Category: विचार

  • धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता : असमानता और अन्याय को दूर करने की औषधि

    धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता : असमानता और अन्याय को दूर करने की औषधि

    धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता, जिसे समान नागरिक संहिता के रूप में भी जाना जाता है, सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनकी धार्मिक सम्बद्धता कुछ भी हो, व्यक्तिगत मामलों-जैसे विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार-को नियंत्रित करने वाले कानूनों का एक ही सेट प्रस्तावित करती है। भारत वर्तमान में हिंदू कानून, मुस्लिम कानून (शरिया) और ईसाई कानून सहित धर्म पर आधारित कई व्यक्तिगत कानूनों के तहत काम करता है। धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता का उद्देश्य इन विविध कानूनी प्रणालियों को एक समान संहिता से बदलना है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। इसका लक्ष्य विभिन्न समुदायों में और उनके भीतर कानूनी एकरूपता प्राप्त करना है, जिससे पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में उल्लिखित राज्य नीतियों के निर्देशक सिद्धांत में यह प्रावधान है कि “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।” हालाँकि, एक निर्देशक सिद्धांत होने के कारण, यह न्यायोचित नहीं है। समान नागरिक संहिता उदार विचारधारा से जुड़ी है और उदार-बौद्धिक सिद्धांतों के अंतर्गत आती है। अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) , 15 (भेदभाव का निषेध) और 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के अंतर्निहित सिद्धांतों का समर्थन करते हैं।

     डॉ. सत्यवान सौरभ

    भारत में वर्तमान में पूरे देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता लागू नहीं है। इसके बजाय, अलग-अलग समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मुद्दों को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानून धर्म के अनुसार अलग-अलग होते हैं। प्रधानमंत्री ने एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की वकालत की है, जो डॉ. अंबेडकर के एकीकृत कानूनी ढांचे के दृष्टिकोण को प्रतिध्वनित करती है। इस आह्वान का उद्देश्य मौजूदा कानूनों के कथित सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण पहलुओं को सम्बोधित करना और कानूनी प्रणाली को एकीकृत करना है। सुप्रीम कोर्ट ने देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने वाले कानूनों को ख़त्म करने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। हिंदू कोड बिल सिखों, जैनियों और बौद्धों सहित हिंदुओं के लिए व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध और एकीकृत करने के लिए पेश किया गया। गोवा में गोवा सिविल कोड (पुर्तगाली सिविल कोड 1867) के तहत एक समान नागरिक संहिता है, जो धर्म या जातीयता की परवाह किए बिना सभी गोवावासियों पर समान रूप से लागू होती है। उत्तराखंड ने हाल ही में उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक 2024 पारित किया है, जो अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर सभी निवासियों पर लागू विवाह, तलाक और विरासत जैसे मामलों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करता है।

    समान नागरिक संहिता असमानता को बनाए रखने वाले पुराने व्यक्तिगत कानूनों को हटाकर धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखेगी। यह सभी नागरिकों के लिए समान कानूनी उपचार सुनिश्चित करता है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, एक एकीकृत कानूनी ढांचे को बढ़ावा देता है जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है। समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों में निहित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करेगी, विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करने वाली प्रथाओं को। नागरिक कानूनों को मानकीकृत करके, यह सभी के लिए समान अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी देगा, सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाएगा। यहाँ तक कि एक धर्म के भीतर भी, इसके सभी सदस्यों को नियंत्रित करने वाला एक भी सामान्य व्यक्तिगत कानून नहीं है। उदाहरण के लिए, मुसलमानों के बीच विवाह के पंजीकरण के लिए, कानून जगह-जगह अलग-अलग होते हैं। समान नागरिक संहिता विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे नागरिक मामलों पर केंद्रित है, जिसमें धार्मिक प्रथाओं को अछूता रखा गया है। यह दृष्टिकोण अन्य लोकतंत्रों में प्रथाओं के साथ संरेखित है जहाँ धार्मिक स्वतंत्रता के साथ एक समान कानूनी ढांचा मौजूद है। समान नागरिक संहिता भारत के कानूनी ढांचे को सुव्यवस्थित और आधुनिक बनाएगी, जटिल और असंगत व्यक्तिगत कानूनों को सरलीकृत प्रणाली से बदल देगी।

    इससे कानूनी अनिश्चितता कम होगी और कानूनी खामियों का फायदा उठाने से रोका जा सकेगा। उदाहरण के लिए, सरला मुद्गल बनाम भारत संघ के मामले ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे व्यक्ति कानूनी प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए व्यक्तिगत कानूनों में अंतर का फायदा उठा सकते हैं। समान नागरिक संहिता को लागू करने से कई व्यक्तिगत कानून विवादों को कुशलतापूर्वक हल करके न्यायपालिका पर बोझ काफ़ी कम हो जाएगा। इससे अन्य महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए संसाधन मुक्त होंगे, जिससे समग्र न्यायिक प्रभावशीलता में सुधार होगा। मार्च 2022 तक भारत की अदालतों में लगभग 4.70 करोड़ मामले लंबित हैं, न्यायपालिका लंबित मामलों को निपटाने के लिए संघर्ष कर रही है। वैश्विक धारणा: समान नागरिक संहिता को अपनाने से समानता, धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करके वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ावा मिल सकता है। संवैधानिक कर्तव्य की पूर्ति: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। समान नागरिक संहिता धर्म को सामाजिक सम्बंधों और व्यक्तिगत कानूनों से अलग करेगी, समानता सुनिश्चित करेगी और इस प्रकार सद्भाव और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देगी।

    भारतीय कानून पहले से ही कई सिविल मामलों में एक समान संहिता बनाए रखते हैं, जैसे कि भारतीय अनुबंध अधिनियम और सिविल प्रक्रिया संहिता। हालाँकि, राज्यों ने कई संशोधन किए हैं, जिससे धर्मनिरपेक्ष नागरिक कानूनों के भीतर भी विविधता आई है। संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) से (आई) और छठी अनुसूची कुछ राज्यों को विशेष सुरक्षा प्रदान करती है, जो पारिवारिक कानूनों में क्षेत्रीय विविधता की मान्यता को दर्शाती है। समवर्ती सूची में व्यक्तिगत कानूनों को शामिल करना इस विविधता की सुरक्षा का समर्थन करता है, जो अनुच्छेद 44 के तहत एकरूपता के लिए दबाव के साथ विरोधाभास को उजागर करता है। समान नागरिक संहिता भारत के बहुलवादी समाज के लिए ख़तरा हो सकती है, जहाँ लोगों की अपने धार्मिक सिद्धांतों में गहरी आस्था है। भारत के 2018 के विधि आयोग ने कहा कि इस स्तर पर समान नागरिक संहिता “न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय” , इस बात पर ज़ोर देते हुए कि धर्मनिरपेक्षता को सांस्कृतिक मतभेदों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करना चाहिए, न कि उन्हें कमज़ोर करना चाहिए। टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक संयुक्त राष्ट्र के भीतर विविध पहचानों को पहचानने और संरक्षित करने के बारे में है।

    समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय पहचान के तहत कई व्यक्तिगत पहचानों के सह-अस्तित्व को संभावित रूप से नष्ट करके इस सिद्धांत के साथ संघर्ष कर सकती है। समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश या दृष्टिकोण की अनुपस्थिति एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। सभी व्यक्तिगत कानूनों को मिलाने या संवैधानिक जनादेश का पालन करने वाले नए कानून बनाने की जटिलता आम सहमति बनाने को जटिल बनाती है। अल्पसंख्यक अक्सर समान नागरिक संहिता को बहुसंख्यक दृष्टिकोण के थोपे जाने के रूप में देखते हैं, जिससे अनुच्छेद 25 और 26 के तहत उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। समान नागरिक संहिता संभावित रूप से एक ऐसी संहिता लागू कर सकती है जो सभी समुदायों में हिंदू प्रथाओं से प्रभावित हो। आदिवासी समुदायों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों में अलग-अलग विवाह और मृत्यु संस्कार होते हैं जो हिंदू रीति-रिवाजों से काफ़ी भिन्न होते हैं। चिंता है कि समान नागरिक संहिता समान प्रथाओं को लागू कर सकती है, जिससे इन अनूठी प्रथाओं पर प्रतिबंध लग सकता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना, जहाँ धार्मिक समुदाय अपने स्वयं के व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं, महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

    भारत के विधि आयोग ने सुझाव दिया कि एक समान नागरिक संहिता लागू करने के बजाय, मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं का अध्ययन और संशोधन करना अधिक विवेकपूर्ण है। समान नागरिक संहिता को भारत की बहुसंस्कृतिवाद को मान्यता देनी चाहिए और इस बात पर बल देना चाहिए कि एकता एकरूपता से अधिक महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि भारतीय संविधान द्वारा समर्थित है। समान नागरिक संहिता को निष्पक्ष और वैध बनाने के लिए धार्मिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों और समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ व्यापक परामर्श आवश्यक है। सांसदों को समानता और लैंगिक न्याय के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए असंवैधानिक प्रथाओं को हटाने और सांस्कृतिक परंपराओं का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाना चाहिए। संविधान सांस्कृतिक स्वायत्तता का समर्थन करता है, जिसमें अनुच्छेद 29 (1) विविध संस्कृतियों की सुरक्षा करता है। समुदायों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रथाओं को मूल्यों के साथ जोड़ना चाहिए। समान नागरिक संहिता के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए समझ और स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए व्यापक आउटरीच प्रयासों के माध्यम से नागरिकों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।

    पुराने और विभाजनकारी व्यक्तिगत कानूनों से आगे बढ़ना एक ऐसे भारत के संवैधानिक दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है जहाँ सभी नागरिकों के साथ कानून के तहत समान व्यवहार किया जाता है। जैसा कि बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था, “कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार हो जाता है, तो दवा दी जानी चाहिए।” धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता वह दवा है जिसकी भारत को उस असमानता और अन्याय को दूर करने और ठीक करने की आवश्यकता है जिसने हमारे समाज को लंबे समय से ग्रसित किया है।

    (लेखक कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)

  • वोटबैंक की राजनीति ने भगवान और अम्बेडकर के बीच ही बहस छिड़वा दी!

    वोटबैंक की राजनीति ने भगवान और अम्बेडकर के बीच ही बहस छिड़वा दी!

    चरण सिंह 
    भले ही विधानसभा और लोकसभा में शीतकालीन सत्र चल रहा हो पर किसी भी सदन में रोजगार, महंगाई, किसान-मजदूर की बात नहीं हो रही है। बात हो रही है ऐसे मुद्दे की, जिससे वोटबैंक प्रभावित होता हो। यह वोटबैंक की राजनीति ही है कि उत्तर प्रदेश में राम और बाबर तो केंद्र में भगवान और अम्बेडकर के नाम के बीच बहस छिड़वा दी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में जहां राम और अल्लाह को लेकर जय श्रीराम और अल्लाहु अकबर नारे की चर्चा हुई तो दिल्ली राज्यसभा में भगवान और अम्बेकडर के बीच बहस छिड़ गई है।
    दरअसल गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में भाषण देते हुए यह बोल दिया कि आजकल अम्बेडकर बोलना फ़ैशन हो गया है। उन्होंने कांग्रेस पर हमलावर होते हुए कहा कि जितनी बार अम्बेडकर बोलते हो यदि उतनी बार भगवान का नाम ले लेते तो सात जन्मों में स्वर्ग मिल जाता। विपक्ष ने अमित शाह के इस बयान को मुद्दा बना लिया है।
    कांग्रेस ने इसे बाबा साहेब का अपमान बताकर अमित शाह से माफ़ी मांगने की मांग करते हुए आंदोलन छेड़ दिया है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल इसे बीजेपी अहंकार बता रहे हैं। आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद ने भी इसकी निंदा की है। मामले को बिगड़ते देख पीएम मोदी ने एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए कांग्रेस पर बाबा साहेब का सबसे अधिक अपमान करने का आरोप लगाया है।
     हालांकि बाद में अमित शाह ने मामले को संभालते हुए यह भी कहा कि अम्बेडकर ने एससी एसटी के साथ व्यवहार ठीक न होने के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अम्बेडकर नेहरू सरकार की नीतियों और अनुच्छेद 370 से खुश नहीं थे।
    ऐसे में प्रश्न उठता है कि यह जो बहस देश में चल रही है इससे किसका भला हो रहा है। जनप्रतिनिधि किसी का भी नाम ले पर उसका पहला कर्तव्य अपने क्षेत्र के लिए काम करना होता है। उसकी कार्यशैली और गतिविधियों में देशभक्ति होनी चाहिए। राजनीतिक दल ऐसे किसी मुद्दे को पकड़ लेते हैं, जिससे किसी विशेष वर्ग की भावनाएं आहत होती हों। अम्बेडकर ऐसा नाम है जिससे दलितों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष को काफी फायदा हो गया था। अब विपक्ष का प्रयास होता है कि सत्ता पक्ष का कोई मामला संविधान से जोड़ दिया जाए जिससे दलितों की भावनाएं जुड़ जाएं। ऐसे ही सत्ता पक्ष का प्रयास होता है कि किसी तरह से माहौल हिन्दू मुस्लिम का हो जाए। हिन्दू एकजुट होकर उन्हें वोट दे दें।
  • उस्ताद जाकिर हुसैन केवल एक तबला नवाज ही नहीं थे

    उस्ताद जाकिर हुसैन केवल एक तबला नवाज ही नहीं थे

    प्रोफेसर राजकुमार जैन
    उनके इंतकाल की खबर से बेहद तकलीफ हुई।। हमारे वक्त का यह फनकार केवल बेजोड़ कलाकार ही नहीं विनम्रता, तहजीब, अदब में भी दिखावटी नहीं हकीकत में था। तकरीबन 50 साल पहले दिल्ली के कमायनी हाल में किसी कलाकार की संगत कर रहे जाकिर को पहली बार देखा तो देखता ही रह गया। जिस्मानी खूबसूरती तथा सादगी से अपना तबला खुद उठाकर चले आ रहे जाकिर ने झुक झुक कर सुनने वालों का अभिवादन किया। प्रोग्राम शुरू होने पर इनके चेहरे के साथ बालों की लटें जिस तरह मुख्य कलाकार को दाद दे रही थी आंखें उसी को देखे जा रही थी। तबले पर थाप से पहले श्रोताओं का स्वागत, कानों पर हाथ लगाकर अपने गुरुओं का स्मरण, तथा हाल में बैठे हुए बुजुर्ग कलाकारों से इजाजत मांग कर जब तबला वादन शुरू हुआ तो सच कहूं मुख्य कलाकार संगतकार लगने लगा। न जाने कितनी बार इनका तबला वादन सोलो और संगत दोनों रूपों में सुनने को मिला। कई बार कर्नाटक संगीत के चोटी के गायक तथा वाद्य यंत्रों के कलाकारों की संगत को बखूबी करते हुए मैंने देखा। टीवी पर, पाश्चात्य संगीत के मशहूर मारूफ बैंड, वाद्य यंत्रों के कलाकारों के साथ जुगलबंदी, में इनका तबला अलग ही प्रभाव छोड़ता हुआ नजर आया। अक्सर मैंने देखा है कि जब कोई कलाकार मशहूर हो जाता है तो वह जूनियर कलाकारों के साथ संगत करना अपनी तोहीन मानता है परंतु जाकिर का इस मामले में भी कोई जवाब नहीं था। भाव विभोर कलाकार बार-बार विनम्रता से जाकिर का शुक्रिया अदा करता कि जाकिर साहिब ने मेरे साथ संगत करके मुझे इज्जत बख्शी है। जाकिर उसी खुलूस के साथ उसकी होसला अफजाई करते उसका सम्मान करते। अक्सर मैंने संगीत की महफिलों में देखा है की कई तबला वादक अपनी तैयारी को दिखाने के लिए मुख्य कलाकार की संगत न करते हुए कलाकार को अपने सम पर लाने के लिए मजबूर करते हैं, परंतु जाकिर कभी भी अपनी हदबंदी को लांघते नहीं थे।
    दिल्ली और दिल्ली से बाहर के संगीत सम्मेलनों मैं सुरों के गायन और वादन में अधिकतर नामवर तथा नवोदित संगीतकारों को सुना और देखा है। पहली पीढ़ी के मंझे हुए कलाकार मंच पर अपने गले और साज की हुनर बंदी, करामात पेश करते थे, परंतु जाकिर के वक्त के अनेकों नौजवान संगीतकार जो किसी मशहूर उस्ताद के बेटे या शागिर्द रहे वह अपने फन से ज्यादा अपने संगीत घराने,खानदान, पिता उस्ताद की महानता का बखान, अपनी पोशाक, हाव-भाव, भंगिमा स्टेज पर प्रदर्शित कर अपनी अहमियत का प्रदर्शन करते, हालांकि उनके संगीत से संगीत रस कोसों दूर होता। ऐसे संगीतकार थोड़े वक्त में ही संगीत जगत से ओझल भी हो गए। लेकिन जाकिर रोज-बरोज बढ़ते ही गये। उनकी सबसे बड़ी खूबी इस बात में थी कि गुनी संगीत रसिको के साथ-साथ स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राएं बड़ी तादाद में जाकिर के प्रोग्राम में शामिल होते गए। जिसका बड़ा श्रेय स्पीक मैके नामक संगठन जो स्कूल और यूनिवर्सिटी में संगीत के लेक्चर डेमोंसट्रेशन तथा प्रस्तुतियां आयोजित करता है को भी जाता है।
    जाकिर के अंदर की विनम्रता, सहजता, भावुकता से सामना तब हुआ जब वे आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के दीक्षांत समारोह में डी लिट की मानद उपाधि को ग्रहण करने के लिए आए हुए थे, तथा यूनिवर्सिटी के संस्थापक रमाशंकर सिंह के मेहमान बनकर 3 दिन तक उनके घर पर ही ठहरे हुए थे। आईटीएम यूनिवर्सिटी ने संगीत के महान कलाकारों की प्रतिमाओं का एक संग्रहालय स्थापित किया हुआ है, उसमें जाकिर हुसैन के मरहूम पिता तथा मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ां की प्रतिमा भी स्थापित की गई । उसका अनावरण जाकिर हुसैन ने ही किया। उस समय में भी उनके साथ ही खड़ा था। ज्योंही प्रतिमा से पर्दा हटा, प्रतिमा को देखकर जाकिर भाव विह्वल हो उठे। उनके दोनों हाथों ने पहले प्रतिमा के चरणों को छुआ, फिर डबडबाती हुई आंखों से प्रतिमा के एक-एक अंग को छूते हुए वह बुदबुदाये, अब्बा हमें माफ करना, हमने आपकी याद में अपनी फर्ज अदायगी नहीं की, ना ही मुंबई में या कहीं और। इस यूनिवर्सिटी ने आपको जो सम्मान दिया है, उसको दिखाने के लिए (उसके बाद उन्होंने कुछ औरतों के शायद अपनी पत्नी, बहन, बेटी वगैरा के नाम लेकर कहा) अगली बार में उन सबको लेकर यहां आऊंगा।
    तीन दिन के उनके साथ ने जो असर छोड़ा है, उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। गंगा जमुनी तहजीब, भारत की महान सांस्कृतिक गाथाओं, विरासत से रचे पचे जाकिर ने अनेक किस्से सुनाए। यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते उन्होंने बताया कि जब मैं पैदा हुआ तो 3 दिन के बाद अस्पताल से लाकर मेरी मां ने अब्बा की गोद में दे दिया ताकि रिवायत के मुताबिक मेरे पिता मजहबी कोई आयत पहली बार मेरे कानों में सुना दे। परंतु मेरे पिता ने पहले तबले की पढंत, बोल सुनाएं, असहज होकर मेरी मां ने कहा यह आप क्या कर रहे हो, तो अब्बा ने कहा कि यह भी खुदा की इबादत है। मैं शिक्षा की देवी सरस्वती तथा भगवान गणेश का उपासक हूं, मेरे शिक्षक ने यही तालीम मुझे दी है, इसीलिए यह मैं अपने शिशु को दे रहा हूं। ऐसे माहौल में पैदा हुए जाकिर हुसैन अब कहां मिलेंगे?

  • क्या देश को संविधान की जगह भावनाओं से चलाया जा सकता है ? 

    क्या देश को संविधान की जगह भावनाओं से चलाया जा सकता है ? 

  • भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता?

    भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता?

    ड्राफ्ट यूजीसी (स्नातक डिग्री और स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करने के लिए निर्देश के न्यूनतम मानक) विनियम, 2024 का उद्देश्य लचीले, समावेशी और अभिनव उपायों को पेश करके भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में क्रांति लाना है। ये सुधार पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाने और कठोर शैक्षणिक संरचनाओं को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जो पहुँच और गुणवत्ता में लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों का समाधान करते हैं।

     

    प्रियंका ‘सौरभ’

    ड्राफ्ट यूजीसी दिशा-निर्देश 2024 में प्रस्तावित प्रमुख सुधार द्विवार्षिक प्रवेश हैं। ड्राफ्ट में प्रस्ताव है कि यूजी और पीजी पाठ्यक्रम द्विवार्षिक प्रवेश प्रदान करते हैं, जिससे शिक्षा में लचीलापन और पहुँच बढ़ती है। यह परिवर्तन छात्रों को जनवरी और जुलाई दोनों में शैक्षणिक कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति दे सकता है, जिससे नए प्रवेश के लिए अधिक अवसर मिलेंगे, खासकर उन छात्रों के लिए जो पारंपरिक प्रवेश चक्रों से चूक गए हैं। छात्र अपनी पिछली शैक्षणिक स्ट्रीम की परवाह किए बिना विभिन्न विषयों में पाठ्यक्रम कर सकते हैं, जिससे उन्हें शैक्षिक विकल्पों में अधिक स्वतंत्रता मिलती है। विज्ञान पृष्ठभूमि वाला छात्र मानविकी पाठ्यक्रम चुन सकता है और इसके विपरीत, बशर्ते कि वे एक प्रासंगिक राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण करें, जो अंतःविषय सीखने को बढ़ावा देता है। छात्रों के लिए अपनी शैक्षणिक अवधि को तेज करने या बढ़ाने का विकल्प, जैसे कि दो साल में एक कोर्स पूरा करना या इसे चार साल तक बढ़ाना, व्यक्तिगत सीखने के मार्गों को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिए, छात्र ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई को संतुलित करते हुए हाइब्रिड लर्निंग मॉडल चुन सकते हैं, जो उनकी ज़रूरतों के आधार पर कोर्स को तेज़ी से या धीमी गति से पूरा करने की सुविधा प्रदान करता है। मसौदा छात्रों को एक साथ कई डिग्री हासिल करने की अनुमति देता है, बशर्ते कि वे दो भौतिक कार्यक्रमों में नामांकित न हों। एक छात्र ग्राफिक डिज़ाइन में डिप्लोमा के साथ-साथ इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल कर सकता है, जिससे विविध योग्यताओं के साथ उनकी रोज़गार क्षमता बढ़ जाती है। दिशा-निर्देश उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए अधिक स्वायत्तता का प्रस्ताव करते हैं, विशेष रूप से उपस्थिति आवश्यकताओं और शैक्षणिक कैलेंडर निर्धारित करने में। दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय अपने स्वयं के उपस्थिति मानदंड निर्धारित कर सकते हैं, जो छात्रों की ज़रूरतों के अनुरूप शैक्षणिक कठोरता को बनाए रखते हुए लचीलापन प्रदान करते हैं। अंतर-विषयक लचीलापन और कई डिग्री विकल्प प्रदान करने से छात्रों को अधिक व्यक्तिगत और अच्छी तरह से गोल शिक्षा तैयार करने की अनुमति मिलती है। वाणिज्य में एक छात्र कंप्यूटर विज्ञान पाठ्यक्रम चुन सकता है, जो उन्हें वित्तीय प्रौद्योगिकी (फ़िनटेक) जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए तैयार करता है। पारंपरिक शैक्षणिक शिक्षा के साथ-साथ कौशल-आधारित शिक्षा पर जोर, कार्यबल-तैयार स्नातकों की बढ़ती मांग के साथ संरेखित करता है। उदाहरण के लिए, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क व्यावसायिक और शैक्षणिक शिक्षा को एकीकृत करता है, जिससे छात्रों को IT डिग्री हासिल करने के साथ-साथ ग्राफ़िक डिज़ाइन जैसे कौशल हासिल करने की अनुमति मिलती है। हाइब्रिड लर्निंग में बदलाव से देश भर के छात्रों के लिए पहुँच और सामर्थ्य में वृद्धि हो सकती है, खासकर दूरदराज के इलाकों में।स्वयं द्वारा पेश किए जाने वाले ऑनलाइन पाठ्यक्रम ग्रामीण भारत के छात्रों को शिक्षा के लिए भौगोलिक बाधाओं को तोड़ते हुए दूर से प्रतिष्ठित संस्थानों में जाने की अनुमति दे सकते हैं। द्विवार्षिक प्रवेश छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए अधिक अवसर प्रदान करते हैं, जिससे यह व्यापक जनसांख्यिकीय के लिए सुलभ हो जाता है। प्रस्तावित सुधारों का उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के साथ जोड़ना, अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और छात्र गतिशीलता को बढ़ावा देना है। अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट पर अधिक ध्यान देने के साथ, छात्र अपने अर्जित क्रेडिट को वैश्विक रूप से संस्थानों के बीच स्थानांतरित कर सकते हैं, जिससे भारतीय उच्च शिक्षा की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ जाती है। UGC दिशा-निर्देश 2024 के मसौदे में प्रस्तावित सुधारों की कमियाँ संसाधन सीमाएँ हैं। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अपर्याप्त संकाय, कम वित्तपोषित संस्थान और अच्छी तरह से प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है, जो सुधारों के कार्यान्वयन में बाधा बन सकती है। भारत में कई सरकारी विश्वविद्यालयों में अभी भी उचित संसाधनों की कमी है और यह हाइब्रिड लर्निंग और कई डिग्री ऑफ़रिंग जैसे सुधारों की सफलता को कमज़ोर कर सकता है। कई सम्बद्ध कॉलेज नए नियमों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं, जिससे दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। छोटे निजी कॉलेजों को सीमित बुनियादी ढाँचे और पुरानी शिक्षण पद्धतियों के कारण क्रॉस-डिसिप्लिनरी लचीलेपन जैसे बदलावों को लागू करना मुश्किल हो सकता है। स्थापित शैक्षणिक संस्थान अकादमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट (ABC) जैसे सुधारों का विरोध कर सकते हैं, जो पारंपरिक संरचनाओं को बाधित करते हैं। निवेश की कमी: इन सुधारों के कार्यान्वयन के लिए अपर्याप्त धन और वित्तीय सहायता प्रगति को धीमा कर सकती है। 2024-25 के केंद्रीय बजट में उच्च शिक्षा के लिए बजट आवंटन में 17% की कमी की गई, जो संभावित रूप से सुधारों के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है। शिक्षा समवर्ती सूची में होने का मतलब है कि राज्य सरकारों को इन सुधारों को अपनाना चाहिए, लेकिन कुछ राज्य केंद्रीय दिशानिर्देशों का पूरी तरह से पालन नहीं कर सकते हैं।

    वित्त पोषण और संसाधनों को सुव्यवस्थित करना: इन सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि आवश्यक है। सरकार को कम वित्त पोषित संस्थानों को नए हाइब्रिड लर्निंग मॉडल में बदलने और क्रॉस-डिसिप्लिनरी प्रोग्राम लागू करने में मदद करने के लिए लक्षित वित्तीय सहायता पर विचार करना चाहिए। नए शिक्षण पद्धतियों और तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए संकाय को अपस्किल करने और निरंतर पेशेवर विकास प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करें। शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण तकनीकों को प्रभावी ढंग से अपनाने में सक्षम बनाने के लिए इग्नू जैसे संस्थानों को संकाय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने के लिए समर्थन दिया जाना चाहिए। राज्यों को स्थानीय स्तर पर सुधारों को अपनाने और लागू करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे पूरे भारत में निष्पादन में एकरूपता सुनिश्चित हो सके। दिशानिर्देशों के तेजी से अनुपालन के लिए राज्य-विशिष्ट प्रोत्साहन प्रदान करने से राज्य सक्रिय रूप से सुधारों को लागू करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट और कई डिग्री जैसे सुधारों के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने से छात्रों और शैक्षणिक संस्थानों का प्रतिरोध कम हो सकता है। निजी क्षेत्र के साथ सहयोग पाठ्यक्रम डिजाइन में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि शैक्षिक पेशकश उद्योग की ज़रूरतों से मेल खाती है। इन्फोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को कौशल-आधारित पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र स्नातक होने पर नौकरी के लिए तैयार हों। ड्राफ्ट यूजीसी दिशानिर्देश 2024 का सफल कार्यान्वयन भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को बदलने और इसे वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में शिक्षा के लिए 6% जीडीपी आवंटन का लक्ष्य रखा गया है, भारत एक अधिक लचीला और भविष्य के लिए तैयार शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की राह पर है। चुनौतियों पर काबू पाकर और स्थायी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी शैक्षिक आकांक्षाओं को प्राप्त कर सकता है और आने वाले दशकों में राष्ट्रीय विकास को गति दे सकता है।

  • समान पैदावार के साथ स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती

    समान पैदावार के साथ स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती

    किसानों की खाद की मांग को पूरा करने के लिए शहरी गीले कचरे से खाद बनाने को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में शामिल करें। विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन: स्थानीय खाद बनाने के समाधानों के लिए शहर-किसान भागीदारी को बढ़ावा दें। खाद बनाने की तकनीक और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मज़बूत करें। जन जागरूकता और बुनियादी ढांचे में निवेश के माध्यम से स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण प्रथाओं को बढ़ाएँ। खेतों पर खाद बनाने के बुनियादी ढांचे के लिए सब्सिडी प्रदान करें। खेतों में सीधे अपशिष्ट वितरण को प्रोत्साहित करके यूएलबी के लिए परिचालन लागत कम करें।

     

    डॉ. सत्यवान सौरभ

    25 नवंबर, 2024 को भारत सरकार ने रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने और एक करोड़ किसानों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन की शुरुआत की। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का उद्देश्य जैविक खेती की ओर बढ़ रहे किसानों को प्रशिक्षित करना और उनका समर्थन करना है, जिसमें गाय के गोबर से बनी खाद और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अन्य गैर-रासायनिक उर्वरकों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। हालांकि, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहरी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के साथ इसका एकीकरण कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन दोनों में चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक अभिनव समाधान प्रदान करता है। प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों ने पारंपरिक खेती करने वालों के समान ही पैदावार की सूचना दी। कई मामलों में, प्रति फ़सल अधिक पैदावार की भी सूचना मिली। चूंकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए स्वास्थ्य जोखिम और खतरे समाप्त हो जाते हैं। भोजन में पोषण घनत्व अधिक होता है और इसलिए यह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।

    प्राकृतिक खेती बेहतर मृदा जीव विज्ञान, बेहतर कृषि जैव विविधता और बहुत कम कार्बन और नाइट्रोजन पदचिह्नों के साथ पानी का अधिक विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करती है। प्राकृतिक खेती का उद्देश्य लागत में कमी, कम जोखिम, समान पैदावार, अंतर-फसल से आय के कारण किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करके खेती को व्यवहार्य और आकांक्षापूर्ण बनाना है। विभिन्न फसलों के साथ काम करके जो एक-दूसरे की मदद करते हैं और वाष्पीकरण के माध्यम से अनावश्यक पानी के नुक़सान को रोकने के लिए मिट्टी को कवर करते हैं, प्राकृतिक खेती ‘प्रति बूंद फसल’ की मात्रा को अनुकूलित करती है।
    भारत में सालाना 5.8 करोड़ टन ठोस कचरा पैदा होता है, जिसमें 1 करोड़ टन जैविक खाद बनाने की क्षमता है। इसके बावजूद, अलग-अलग कचरे से शहरी खाद को अभी तक एकीकृत नहीं किया गया है, जो सालाना 15-20 लाख किसानों की खाद की ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। अप्रसंस्कृत नगरपालिका अपशिष्ट अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों के पास लैंडफिल में समाप्त हो जाता है, जिससे पर्यावरण क्षरण और मीथेन उत्सर्जन होता है। शहरी स्थानीय निकाय केवल 30-40% कचरे का प्रसंस्करण करते हैं, वे अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं को क्रियाशील रखने के लिए परिचालन सब्सिडी पर निर्भर रहते हैं।

    जैविक खाद की आवश्यकता 2-3 टन प्रति एकड़ है, जो 100-150 किलोग्राम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता से कहीं अधिक है। परिवहन लागत जैविक खाद को इसकी कम क़ीमत (₹2, 000-3, 000 प्रति टन) के बावजूद किसानों के लिए कम सुलभ बनाती है। यह मॉडल अलग किए गए शहरी गीले कचरे को खेत की भूमि से जोड़ता है, जिससे खेतों पर सीधे खाद बनाना संभव हो जाता है। यह टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देते हुए अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करता है। शहरी स्थानीय निकाय अलग किए गए गीले कचरे को अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों या लैंडफिल के बजाय सीधे खेतों में पहुँचाते हैं। किसान पारंपरिक गड्ढा खाद बनाने के तरीकों का उपयोग करते हैं, गीले कचरे को गोबर के घोल और जैव-संस्कृतियों के साथ मिलाकर 2-3 महीनों के भीतर जैविक खाद का उत्पादन करते हैं। 1 लाख की आबादी वाला एक शहर प्रतिदिन 10-15 टन गीला कचरा उत्पन्न करता है, जो एक किसान के फ़सल चक्र के लिए प्रतिदिन 3 टन खाद बनाने के लिए पर्याप्त है। अपने खेतों पर निःशुल्क जैविक खाद तक पहुँच, परिवहन और इनपुट लागत में कमी। मिट्टी की सेहत में सुधार और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी। परिचालन सब्सिडी (टिपिंग शुल्क) पर बचत। अपशिष्ट प्रसंस्करण दक्षता में वृद्धि और मीथेन उत्सर्जन में कमी। लैंडफिल अपशिष्ट और सम्बंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के साथ इसके बहुत से फायदे हैं।

    ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए शहर-किसान भागीदारी (एसडब्ल्यूएम) ने 200 से अधिक किसानों को 2, 300 टन अलग-अलग गीले कचरे की आपूर्ति की, जिससे 600 टन जैविक खाद का उत्पादन हुआ। रासायनिक उर्वरक के उपयोग में 50-60 टन की कमी। खाद बनाने से पहले और बाद में कठोर परीक्षण के माध्यम से मिट्टी की सेहत में सुधार हुआ जर्मनी में वैश्विक स्तर पर सबसे उन्नत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में से एक है, जो एक परिपत्र अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। जैविक कचरे को स्रोत पर अलग किया जाता है और उच्च गुणवत्ता वाले खाद और बायोगैस में परिवर्तित किया जाता है। जापान ने ताकाकुरा खाद बनाने की विधि विकसित की है, जो घरेलू कचरे का उपयोग करके एक विकेन्द्रीकृत खाद बनाने की तकनीक है। यह विधि शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से अपनाई जाती है। स्वीडन ने जैव-चक्र खेती का मॉडल अपनाया है, जहाँ शहरी जैविक कचरे का उपयोग जैव-उर्वरक और बायोगैस बनाने के लिए किया जाता है। सिंगापुर ने जैविक कचरे को टिकाऊ तरीके से प्रबंधित करने के लिए शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक स्तर पर खाद बनाने के केंद्र स्थापित किए हैं।

    किसानों की खाद की मांग को पूरा करने के लिए शहरी गीले कचरे से खाद बनाने को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में शामिल करें। विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन: स्थानीय खाद बनाने के समाधानों के लिए शहर-किसान भागीदारी को बढ़ावा दें। खाद बनाने की तकनीक और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मज़बूत करें। जन जागरूकता और बुनियादी ढांचे में निवेश के माध्यम से स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण प्रथाओं को बढ़ाएँ। खेतों पर खाद बनाने के बुनियादी ढांचे के लिए सब्सिडी प्रदान करें। खेतों में सीधे अपशिष्ट वितरण को प्रोत्साहित करके यूएलबी के लिए परिचालन लागत कम करें। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) और शहर-किसान भागीदारी मॉडल भारत की कृषि और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक करोड़ किसानों को समर्थन देने के एनएमएनएफ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकारी एजेंसियों, यूएलबी और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है, जिससे कृषि, शहरी शासन और पर्यावरण के लिए जीत-जीत का परिणाम सुनिश्चित हो सके।

    (लेखक कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)

  • सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही संविधान नहीं, सत्ता है प्राथमिकता !

    सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही संविधान नहीं, सत्ता है प्राथमिकता !

    चरण सिंह 

    इस समय विपक्ष संविधान का बहुत राग अलाप रहा है। सपा का तो भगवान पीडीए ही हो गया है। रोजगार नहीं जातीय जनगणना विपक्ष की प्राथमिकता हो गई है। दिलचस्प बात तो यह है कि विपक्ष सत्ता पक्ष पर तो संविधान को न मानने का आरोप लगा रहा है पर खुद नहीं देख रहा है कि वह संविधान को कितना मान रहा है। इसमें दो राय नहीं कि सत्ता पक्ष की जो गतिविधियां हैं वे संविधान को न मानने वाली हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बंटेंगे तो कटेंगे नारे की लोकतंत्र में कोई गुंजाइश नहीं है पर क्या विपक्ष के क्रियाकलाप संविधान को मानने वाले हैं। संविधान में कहां लिखा हुआ है कि राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद को बढ़ावा मिले। संविधान में कहां लिखा है कि कुछ जाति विशेष को ही आप देश मान लें। पार्टी को प्राइवेट कम्पनी बना दें। संविधान में कहां लिखा है कि कार्यकर्ताओं को गुलाम बनाकर रखें। जो कार्यकर्ता पार्टी में लोकतंत्र की बात करे उसे पार्टी से बाहर कर दें। विपक्ष की जितनी भी पार्टी हैं, उनमें कौन सी पार्टी है, जिसमें लोकतंत्र है। जिसमें कार्यकर्ताओं की बात सुनी जाती है। कौन सी पार्टी में लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष का चुनाव होता है। ऐसा भी भी नहीं ही कि बीजेपी में भी कोई लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष चुना जा रहा हो।संविधान को तो बस जनता ही मान रही है। नेता तो किसी भी पार्टी का हो वह संविधान को कुछ समझने को तैयार नहीं। जब एक जज यह बोल सकता है कि देश बहुसंख्यक समाज की भावनाओं से चलेगा। तो फिर समझ लीजिये कि देश कहां जा रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार है। बीजेपी को किसी भी तरह से हिन्दू वोटबैंक को एकजुट कर सत्ता हथियाए रखनी है तो विपक्ष को किसी तरह से सरकार के खिलाफ जनता को खड़ा कर सत्ता हासिल करना।विपक्ष को यदि कुछ नहीं करना है तो वह है जनहित में संघर्ष करना। विपक्ष की राजनीति बयानबाजी तक सिमट रह गई है। x हैंडिल और सोशल मीडिया पर भी कोई और ही लिखता है। राहुल गांधी तो किसी घटना स्थल पर चले जाते भी हैं पर अखिलेश यादव तो अपना प्रतिनिधिमंडल को घटनास्थल पर भेजते हैं। दरअसल देश में वंशवाद पर टिके विपक्ष में संघर्ष का घोर अभाव है।  दरअसल प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी ने संविधान को लेकर सत्ता पक्ष पर हमला बोला। राहुल गांधी ने कहा, संविधान में अम्बेडकर, गांधी नेहरू के विचार हैं। उन विचारों का श्रोत शिव, बुद्ध, महावीर, कबीर आदि थे। उन्होंने कहा, संविधान को लेकर सावरकर ने कहा था कि संविधान के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है. इसकी जगह मनुस्मृति को लागू करना चाहिए। जब आप संविधान को बचाने की बात करते हैं तो आप अपने नेता सावरकर का मजाक बना रहे हैं। बीजेपी पर उन्होंने आरोप लगाया कि जनता के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जैसा एकलव्य के साथ द्रोणाचार्य ने किया था।

  • तिहाड़ जेल में सांड आश्रम!

    तिहाड़ जेल में सांड आश्रम!

    प्रोफेसर राजकुमार जैन
    आपातकाल में खौफनाक माहौल बना हुआ था। घर वालों को भी पता नहीं था कि मैं कहां हूं। 3 महीने के बाद पहली बार मेरी मां को मुझसे जेल में मिलने की इजाजत मिली। मां बहुत घबराई हुई थी। मुझे देखते ही रोने लगी पर जब उसने मुझे बहुत आनंदित देखा तो सहज हुई। जेल की तीन बेरिकों (कैदियों को रखने का स्थान) एक में आरएसएस जनसंघ (भाजपा) वाले दूसरे में सोशलिस्ट तथा तीसरे में कई प्रकार के मीसाबंदी बंद थे। जनसंघ वालों ने इन जेल की बैरिको का नामकरण कर रखा था। अपनी बैरक का नाम स्वर्ग आश्रम, सोशलिस्टों की बैरक का नाम सांड आश्रम तथा तीसरी बैरक का दो नंबर वाले। सोशलिस्टों में अधिकतर कुंवारे थे। अधिकतर कैदी अनागत भविष्य के कारण अपने कारोबार, परिवार की चिंता में मायूस, किसी भी प्रकार, कांग्रेसी की मार्फत माफी मांग कर या सीधे लेफ्टिनेंट गवर्नर के यहां माफी नामा लिखकर जेल से निकलने की जुगत में लगे होते थे। परंतु सोशलिस्ट लगातार जुल्म ज्यादतियों के खिलाफ लड़ते हुए जेल आने के कारण जेल जीवन के आदी बन चुके थे। इनकी मौज मस्ती को देखते हुए ही इनकी बैरक का नाम सांड आश्रम रखा गया था।

    मेरे दोस्त जयकुमार जैन और हरीश खन्ना ये वे दो लोग थे जो तिहाड़ जेल से लेकर हिसार की सेंट्रल जेल तक लगातार जेल ‍अदालत, अस्पताल मैं मुझसे मिलने आते थे। मैं इनको मना भी करता था कि तुम पकड़े जाओगे परंतु यह कहां मानने वाले थे। बाकी कहानी प्रोफेसर हरीश खन्ना भूतपूर्व विधायक दिल्ली विधानसभा की जुबानी पढ़िए।

    आपात स्थिति में एक डर और खौफ का माहौल था ।लोग बड़ी शंका की निगाह से एक दूसरे को देखते थे ।लोग घबराते थे कि सरकार के खिलाफ कोई शब्द निकाला तो ना जाने कहां से कौन आ कर दबोच लेगा और उनको जेल भेज दिया जाएगा। ।ऐसा कई लोगों के साथ हुआ भी था । खुफिया तंत्र इतना सक्रिय था कि लोग उस वक्त भयभीत रहते थे।पुलिस जगह-जगह ऐसे राजनीतिक लोगों को ढूंढती थी जो विरोधी पक्ष के थे। उस दौर में विभिन्न विरोधी दलों से जुड़े हुए जो लोग थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जनसंघ,संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी , कांग्रेस सिंडिकेट, अल्ट्रा लेफ़्ट नक्सली,जमायते इस्लामी, आनन्द मार्गी और आर एस एस के लोग, इन सब की धरपकड़ हुई । दिल्ली विश्वविद्यालय के कई प्राध्यापक भी जो विभिन्न विरोधी दलों से जुड़े हुए थे उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ओम प्रकाश कोहली जो जनसंघ और आर एस एस के साथ जुड़े हुए थे(बाद में राज्यसभा के सदस्य और गुजरात के गवर्नर भी बने) उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। जनसंघ के विजय कुमार मल्होत्रा जो डी ए वी कॉलेज में प्रोफेसर थे और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री थे उन्हें भी गिरफ्तार किया गया । अल्ट्रा लेफ़्ट के मुरली मनोहर प्रसाद सिंह जो बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष बने , ओ. के यादव ,विनोद खुराना इनको भी गिरफ्तार किया गया। कुछ को दिल्ली में और कुछ को अन्य जेलों में बंद किया गया।

    हमारे दो मित्र जयकुमार जैन और मुनीश्वर त्यागी जो वरिष्ठ वकील हैं ,उन दिनों राजकुमार जैन से मुलाकात करने तिहाड़ जेल गए ताकि यह जान सकें कि वह स्वस्थ है। मुनीश्वर त्यागी जी बताते है कि मैंने अपने काले कोट का पूरा फायदा उठाया।वकील होने के नाते ना तो मेरी तलाशी होती थी और न ही मेरे हाथ पर मोहर लगाई जाती थी। वह कहते हैं कि राजकुमार जैन से जब मै मिलने गया तो मैंने उन्हें यह खबर दी कि बाहर कुछ लोग अंडर ग्राउंड होकर आपात स्थिति के खिलाफ पर्चे बांट रहे हैं ।उनमें कुछ पर्चे छुपा कर वह साथ लेकर गए भी थे और दिए भी थे।
    राजकुमार जी से मैं मुलाकात पहले ही कर चुका था और निरंतर उनसे संपर्क में था ।अदालत में जब जब पेशी होती थी तो मुझे सूचना मिल जाती और मैं राजकुमार जी से मिलने पहुंच जाता था। जैन साहब के जेल से लिखे पत्र भी मुझे मिलते रहते थे। पत्रो को बाकायदा सेंसर करके भेजा जाता था । राजकुमार जैन से बाकायदा आंखो देखा हाल मिलता रहता था।जेल में रोज शाम को नारेबाजी होती थी। राज कुमार जैन ने बताया कि जेल में बंद कैदियों की तीन तरह की बैरकें थी । एक में आरएसएस और जनसंघ के लोग थे।उस बैरक को जनसंघ के लोगों ने नाम दिया था स्वर्ग आश्रम । दूसरे सोशलिस्ट जिस बैरक में थे उसको जनसंघ और आरएसएस के लोग सांड आश्रम कहते थे। आपस में मजाक चलता था। सोशलिस्ट स्वर्ग आश्रम को गऊ आश्रम कहते थे। गऊ आश्रम वाले कहते थे यह जो समाजवादी है, दो तीन को छोड़ कर बाकी सभी अविवाहित है।इनके आगे पीछे कोई है नहीं। ना तो इनको कोई चिंता है न कोई डर है, बस व्यायाम करते है और आराम करते हैं। यह तो सांड हैं।
    तीसरी बैरक में वो लोग थे जो इन दोनों से हटकर या individual थे । वैचारिक आधार पर सब ने अपना अपना ठिकाना इन बैरकों में बना लिया था ।उन्हीं दिनों सतपाल मलिक (भूतपूर्व गवर्नर जम्मू कश्मीर और वर्तमान में गोवा के गवर्नर) भी वहां गिरफ्तार होकर आये और अपना ठिकाना समाजवादियों के साथ उनकी बैरक में रखा ।
    राजकुमार जैन ने जेल की एक रोचक घटना सुनाई थी। सांवल दास गुप्ता पुराने सोशलिस्ट लीडर थे।1960 के आसपास उन्होने खूब धरने प्रदर्शन और आंदोलन किए। उनका जन्मदिन आने वाला था।यह तय किया गया उनका जन्मदिन मनाया जाएगा । हालांकि जन्मदिन मनाने के सिद्धान्त रूप से सभी समाजवादी खिलाफ रहते है।पर जेल में उन्हें शरारत सूझी।जन्म दिन वाले दिन कोई कैदी बाहर अदालत में पेशी के लिए जा रहा था उससे कहा गया कि एक किलो बर्फी, अंगवस्त्र,और चंदन की माला वह अपने रिश्तेदारों की मार्फत मंगवा कर लेता आए। इसके लिए उसे लगभग डेढ़ – दो सौ रुपए दिए गए और सामान मंगवाया गया। बर्फी कम थी उस को काट कर छोटे पीस बना दिए गए। शाम को जन्मदिन के अवसर पर गुप्ता जी के सम्मान में भाषण हुए जनसंघ और समाजवादियों सहित सभी लोगों ने गुप्ता जी का गुणगान और सामाजिक राजनीतिक जीवन में उनके योगदान की प्रशंसा की ।अंगवस्त्र,जैकेट,और चंदन की माला उन्हें पहनाई गई। खूब धूम धाम से सादगी भरा जन्मदिन मनाया गया। गुप्ता जी बहुत प्रसन्न थे।
    अगले दिन देखा गुप्ता जी बहुत परेशान थे।बार बार अपने तकिए को झाड़ते थे। कभी अपने कपड़ों को टटोलते थे।लोगों ने पूछा क्या हुआ गुप्ता जी?
    मैंने कुछ रुपए बचा कर रखे थे।पता नहीं मिल नहीं रहे – गुप्ता जी ने कहा।
    घर से मुलाकात के लिए जब कोई जेल आता था तो कुछ रुपए और सामान देकर जाते थे।गुप्ता जी उन पैसों को बचा कर कभी तकिए के कवर में , कभी जैकट की जेब में , कुछ कपड़ों की तह में छुपा कर रख देते थे। वो लगभग डेढ़ दो सौ रुपए इकट्ठे हो गए थे।योजना अनुसार एक दिन पहले साथियों ने उन रुपयों को उड़ा लिया जिसका गुप्ता जी को पता नहीं चला। गुप्ता जी को परेशान देख सभी साथी हंसने लगे। गुप्ता जी सब का मुंह देखने लगे और समझ गए कि यह इन लोगों की शरारत है। तब उन्हें पता चला कि जन्मदिन तो उन्हीं पैसों से मनाया गया है।
    तुम नालायक मेरे ही पैसों से स्वागत और जन्मदिन मना रहे थे?
    अरे गुप्ता जी आपका इतना शानदार स्वागत इतने कम पैसों में हुआ है। क्या किसी और का कभी इतना स्वागत और सम्मान हुआ है? बड़े से बड़े पैसे वाले का भी इतना कभी सम्मान नहीं हुआ होगा।आप तो इतने सस्ते में छूट गए। हमें तो अपने लीडर का स्वागत करना था। पर पैसे किसी ओर के पास कहां थे?
    राजकुमार जैन की इस बात सुन कर गुप्ता जी भी हंसने लगे और बाकी लोग भी ठहाके लगाने लगे।

    जेल में खूब विचार मंथन चलता था ।विभिन्न दलों और लोगों में वैचारिक मतभेद होते हुए भी मनभेद नहीं था ।जनसंघ की तरफ से अरुण जेटली, सुन्दर सिंह भंडारी,लाला हंसराज गुप्ता, समाजवादियों की तरफ से विजय प्रताप, राजकुमार जैन ,ललित गौतम बाद में सुरेन्द्र मोहन जी भी आ गए थे, इन सब में विचार विमर्श ,वैचारिक मंथन और बहस होती रहती थी। वैचारिक मतभेद होने के बावजूद भी आपसी दूरियां कम होती गई। सब लोग एक ही नाव में सवार थे। सब की मज़बूरी थी कि इकट्ठे होकर तानाशाही का विरोध करना था। जेल में चाहे अनचाहे सब को एक दूसरे को समझने का मौका मिला।

    एक दिन किसी ने जेल में बताया कि साथी जार्ज फर्नांडिस को पट्टी बांध कर लाया गया है ।उन्हें डायनामाइट केस में गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल के किसी सैल में रखा गया है।यह सुनते ही सब में उत्साह भर गया और ज़ोर ज़ोर से नारे लगाने लगे ताकि उन्हें पता चल जाए कि यहां सभी को पता है कि वह इस जेल में है और आपके समाजवादी साथी भी यहीं हैं।राजकुमार जैन ने बताया कि उन्हें यह आशंका थी कि जिस ढंग से उनको चुपचाप लाया गया था उस से सरकार की नीयत और मंशा पर सभी साथियों को शक होने लगा था कि कहीं उनका एनकाउंटर न कर दिया जाए। जॉर्ज के नारे लगा कर वह अधिकारियों को यह मैसेज देना चाहते थे कि यहां सब को पता चल चुका है कि वह इसी जेल में हैं ताकि उन्हें वह कुछ कर न सकें। दूसरी तरफ वो जॉर्ज को भी यह संदेश देना चाहते थे कि सब साथियों को उन के आने का पता चल चुका है ।
    जेल के फाटक टूटेंगे सारे साथी छूटेंगे।
    दम है कितना दमन में तेरे,देख लिया और देखेंगे
    जगह है कितनी जेल में तेरी देख लिया और देखेंगे।
    गांधी लोहिया अमर रहें ।
    जयप्रकाश, ज़िंदाबाद जिंदाबाद।
    साथी जॉर्ज फर्नाडीज ज़िंदाबाद।
    इन्कलाब जिंदाबाद ज़िंदाबाद।
    यह नारे रोज शाम को लगते थे इन नारों से कुछ कमजोर मन वाले लोग विचलित होते थे। उन्हें लगता था इस नारेबाजी से हमारे जेल से छूटने के चांस कम हो जाएंगे। और यह नारेबाजी नहीं होनी चाहिए । मैं यहां पर नाम लेना उचित नहीं समझता एक दिन एक वरिष्ठ व्यक्ति जो पुरानी दिल्ली के रहने वाले थे और बाद में केंद्रीय मंत्री बनें ,राजकुमार जैन से बोले –
    मियां इस से क्या होने वाला है।शेर के मुंह में क्यों हाथ डालते हो? सी. आई. डी. की रिपोर्ट रोज जाती है। इस से हमारे छूटने के चांस कम हो जाएंगे ।एक बार छूट जाओ तो फिर यह सब कर लेना।खुदा के वास्ते अभी यह सब बंद करो। यह लोग हंस कर टाल देते थे।
    पर यह सिलसिला चलता रहा रुका नहीं।
    देखते देखते समय गुजरता गया । कुछ लोग छूट भी गए पर राजकुमार जैन और इनके समाजवादी साथी कभी विचलित और निराश नहीं हुए।
    (बाकी अगली किश्त में – हरीश खन्ना)

  • अमीर नेता को कोई हक़ नहीं गरीब-अमीर के बीच बढ़ती की खाई के बारे में बोलने का  ?

    अमीर नेता को कोई हक़ नहीं गरीब-अमीर के बीच बढ़ती की खाई के बारे में बोलने का  ?

    चरण सिंह  
    संविधान के 75 साल पूरे होने पर लोकसभा में चर्चा के दौरान सपा मुखिया के भाषण में पीडीए और अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई मुझे महत्वपूर्ण लगी। पहले मैं पीडीए की बात कर लेता हूं। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के लोगों को यह बताएं कि आखिर समाजवादी पार्टी में उन्होंने पीडीए के लिए क्या किया है ? अखिलेश यादव ने पार्टी में पहले से ही जो नेता पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक हैं, उनको पीडीए में बांट दिया। पिछड़ों में भी यादव और उनका परिवार। अखिलेश लोगों को यह भी बताएं कि पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए उन्होंने कौन सा संघर्ष किया। योगी आदित्यनाथ का दूसरा कार्यकाल चल रहा है। अखिलेश बताएं कि उन्होंने कौन से समाज के लिए आंदोलन किया। अखिलेश यादव ने तो अपने कार्यकर्ता भी आंदोलन करने से रोक रखे हैं। मतलब संविधान के नाम से पीडीए उन्हें वोट दे दे बस। अखिलेश यादव नए लोगों को क्या जोड़ेंगे अपने पुराने कार्यकर्ताओं को भी याद नहीं कर पा रहे हैं।
    अखिलेश यादव आजकल लोहिया, जेपी, चरण सिंह जैसी नेताओं को याद करते। न ही वह कहीं आंदोलन में जाते हैं। राहुल गांधी हाथरस हो आये। राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी को साथ लेकर संभल भी जा रहे थे पर उन्हें रोक लिया गया। अखिलेश यादव तो अपना प्रतिनिधिमंडल भेजते हैं। अखिलेश यादव अभी मुख्यमंत्री पद की बू  से नहीं निकल पा रहे हैं।
    यदि कोई व्यक्ति खुद लग्जरी जिंदगी जी रहा है और कह रहा है गरीब और अमीर की खाई बढ़ती जा रही है। तो अखिलेश यादव अपने को गरीब मानते हैं या फिर अमीर। यदि समाजवाद की बात करें तो फिर सबसे पहले विरोध तो अखिलेश यादव का ही होना चाहिए। यादव परिवार की संपत्ति देख लीजिए और आम यादव परिवार की। कितना अंतर मिलेगा संपत्ति में।
    मतलब न कोई आंदोलन करो। न एक डंडा खाओ। न जेल जाओ। बस बीजेपी को गलियाने  से देश में समाजवाद आ जाएगा। दरअसल अखिलेश यादव का संगठन को चलाने का तरीका एक व्यापारी की तरह है। मुलायम सिंह यादव समय समय पर अपने जिलाध्यक्षों से बात कर कर लेते थे। क्या अखिलेश यादव भी अपने कार्यकर्ताओं से बात कर पाते हैं। उत्तर न में ही आएगा।
  • शुक्रिया कैसे करूं, क्योंकि शब्दहीन हूं मैं

    शुक्रिया कैसे करूं, क्योंकि शब्दहीन हूं मैं

    राजकुमार जैन
    52 साल से हमसफर साथी प्रोफेसर हरीश खन्ना (भूतपूर्व विधायक दिल्ली विधानसभा दिल्ली) ने कुछ पैबंदों को जोड़कर मेरी तस्वीर के कुछ पहलुओं को कलमबंद कर कई लेखो में पेश किया। उसके बहुत सारे घटनाक्रमों को मैं भी भूल चुका था, सच कहूं इन लेखो की मार्फत साथी हरीश ने बहुत सारे व्यक्तिगत, राजनीतिक घटनाक्रमों को संदर्भ सहित लिखकर रोमांचक बना दिया। उसको पढ़कर 60 सालों के दोस्तों, सहकर्मियों, साथियों, विद्यार्थियों से लेकर आज तक के सैकड़ो मित्रों ने उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर मुझे जो इज्जत बख्शी है, उससे मेरा भावुक होना लाजमी है। इसलिए उन लेखों तथा उन पर व्यक्त की गई टिप्पणी को दोहराने के लोभ में बेवस हूं।

    हालांकि मेरे फेसबुक और व्हाट्सएप के मुख्तलिफ लेखो पर भी वक्त वक्त पर साथियों के द्वारा की गई तारीफ, कमियां भी पढ़ने को मिलती रही है। में सोशल मीडिया में देखता हूं कि लोग अपने किसी साथी, मित्र के लिए उनके ज्ञान त्याग, संघर्षों, खासियत के लिए हजारों की तादात में संदेश, शुक्रिया लिखते हैं, अता करते हैं। पर मेरे लिए यह छोटी संख्या भी बड़ी से बड़ी कायनात के मुकाबले मायने रखती है, क्योंकि ये सब वे लोग हैं जिनके साथ मैंने बरसों बरस संगत तथा सफर तय किया है। उनके प्रेम वचन ही मेरी आज तक की कमाई दौलत है। इससे एक और बड़ा फायदा मुझे मिलेगा कि कभी अपने रास्ते से भटकने की नौबत आ जाए तो साथियों के खुलूस, मोहब्बत अदब की चासनी में सराबोर ये लब्ज मुझे गिरने से बचाएंगे।
    सभी का सामूहिक शुक्रिया।