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अपने और कार्यकर्ता के बीच कोई तीसरा न खड़ा करें चंद्रशेखर आजाद!

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चरण सिंह
भले ही चंद्रशेखर आजाद ने लंबे संघर्ष के बाद नगीना से सांसदी हासिल की हो, भले ही वह एक आंदोलनकारी नेता माने जाते हों, भले ही वह दलितों, गरीबों और वंचितों की लड़ाई लड़ने का दंभ भर रहे हों। पर जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अपाइमेंट के बाद चंद्रशेखर आजाद के कार्यकर्ताओं से मिलने का सकुर्लर जारी किया गया उससे उनके समर्थकों में नाराजगी देखी जा रही है। किसी भी जमीनी नेता को अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी समय मिलना चाहिए। कार्यकर्ताओं से ही नेता होता है। आज यदि चंद्रशेखर आजाद सांसद बने हैं तो समर्थकों और कार्यकर्ताओं की वजह से बने हैं। नेता मंचों से कहते हैं कि उनके दरवाजे हर किसी के लिए चौबीस घंटे खुले हैं तो फिर अपने कार्यकर्ताओं के लिए भी नेता यदि समय नहीं देगा तो फिर किसे देगा ?
चंद्रशेखर आजाद का संघर्ष १०-१२ साल का है। ऐसे में उन्हें अनुभवहीन नेता भी नहीं कहा जा सकता है। हां यह जरूर कहा जा सकता है कि उनमें अनुभव से ज्यादा जोश है। चंद्रशेखर आजाद केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कह रहे है कि देश में तो अभी भी आपातकाल है। आज भी दलितों के मूंछ रखने और दूल्हे के घोड़े पर बैठने का विरोध कई जगहों पर किया जाता है। चंद्रशेखर आजाद का कहना है कि जब तक वंचित समाज के लोग संसद में नहीं बैठेंगे तब तक दबे कुचले लोगों की आवाज उठाना आसान नहीं होगा। चंद्रशेखर आजाद फ्री राशन मिलने वाले ८० करोड़ लोगों के बारे में भी कह रहे हैं कि ये लोग कौन हैं ? उन्होंने जातीय जनगणना की बात की है।
इसमें दो राय नहीं कि चंद्रशेखर आजाद संघर्षशील नेता हैं। इसमें दो राय नहीं कि उनका प्रयास होता है कि हर अन्याय के खिलाफ वह खङ़े हों। चंद्रशेखर आजाद ने किसानों, मजदूरों और पहलवानों के आंदेालन में सक्रिय भूमिका निभाई है। चंद्रशेखर आजाद को यह समझना होगा कि उनसे लोगों को बहुत अपेक्षाएं हैं। उनको बड़े संयम के साथ राजनीति करनी है। क्योंकि चंद्रशेखर आजाद सांसद बने हैं तो स्वभाविक है कि उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं को उनसे उम्मीद भी ज्यादा ही होंगी। कार्यकर्ताओं को मिलने की छूट चंद्रशेखर आजाद को देनी होगी। जहां तक एक कमरे और कार्यकर्ताओं के सड़क पर बैठने की बात है तो कार्यकर्ता तो ऐसे ही संघर्ष करते हैं। नेता और कार्यकर्ता के मिलन की जगह सड़क ही तो है। चंद्रशेखर आजाद को लंबी पारी खेलने के लिए यह कार्यकर्ताओं के लिए अपाइमेंट व्यवस्था को दूर रखना होगा। नेता जितने अधिक लोगों से मिलता है उतना ही बड़ा नेता होता है। चंद्रशेखर आजाद तो वैसे भी आंदोलनकारी हैं। आंदोलनकारी को तो कार्यकर्ताओं से मिलने का मौका तलाशना चाहिए। नेता जिधर भी निकले उधर ही उसके समर्थक दिखाई दें। वही तो नेता है। यदि अपाइमेंट व्यवस्था की जाएगी तो उसकी आड़ में पार्टी के दूसरे नेता अपनी राजनीति चमकाने लगेंगे। चंद्रशेखर आजाद को कार्यकर्ता और अपने बीच में कोई तीसरा नहीं खड़ा करना चाहिए। नहीं तो मायावती की दुर्दशा की समीक्षा चंद्रशेखर आजाद को कर लेनी चाहिए। मायावती की यह राजनीतिक दुर्दशा क्यों हुई ?