Category: उत्तरप्रदेश

  • यूपी चुनावः हिजाब, बुर्के पर जैसी राजनीति चल रही है, क्या उसे तोड़कर रास्ता बना पाएंगी प्रियंका गांधी ?

    यूपी चुनावः हिजाब, बुर्के पर जैसी राजनीति चल रही है, क्या उसे तोड़कर रास्ता बना पाएंगी प्रियंका गांधी ?

     द न्यूज 15 

    नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर जोर दे रही है। दूसरी तरफ, कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब यूपी के चुनावी समर में भी चर्चा में आने लगा है। एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) से पूछा गया कि हिजाब और बुर्के पर जैसी राजनीति चल रही है, क्या उसे तोड़कर उत्तर प्रदेश में अपना रास्ता बना पाएंगी? इस पर प्रियंका गांधी ने कहा कि तोड़ना पड़ेगा।
    एबीपी न्यूज के कार्यक्रम ‘घोषणा पत्र’ में प्रियंका गांधी पहुंची थीं, जहां उन्होंने हिजाब-बुर्के से जुड़े सवाल पर कहा, “जिस दिशा में देश जा रहा है वह सही नहीं है। जब राजनीति का मकसद यही होता है कि सत्ता में रहना है और लोगों के जज्बातों का इस्तेमाल कर किसी भी तरह सत्ता में रहना है, तो देश आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए हमें इस तरह की राजनीति को तोड़ना पड़ेगा।”
    प्रियंका गांधी ने आगे कहा, “मैं महिलाओं की बात करती हूं क्योंकि सबसे पहले महिलाओं का अधिकार है, लगभग आधी आबादी महिलाओं की है तो क्या उनका अधिकार नहीं है कि राजनीति में उनकी भागीदारी हो?”
    क्या MY (महिला और यूथ) समीकरण यूपी में काम करेगा और जीत दिलाएगा? खासकर तब जब हिंदू मुस्लिम की बात हो रही है, जिन्ना की बात हो रही है। इस सवाल के जवाब में प्रियंका गांधी ने कहा, “इस कॉम्बिनेशन का ये सवाल नहीं है कि मेरा फायदा होगा बल्कि, यूपी का फायदा होगा कि नही, यूपी की जनता का फायदा होगा कि नहीं। हो सकता है आज किसी को ये बात समझ नहीं आए लेकिन एक न एक दिन जरूर समझ आएगी क्योंकि परेशानियां बहुत ज्यादा हैं, संकट बहुत ज्यादा हैं और ये बात पूरी जनता कह रही है।”
    प्रियंका गांधी ने कहा, “जिस घर में जाओ, उस घर में संकट है, संघर्ष है। इस संकट और संघर्ष को खत्म करने वाली राजनीति केवल विकास की राजनीति हो सकती है। इसमें महिला और युवा सबसे महत्वपूर्ण हैं।” प्रियंका गांधी यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ अभियान के साथ पार्टी को सत्ता में वापस लाने की कोशिश में जुटी हैं।
  • योगी बाबा के राज में उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर पहुंचा : डॉ. सुनीलम 

    योगी बाबा के राज में उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर पहुंचा : डॉ. सुनीलम 

    आंकड़े जानकर खुद फैसला करें क्या है कानून व्यवस्था की जर्जर हालत का सच

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं मध्यप्रदेश विधानसभा के विधायक दल के नेता रहे डॉ सुनीलम ने योगी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में गत 5 वर्षों में आर्थिक स्थिति और कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ी है ।
    उन्होंने कहा कि लखीमपुर किसान हत्याकांड करने वाले आशीष मिश्र टेनी को जमानत मिलना यह बतलाता है कि उत्तरप्रदेश में अपराधियों को सत्तारूढ़ दल और पुलिस का संरक्षण प्राप्त है।
    भारत सरकार के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की नॉमिनल सकल राज्य घरेलू उत्पाद  रु 19,48,000 करोड़ था। जबकि तमिलनाडु  में यह रु 21,24,000 करोड़)  और महाराष्ट्र  में यह 30,79,086 करोड़)  पर था।
    22.8 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के सब से बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश की नॉमिनल जीएसडीपी (GSDP) पिछले एक दशक से तीसरे स्थान पर स्थिर है अर्थात कोई तरक्की नहीं हुई है।
    पहले की तरह आज भी उत्तर प्रदेश की गिनती देश के सबसे पिछड़े राज्यों में होती है। प्रदेश की कुल प्रति व्यक्ति जीएसडीपी सिर्फ 65,431 रुपए है। जो बिहार राज्य को छोड़ अन्य सभी राज्यों से भी कम है। बाकी सामाजिक व आर्थिक पैमानों पर भी प्रदेश, अंतिम छोर पर खड़े ‘बीमारू राज्य’ बिहार के आस-पास ही नज़र आता है।
    उत्तर प्रदेश ने 2016-17 और 2019-20 के योगी राज के दौरान पूरे देश में सबसे कम आर्थिक वृद्धि दर्ज की गई है । उ.प्र. 33 में 31वां स्थान पर है।
    आरबीआई के आंकड़ों से यह पता चलता है कि भाजपा शासन के पहले तीन वर्षों 2018 से 2020) के दौरान एनजीएसडीपी (NGSDP) केवल 2.99% की दर से बढ़ी। अगर कोविड महामारी का साल भी इसमें जोड़ दिया जाए तो योगी शासन के चार सालों में ये वृद्धि मात्र 0.1% ही रह जाती है। इसके विपरीत, 2013-17 के समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 5% प्रतिवर्ष की वृद्धि दर्ज की गई थी। उत्तर प्रदेश में अपराध की बात की जाए तो एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि उ.प्र. में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2018 में 5,85,157 अपराध राज्य में दर्ज किए गए थे। 2019 में ये संख्या बढ़ कर 6,28,578 और 2020 में 6,57,925 हो गयी। राज्य में वर्ष 2020 में हिंसक अपराधों की संख्या 51,983 थी, जोकि देश में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा  कि उत्तर प्रदेश पुलिस यदि सभी अपराध दर्ज कर ले तो अपराधों की संख्या और ज्यादा होगी।
    डॉ सुनीलम ने कहा कि योगी राज में दंगों के मामले में भी उत्तर प्रदेश अव्वल रहा है। योगी सरकार के आने के  बाद 2019 में यह आंकड़ा  5,714 था ,जो 2020 में बढ़ कर 6,126 हो गया। जब मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के दंगा-मुक्त राज्य होने का दावा करते हैं तो मन में ख़्याल आता है की दंगा उकसाने और सांप्रदायिक घृणा फैलाने वाले जब खुद गद्दी पर विराजमान हों, तो दंगे होने ही नहीं चाहिए।
    कुछ लोग इस गलतफहमी में हैं कि योगी की ‘ठोक दो’ और ‘बुलडोज़र चला दो’ वाली नीति ने राज्य को अपराध –  मुक्त कर दिया है। इसका मतलब है की कानून-कायदे को ताक पर रख कर पुलिस और सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी जाए, ताकि वे जिस किसी को चाहे ‘ठोक दें,’ कूट दें या उनके घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चला दें।
    आज उत्तर प्रदेश में योगी का पुलिसिया राज है। खुद मुख्यमंत्री जब खुलेआम अपने प्रतिद्वंदियों को ‘गर्मी ठंडा कर देने  की धमकी दे रहे हैं।  जो लोग इस पुलिस कार्यवाही की हिमायत कर रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि कल उनकी भी बारी आएगी। जिस दिन उनके घर से उनके प्रियजनों को भ्रष्ट पुलिस उठा कर ले जाएगी, उस दिन कोई बचाने वाला नहीं होगा।
    डॉ. सुनीलम ने कहा कि कानून और संविधान का शासन ही नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दे सकता है। आज जो लोग अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर खुश हो रहे हैं उन्हें समझना होगा कि देश और धर्म प्रेम के नाम पर वे घृणा,नफरत भेदभाव, भ्रष्टाचार और हिंसा की जिस आग को हवा दे रहे हैं वो पलट कर उन्हें भी झुलसाने में देर नहीं लगाएगी।
    डॉ. सुनीलम ने कहा कि अभी तक मौजूद सभी आंकड़े बताते हैं कि पुलिसिया राज में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, मज़दूर और महिलाओं को सर्वाधिक निशाना बनाया जाता है। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज़्यादा 49,761 केस उत्तर प्रदेश में 2020 में दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध में भी लगातार वृद्धि हुई है। 2018 में ये आंकड़ा 11,924 था,2020 में ये संख्या बढ़ कर 12,714 हो गया। इतने केस देश में और कहीं नहीं दर्ज हुए।
    सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य में वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध कि दर 55.4% पहुंच गयी थी। यौन उत्पीड़न/सामूहिक बलात्कार, दहेज हत्या, गर्भपात, तेज़ाब हमला, पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता और अपहरण के मामलों में राज्य देश में पहले स्थान पर है। यौन हमला करने का प्रयास, महिलाओं के खिलाफ आईपीसी अपराध, पोस्को अपराध (केवल लड़कियों के मामले) में भी उत्तर प्रदेश अव्वल है।
    दलितों के खिलाफ अपराधों में भी उत्तर प्रदेश देश में न. 1 पर है। 2019 में दलित महिलाओं के यौन उत्पीड़न के 3,486 मामले रिपोर्ट किए गए पर पुलिस ने सिर्फ 537 मामले ही दर्ज किए। हाथरस सामूहिक बलात्कार हत्याकांड और हाल में पिंकी लोधी बलात्कार और हत्याकांड और 3 दिन पूर्व एटा के अवागढ़ में हुई 5 वर्ष की बालिका के हत्याकांड में साफ़ नज़र आता है कि संघी-भाजपा सरकारें संविधान को ठेंगा दिखाकर किस तरह दलित-वंचितों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को संरक्षण दे रही हैं।
    उन्होंने कहा कि योगी के राज में मुसलमानों का जीना दूभर हो गया है। उन पर गौहत्या का आरोप लगाकर गिरफ्तार करना आम बात हो गई है। वर्ष 2020 में हाईकोर्ट में भेजे गए ऐसे 41 मामले फर्जी निकले। अदालतों ने 70 फीसदी गौहत्या के मामलों को खारिज कर दिया और बाकी में जमानत दे दी। नागरिकता (CAA) आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों पर देश द्रोह और दूसरे मुकदमे थोपे गए, शांतिपूर्ण धरनों पर लाठी और आंसू गैस बरसाए गए। उ.प्र. की जेलों में विचाराधीन कैदियों में मुस्लिम कैदियों की संख्या लगभग 29 प्रतिशत है और सज़ायाफ्ता कैदियों में ये संख्या 22 प्रतिशत। जबकि राज्य में मुसलमानों की आबादी 19 प्रतिशत है। 2020 में फर्जी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए 37 प्रतिशत लोग मुस्लिम थे। प्रदेश की पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमती है। पुलिस हिरासत में बंद 11 और न्यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौतें 2020-21 में दर्ज की गईं। हालांकि यह 2018-19 की पुलिस हिरासत (12) और न्यायिक हिरासत (452) में हुई मौतों से कम है, लेकिन यह आंकड़ा उस वक्त फैली वैश्विक महामारी के दौरान भी पुलिस की क्रूरता की प्रवृत्ति का पर्दाफाश करता है। हिरासत में पिटाई करना और यातना देना भारतीय पुलिस का तरीका बन गया है।
    बीते तीन वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा सालाना तौर पर दर्ज किए गए करीब 40 फीसदी मानवाधिकार हनन के मामले अकेले उत्तर प्रदेश से थे। मार्च 2017 और मार्च 2018 के बीच में उत्तर प्रदेश में 17 पुलिस एनकाउंटर हुए, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई थी।
    डॉ. सुनीलम ने बताया कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की उत्तर प्रदेश शाखा ने राजनीतिक पार्टियों से अपील की है कि वे मानवाधिकार हनन और अल्पसंख्यकों, महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को अपने चुनाव का मुद्दा बनाएं। पीयूसीएल ने पुलिस के आतंकवाद का शिकार हुए लोगों के लिए मुआवजे की भी मांग भी की है।
    डॉ. सुनीलम ने कहा कि 2017 में सत्ता में आने के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों से ‘अपराधियों’ को “ठोक देने” का खुलेआम आह्वान किया था। नतीजतन 16 महीनों में 3,200 मुठभेड़ों को अंजाम दिया गया, जिनमें कई ‘संदिग्ध अपराधी’ मारे गए। हद तो तब को गयी, जब 26 जनवरी 2019 गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों के लिए एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया। कुछ दिनों बाद ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ शुरू हुआ, जिसमें आरोपी के घुटनों से नीचे गोली मार कर लंगड़ा बना दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 3,349 संदिग्ध लोगों को पुलिस ने लंगड़ा बना दिया है।
    उन्होंने कहा कि दुनिया में यह पहला राज्य है जिसमें किसी भी व्यक्ति को अपराधी मानकर उसे पैरों में गोली मारकर अपंग किया जा रहा है जबकि कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालयीन  व्यवस्था के तहत अपराधी को सजा दिलाने का प्रावधान है। मारे गए लोगों और जिनके पैर में गोली मारी गई है उसकी अधिक संख्या अल्पसंख्यक और वंचित वर्ग की है।
    डॉ. सुनीलम ने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह घोषणा की है कि उत्तरप्रदेश में समाजवादी गठबंधन की सरकार बनने पर ‘सीसीटीवी कैमरा एवं ड्रोन सर्विलांस की व्यवस्था एक साल के भीतर’ सभी गांवों एवं कस्बों में की जाएगी। ऑटोमेटिक रिस्पांस के लिए इन्हें डायल 100/112 से लिंक किया जाएगा। यूपी 100/112 जिसे मौजूदा भाजपाई बाबाजी की सरकार ने बर्बाद कर दिया है, को दुबारा तकनीक से जोड़कर सशक्त किया जाएगा, ताकि रिस्पांस टाइम 15 मिनट के भीतर पूरे प्रदेश में हो सके।
    हर 5 किलोमीटर पर एक पुलिस वाहन की व्यवस्था की जाएगी। समाजवादी पार्टी की सरकार सभी थानों एवं तहसीलों को भ्रष्टाचार मुक्त करेगी। समाजवादी पार्टी की सरकार महिलाओं, अल्पसंख्यकों एवं दलितों के प्रति संगठित, हेट क्राइम के प्रति “जीरो टॉलरेंस” की नीति का पालन करेगी।
    डॉ सुनीलम ने गठबंधन के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील की है कि वे उक्त तथ्यों को जनता के बीच ले जाएं ताकि भा ज पा – योगी बाबा के झूठ का पर्दाफाश किया जा सके।
  • उन्नाव की दलित बेटी की हत्या: गले और सिर की हड्डियां टूटीं, 63 दिन बाद मिला शव

    उन्नाव की दलित बेटी की हत्या: गले और सिर की हड्डियां टूटीं, 63 दिन बाद मिला शव

    द न्यूज 15 
    लखनऊ/उन्नाव। पूर्व सपा राज्यमंत्री फतेहबहादुर सिंह के बेटे रजोल सिंह ने साथियों संग दलित युवती की हत्या की तो पूरा महकमा हिल गया। पोस्टमार्टम हाउस पर शुक्रवार की सुबह पीड़ित परिवार के लोगों ने हंगामा किया और सड़क पर जाम लगा दिया। युवती के शव का आज उन्नाव मोर्चरी में पोस्टमार्टम हुआ है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला दबाकर हत्या होने की बात का जिक्र है। रिपोर्ट में गले की हड्डी और सिर की हड्डी पर गम्भीर चोट है। दम घुटने से मौत होना पाया गया है। पूरे पीएम की वीडियोग्राफी भी कराई गई।
    पोस्टमार्टम हाउस में परिजनों ने हंगामा करते हुए मार्ग जाम कर दिया। 4 घंटे चले बवाल के बाद समझौता शव को अंतिम संस्कार के लिए रवाना कर दिया। इसके बाद सियासी राजनीति तेज हो गई है। स्थानीय विधायक के साथ अन्य पार्टियों प उम्मीदवार पहुंच गए। मायावती ने इस पर ट्वीट करके गहरा दुःख व्यक्त किया है।
    उन्नाव सदर कोतवाली क्षेत्र के काशीराम में रहने वाली युवती पूजा का पूर्व सपा राज्य मंत्री के बेटे रजोल सिंह ने अपहरण कर लिया था। इसके बाद मां ने पुलिस से गुहार लगाई पुलिस में हल्की धाराम मुकदमा दर्ज किया और ठंडे बस्ते में डाल दिया। मां चिल्लाती रही कि उसके बेटी की हत्या कर दी गई है लेकिन पुलिस में नहीं सुनी। आखिरकार 63 दिन बाद स्वाट और सर्विलांस की टीम ने शव को बरामद किया है। मामले में आज बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने घटना पर दुख व्यक्त किया है उन्होंने कहा है सपा नेता के खेत में दलित युवती का शव दफनाया गया परिवार वाले पहले से ही अपहरण हत्या की बात कह रहे थे राज्य सरकार पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए दोषियों के खिलाफ तुरंत सख्त कानूनी कार्यवाही करें।
    परिजनों ने शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। बेटे को सरकारी नौकरी, पक्की छत,  25 लाख रुपए व दोषियों को फांसी की सजा की मांग कर पिता व मां ने लिखित मांग पत्र सिटी मजिस्ट्रेट व एएसपी शशि शेखर सिंह को सौंपा।। उन्होंने लिखित आश्वासन देने की मांग की। अधिकारियों के पैर पीछे करने पर परिजन दोबारा पोस्टमार्टम हाउस में ही बैठ गए और शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। उहापोह की स्थित बनी हुई है।
  • योगी के शासन ‘काल’ में पत्रकारों को सच दिखाने के लिए जेलों में डाला गया ?

    योगी के शासन ‘काल’ में पत्रकारों को सच दिखाने के लिए जेलों में डाला गया ?

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में पांच साल का योगी शासन भले ही आरएसएस, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों और कुनबों के लिए अच्छे दिन के सबब रहे हों लेकिन पत्रकारों के लिए किसी बुरे ख्वाब से कम नहीं रहे। पत्रकारों के खिलाफ़ पूरा योगी प्रशासन मैदान में रहा और सच रिपोर्ट दिखाने पर मुकदमे दर्ज किए गए और पत्रकारों को जेलों में डाला गया।
    पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) और मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) द्वारा बीते गुरुवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में सामने आया है कि  इन पांच सालों में 12 पत्रकारों की हत्या हुई और 66 मामलों में मुकदमे और गिरफ़्तारियां हुईं। मीडिया की घेराबंदी के नाम से जारी इस पूरी रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है।
    बीते पांच वर्षों के दौरान उत्‍तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमलों की सघनता कोरोना महामारी के कारण लगाये गये लॉकडाउन की शुरुआत से देखने में आयी जो अब तक जारी है। सभी श्रेणियों में हमले के कुल 138 प्रकरणों में अकेले 107 मामले 2020 और 2021 को मिलाकर हैं यानी केवल महामारी के ये दो वर्ष 78 फीसदी हमलों के लिए जिम्‍मेदार रहे।
    2019 में कुल हमलों (19) से अचानक 2020 में 250 गुना उछाल देखा गया। यह उछाल 2021 में मामूली बढ़ोतरी के साथ जारी रहा। 2017 और 2018 में केवल दो-दो केस से तुलना करें तो करीब हजार गुना उछाल दिखायी देता है। प्रेस की आजादी में 2019 से आये इस अभूतपूर्व उछाल को कैसे समझा जाय?
    राजनीतिक परिस्थितियां इस परिघटना के केंद्र में हैं। 2019 की जितनी भी घटनाएं रिपोर्ट में गिनवायी गयी हैं उनमें ज्‍यादातर साल के अंत के आसपास की हैं जब संशोधित नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन देश में जोर पकड़ चुका था। दिल्‍ली के जामिया मिलिया से शुरू हुए आंदोलन की अनुगूंज उत्‍तर प्रदेश में आज़मगढ़ से लेकर अलीगढ़ तक बराबर सुनायी दे रही थी। इस आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों के साथ पुलिस और इलाकाई लोगों की बदसलूकी की खबरें आ रही थीं। यह पहला ऐसा मौका रहा जब पत्रकारों को उनका धर्म और उनका आइडी कार्ड देखकर बख्‍शा जा रहा था। लखनऊ के ओमर राशिद और खुर्शीद मिस्‍बाही का मामला ऐसा ही रहा, जिसके बारे में विस्‍तार से CAAJ की मार्च 2020 में प्रकाशित ‘रिपब्लिक इन पेरिल’ रिपोर्ट में जि़क्र है।
    यह आंदोलन हालांकि अल्‍पजीवी था लिहाजा यह परिघटना तीन से चार महीने चली, फिर ध्रुवीकरण शांत हुआ तो धर्म और बैनर के आधार पर पत्रकारों की खुली शिनाख्‍त भी बंद हो गयी। इस बीच हालांकि दो ऐसे मामले 2019 में सामने आए थे जो भविष्‍य में पत्रकार उत्‍पीड़न के ट्रेंड की आहट दे रहे थे। दो मामले तो एक ही अखबार जनसंदेश टाइम्‍स के पत्रकारों से जुड़े थे- पवन जायसवाल और संतोष जायसवाल। एक और मामला बच्‍चा गुप्‍ता का था। इन तीनों मामलों में समान रूप से यह पाया गया था कि खबर दिखाने पर इनके खिलाफ षडयंत्र का आरोप लगाते हुए मुकदमे किये गये। तीनों मामले बनारस और उसके आसपास के हैं। यह शुरुआत थी जिला प्रशासन द्वारा पत्रकारों की नियमित कवरेज को झूठा और षडयंत्रकारी बताने की और बदले में उनके ऊपर मुकदमा लादने की एक ऐसी परिपाटी शुरू हुई जिसका उत्‍कर्ष हमें 2020 में यूपी के कोने-कोने में देखने को मिलता है।
    इस परिघटना को निम्‍न चरणों में बांटकर समझा जा सकता है। पत्रकार द्वारा अपनी आंखों के सामने घट रहे अन्‍याय, मसलन मिड डे मील में नमक रोटी (पवन जायसवाल), बच्‍चों द्वारा स्‍कूल की सफाई (संतोष जायसवाल) और बाढ़ग्रस्‍त थाने में कीचड़ की सफाई (बच्‍चा गुप्‍ता) की खबर या तस्‍वीर प्रकाशित करने पर प्रशासन का तय रवैया कुछ यूं रहता है:
    1) सबसे पहले सरकारी प्रेस नोट में खबर को अफवाह और झूठ बताया जाय;
    2) फिर अधिकारियों की मार्फत खबर को माहौल बिगाड़ने वाला, सौहार्द खराब करने वाला और सरकार को बदनाम करने वाला बताया जाय;
    3) इसके बाद पत्रकार को नोटिस भेजा जाय;
    4) पत्रकार और संपादक पर मुकदमा कायम किया जाय।
    सामान्‍य तौर पर यह मुकदमा सरकारी काम में बाधा डालने, अफवाह फैलाने (आजकल प्रशासन ऐसी खबरों को फेक न्‍यूज़ कहने लगा है), सौहार्द बिगाड़ने, प्रशासन और सरकार को बदनाम करने, आदि की धाराओं में किया जाता है जिसमें महामारी अधिनियम आदि बोनस में नत्‍थी होते हैं। यह मामला देशद्रोह तक जा सकता है जिसमें जानबूझ कर सरकार की छवि खराब करने का आरोप लगाकर पत्रकार को जेल में डाला जा सकता है। बनारस में दैनिक भास्‍कर के पत्रकार आकाश यादव के साथ यही काम एक निजी पार्टी ने पुलिस के साथ मिलकर किया। आकाश यादव ने खबर की थी कि एक निजी अस्‍पताल को एक अयोग्‍य डॉक्‍टर चला रहा है। उन्‍होंने अपनी खबर में निजी स्‍वास्‍थ्‍य माफिया और पुलिस की साठगांठ को उजागर किया था। बदले में आकाश यादव सहित पांच और पत्रकारों पर डकैती व यौन उत्‍पीडन का मुकदमा ठोंक दिया गया। इसी तरह मिर्जापुर में हिंदुस्‍तान अखबार के कृष्‍ण कुमार सिंह पर हिंसक हमला हुआ। वे पार्किंग माफिया के खिलाफ खबर लिख रहे थे। उनकी बुरी तरह पिटाई की गयी। जब वे थाने में शिकायत करने पहुंचे तो उनकी तहरीर लेने में छह घंटे से ज्‍यादा समय लगाया गया।
    पूर्वांचल से कइ किलोमीटर दूर नोएडा में भी यही फॉर्मूला प्रशासन ने अपनाया जबकि नोएडा दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अभिजात्‍य हिस्‍सा है जहां से ज्‍यादातर राष्‍ट्रीय टीवी चैनल प्रसारण करते हैं। यहां नेशन लाइव नाम के एक टीवी चैनल से इशिका सिंह और अनुज शुक्‍ला को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उन्‍होंने हिंसा भडकाने की कोशिश की है और मुख्‍यमंत्री की मानहानि की है। बाद में चैनल के प्रमुख अंशुल कौशिक की भी गिरफ्तारी हुई। तीनों को अंतत: ज़मानत तो मिल गयी लेकिन चैनल बंद करवा दिया गया यह कह कर कि उसके परिचालन के लिए मालिकान के पास पर्याप्‍त सरकारी मंजूरी नहीं है।
    यह परिपाटी उत्‍तर प्रदेश में पूरब से लेकर पश्चिम तक 2019 में आजमायी जा रही थी। खबर दिखाने का मतलब प्रशासन को बदनाम करना स्‍थापित किया जा रहा था जो देश को बदनाम करने और अंतत: मुख्‍यमंत्री को बदनाम करने तक आ चुका था। कुल मिलाकर संदेश यह दिया जा रहा था कि नियमित पत्रकारिता का कर्म दरअसल देशद्रोह की श्रेणी में आ सकता है; देश का मतलब है मुख्‍यमंत्री और मुख्‍यमंत्री का मतलब है स्‍थानीय प्रशासन। इस तरह देश, नौकरशाह और नेता को एक कर दिया गया था। इसे साबित करने का कार्यभार जिला प्रशासन यानी जिलाधिकारी के सिर पर था कि पत्रकार की खबर कैसे देशद्रोह हो सकती है। जिलाधिकारी इस मामले मे दो कदम आगे बढ़कर काम कर रहे थे। बनारस के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा का मामला इस संदर्भ में दिलचस्‍प है जिन्‍होंने यह साबित करने के लिए कि लॉकडाउन से उपजी भुखमरी में मुसहरों द्वारा खायी गयी घास जंगली नहीं थी, खुद अपने छोटे से बच्‍चे के साथ वह घास खाते हुए फेसबुक पर एक फोटो डाल दी और बदले में भुखमरी की खबर लिखने वाले पत्रकारों को नोटिस भेज दिया।
    2020 और 2021 में धड़ल्‍ले से इस फॉर्मूले को पूरे राज्‍य में लागू किया गया और राजद्रोह की धाराओं में बहुत से पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज किये गये। एक पत्रकार के लिए अपनी नौकरी बजाना यानी सामान्‍य खबर करना भी मुश्किल हो गया। कब कौन सी खबर को सरकार झूठा बताकर उसमें साजिश सूंघ ले और केस कर दे, कुछ नहीं कहा जा सकता था। इसके बावजूद कुछ पत्रकारों और संस्‍थानों ने हार नहीं मानी। खासकर भारत समाचार और दैनिक भास्‍कर ने विशेष रूप से लॉकडाउन में सरकारी कुप्रबंधन और मौतों पर अच्‍छी कवरेज की। उन्‍हें इसकी कीमत छापे से चुकानी पड़ी।
    सरकारी मुकदमों के बोझ तले दबी पत्रकारिता की आज स्थिति यह हो चली है कि पत्रकारों के उत्‍पीड़न पर पत्रकार खुद पीडि़त पत्रकार का पक्ष नहीं लेते हैं बल्कि पुलिस के बयान के आधार पर खबर लिख देते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण गाजियाबाद से समाचार पोर्टल चलाने वाले पत्रकार अजय प्रकाश मिश्र का है जिनके ऊपर चुनाव कवरेज के दौरान 7 फरवरी 2022 को उत्‍तराखंड के उधमसिंहनगर में एक आरटीओ अधिकारी ने एफआइआर करवायी है। सड़क पर व्‍यावसायिक नंबर वाले वाहनों को रुकवा कर चुनावी ड्यूटी में लगाने जैसी सामान्‍य घटना मुकदमे तक कैसे पहुंच गयी इसे समझना हो तो स्‍थानीय अखबारों में अगले दिन छपी खबर को देखा जा सकता है जिसमें पत्रकारों को पत्रकार तक नहीं लिखा गया है, बल्कि ‘तीन व्‍यक्ति’ और ‘दबंग’ लिखा गया है। हिंदुस्‍तान, अमर उजाला और दैनिक जागरण तीनों की खबरों ने लिखा है कि तीन व्‍यक्तियों ने परिवहन अधिकारी के साथ दुर्व्‍यवहार किया।
    प्रशासनिक-राजनीतिक संस्‍कृति के मामले में उत्‍तराखंड का तराई उत्‍तर प्रदेश से कुछ खास अलग नहीं है, इसलिए यह घटना वहां नहीं तो यूपी में कहीं और भी ऐसे ही होती। आशय यह है कि बीते दो साल में रेगुलर पत्रकारीय कर्म की स्‍पेस को इतना संकुचित कर दिया गया है कि संस्‍थाओं में काम करने वाले पत्रकार भी अब घटनाओं को प्रशासन की नजर से देखने और लिखने लगे हैं, यह जानते हुए कि वह सफेद झूठ होगा। ऐसे में स्‍वतंत्र पत्रकारों और डिजिटल पत्रकारों की नाजुक स्थिति को समझना मुश्किल नहीं है, जो अकेले अब तक ‘जस देखा तस लेखा’ की नीति पर काम कर रहे हैं।
    इस संदर्भ में 2021 में केंद्र सरकार द्वारा लाये गये सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) नियमों का जिक्र करना बहुत जरूरी है। सरकार के नए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के प्रावधान इस प्रकार से बनाये गये हैं कि असहमति और विरोध के स्वरों को सहजता से कुचला जा सके। ऐसा लगता है कि इन नियमों के लागू होने के बाद डिजिटल मीडिया से जुड़े मसलों पर निर्णय लेने की अदालती शक्तियां कार्यपालिका के पास पहुंच चुकी हैं और सरकार के चहेते नौकरशाह डिजिटल मीडिया कंटेंट के बारे में फैसला देने लगेंगे। गौर से देखें तो बीते महीनों में ऐसा ही हुआ भी है। समसामयिक विषयों पर आधारित कोई भी प्रकाशन न केवल संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित होता है बल्कि यह नागरिक के सूचना प्राप्त करने के अधिकार और भिन्न-भिन्न विचारों और दृष्टिकोणों से अवगत होने के अधिकार का भी प्रतिनिधित्व करता है। कार्यपालिका को न्यूज़ पोर्टल्स पर प्रकाशित सामग्री के विषय में निर्णय लेने का पूर्ण और एकमात्र अधिकार मिल जाना संविधानसम्मत नहीं है, लेकिन यह काम तो अघोषित रूप से बीते दो साल से हो ही रहा था। अब कार्यपालिका को एक कानून की आड़ मिल गयी है जिसका सहारा लेकर वह किसी भी खबर को मानहानिपूर्ण बता सकती है और किसी भी पत्रकार को गैर-पत्रकार साबित कर सकती है।
    पत्रकार उत्‍पीड़न के हालिया मामलों में जिलाधिकारियों और जिला स्‍तर के छोटे अफसरों तक की मनमानी को इसी परिप्रेक्ष्‍य में समझा जाना चाहिए। इस संदर्भ में उन्‍नाव की एक घटना सतह के नीचे चल रही स्थितियों को बहुत साफ़ दिखाती है। यहां 10 जुलाई, 2021 को ब्‍लॉक प्रमुख के चुनाव को कवर कर रहे एक पत्रकार कृष्‍णा तिवारी के साथ मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। मारपीट करने वाला दिव्‍यांशु पटेल नाम का अफसर मुख्‍य विकास अधिकारी (सीडीओ) था। इस घटना की चौतरफा निंदा हुई और 12 जुलाई को संपादकों की सर्वोच्‍च संस्‍था एडिटर्स गिल्‍ड ऑफ इंडिया ने एक औपचारिक निंदा बयान जारी करते हुए अधिकारी के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग कर दी। तब तक काफी देर हो चुकी थी क्‍योंकि अधिकारी द्वारा पीडि़त पत्रकार को घर में बुलाकर लड्डू खिलाकर मामला निपटाया जा चुका था। पत्रकार भी वीडियो में संतुष्‍ट दिख रहा था। अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जैसा कि गिल्‍ड ने मांग की थी।
    ऐसे मामलों से स्‍थानीय स्‍तर पर पत्रकारिता के द्वंद्व को भी समझा जाना चाहिए। आखिर पीडि़त पत्रकार के पास अधिकारी से सुलह करने के अलावा और क्‍या रास्‍ता बचता है? उसे वहीं पर रह कर खाना कमाना है और काम भी है। ऐसे में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उसका प्रकरण उठ जाने पर भी उसकी कार्यस्थितियों में कोई बदलाव आ जाए, इसकी गुंजाइश कम होती है। हां, इस मामले में एडिटर्स गिल्‍ड से जरूर एक संकेत लिया जाना चाहिए कि नयी कार्यकारिणी आने के बाद संस्‍था ने लगातार उत्‍तर प्रदेश पर केंद्रित बयान जारी किये हैं, बगैर मुंह देखे कि पीडि़त पत्रकार का कद और रसूख क्‍या है। नेशन लाइव टीवी की गिरफ्तारियों से लेकर सुलभ श्रीवास्‍तव की मौत पर संदिग्‍ध पुलिस जांच और रमन कश्‍यप की हत्‍या तक तकरीबन हरेक मामले में गिल्‍ड ने जिस तरीके से हस्‍तक्षेप किया और मुख्‍यमंत्री के नाम पत्रकार सुरक्षा को लेकर पत्र लिखा, वह अपने आप में उत्‍तर प्रदेश में प्रेस की आजादी पर एक गंभीर टिप्‍पणी है (देखें अनुलग्नक)।
    न सिर्फ एडिटर्स गिल्‍ड बल्कि प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया से लेकर सीपीजे, आरएसएफ और प्रादेशिक पत्रकार संगठनों की चिंताओं के केंद्र में उत्‍तर प्रदेश की घटनाओं का होना बताता है कि चारों ओर से पत्रकारों की यहां घेराबंदी की जा रही है। नये आइटी कानून के माध्‍यम से डिजिटल पत्रकारों के पर कतरने के बाद इस कड़ी में ताजा उदाहरण 8 फरवरी 2022 को केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया एक ‘केंद्रीय मीडिया प्रत्‍यायन दिशानिर्देश’ है। यह दिशानिर्देश मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों पर केंद्रित है जिसमें कहा गया है कि देश की ”सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता” के साथ-साथ ”सार्वजनिक व्‍यवस्‍था, शालीनता और नैतिकता” के लिए प्रतिकूल तरीके से काम करने वाले पत्रकार अपनी सरकारी मान्‍यता खो देंगे। इस किस्‍म के आदेश की आहट कुछ महीने पहले ही सुनायी पड़ गयी थी जब पत्रकारों को संसद का सत्र कवर करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
    बीते पांच वर्षों के दौरान उत्‍तर प्रदेश का पत्रकारिता परिदृश्‍य जिस तरह विकसित हुआ है, कहा जा सकता है कि पेगासस के संदर्भ में अभिव्‍यक्‍त सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश की ‘ऑरवेलियन’ चिंताएं यहां एक नहीं बारम्‍बार चरितार्थ हो चुकी हैं और हर आये दिन एक नये आयाम में सामने आ रही हैं। महामारी के बहाने निर्मित किये गये एक भयाक्रान्‍त वातावरण के भीतर मुकदमों, नोटिसों, धमकियों के रास्‍ते खबरनवीसी के पेशेवर काम को सरकार चलाने के संवैधानिक काम के खिलाफ जिस तरह खड़ा किया गया है, पत्रकारों की घेरेबंदी अब पूरी होती जान पड़ती है।
    पाँच साल के आंकड़ों पर एक नज़र :  उत्‍तर प्रदेश में 2017 से फरवरी 2022 के बीच पत्रकारों के उत्‍पीड़न के कुल 138 मामले पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) ने दर्ज किये हैं। ये मामले वास्‍तविक संख्‍या से काफी कम हो सकते हैं। इनमें भी जो मामले ज़मीनी स्‍तर पर वेरिफाई हो सके हैं उन्‍हीं का विवरण यहां दर्ज है। जिनके विवरण दर्ज नहीं हैं उनको रिपोर्ट में जोड़े जाने का आधार मीडिया और सोशल मीडिया में आयी सूचनाएं हैं।
    जैसा कि ऊपर दी हुई तालिका से स्पष्ट है, पाँच साल के दौरान 75 फीसद से ज्यादा हमले के मामले 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के दौरान दर्ज किए गए हैं। कुल 12 पत्रकारों की हत्याओं का आंकड़ा सामने आया है, हालांकि ये कम हो सकता है। हमलों की प्रकृति के आधार पर देखें तो सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन की ऑर् से किए गए हैं। ये हमले कानूनी नोटिस, एफआइआर, गिरफ़्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं। इन हमलों के विश्लेषण और निहितार्थ पर आगे के अध्यायों में चर्चा है। नीचे वर्ष और श्रेणी के हिसाब से नामवार तालिका देखी जा सकती है। (इनपुट वर्कर्स यूनिटी)

  • हैवानियत की हदें पार : कील से निकाली गई आंख, चेहरे पर सिगरेट के दाग, गर्दन पर जूते के निशान, कानपुर में 10 साल के बच्चे के साथ दरिंदगी, नग्‍न मिला शव

    हैवानियत की हदें पार : कील से निकाली गई आंख, चेहरे पर सिगरेट के दाग, गर्दन पर जूते के निशान, कानपुर में 10 साल के बच्चे के साथ दरिंदगी, नग्‍न मिला शव

    कानपुर आउटर के नर्वल इलाके में एक 10 साल के बच्चे की बेरहमी से हत्या कर दी गई। खेत से मिली लाश के चेहरे पर सिगरेट से जलाने के निशान के अलावा गर्दन पर जूतों के निशान थे। साथ ही उसके आंखों में कील भी पाई गई थी

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के कानपुर आउटर के नर्वल इलाके से हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। नर्वल इलाके के सकट बेहटा गांव के एक राजमिस्त्री परिवार का 10 वर्षीय बच्चा दो दिन पहले गायब हो गया था। इसके बाद जब मंगलवार को उसी लापता बच्चे की लाश गांव के पास खेत से बरामद की गई तो इलाके में सनसनी फैल गई।
    जानकारी के मुताबिक, इस घटना में बच्चे के साथ दरिंदगी की सारी सीमाओं को लांघ दिया गया। बच्चे के साथ हुई हैवानियत को देख सुनकर पुलिस सहित इलाके के लोग भी सन्न हैं। पुलिस के मुताबिक, हत्या करने वाले ने बच्चे को भीषण प्रताड़ना दी है। घटना के दौरान बच्चे के नग्न शव के गले में जूते के निशान मिले हैं, चेहरे को सिगरेट से जलाया गया है और कील से आंख भी फोड़ दी गई है। घटनास्थल पर कील मिलने से आशंका जताई जा रही है कि बरामद कील से ही आंखों को नुकसान पहुंचाया गया होगा।
    घटनास्थल पर बच्चे के शव के साथ फारेंसिक टीम ने खून से सना डंडा, कील, अधजली सिगरेट, दो प्लास्टिक के गिलास और दारू की बोतल भी बरामद की है। माना जा रहा है कि इस हत्या में दो लोग शामिल रहे होंगे। साथ ही बच्चे को मारने के दौरान हत्यारों ने उसे घसीटा भी होगा क्योंकि शव का पिछला हिस्सा काला पड़ गया था। वहीं पुलिस का मानना है कि बच्चे के गर्दन पर लात रखकर गला घोंटा गया है।
    कानपुर आउटर एसपी अजीत के. सिन्हा ने माना कि उक्त मामले में जिस घिनौने तरीके से हैवानियत को अंजाम दिया गया है, उससे पता चलता है कि हत्यारे किस मानसिकता के रहे होंगे। हालांकि, हत्या के कारण के बारे में हत्यारों के गिरफ्त में आने के बाद ही पता चलेगा। पुलिस की कई टीमें आरोपियों को पकड़ने के लिए गठित कर दी गई हैं। वहीं, कानपुर आउटर एसपी अजीत सिन्हा ने बताया कि इस घटना में जिन भी पुलिस कर्मियों ने हीला-हवाली दिखाई है, उन्हें भी दंडित किया जाएगा। एसपी के मुताबिक, परिजन बच्चे के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराने सम्बंधित चौकी व थाने गए थे लेकिन वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने तत्काल कार्रवाई न कर अगले दिन आने को कहा था।
    नर्वल में हुई इस हत्या मामले में बच्चे के साथ कुकर्म व तंत्र-मंत्र की आशंका भी जताई गई। जिसपर एसपी आउटर ने कहा है कि बच्चे की हत्या मामले में जांच की जा रही है, साथ ही पोस्टमॉर्टम में जो भी बात सामने निकलकर आएगी उसके अनुसार मामले में उचित कार्रवाई की जाएगी। वहीं मामले में परिजनों ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।
    बता दें कि, कानपुर आउटर के नर्वल थाना क्षेत्र के सकट बेहटा गांव में रहने वाले महेंद्र कोरी राज मिस्त्री की दस संताने हैं। इनमें से आठवें नंबर का बेटा जो कि कक्षा-5 में पढ़ता था; वह गायब हो गया था। जिसके बाद मंगलवार को उसका नग्न शव गांव के ही एक सरसों के खेत में पाया गया था।
  • अखिलेश यादव ने अनुप्रिया पटेल की मां को दी सेंट्रल चेयर! 

    अखिलेश यादव ने अनुप्रिया पटेल की मां को दी सेंट्रल चेयर! 

    द न्यूज 15 

    लखनऊ। समाजवादी पार्टी की तरफ से यूपी चुनाव के पहले गठबंधन वाली पार्टियों के नेताओं के साथ एक तस्वीर शेयर की गई। जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह तस्वीर जमकर वायरल होने लगी। दरअसल इस तस्वीर में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल कई दल के नेताओं के साथ सेंट्रल कुर्सी पर बैठी नजर आईं। इसको लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की चर्चा होने लगी। मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल को सेंट्रल चेयर देकर अखिलेश यादव ने एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। पूर्व आईएस सूर्य प्रताप सिंह ने बीजेपी पर तंज कसते हुए लिखा – बीच की कुर्सी पर पटेलों की बड़ी नेता कृष्णा पटेल जी बैठी हैं। जी ने आज कल अखिलेश यादव राज माता के नाम से संबोधित कर रहे हैं। उनका या सम्मान पटेल समाज को खूब रास आ रहा है।
    योगेश अग्रवाल नाम के यूजर ने कमेंट किया कि जिस तरह से अखिलेश ने उनको हेड वाली कुर्सी पर बैठाया है वैसे ही आगे भी नेतृत्व देते रहेंगे। सत्य प्रकाश नाम की एक यूजर ने कमेंट करते हैं कि महिला सम्मान या यूपी सीएम का नया चेहरा? अभय नाम के एक ट्विटर यूजर लिखते हैं कि अगर कृष्णा पटेल को अखिलेश यादव मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दें तो कुछ ज्यादा बेहतर होता।
  • अब योगी सरकार के एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने दिया इस्तीफा 

    अब योगी सरकार के एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने दिया इस्तीफा 

    द न्यूज 15 

    नई दिल्ली/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को एक और झटका लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद अब दारा सिंह चौहान ने योगी कैबिनेट से अपना इस्तीफा दे दिया है। दारा सिंह मधुबन विधानसभा सीट से विधायक हैं। चौहान ने राज्यपाल को भेजी चिट्ठी में योगी आदित्यनाथ सरकार पर दलितों, पिछड़ों और युवाओं की अनदेखी करने का आरोप लगाया है।
    राज्यपाल को भेजे गए अपने इस्तीफे में दारा सिंह चौहान ने कहा है, ”सरकार की पिछड़ों, वंचितों, दलितों, किसानों, बेरोजगारों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के साथ-साथ पिछड़ों और दलितों के आरक्षण के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है,उससे आहत होकर मैं उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देता हूं।”
  • आधार केंद्र पर अवैध उगाही,  वीडियो वायरल

    आधार केंद्र पर अवैध उगाही,  वीडियो वायरल

    द न्यूज 15 
    जलालाबाद/शामली। आधार केंद्र संचालिका द्वारा अवैध उगाही करते हुए  एक  वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रही है।  वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि आधार केंद्र संचालिका द्वारा नए आधार कार्ड  बनवाने के पैसे लिए जा रहे है।
    प्राप्त जानकारी के अनुसार कस्बे के पंजाब नेशनल बैंक स्थित आधार केंद्र  संचालित है ।   आधार केंद्र पर बैठी एक महिला द्वारा नए  आधार कार्ड के नाम पर  अवैध उगाही की जा रही है।    लोगों ने अवैध उगाही का विरोध किया तो   आधार केंद्र संचालिका अपने अन्य साथियों के साथ  केंद्र बंद करके चली गई । जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। असगर  नामक  पीड़ित   बताया की  मेरे से नए आधार कार्ड बनवाने के सो रूपये  लिए है।  वीडियो वायरल होने पर पत्रकारों के पहुंचने पर आधार केंद्र संचालिका ने पहले तो पैसा लेने से मना कर दिया बाद में पीड़ित के पैसे भी लौटा दिए अब देखना यह है पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं  यह तो आने वाला समय ही बता  पाएगा शासन  प्रशासन इस ओर क्या कार्यवाही करता है?  इस बारे में जब उप जिलाधिकारी से संपर्क किया तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

  • नहीं चाहिए आवारा पशु और आवारा सरकार : सोशलिस्ट किसान सभा 

    नहीं चाहिए आवारा पशु और आवारा सरकार : सोशलिस्ट किसान सभा 

    द न्यूज 15 

    लखनऊ। सोशलिस्ट किसान सभा ने कहा है कि उ.प्र. के नए मुख्य सचिव ने कार्य सम्भालते ही बोला था कि खुले पशुओं को लेकर वे सभी जिलों में अभियान चला कर उन्हें 1 से 10 जनवरी के बीच पकड़ा जाएगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अकेले हरदोई जिले के भरावन विकास खण्ड के उदाहरण से समझा जा सकता है।
    दरअसल सोशलिस्ट किसान सभा लगभग एक वर्ष से खुले पशुओं का मुद्दा हरदोई, उन्नाव व बाराबंकी जिलों के उठा रही है। 1 जनवरी  को वि.ख. भरावन के ढेहुआ बाजार, से तिरवा ग्राम सभा के सैकड़ों ग्रामीण अपने जानवरों के साथ भटपुर मार्ग पर लखनऊ की ओर चल दिए थे। इस ऐलान के साथ कि वे अपने पशुओं को योगी आदित्यनाथ के यहां ले जाकर बांधेंगे ताकि मुख्यमंत्री उनके पोषण की जिम्मेदारी लें। रास्ते में अन्य गांवों के लोग भी अपने जानवरों के साथ जुड़ते गए। 7-8 किलोमीटर चलने पर उप-जिलाधिकारी व क्षेत्राधिकारी, सण्डीला, आए व करीब 17 गाड़ियां मंगवा कर तिरवा, दूलानगर, छावन, आदि गांवों के पशुओं को गौशालाओं में पहुंचाया। ऐरा काकेमऊ व भरावन के लोग माल मार्ग से अपने जानवरों के साथ 4 जनवरी को लखनऊ के लिए निकल पड़े।

    करीब 15 किलोमीटर चलने पर जब लोग पशुओं के साथ लखनऊ जिले की सीमा में प्रवेश कर गए तब उप-जिलाधिकारी व ख.वि.अ. आए एवं वहीं सड़क के किनारे सांडा दखलौल ग्रा.स. में एक अस्थाई गौशाला बना कर पशुओं की वहीं व्यवस्था करने का निर्णय लिया गया। फिर 5 जनवरी को भटपुर ग्रा.स. के लोग पशुओं को लेकर करीब 5 किलोमीटर चलकर जब सीतापुर की सीमा में प्रवेश कर गए तब ख.वि.अ. आए एवं सभी जानवरों की व्यवस्था एक हफ्ते में करने को कहा। तब तक मोहम्मदापुर के जखवा पावर हाऊस पर 110 पशु, बंजरा व लालपुर, दोनों ग्रा.स. ऐरा काकेमऊ मे ंक्रमशः 30 व 50, कौड़िया ग्रा.स. में गांवों कठौनी व मड़ौली में 200-200, भरावन में 130, दूलानगर में 50, जीवन खेड़ा में 20, श्यामदासपुर में 250, हन्नीखेड़ा में 150, ग्रा.स. हीरूपुर गुट्टैया में 150, ग्रा.स. महीठा के कल्याणखेड़ा व डालखेड़ा में 50-50, व ग्रा.स. भटपुर के भटपुर में 150, कूड़ा में 300, रसुलवा में 300, सिकरी में 50, गोकुलवा में 40, कोल्हौरा में 50, कटका कलां में 50, लक्ष्मणपुरवा में 50, रमपुरवा में 40, इैश्वरीपुरवा में 25 व धन्नापुरवा में 50 जानवर एकत्र कर लिए गए थे। सभी जानवरों की व्यवस्था गौशालाओं मे ंकर पाना प्रशासन के लिए सम्भव नहीं था।
    जिला प्रशासन ग्राम प्रधानों के ऊपर दबाव बना रहा है कि वे व्यवस्था करें किंतु ग्राम प्रधान कहते हैं कि बिना पैसे के वे कैसे व्यवस्था कर सकते हैं? कुछ गांवों में गाड़ियों भेजी गई जानवरों को लाने के लिए किंतु कुछ गाड़ियों ने गौशालाओं में जगह न होने के कारण जानवरों को बीच में ही उतार दिया तो कुछ गाड़ियां वापस लौट आईं। अंत में तंग आकर लोगों ने इकट्ठा किए हुए जानवर छोड़ दिए। किसानों के लिए अपने खेत बचाना मुश्किल हो रहा है। हमारी मांग है कि सरकार प्रति जानवर रु. 30 प्रति दिन सीधे किसान के खाते में पैसा भेजे ताकि किसान जानवर को पाल सके।असल में किसान सम्मान निधि और कुछ नहीं किसानों की फसल जो खुले जानवर बरबाद कर रहे हैं उसका मुआवजा है। लेकिन किसानों का नुकसान सालाना रु. 6,000 के कहीं ज्यादा है। हमारी मांग है कि सरकार किसानों को खुले पशओं से हुए असल नुकसान का मुआवजा दे। खुले पशु योगी आदित्यनाथ सरकार की देन हैं। किसान दोनों से ही तंग आ चुका है और दोनों से ही छुटकारा चाहता है। यह जानकारी प्रेस रिलीज़ जारी कर सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पांडेय, संडीला प्रत्याशी मुन्ना शुक्ल, बांगरमऊ के प्रत्याशी अनिल मिश्र ने संयुक्त रुप से दी।
  • वाराणसी के घाटों पर पोस्टर लगते हुए दो शख्स गिरफ्तार

    वाराणसी के घाटों पर पोस्टर लगते हुए दो शख्स गिरफ्तार

    द न्यूज़ 15
    वाराणसी। वाराणसी पुलिस ने बजरंग दल के दो नेताओं को गिरफ्तार किया है। उन्होंन इस संदेश के साथ पोस्टर चिपकाया था कि ‘केवल हिंदुओं को गंगा नदी के घाटों पर जाना चाहिए’।

    राजन गुप्ता और निखिल त्रिपाठी के रूप में पहचाने जाने वाले दोनों को बाद में 5-5 लाख रुपये के व्यक्तिगत बांड जमा करने पर रिहा कर दिया गया।

    पुलिस आयुक्त ए सतीश गणेश ने कहा कि घाटों पर पोस्टर चिपकाते हुए फोटो में देखे गए दो व्यक्तियों को शांति भंग करने के लिए सीआरपीसी की 107/16 के तहत नोटिस जारी किया गया था।

    उन्होंने कहा, “दोनों को पुलिस लाइन में एसीपी कोर्ट लाया गया, जहां उन्होंने पांच-पांच लाख रुपए के निजी मुचलके जमा किए, जिसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया।”

    प्रारंभिक जांच के दौरान, विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारियों को गुप्ता की स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया, जो खुद को विहिप के शहर इकाई सचिव बताते हैं और त्रिपाठी खुद को बजरंग दल के शहर संयोजक बताते हैं।

    6 जनवरी को विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने घाटों पर गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले कई पोस्टर चिपकाए।

    पोस्टरों में यह संदेश था कि “गंगा के घाटों को पिकनिक स्पॉट के रूप में मानने वालों को मां गंगा के घाटों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह सनातन संस्कृति का प्रतीक है।”

    पोस्टरों में कहा गया है कि सनातन धर्म का सम्मान करने वालों का वे स्वागत करते हैं।