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योगी बाबा के राज में उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर पहुंचा : डॉ. सुनीलम 

उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर
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आंकड़े जानकर खुद फैसला करें क्या है कानून व्यवस्था की जर्जर हालत का सच

द न्यूज 15 
नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं मध्यप्रदेश विधानसभा के विधायक दल के नेता रहे डॉ सुनीलम ने योगी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में गत 5 वर्षों में आर्थिक स्थिति और कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ी है ।
उन्होंने कहा कि लखीमपुर किसान हत्याकांड करने वाले आशीष मिश्र टेनी को जमानत मिलना यह बतलाता है कि उत्तरप्रदेश में अपराधियों को सत्तारूढ़ दल और पुलिस का संरक्षण प्राप्त है।
भारत सरकार के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की नॉमिनल सकल राज्य घरेलू उत्पाद  रु 19,48,000 करोड़ था। जबकि तमिलनाडु  में यह रु 21,24,000 करोड़)  और महाराष्ट्र  में यह 30,79,086 करोड़)  पर था।
22.8 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के सब से बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश की नॉमिनल जीएसडीपी (GSDP) पिछले एक दशक से तीसरे स्थान पर स्थिर है अर्थात कोई तरक्की नहीं हुई है।
पहले की तरह आज भी उत्तर प्रदेश की गिनती देश के सबसे पिछड़े राज्यों में होती है। प्रदेश की कुल प्रति व्यक्ति जीएसडीपी सिर्फ 65,431 रुपए है। जो बिहार राज्य को छोड़ अन्य सभी राज्यों से भी कम है। बाकी सामाजिक व आर्थिक पैमानों पर भी प्रदेश, अंतिम छोर पर खड़े ‘बीमारू राज्य’ बिहार के आस-पास ही नज़र आता है।
उत्तर प्रदेश ने 2016-17 और 2019-20 के योगी राज के दौरान पूरे देश में सबसे कम आर्थिक वृद्धि दर्ज की गई है । उ.प्र. 33 में 31वां स्थान पर है।
आरबीआई के आंकड़ों से यह पता चलता है कि भाजपा शासन के पहले तीन वर्षों 2018 से 2020) के दौरान एनजीएसडीपी (NGSDP) केवल 2.99% की दर से बढ़ी। अगर कोविड महामारी का साल भी इसमें जोड़ दिया जाए तो योगी शासन के चार सालों में ये वृद्धि मात्र 0.1% ही रह जाती है। इसके विपरीत, 2013-17 के समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 5% प्रतिवर्ष की वृद्धि दर्ज की गई थी। उत्तर प्रदेश में अपराध की बात की जाए तो एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि उ.प्र. में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2018 में 5,85,157 अपराध राज्य में दर्ज किए गए थे। 2019 में ये संख्या बढ़ कर 6,28,578 और 2020 में 6,57,925 हो गयी। राज्य में वर्ष 2020 में हिंसक अपराधों की संख्या 51,983 थी, जोकि देश में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा  कि उत्तर प्रदेश पुलिस यदि सभी अपराध दर्ज कर ले तो अपराधों की संख्या और ज्यादा होगी।
डॉ सुनीलम ने कहा कि योगी राज में दंगों के मामले में भी उत्तर प्रदेश अव्वल रहा है। योगी सरकार के आने के  बाद 2019 में यह आंकड़ा  5,714 था ,जो 2020 में बढ़ कर 6,126 हो गया। जब मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के दंगा-मुक्त राज्य होने का दावा करते हैं तो मन में ख़्याल आता है की दंगा उकसाने और सांप्रदायिक घृणा फैलाने वाले जब खुद गद्दी पर विराजमान हों, तो दंगे होने ही नहीं चाहिए।
कुछ लोग इस गलतफहमी में हैं कि योगी की ‘ठोक दो’ और ‘बुलडोज़र चला दो’ वाली नीति ने राज्य को अपराध –  मुक्त कर दिया है। इसका मतलब है की कानून-कायदे को ताक पर रख कर पुलिस और सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी जाए, ताकि वे जिस किसी को चाहे ‘ठोक दें,’ कूट दें या उनके घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चला दें।
आज उत्तर प्रदेश में योगी का पुलिसिया राज है। खुद मुख्यमंत्री जब खुलेआम अपने प्रतिद्वंदियों को ‘गर्मी ठंडा कर देने  की धमकी दे रहे हैं।  जो लोग इस पुलिस कार्यवाही की हिमायत कर रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि कल उनकी भी बारी आएगी। जिस दिन उनके घर से उनके प्रियजनों को भ्रष्ट पुलिस उठा कर ले जाएगी, उस दिन कोई बचाने वाला नहीं होगा।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि कानून और संविधान का शासन ही नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दे सकता है। आज जो लोग अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर खुश हो रहे हैं उन्हें समझना होगा कि देश और धर्म प्रेम के नाम पर वे घृणा,नफरत भेदभाव, भ्रष्टाचार और हिंसा की जिस आग को हवा दे रहे हैं वो पलट कर उन्हें भी झुलसाने में देर नहीं लगाएगी।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि अभी तक मौजूद सभी आंकड़े बताते हैं कि पुलिसिया राज में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, मज़दूर और महिलाओं को सर्वाधिक निशाना बनाया जाता है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज़्यादा 49,761 केस उत्तर प्रदेश में 2020 में दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध में भी लगातार वृद्धि हुई है। 2018 में ये आंकड़ा 11,924 था,2020 में ये संख्या बढ़ कर 12,714 हो गया। इतने केस देश में और कहीं नहीं दर्ज हुए।
सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य में वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध कि दर 55.4% पहुंच गयी थी। यौन उत्पीड़न/सामूहिक बलात्कार, दहेज हत्या, गर्भपात, तेज़ाब हमला, पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता और अपहरण के मामलों में राज्य देश में पहले स्थान पर है। यौन हमला करने का प्रयास, महिलाओं के खिलाफ आईपीसी अपराध, पोस्को अपराध (केवल लड़कियों के मामले) में भी उत्तर प्रदेश अव्वल है।
दलितों के खिलाफ अपराधों में भी उत्तर प्रदेश देश में न. 1 पर है। 2019 में दलित महिलाओं के यौन उत्पीड़न के 3,486 मामले रिपोर्ट किए गए पर पुलिस ने सिर्फ 537 मामले ही दर्ज किए। हाथरस सामूहिक बलात्कार हत्याकांड और हाल में पिंकी लोधी बलात्कार और हत्याकांड और 3 दिन पूर्व एटा के अवागढ़ में हुई 5 वर्ष की बालिका के हत्याकांड में साफ़ नज़र आता है कि संघी-भाजपा सरकारें संविधान को ठेंगा दिखाकर किस तरह दलित-वंचितों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को संरक्षण दे रही हैं।
उन्होंने कहा कि योगी के राज में मुसलमानों का जीना दूभर हो गया है। उन पर गौहत्या का आरोप लगाकर गिरफ्तार करना आम बात हो गई है। वर्ष 2020 में हाईकोर्ट में भेजे गए ऐसे 41 मामले फर्जी निकले। अदालतों ने 70 फीसदी गौहत्या के मामलों को खारिज कर दिया और बाकी में जमानत दे दी। नागरिकता (CAA) आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों पर देश द्रोह और दूसरे मुकदमे थोपे गए, शांतिपूर्ण धरनों पर लाठी और आंसू गैस बरसाए गए। उ.प्र. की जेलों में विचाराधीन कैदियों में मुस्लिम कैदियों की संख्या लगभग 29 प्रतिशत है और सज़ायाफ्ता कैदियों में ये संख्या 22 प्रतिशत। जबकि राज्य में मुसलमानों की आबादी 19 प्रतिशत है। 2020 में फर्जी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए 37 प्रतिशत लोग मुस्लिम थे। प्रदेश की पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमती है। पुलिस हिरासत में बंद 11 और न्यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौतें 2020-21 में दर्ज की गईं। हालांकि यह 2018-19 की पुलिस हिरासत (12) और न्यायिक हिरासत (452) में हुई मौतों से कम है, लेकिन यह आंकड़ा उस वक्त फैली वैश्विक महामारी के दौरान भी पुलिस की क्रूरता की प्रवृत्ति का पर्दाफाश करता है। हिरासत में पिटाई करना और यातना देना भारतीय पुलिस का तरीका बन गया है।
बीते तीन वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा सालाना तौर पर दर्ज किए गए करीब 40 फीसदी मानवाधिकार हनन के मामले अकेले उत्तर प्रदेश से थे। मार्च 2017 और मार्च 2018 के बीच में उत्तर प्रदेश में 17 पुलिस एनकाउंटर हुए, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई थी।
डॉ. सुनीलम ने बताया कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की उत्तर प्रदेश शाखा ने राजनीतिक पार्टियों से अपील की है कि वे मानवाधिकार हनन और अल्पसंख्यकों, महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को अपने चुनाव का मुद्दा बनाएं। पीयूसीएल ने पुलिस के आतंकवाद का शिकार हुए लोगों के लिए मुआवजे की भी मांग भी की है।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि 2017 में सत्ता में आने के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों से ‘अपराधियों’ को “ठोक देने” का खुलेआम आह्वान किया था। नतीजतन 16 महीनों में 3,200 मुठभेड़ों को अंजाम दिया गया, जिनमें कई ‘संदिग्ध अपराधी’ मारे गए। हद तो तब को गयी, जब 26 जनवरी 2019 गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों के लिए एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया। कुछ दिनों बाद ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ शुरू हुआ, जिसमें आरोपी के घुटनों से नीचे गोली मार कर लंगड़ा बना दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 3,349 संदिग्ध लोगों को पुलिस ने लंगड़ा बना दिया है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में यह पहला राज्य है जिसमें किसी भी व्यक्ति को अपराधी मानकर उसे पैरों में गोली मारकर अपंग किया जा रहा है जबकि कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालयीन  व्यवस्था के तहत अपराधी को सजा दिलाने का प्रावधान है। मारे गए लोगों और जिनके पैर में गोली मारी गई है उसकी अधिक संख्या अल्पसंख्यक और वंचित वर्ग की है।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह घोषणा की है कि उत्तरप्रदेश में समाजवादी गठबंधन की सरकार बनने पर ‘सीसीटीवी कैमरा एवं ड्रोन सर्विलांस की व्यवस्था एक साल के भीतर’ सभी गांवों एवं कस्बों में की जाएगी। ऑटोमेटिक रिस्पांस के लिए इन्हें डायल 100/112 से लिंक किया जाएगा। यूपी 100/112 जिसे मौजूदा भाजपाई बाबाजी की सरकार ने बर्बाद कर दिया है, को दुबारा तकनीक से जोड़कर सशक्त किया जाएगा, ताकि रिस्पांस टाइम 15 मिनट के भीतर पूरे प्रदेश में हो सके।
हर 5 किलोमीटर पर एक पुलिस वाहन की व्यवस्था की जाएगी। समाजवादी पार्टी की सरकार सभी थानों एवं तहसीलों को भ्रष्टाचार मुक्त करेगी। समाजवादी पार्टी की सरकार महिलाओं, अल्पसंख्यकों एवं दलितों के प्रति संगठित, हेट क्राइम के प्रति “जीरो टॉलरेंस” की नीति का पालन करेगी।
डॉ सुनीलम ने गठबंधन के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील की है कि वे उक्त तथ्यों को जनता के बीच ले जाएं ताकि भा ज पा – योगी बाबा के झूठ का पर्दाफाश किया जा सके।