China & Taiwan Tension:
-Saurabh Sharma
China & Taiwan Tension: पिछले दिनों अमेरिका के संसद की स्पीकर, “नैंसी पेलोसी” विदेश यात्रा के लिए ताइवान के दौरे पर जाती है। ये 25 सालों में पहली बार था, जब अमेरिका की ओर से कोई बड़ा politician ताइवान गया। इस दौरे की खबर आते ही चीन, जो कि ताइवान को अपना हिस्सा मानता है उसने सीधे तौर पर अमेरिका को आगाह किया कि नैंसी ताइवान न जाए वे इस दौरे को रद्द कर दें।
Also Read:1983 Cricket World Cup: India’s Historic Winning Story!
यहां तक कि अमेरिका को चेतावनी भी दे डाली, कि इसका परिणाम ठीक नहीं होगा, लेकिन नैंसी पेलोसी ताइवान गयीं उनके जाने के बाद से ही ताइवान की सीमा पर चाइना की ओर से लगातार मिसाइलें दागना शुरु हो गयीं, अब सवाल उठता है कि ताइवान में एक विदेश मंत्री के आने मात्र से, चीन इतना परेशान क्यों है? चीन को ताइवान से क्या खतरा है? और इन सब का भारत से क्या कनेक्शन है, सब कुछ समझेंगे आज के इस लेख में एकदम आसान भाषा में।
ताइवान और चीन के संबंध ( China & Taiwan Tension)
चीन ताइवान विवाद को समझने से पहले आपको ताइवान और चीन के संबंधों को समझना होगा –
Taiwan और चाइना के रिलेशन 1600 से 1700 century के बीच, व्यापार के लिए शुरू हुए, धीरे – धीरे चीन से आये लोग यहां बसने लगे और कुछ समय बाद ताइवान पर चीन का कब्जा हो गया।
इसके बाद जापान जिसे उस दौर में काफी आक्रामक या Aggressive देश माना जाता था, उसने चीन पर हमला किया और चाइना के कुछ तटीय क्षेत्र और पूरे ताइवान को अपने कब्जे में कर लिया यानि की ताइवान पर अब जापान का शासन था।
यहां क्लिक करके आप हमारे YOUTUBE CHANNEL से जुड़ सकते है
लेकिन World War 2 के अंत में अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम से हमला कर दिया, परमाणु बम की भीषण तबाही को देखते हुए जापान ने हार मान ली, इसके बाद ताइवान दोबारा जापान से आजाद हो कर चाइना में शामिल हो गया।
अब इन सब के बीच चाइना में क्या चल रहा था?
चाइना में इस समय दो विचारधाराओं की पार्टियां आपस में झगड़ रही थी, किसी देश में जब अलग विचारधारा रखने वाले लोग आपस में झगड़ने लगते है इस स्थिति को ही गृह युद्ध कहा जाता है।(China & Taiwan Tension)
इस गृह युद्ध में कुल दो पार्टियां शामिल थी जिनमें से पहली Nationalist party थी और दूसरी communist party थी।
Nationalist party की विचारधारा लोकतांत्रिक थी, जैसा कि आज भारत और अमेरिका में देखन को मिलता है, जनता तय करती है कि शासन कौन करेगा वहीं communist party की विचारधारा इसके ठीक उलट एक ऐसी शासन में थी जिसमें शासक के हाथ में पूरी सत्ता होती, जैसा कि रूस और north Korea में देखने को हमें मिलती है।
Nationalist party के Leader “Chiang Kai-shek” थे वहीं दूसरी तरफ Communist party को Mao Zedong lead कर रहे थे।
इन दोनों पार्टियों के बीच लड़ाईयां 1924 से 1950 तक चली, आखिर में China पर Mao की Communist Party का पूरी तरह से अपना कब्जा हो गया दरअसल साल 1945 में जापान के अमेरिका से हारने के बाद से ही Mao के लोगों ने “Chiang Kai-shek” यानि Nationalist विचारधारा को मानने वाले लोगो को चीन से भगाने का प्रयास जारी रखा।
लगभग 3 साल के अंदर Communist Party ने चाइना के 95 फीसदी भाग में अपना कब्जा जमा लिया इसी के साथ साल 1949 में Communist पार्टी ने China को एक Communist देश घोषित कर दिया, और आज भी चाइना में इसी पार्टी का शासन है।
फिर Nationalist party का क्या हुआ?
हार का सामना कर रहे “Chiang Kai-shek” अपने ही तरह की विचारधारा रखने वाले 20 लाख लोगों को एक साथ लेकर फारमोसा नाम के द्वीप चले गए और बाद में इसी द्वीप को ताइवान नाम से जाना गया।
तो अभी आप जिस ताइवान को जानते है वो 1949 में Officially चीन से अलग हुआ था, क्योंकि चाइना एक Communist देश बन चुका था, वहीं “Chiang Kai-shek” ताइवान में आकर बस गए और उसे एक लोकतांत्रिक देश बनाया।
“Chiang Kai-shek” यहीं नहीं रुके उन्होंने ताइवान को ही असली चाइना घोषित कर लिया और खुद को Republic of China बताया और उधर चाइना वाले भी खुद को people’s republic of China बताने लगे, दोनों ही अपने आप को असली साबित करने में लगे हुए थे। जैसे भारत में पुश्तैनी दुकान चला रहे दो भाई आपस में लड़कर अगल- बगल ही दुकान खोल लेते है, और दोनो ही खुद को मैं असली, मैं असली करने लगते है चीन और ताइवान के बीच भी कुछ ऐसा ही था।
मजे की बात यह थी कि UN भी ताइवान वाले चीन को असली चीन मानता था लेकिन 1971 में ये खिताब उससे छीन लिया गया, क्योकि इस साल चीन ने UN में अपनी सीट पक्की कर ली, इसी के साथ उसने अमेरिका से भी अपने संबंध अच्छे करने की ओर पहल की।
‘One China Policy’
हमेशा से अमेरिका चीन और ताइवान के बीच काफी अहम भूमिका निभाता रहा है, दूसरे विश्व युद्ध से साल 1979 तक अमेरिका और ताइवान दोनों ही देशों के संबंध काफी अच्छे थे। इसके बाद साल 1979 में अमेरिका ने चीन से दोस्ती कर ली और ताइवान से मुंह फेर लिया, इसी के साथ चाइना की ‘One China Policy’अपना ली।
अब ये चाइना की ‘One China Policy’ को भी समझ लेते है, One China Policy’ के मुताबिक़ ‘चीन’ नाम का एक ही राष्ट्र है और ताइवान अलग देश नहीं, बल्कि उसी का एक भाग है।(China & Taiwan Tension)
यहां तक कि हमारा देश भारत भी इस थ्योरी पर विश्वास करता है, व्यापारिक कारणों के चलते।
इसके जवाब में उसी साल अमेरिका ने ‘ताइवान रिलेशन एक्ट’ पास किया जिसके तहत तय किया गया कि अमेरिका ताइवान को सैन्य हथियार सप्लाई करेगा और अगर चीन ताइवान पर किसी भी तरह का हमला करता है तो अमेरीका उसे मदद देगा।
इसका मतलब अमेरिका अपने Relation चीन और ताइवान दोनों ही देशों के साथ balance रखना चाहता था।
इसी बीच चीन ने ताइवान को one country two systems का proposal रखा जिसके तहत – ताइवान को अपना शासन चलाने का अधिकार होगा अपनी सेना रखने का भी अधिकार होगा लेकिन ताइवान को चाइना के under काम करना होगा। और ताइवान ने इस Proposal से इंकार कर दिया। आज तक ताइवान अपनी पहचान के लिए संघर्ष करता नजर आता है,
चाइना भी हमेंशा ताइवान की सीमा पर मिसाइले गिरा कर अपनी नाराजगी या सेना का बल दिखाता रहता है, चाइना अपनी आर्मी पर भी ताइवान से कई गुना ज्यादा पैसे खर्च करता रहा।
उधर चीन की बढ़ती ताकत को देख चीन के विरोधी देश जैसे कि अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश, ताइवान से सीधे बातचीत और व्यापार रखने की कोशिश करने लगे।
चीन चाहता है कि “अगर किसी देश को ताइवान से व्यापार करना है तो उसे पहले चाइना से बात करनी होगी”
लेकिन चीन के विरोधी देश इसे नहीं मानते और ताइवान से सीधा व्यापार रखना चाहते है, इसी के साथ अमेरिका खुद अपने हथियार के साथ ताइवान को कई मौकों पर सुरक्षा भी देता रहा है, अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी ताइवान को मदद देने की बात की थी।
बदले में चीन ताइवान पर समय समय पर बैन लगाता रहा है, ये अजीब ही बात है कि जब चाइना ताइवान को अपना ही देश मानता है तो अपने ही देश में पाबंदी क्यों?
(China & Taiwan Tension)अब ताजा मामले की बात करें तो अमेरिका की नैंसी पेलोसी सीधे ताइवान से बातचीत करने गयी, ताइवान और अमेरिका के बेहतर रिश्तों को देख चीन परेशान है, बताया जा रहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति इस दौरे के सख्त खिलाफ थे लेकिन चाइना ने सवाल उनपर भी उठाया कि राष्ट्रपति होने के नाते उनका ये फर्ज बनता है आप उन्हें रोकें।
ताइवान के लोग और उनके राष्ट्रपति अपनी पहचान पाने की लड़ाई कई सालों से लड़ रहें है, ताइवान भी भारत की तरह शांत और एक लोकतांत्रिक देश है जहां के लोगों की आमदनी, उनकी विकास दर, अन्य देशों की तुलना में काफी अच्छी स्थिति में है।
ताइवान अपनी टेक्नालॉजी के लिए भी दुनिया में काफी आगे माना जाता है, इसका श्रेय आप वहां के राजनेताओं को दे सकते है, अंत में सवाल वही है कि क्या ताइवान पर हमला होने के बाद अमेरिका ताइवान को बचाने के लिए कभी सामने आएगा ? अगर चीन ने ताइवान को हथियाने की कोशिश की तो क्या बस वो वही रुकेगा क्योकि उसके सीमा विवाद तो कई देशों के साथ है जिसमें से एक भारत भी है!