार बढ़ी है। इस रिपोर्ट के अनुसार यूपी में हालत यह है कि 100 में से सिर्फ 32 लोगों के पास ही रोजगार है। ये 100 वो लोग हैं जो काम करते हैं या चाहते हैं और वर्किंग एज पॉपुलेशन में आते हैं।सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के बेरोजगारी के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चला है कि यूपी, पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में दिसंबर 2021 के आखिर में नौकरी पेशा लोगों की कुल संख्या पांच साल पहले से भी कम थी। आज की तारीख में यह बेरोजगारी बढ़ी ही है। दरअसल उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां रोजगार चाहने वालों की कुल आबादी 14 प्रतिशत (2.12 करोड़) बढ़कर 17.07 करोड़ पहुंच गई है जो पांच साल पहले 14.95 करोड़ थी। हालांकि नौकरी कर रहे कुल लोगों की संख्या 16 लाख से ज्यादा घट गई। इसका नतीजा यह हुआ कि यूपी में रोजगार दर (ER) यानी रोजगार पाए कुल लोगों की संख्या और काम चाहने वाले लोगों की आबादी (15 साल या ऊपर) का प्रतिशत दिसंबर 2016 के 38.5 प्रतिशत से घटकर दिसंबर 2021 में 32.8 प्रतिशत पर आ गई थी।