चरण सिंह
कांग्रेस ने अपने पुराने वोटबैंक को फिर से हासिल करने की बड़ी रणनीति तैयार कर ली है। अब वह क्षेत्रीय दलों के आगे कोई समझौता करने को तैयार नहीं। बिहार में भी कांग्रेस ने दिल्ली जैसी रणनीति पर काम करना शुरू का दिया है। प्रदेश प्रभारी कृष्ण अल्लावरु, एनएसयूआई के प्रभारी कन्हैया कुमार की अगुआई में बिहार में पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा निकालना कांग्रेस का बड़ा दांव माना जा रहा है। जिस तरह से दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव को बोलने की छूट दे दी थी, उसी प्रकार से बिहार में प्रदेश प्रभारी कृष्ण अल्लावरु, प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद के साथ ही
बिहार के विधायकों और सांसदों को भी खुलकर बोलने की छूट दे दी गई है। कृष्ण अल्लावरु ने कह दिया है कि कांग्रेस अकेला चलेगी। कन्हैया कुमार ने कह दिया कि जिस दल की सीट अधिक आएगी उसका ही मुख्यमंत्री बनेगा। सांसद अजीत शर्मा ने कह दिया है कि मुख्यमंत्री का चेहरा हमारे नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन तय करेंगे। पप्पू यादव ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानने से इनकार कर दिया है।
दरअसल आरजेडी मुखिया लालू प्रसाद कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को तेजस्वी यादव के लिए असुरक्षा मानते हैं। यही वजह रही कि गत लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने पप्पू यादव की पार्टी का विलय कांग्रेस में भी करा दिया और न तो कांग्रेस से टिकट देने दिया और न ही खुद ने दिया। पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। ऐसे ही कन्हैया कुमार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाकपा के टिकट पर जिस तरह से बेगूसराय से चुनाव लड़कर आरजेडी को पीछे धकेल दिया था। ऐसे में कांग्रेस में शामिल होने के बाद लालू प्रसाद ने कन्हैया को बिहार की राजनीति में सक्रिय नहीं होने दिया।
अब जब कांग्रेस ने कन्हैया को बिहार का चेहरा बना दिया है। पटना में कन्हैया को बिहार की उम्मीद बताते हुए पोस्टर लगाए गए हैं। ऐसे में लालू प्रसाद को दिक्कत होनी लाजिमी है।
दरअसल कांग्रेस पूरी तरह से तैयार है कि बिहार में भी किसी तरह का समझौता नहीं करना है। दरअसल कांग्रेस ने अपना पुराना वोटबैंक हासिल करने की एक बड़ी रणनीति तैयार की है। यह रणनीति कांग्रेस की लोकसभा चुनाव के बाद ही बन गई थी। जिस तरह से यूपी में अखिलेश यादव ने प. बंगाल में ममता बनर्जी ने और बिहार में लालू प्रसाद ने कांग्रेस के लचीलेपन का फायदा उठाया। फिर भी कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल कर ली थी। उसके बाद कांग्रेस ने स्टैंड ले लिया कि अब क्षेत्रीय दलों को हावी नहीं होने देना है। यही वजह रही कि हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को ज्यादा भाव नहीं दिए। भले ही उसको हरियाणा की सत्ता गंवानी पड़ी हो। उसके बाद दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का फायदा नहीं उठाने दिया।
विपक्षी दल टीएमसी, सपा और शिवसेना उद्धव ने भी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए समझौता करने का दबाव डाला पर कांग्रेस की रणनीति आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने की थी और उसने वह काम कर दिखाया। भले ही दिल्ली में बीजेपी की सरकार बन गई हो पर अब कांग्रेस के पास अपना खोया वोट बैंक हासिल करने का अच्छा मौका है, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने ही उसका वोटबैंक कब्ज़ा रखा है तो कांग्रेस ने अपनी रणनीति पर काम किया।