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घर की कलह से बिगड़ते बच्चों के संस्कार

घर की कलह में और किसी का कुछ नहीं जाता, अगर जाता है तो घर के बच्चों की खुशी, बच्चों के संस्कार, पत्नी के अरमान और सपने, और एक पुरुष का सुकून और शांति ! परिणाम होता है घर बर्बाद। एक नन्हे शिशु के लिए उसकी प्राथमिक पाठशाला अपना घर और माता-पिता प्रथम गुरु होते हैं,जैसा संस्कार बाल्यावस्था में बच्चों को मिलता है आगे चलकर वैसा ही आचरण उनमें परिलक्षित होता है। माता-पिता के आचार व्यवहार का पूरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। अगर माता-पिता एक दूसरे का सम्मान नहीं करते , परस्पर वाद-विवाद करते हैं घर का माहौल तनाव पूर्ण रखते हैं तो वो बच्चों से प्यार और सम्मान पाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। ऐसे घरों के बच्चे चिड़चिड़े स्वभाव वाले हो जातें हैं उनकी शिक्षा दिक्षा पूर्ण रूप से प्रभावित हो जाती है। अतः माता-पिता को आपस होने वाले वाद-विवाद को अपने तक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए ताकि उनके बाल मन पर कोई दुष्प्रभाव ना पड़े।पति-पत्नी के बीच झगड़ा भी एक उपयोगी वार्तालाप है, बशर्ते कि झगड़े में दोनो एक दूसरे के प्रति भद्र हों। इससे मन में आये उम्मीदों तथा उनके अपुर्ती की सुचना मिलती है जीवनसाथी को। जब सुचना मिलेगी तभी तो उसका समाधान निकलेगा। जब बच्चे अपने माता-पिता के शांतिपूर्ण झगड़े का समाधान होते देखते हैं उनको जीवन के समस्याओं को सुलझाने की सीख मिलती है।मैं मनोवैज्ञानिक तो नहीं, पर बच्चों के दिमाग़ पर माँ-बाप के झगड़ों का क्या असर हो सकता है, इसका अनुमान ज़रूर लगा सकती हूँ। याद करिए, बचपन में जब आपके माता-पिता अत्यधिक झगड़ा करते थे तो इसका आप पर क्या असर होता था? एक बच्चे के लिए उसके माँ-बाप एक आदर्श होते हैं जिनमें वह अपने लिए प्रेरणा का स्त्रोत ढूँढते हैं। अगर वही प्रेरणा का स्त्रोत अपने उसी बच्चे के सामने अत्यधिक झगड़ा करे तो कुछ बातों में से एक या एक से ज़्यादा होने की बहुत अधिक संभावना है:। बड़े परिवारों में कलह का मुख्य कारण भिन्न-२ घरों से आयी हुई स्त्रियाँ ही होती हैं। जैसे सास-बहू, देवरानी-जिठानी, नन्द-भौजाई। भिन्न-२ संस्कारों वाली ये स्त्रियां एक दूसरी स्त्री पर रौब गाँठने, एक-दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे को बदनाम करने में ही लिप्त रहतीं हैं।बाप, भाई, बेटा तो एक ही खानदान के होते हैं पर इन स्त्रियों के बहकावे में आकर एक दूसरे के शत्रु या प्रतिद्वन्दी बन जाते हैं और अन्त कलह में होता है।मै कई परिवारो में देखती हूँ,कि पति पत्नी हैं उनके बीच काम्पिटीशन चल रहता है की कौन सुपीरियर है दोनो कमा रहे है,कोई झुकने तैयार नही हो रहा।सास बहू है उनमे भी सामन्जस्य नही हो पा रहा।क्यो? सबसे पहले पति पत्नी सास बहू ये समझे की आप सब एक फेमिली हो ।सबका सुख दुख सम्मिलित है।आप प्रतियोगी नहीं हो की एक दूसरे को हरा दिया और खुश हो पाओ ।एक को भी तकलीफ हो तो पूरे घर में दुख की वाइव्रेशन छा जाती हैं और कोई खुश नही रह पाता ।सबसे पहले सास बहू को बेटी जैसा माने,बहू भी सास को माँ जैसा प्यार दे आदर दे ।दोनो तरफ से प्रयास होने पर ही बात बनती है।अब तो सबके कम बच्चे होते हैं तो सास तो अपना सब कुछ बहू को सौपने के लिये तत्पर रहती ही है ।हर माँ अपने लड़के को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है माना की बहू काम काजी है घर मे खाना पकाने में सहयोग नही कर पाती है ,पर ऑफ़िस से लौट कर सास से पूछ तो सकती है कि मम्मी आपने खाना खाया की नहीं ।इतने से ही सास प्रसन्न हो जाएगी।अब रही पति पत्नी की बात,पति को थोड़ा सम्मान चाहिये मिलता रहे तो पत्नी के लिये आसमान से तारे भी तोड़ लाये ।पत्नी को पति का थोड़ा समय चाहिये ,थोड़ा प्यार चाहिये।ये रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं ,इन्हें जोड़ कर रखने के लिये थोड़ा थोड़ा सबको झुकना चाहिये ।यहाँ हारने मे ही जीत है । किसी भी बात पर वाद विवाद से बचना चाहिए. अगर किसी बात पर मन प्रतिक्रिया करना चाहता हे उसे रोके. अगर प्रतिकार आवश्यक भी हो तो उसे निवेदन के रुप में या सलाह के रूप मे प्रस्तुत करे. न कि विरोध, नाराजगी या किसी भी नौटंकी के रुप में! अक्सर घर में दरिद्रता के कारण क्लेश अधिक होता है। थोड़ा खर्च पर कण्ट्रोल करें। एक पैसा अधिक कमाने का कुछ करिये।अगर किसी भी नकारत्मक बात का कोई उत्तर नहीं दिया जाये । उन बातों को रेडिओ में बजने वाले सन्गीत की तरह लेना शुरू करिये और अपना प्यार भरा व्यवहार कभी नहीं बदले । घर में अधिकतर काम आप स्वयं करिए ।घर में कलह घरेलू कार्य, अस्तव्यस्त घर, नियमित दिनचर्या ना होना और आर्थिक तंगी के कारण ही होते हैं । प्रात: संध्या समय भजन लगयिये। कपूर जलाईये । स्वयं प्रसन्नचित रहिये।मनोविज्ञान कहता है कि बच्चों को जबरन समझाया नहीं जा सकता है। बच्चे प्रेरित किए जा सकते हैं। अपने माता-पिता और जिन लोगों की बच्चे प्रशंसा सुनते हैं ,बच्चे वैसा ही बनना चाहते हैं। अतः अपना आचरण अच्छा रखें। जो अच्छी बात आप बच्चे को समझाना चाहते हैं और यदि वह आपमें नहीं है तो यह दिखाइए कि वह बात दिल से आपको पसंद है । ऐसी अच्छी आदत वालों की हृदय से प्रशंसा कीजिए। बच्चा वह अपना लेगा।बच्चे की उम्र व क्षमता का ध्यान रखिए।उस उम्र में बच्चे क्या सोचते हैं इसको ध्यान में रखकर समझाइए। वह कारण उन्हें अवश्य पता हो जिस कारण आप समझा रहे हैं। खेल- खेल में प्रेम से सनझाइए।बच्चे को सुसंस्कारी बनाने के लिए पहले स्वयं में अच्छे संस्कार होना जरूरी है। केवल हम जबान से कह दे बेटा झुट बोलना पाप है और उसके आगे स्वयं झुट पर झुट बोलते रहेंगे तो फिर वह हम से ज्यादा झुट बोलेगा। और उपर से यह भी समझ के चलने लगेगा की पाप वगैरह कुछ नही होता। और अन्य बुरे काम भी आराम से करने लगेगा।
लेखिका- ऊषा शुक्ला

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