चरण सिंह
दोपहर ढाई बजे दिल्ली के कनॉट प्लेस में लगभग 20-21 साल की दो लड़कियों की बात मैंने सुनी तो बड़ी चिंता हुई। चिंता उनकी भाषा, आचरण या फिर पाश्चात्य सभ्यता की किसी बात से नहीं हुई। चिंता इस बात को लेकर हुई कि उनमें एक लड़की कह रही थी कि उसे बहुत तेज नींद आई और दूसरी कह रही थी कि कल उसे तीन बजे के बाद भी नींद नहीं आ रही थी। ये दोनों ही लड़कियां किसी ऑफिस में इंटर्न होंगी। जमीनी हकीकत तो यह है कि यह बात इन दो लड़कियों की ही नहीं है बल्कि अधिकतर युवा देर से सोते हैं और देर से उठते हैं। उसकी नींद पूरी नहीं होती है। सिर में दर्द, माइग्रेन, ब्लडप्रेशर जैसी बीमारी आज के युवा में आम हो गई है। एक ओर बेरोजगारी, निजी संस्थाओं में काम का बोझ और सीनियरों का रुखा रवैया दूसरी ओर देर तक जागना और नींद पूरी न होना आज की युवा पीढ़ी को मानसिक रोगी बना रही है। राजनीतिक दलों ने तो हद ही कर रखी है। जाति और धर्म के नाम पर युवाओं को उलझा जो दिया है। एक धर्म के प्रति दूसरे धर्म में नफरत का जहर घोल दिया है। एकल परिवार के साथ ही बड़ों की सुनने और उनके प्रति आदर में अभाव के चलते युवाओं में व्यवहारिक ज्ञान न के बराबर माना जा रहा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि युवाओं को सही रास्ते से भटकाया जा रहा है या फिर वे दिग्भ्रमित हो रहे हैं।
दरअसल हमने अपने पूर्वजों से यह कहते सुना है कि जल्द सोना और जल्द उठना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। वैसे भी ग्रामीण संस्कृति यही रही है कि आदमी जल्दी सोता है और जल्दी उठता है। उसका बड़ा कारण अधिकतर ग्रामीणों का खेती के पेशे से जुड़ना भी माना जाता है। जल्द उठकर मवेशियों को चारा देना। खेतों पर जाना होता है। शहरों में भी काफी बच्चे जिमों में जाते हैं। विभिन्न पार्कों में दौड़ लगाते हैं। लेकिन अधिकतर युवाओं की दिनचर्या देर से सोना औेर देेर से उठना ही है। ऊपर से मोबाइल और उसमें लोड गेम की लत। घर से काम करना भी मानसिक बोझ का एक बड़ा कारण है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि बच्चे देर से सोते हैं और देर से उठते हैं या फिर उनकी नींद पूरी नहीं हो रही तो उनके माता-पिता क्या कर रहे हैं ? ऐसे में जवाब यही मिलेगा कि माता-पिता की सुनने वाले बच्चे बहुत कम है। अधिकतर बच्चे अपने-पिता की बात को भी अनदेखा करते हैं। बच्चों पर सख्ती इसलिए नहीं हो पा रही है। क्योंकि जरा-जरा सी डांट पर बच्चों के आत्महत्या करने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि यह तो हर कोई कहता है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद आना बहुत जरूरी है फिर भी बच्चे देर रात तक मोबाइल से चिपके रहते हैं। यह बात विभिन्न सर्वे में भी आ चुकी है कि देर से सोने और देर से जागने वाले बच्चे हिंसक होते हैं उनको गुस्सा ज्यादा आता है। इन सबका एक बड़ा कारण यह भी होता है कि नींद पूरी न होने से आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे जरा जरा सी बात पर गुस्सा आता है। अपने स्वास्थ्य और भविष्य के प्रति युवाओं को ही जागरूक होना होगा।
दोपहर ढाई बजे दिल्ली के कनॉट प्लेस में लगभग 20-21 साल की दो लड़कियों की बात मैंने सुनी तो बड़ी चिंता हुई। चिंता उनकी भाषा, आचरण या फिर पाश्चात्य सभ्यता की किसी बात से नहीं हुई। चिंता इस बात को लेकर हुई कि उनमें एक लड़की कह रही थी कि उसे बहुत तेज नींद आई और दूसरी कह रही थी कि कल उसे तीन बजे के बाद भी नींद नहीं आ रही थी। ये दोनों ही लड़कियां किसी ऑफिस में इंटर्न होंगी। जमीनी हकीकत तो यह है कि यह बात इन दो लड़कियों की ही नहीं है बल्कि अधिकतर युवा देर से सोते हैं और देर से उठते हैं। उसकी नींद पूरी नहीं होती है। सिर में दर्द, माइग्रेन, ब्लडप्रेशर जैसी बीमारी आज के युवा में आम हो गई है। एक ओर बेरोजगारी, निजी संस्थाओं में काम का बोझ और सीनियरों का रुखा रवैया दूसरी ओर देर तक जागना और नींद पूरी न होना आज की युवा पीढ़ी को मानसिक रोगी बना रही है। राजनीतिक दलों ने तो हद ही कर रखी है। जाति और धर्म के नाम पर युवाओं को उलझा जो दिया है। एक धर्म के प्रति दूसरे धर्म में नफरत का जहर घोल दिया है। एकल परिवार के साथ ही बड़ों की सुनने और उनके प्रति आदर में अभाव के चलते युवाओं में व्यवहारिक ज्ञान न के बराबर माना जा रहा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि युवाओं को सही रास्ते से भटकाया जा रहा है या फिर वे दिग्भ्रमित हो रहे हैं।
दरअसल हमने अपने पूर्वजों से यह कहते सुना है कि जल्द सोना और जल्द उठना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। वैसे भी ग्रामीण संस्कृति यही रही है कि आदमी जल्दी सोता है और जल्दी उठता है। उसका बड़ा कारण अधिकतर ग्रामीणों का खेती के पेशे से जुड़ना भी माना जाता है। जल्द उठकर मवेशियों को चारा देना। खेतों पर जाना होता है। शहरों में भी काफी बच्चे जिमों में जाते हैं। विभिन्न पार्कों में दौड़ लगाते हैं। लेकिन अधिकतर युवाओं की दिनचर्या देर से सोना औेर देेर से उठना ही है। ऊपर से मोबाइल और उसमें लोड गेम की लत। घर से काम करना भी मानसिक बोझ का एक बड़ा कारण है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि बच्चे देर से सोते हैं और देर से उठते हैं या फिर उनकी नींद पूरी नहीं हो रही तो उनके माता-पिता क्या कर रहे हैं ? ऐसे में जवाब यही मिलेगा कि माता-पिता की सुनने वाले बच्चे बहुत कम है। अधिकतर बच्चे अपने-पिता की बात को भी अनदेखा करते हैं। बच्चों पर सख्ती इसलिए नहीं हो पा रही है। क्योंकि जरा-जरा सी डांट पर बच्चों के आत्महत्या करने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि यह तो हर कोई कहता है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद आना बहुत जरूरी है फिर भी बच्चे देर रात तक मोबाइल से चिपके रहते हैं। यह बात विभिन्न सर्वे में भी आ चुकी है कि देर से सोने और देर से जागने वाले बच्चे हिंसक होते हैं उनको गुस्सा ज्यादा आता है। इन सबका एक बड़ा कारण यह भी होता है कि नींद पूरी न होने से आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे जरा जरा सी बात पर गुस्सा आता है। अपने स्वास्थ्य और भविष्य के प्रति युवाओं को ही जागरूक होना होगा।