Category: यूपी विधानसभा चुनाव

  • करहल से अखिलेश यादव के खिलाफ ताल ठोक रहे उम्मीदवार की राजनीति में एंट्री नेता जी ने कराई थी 

    करहल से अखिलेश यादव के खिलाफ ताल ठोक रहे उम्मीदवार की राजनीति में एंट्री नेता जी ने कराई थी 

    मुलायम सिंह यादव जब पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे ,उस दौरन एसपी सिंह बघेल मुलायम सिंह यादव की सिक्योरिटी में लगाए गए थे।

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए रविवार को यूपी के 16 जिलों की 59 सीटों पर मतदान हो रहा है और इसमें मैनपुरी भी शामिल है। मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी चुनाव लड़ रहे हैं। करहल विधानसभा सीट पर चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है क्योंकि बीजेपी ने केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है।
    एसपी बघेल कभी मुलायम की सिक्योरिटी में थे: एसपी सिंह बघेल पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे और जब मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उन्हें मुलायम सिंह यादव की सिक्योरिटी में लगा दिया गया। धीरे-धीर एसपी सिंह बघेल मुलायम सिंह यादव के खास बनते चले गए। फिर बाद में जब 1991 में कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने, एसपी सिंह बघेल को कल्याण सिंह की सिक्योरिटी में लगाया गया। लेकिन 1993 में एसपी सिंह बघेल ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली।
    आगरा के कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी की: बघेल ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की। मुलायम सिंह यादव ने उनके फैसले से खुश होकर उन्हें समाजवादी यूथ ब्रिगेड का प्रेसिडेंट बना दिया। हालांकि इसके बाद बघेल ने मिलिट्री साइंस में पीएचडी की और आगरा के ही कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी करने लगे।
    पांच बार बने सांसद: 1996 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे और एसपी सिंह बघेल ने मुलायम सिंह यादव से इटावा की जलेसर सीट से टिकट मांगा। मुलायम ने टिकट के लिए मना किया तो एसपी सिंह बघेल मायावती के पास पहुंच गए और वहां से टिकट लेकर चुनाव लड़ा। हालांकि बघेल चुनाव हार गए। उसके बाद एसपी सिंह बघेल ने 1998 के लोकसभा चुनाव में फिर से मुलायम सिंह यादव से टिकट मांगा और मुलायम सिंह यादव ने इस बार इटावा की जालेसर सीट से उन्हें टिकट दे दिया और एसपी सिंह बघेल चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में भी मुलायम सिंह ने एसपी सिंह बघेल को जालेसर सीट से टिकट दिया और वह जीतकर संसद पहुंचे।
    बीएसपी से चौथी बार बने सांसद: साल 2010 में एसपी सिंह बघेल को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से निष्कासित कर दिया जिसके बाद एसपी सिंह बघेल फिर से एक बार मायावती के पास पहुंचे और मायावती ने तीन बार के सांसद बघेल को राज्यसभा भेज दिया। बघेल ने 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद 2015 में उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली। बीजेपी ज्वाइन करने के बाद बघेल को 2017 विधानसभा चुनाव में फिरोजाबाद की टूंडला विधानसभा सीट से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और बघेल चुनाव जीतकर योगी सरकार में मंत्री बन गए।
    2019 के लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन था उस समय बीजेपी ने एसपी सिंह बघेल को आगरा से उम्मीदवार बनाया और एसपी सिंह बघेल पांचवी बार सांसद बन गए। 2021 के मंत्रिमंडल विस्तार में एसपी सिंह बघेल मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री बनाए गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में एसपी सिंह बघेल को बीजेपी ने एक बार फिर करहल विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। करहल में एसपी सिंह बघेल का मुकाबला समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से है।

  • भाजपा का आरोप, आतंकी के पिता से सपा का रिश्ता, अखिलेश ने दिया करारा जवाब

    भाजपा का आरोप, आतंकी के पिता से सपा का रिश्ता, अखिलेश ने दिया करारा जवाब

    द न्यूज़ 15
    नई दिल्ली। जसवंत नगर में अपनी पत्नी के साथ वोट देने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव भाजपा की योगी सरकार पर जमकर बरसे और अखिलेश आतंकवादी से पिता के रिश्ते पर सफाई भी दी। अखिलेश यादव ने कहा कि कोई भी आतंकवादी है उस पर कारवाई की जाए। आतंकवादियों के ऊपर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो। बीजेपी स्ट्रैटजी से चलती है। उन्हें पता है कि चुनाव से पहले आरोप लगाया है। आतंकी का मुद्दा बीजेपी की चाल है।
    अखिलेश ने कहा कि वे झूठे है। इटावा में आए बाबा मुख्यमंत्री ने झूठी तस्वीर लगाई थी कि नहीं। उत्तर प्रदेश में तमाम जगह पर विकास दिखाना था तो चीन की फोटो चोरी करके कौन लाया। जिस समय उन्हें कारखाना दिखाना था उस समय आपने अभी तक कारखाना नहीं दिखाया। भारतीय जनता पार्टी से झूठी कोई पार्टी नहीं। अखिलेश ने कहा कि यूपी में कानून व्यवस्था ध्वस्त है। सैफई का विकास बीजेपी ने नहीं किया।
    अखिलेश ने सवाल किया कि मुख्यमंत्री ने अपने मेडिकल कॉलेज को वो सुविधाएं क्यों नहीं दिए। उन्होंने अगर गोरखपुर को एक्सप्रेस नहीं जोड़ा गया तो जिम्मेदार कौन है। अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी पर आरोप लगाया कि इन्हें कोई अच्छा करना ही नहीं है।

  • सपा और बसपा के लिए तीसरे चरण में भाजपा से आगे निकलने की क्या है चुनौती ?

    सपा और बसपा के लिए तीसरे चरण में भाजपा से आगे निकलने की क्या है चुनौती ?

    द न्यूज़ 15
    नई दिल्ली। UP विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण का मतदान आज रविवार को शुरू हो चूका है। भाजपा के लिए तीसरे और चौथे चरणों में अपना पुराना रिकार्ड बनाए रखने की चुनौती है, तो सपा और बसपा पर भाजपा को पीछे छोड़ आगे निकलने की चुनौती है। यही वो दो चरण हैं जिनमें भाजपा ने पिछड़े चुनाव में रिकार्ड जीत दर्ज की थी। भाजपा को इन दोनों चरणों में 99 सीटें मिली थीं। चौथे चरण का चुनाव 23 फरवरी को होना है.
    तीसरे चरण का मतदान देखा जाए तो पटियाली, अलीगंज, एटा, मैनपुरी, करहल, फर्रुखाबाद, तिर्वा, कन्नौज, जसवंतनगर, इटावा की सीट सपा की गढ़ रही है। करहल से इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं तो जसवंतनगर से उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव मैदान में हैं। तीसरे चरण में कुल 59 सीटों के लिए रविवार को मतदान होना है। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने इस चरण में 49 सीटें जीती थीं। सपा को मात्र आठ सीटों पर संतोष करना पड़ा था। बसपा व कांग्रेस की स्थिति तो इतनी खराब रही कि उसे एक-एक सीटें ही मिलीं। इस बार सपा के साथ बसपा को भी अधिक से अधिक सीटें जीतने की चुनौती है, तो भाजपा को वही पुराना दबदबा बनाए रखने की।
    चौथे चरण में नौ जिलों की 60 सीटों पर 23 फरवरी को मतदान होना है। अवध क्षेत्र में भाजपा ने वर्ष 2017 में 50 सीटें जीती थीं। लखनऊ की नौ सीटों में भाजपा ने आठ सीटें जीत कर रिकार्ड कायम कर दिया था। यह चरण सपा, बसपा व कांग्रेस के वर्ष 2017 में ठीक नहीं रहा था। सपा को चार, बसपा व कांग्रेस दो-दो और अपना दल को एक सीट मिली। अयोध्या की सभी पांच, बलरामपुर की सभी चार और गोंडा की सभी सातों सीटें भाजपा ने जीती थी। भाजपा पर इन जिलों में एक बार फिर से पुराना दबदबा साबित करने की बड़ी चुनौती है, तो सपा, बसपा व कांग्रेस पर इस विजय रथ को रोकने की है।
    तीसरा चरण 16 जिले 59 सीटें
    वर्ष 2017 में भाजपा 49 सीट, सपा 8 सीट, बसपा व कांग्रेस एक-एक सीट जीती थी। भाजपा नौ, सपा 31, बसपा 15, कांग्रेस तीन व आरएलडी एक सीट पर दूसरे स्थान पर रही।
    चौथे चरण 9 जिले 60 सीटें
    वर्ष 2017 में भाजपा को 50, सपा चार, बसपा व कांग्रेस को दो-दो और अपना दल को एक सीट मिली थी। भाजपा पांच, सपा 29, बसपा 16 व कांग्रेस नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।

  • उत्तर प्रदेश चुनाव: सपेरों को नहीं मिल रहा सरकारी लाभ? सरकार से लगाई जातीय मान्यता की गुहार

    उत्तर प्रदेश चुनाव: सपेरों को नहीं मिल रहा सरकारी लाभ? सरकार से लगाई जातीय मान्यता की गुहार

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    फिरोजाबाद । उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव के बीच, उत्तर प्रदेश के सिरसेला गांव के सपेरों ने सरकार से उनके समुदाय को मान्यता देने की गुहार लगाई है। सपेरों को आजीविका कमाने में मुश्किल हो रही है, इसके चलते उन्होंने नागरिक सुविधाओं के लिए सरकार का समर्थन मांगा और लाभ प्राप्त करने के लिए जाति मान्यता की मांग की।
    उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के सिरसेला गांव में सपेरे अस्थायी तौर पर रह रहे हैं। उन्होंने सरकार से उनकी आजीविका को बेहतर बनाने के लिए उन्हें गांव में नौकरी और नागरिक सुविधाएं प्रदान करने का आग्रह किया है। एक सपेरा इब्रानाथ ने कहा, “हम घूम रहे हैं, भीख मांग रहे हैं और सपेरे के खेल के माध्यम से कमा रहे हैं। चूंकि बच्चे पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए हमारे पास यही एकमात्र विकल्प बचा है। हम अपना गुजारा नहीं कर पा रहे हैं। मेरे पांच बच्चे हैं और मैं कैसे सर्वाइव करूंगा। मैं जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई भी छोटा-मोटा काम करने के लिए बेताब हूं।”
    60 वर्षीय इब्रानाथ ने सरकार से सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उनके समुदाय को मान्यता देने का अनुरोध किया। इब्रानाथ ने कहा, “मुझे सरकार से मुफ्त राशन मिला, मैं चाहता हूं कि सरकार मुझे आधिकारिक तौर पर मान्यता दे क्योंकि मैं किसी जाति से नहीं आता हूं। इसलिए अगर सरकार से मेरे समुदाय को मान्यता मिलेगी तो मैं भी सरकारी लाभों का हकदार होऊंगा।”
    एक अन्य सपेरे राजू नाथ ने कहा कि उनका कोई पक्का घर नहीं है और जिस क्षेत्र में वह रह रहे हैं, वह नागरिक सुविधाओं से वंचित है। उन्होंने कहा, “मुझे सरकार से खाना मिला है और कुछ काम करके गुजारा करता हूं। मेरे पास एक उचित घर नहीं है। हमारे पास पीने के पानी तक पहुंच नहीं है।” उन्होंने आगे कहा,” मैं अपने घरेलू खर्चों उठाने में सक्षम नहीं हूं। हमारे लिए (सांपों के लिए), यह एक दैनिक संघर्ष है। मुझे उम्मीद है कि सरकार हमें एक घर और बुनियादी नागरिक सुविधाएं मुहैया कराएगी।” राजू ने अफसोस जताते हुए कहा कि जब बारिश होती है, तो मैं टिन शेड या पर्दे के नीचे रहता हूं।” बता दें कि उत्तर प्रदेश के तीसरे चरण का चुनाव 20 फरवरी को होगा। सात चरणों में होने वाले चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे।

  • गोंडा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बोले- पीएम मोदी ही सच्चे समाजवादी  

    गोंडा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बोले- पीएम मोदी ही सच्चे समाजवादी  

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    गोंडा । रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला। कहा कि सपा को समाजवाद छू तक नहीं गया है। भय व भूख का समाधान करने वाला ही समाजवादी होता है। कोरोना काल में महीने में दो बार मुफ्त राशन देकर मोदी ने भूख का समाधान किया है। इसलिए पीएम मोदी ही सच्चे समाजवादी हैं।
    रक्षामंत्री शनिवार को करनैलगंज विधानसभा के अन्तर्गत परसपुर में आयोजित एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में विकास 83 योगासन कर रहा है जबकि विपक्ष शीर्षासन कर रहा है। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार की जमकर तारीफ भी की। सभा को सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने भी संबोधित किया।
  • योगी बोले, सरकार बनने पर नहीं थमेगा सिलसिला, बुलडोजर सड़कें भी बनाएगा और माफियाओं के किलों को ढहाएगा

    योगी बोले, सरकार बनने पर नहीं थमेगा सिलसिला, बुलडोजर सड़कें भी बनाएगा और माफियाओं के किलों को ढहाएगा

    द न्यूज 15  

    पीलीभीत। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को पीलीभीत के बीसलपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा 2017 से पहले यूपी में लोगों की जाति-पात देखकर विकास होते थे। बिजली जात बिरादरी देखकर मिलती थी। होली दिवाली पर अंधेरा रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। योगी ने कहा कि पिछली सपा सरकार सत्ता में आते ही आतंकियों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने का कुत्सित प्रयास करने लगी। एक आतंकवादी का पिता तो समाजवादी पार्टी का प्रचार करता घूम रहा है।
    उन्होंने कहा कि 2017 से पहले प्रदेश में अराजकता लूट खसोट दंगा होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। भाजपा की सरकार आने के बाद जो बुलडोजर सड़कें बनाने का काम करते थे, हमारी सरकार में वही बुलडोजर भू माफियाओं के अवैध कब्जों पर चल रहे हैं और चलते रहेंगे। कहा कि जब से हमारी सरकार बनी है तब से प्रदेश में दंगे नहीं होते पहले हर रोज दंगे होते थे। आज व्यापारी सुरक्षित है। डबल इंजन की सरकार प्रदेश की 25 करोड़ जनता को अपना परिवार मानकर भेदभाव रहित विकास कर रही हैं। प्रदेश के 86 लाख किसानों को 36 हजार करोड़ रुपए किसान सम्मान निधि के साथ ही बेटियों की सुरक्षा, फ्री वैक्सीन, शौचालय, मकान हमने दिया। बोले: पिछली सरकारें भी यह सब कर सकती थी, लेकिन कुछ ने अपने परिवारवाद और इत्र वाले मित्रों का भला किया, इसीलिए आज जो हो पाया वह पहले नहीं हो सका। 35 मिनट तक अपने भाषणों से योगी ने जनता से सीधे सवाल और जवाब किए। भाषण की शुरुआत में उन्होंने पीलीभीत की धरा को नमन करते हुए गोमती का जिक्र किया। योगी ने कहा कि यहां के लोगों ने जिस तरह गोमती को निर्मल बनाने के लिए जो प्रयास किये वह स्वागत योग्य है। आज गोमती की अविरल धारा पीलीभीत से निकलकर सीतापुर लखनऊ होती हुई वाराणसी तक मां गंगा की गोद में समाहित हो रही है। पहले कावड़ यात्रा पर बमबारी होती थी, आज उन पर फूल बरस रहे हैं। यह सब डबल इंजन की भाजपा सरकार ही कर सकती है। कोरोना का जिक्र करते हुए कहा कि जब हम लोगों ने सभी को फ्री व्यक्ति देने की बात कही तो विपक्षियों ने हमारा मजाक उड़ाया। लेकिन  वही वैक्सीन तीसरी लहर सब की जान बचाने में सहायक हुई तो अब विपक्षी उसका जिक्र नहीं करते। कोरोना जैसे नाजुक वक्त में जब पूरा विश्व जूझ रहा था, तब सपा, बसपा, कांग्रेस किसी ने आपकी फिक्र नहीं की। पीलीभीत में डबल इंजन की सरकार ने मुश्किल वक्त पर फ्री राशन भी दिया। 35 लाख किसानों का कर्ज माफ किया। 45 लाख 50 हजार गरीबों को मकान दिए। आज हम लोग जो कर रहे हैं, वह पहले की भी सरकारी कर सकती थी। लेकिन यह सब उनके गुर्गे और वह खुद  वह लूटते थे। लेकिन हम जनता का सहारा बनकर बांटते हैं। हम जात मजहब नहीं देखते। आज अयोध्या में प्रभु श्री राम का जो भव्य मंदिर बन रहा है वह पहले की भी सरकार बना सकती थी, लेकिन उन्होंने एक जात विशेष का मत पाने के लिए यह नहीं किया। हम राम मंदिर बना रहे है।
    वाराणसी में काशी कॉरिडोर बना रहे हैं। प्रदेश में एक करोड़ नौजवानों को हम लोग टेबलेट देने जा रहे हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी इससे भी परेशान है। आयोग में शिकायतें कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने पीलीभीत में जिस मेडिकल कॉलेज को बनाया है, अगली साल वहीं से आपके बच्चे पढ़ लिख कर जब डॉक्टर बनेंगे तो आपको सुखद अनुभूति होगी। यहीं से आपको बेहतर उपचार भी मिलेगा। पब्लिक से समर्थन मांगते हुए बीसलपुर प्रत्याशी व बरखेड़ा प्रत्याशी को जिताने की अपील करते हुए योगी अपनी अगली सभा के लिए सीतापुर रवाना हो गए। भारत माता की जय, अबकी बार तीन सौ पार का नारा भी दिया।
  • ’10 मार्च को पता चलेगा कि कहां है कोको’- राकेश टिकैत ने कसा बीजेपी पर तंज

    ’10 मार्च को पता चलेगा कि कहां है कोको’- राकेश टिकैत ने कसा बीजेपी पर तंज

    यूपी विधानसभा चुनाव के बीच एक बार फिर राकेश टिकैत ने ‘कोको’ का जिक्र कर बीजेपी पर कसा है तंज

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) सरकार के खिलाफ फिर एक बार हुंकार भरने की तैयारी कर रहे हैं। राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार ने किसानों से जो वादा किया था उसे पूरा नहीं कर रही है। किसानों को संबोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि आप तैयार रहें और गांव-गांव जाकर संगठन को और मजबूत बनाएं। सरकार, बहुत से नए कानून और किसान विरोधी पॉलिसी लेकर आ रही है। ऐसे में अगर हमारा संगठन कमजोर पड़ गया तो सरकार नए कानून के साथ ही विदेशों से मिल्क प्रोजेक्ट लेकर आ रही है।
    किसानों को हो रहा है नुकसान: किसानों को संबोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि डिजिटल का मजा हमें भी लेने दो। अब 14 दिन में गन्ने का भुगतान नहीं बल्कि गन्ने बेचने के साथ ही पेमेंट होना चाहिए। चुनाव के बाद कमेटी बनाने के लिए कहा है। अब देखते हैं कि कमेटी बनती है या नहीं। नहीं तो हम तो देशभर में जाएंगे और लोगों को इसके बारे में बतायेंगे। किसान आज अपनी फसल आधे रेट में बेच रहा है। उसे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है।
    10 मार्च को पता चलेगा कि कहां गया कोको: राकेश टिकैत ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि अब तो सब कालर वाले कुर्ते पहनने लगे हैं। अब कोको कहां छुपा है कहां से बताएं इनको (बीजेपी)। कोको बूढ़े लोगों के कुर्ते की जेब में हुआ करता था। अब लोग पूछते हैं कि कोको कहां है तो मैंने उन्हें बता दिया कि बूढ़े लोग ही बताएंगे कि कोको कहां हैं, उन्हींकी जेब में हुआ करता था। अब 10 तारीख को पता चलेगा कि कहां है कोको, कहां गया और क्या उसका मामला था।
    राकेश टिकैत ने कहा कि फूल तो सबको बढ़िया लगता है लेकिन मधुमक्खी फूल पर बैठती है और अपने साथ लेकर उड़ जाती है। कोको के बारे में हम कुछ नहीं जानते, हम तो गैर राजनीतिक लोग हैं। हम तो बस अपनी बात कहते हैं। अपना काम करते हैं और संगठन को ठीक रखते हैं।
    कर्नाटक में मचे हिजाब विवाद पर राकेश टिकैत ने कहा कि लोगों को दूसरी तरफ मोड़ दिया गया कि आप सब मंदिर-मस्जिद में उलझे रहो। अब एक हिजाब का मामला चला दिया है। इस मामले में जनता जाएगी ही नहीं, उनके आस्था के सवाल पर सरकार को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
  • जब अयोध्या में आमने-सामने आ गया SP और BJP प्रत्याशी का काफिला, गाड़ी में तोड़फोड़

    जब अयोध्या में आमने-सामने आ गया SP और BJP प्रत्याशी का काफिला, गाड़ी में तोड़फोड़

    2017 के विधानसभा चुनाव में वर्तमान बीजेपी उम्मीदवार आरती तिवारी के पति खब्बू तिवारी ने अभय सिंह को हराया था, तो वहीं 2012 में अभय सिंह ने खब्बू तिवारी को हराया था।

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण के लिए वोटिंग से 36 घंटे पहले बीजेपी और सपा के उम्मीदवार आमने-सामने आ गए, जिसके बाद हवाई फायरिंग और जमकर तोड़फोड़ हुई। मामला अयोध्या के गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र का है जहां पर सपा प्रत्याशी अभय सिंह और बीजेपी प्रत्याशी आरती तिवारी के समर्थक आमने-सामने आ गए थे। हवाई फायरिंग और गाड़ियों में तोड़फोड़ के दौरान कुछ लोगों के चोटिल होने की भी खबरें सामने आई है।
    बता दें कि गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र के महाराजगंज थाना क्षेत्र में कबीरपुर चौराहे के पास दोनों प्रत्याशियों के काफिले आमने-सामने आ गए, जिसके बाद खूब नारेबाजी हुई। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों दलों के समर्थक आपस में भिड़ गए। हवाई फायरिंग भी हुई और गाड़ियों के शीशे भी तोड़े गए। वहीं इस पूरे मामले पर एसएसपी शैलेश पांडे ने बयान देते हुए कहा है कि, “प्रचार के दौरान दोनों दलों के समर्थक महाराजगंज थाने के कबीरपुर इंटरसेक्शन के पास आमने-सामने आ गए। दोनों दलों के समर्थकों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाया है कि पत्थरबाजी और फायरिंग हुई है। एसएसपी शैलेश पांडे ने आगे कहा कि, “एक या दो लोगों को थोड़ी चोट आई है। हम इस मामले की जांच कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। लॉ एंड ऑर्डर पूरी तरह से काबू में है।”
    सूत्रों के अनुसार खबर आ रही है कि समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अभय सिंह को शनिवार सुबह 4 बजे उनके आवास से गिरफ्तार किया गया है। हालांकि अभी तक अभय सिंह की गिरफ्तारी के संबंध में पुलिस की ओर से कोई बयान नहीं आया है। बता दें कि अयोध्या जिले की गोसाईगंज विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने बाहुबली अभय सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बीजेपी ने पूर्व विधायक खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी को प्रत्याशी बनाया है। खब्बू तिवारी अभी अयोध्या जेल में बंद है। 2017 के विधानसभा चुनाव में खब्बू तिवारी ने अभय सिंह को हराया था, लेकिन धोखाधड़ी के एक मामले में खब्बू सिंह को एमपी एमएलए कोर्ट ने सजा सुनाई है और 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले इनकी सदस्यता भी समाप्त हो गई थी। वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में अभय सिंह ने खब्बू तिवारी को हराया था।
  • दिल-ए- उत्तर प्रदेश तुझे हुआ क्या है? काश ये पूछो कि मुद्दा क्या है?

    दिल-ए- उत्तर प्रदेश तुझे हुआ क्या है? काश ये पूछो कि मुद्दा क्या है?

    `कानून-व्यवस्था की अच्छी हालत` का लोगों के लिए एक खास मतलब है— उनके लिए इस मुहावरे का मतलब है `मुसलमानों को उनकी सही जगह` दिखा देना.

    योगेंद्र यादव
    नई दिल्ली। ‘भाजपा के वोट तो गैय्या चर गई’, समाजवादी पार्टी के एक समर्थक ने अपनी तरंग में कहा. चुनावी नतीजों के बारे में आप इस समर्थक के पुर्वानुमान का अंदाजा लगा सकते हैं। उसका कहना था कि सूबे में जारी चुनावों में भाजपा चारो खाने चित्त होने जा रही है। उत्तर प्रदेश की एक अच्छी बात यह भी है कि यहां आपको हर कोई चुनाव-विज्ञानी (सेफोलॉजिस्ट) मिलेगा। सो, सेफोलॉजिस्ट के रुप में अपने पिछले जन्म के संस्कारों के कारण चुनाव-परिणामों के पूर्वानुमान को लेकर खुद से मेरी जो अपेक्षाएं रह गई हैं, वे इस बार मुझपर हावी नहीं हो पा रहीं. हां, मुझे ये बात मानीखेज लगी कि शायद ये एक मुद्दा ( समाजवादी समर्थक के शब्दों में कहें तो भाजपा के वोट गैय्या चर गई) हर जगह तुरुप का पत्ता साबित हो. इसी ख्याल ने मुझे सोचने को उकसाया कि क्या कोई एक मुद्दा इस बार युपी के चुनावों में सारे मुद्दों पर हावी है और अगर ऐसा है तो वो एक मुद्दा क्या हो सकता है।
    पिछले एक पखवाड़े से मैं उत्तर प्रदेश के दौरे पर हूं। कोरोना की जो तीसरी लहर है और इस तीसरी लहर के साथ-साथ जो सर्द हवाओं वाली शीतलहर है— इन दोनों के लिए इस बार मेरे मन में धन्यवाद का भाव है क्योंकि सिर पर टोपी और मुंह पर मास्क चढ़ाने में पहली बार कोई कोफ्त महसूस नहीं हो रही। नेतागीरी के दैनिक कर्तव्य जैसे बैठक, भाषण और प्रेस-सम्मेलन वैगरह तो निभा ही रहा हूं लेकिन इस सबके बीच थोड़ा सा समय निकाला है कि अपने परिचितों के दायरे से बाहर के लोगों से, जिनसे कभी मिला नहीं, जिन्हें कभी जाना नहीं, उनकी बातों को सुनूं, उनसे पूछूं और कुछ समझूं. अपने पूर्व जन्म यानी सेफोलॉजिस्ट के रुप में मैं जो फील्डवर्क किया करता था, यह कुछ वैसा ही काम है. अब ये तो नहीं कह सकते कि लोगों से हुई अपनी इस मानीखेज बातचीत को मैं किसी अच्छे सैंपल सर्वे या एक्जिट पोल का विकल्प मान लूं और इसके आधार पर पूर्वानुमान लगाऊं कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलने जा रही हैं या फिर यह कि किसका कितना वोट इस बार किस तरफ खिसक रहा है लेकिन इतना जरुर है कि लोगों से हुई बातचीत से एक अंतदृष्टि मिली है कि चुनाव परिणाम किन बातों पर निर्भर रहने वाला है।
    लोगों से हुई बातचीत से मेरे मन में इस ख्याल ने सिर उठाया कि मसले तो मौजूद हैं लेकिन वे मुद्दा नहीं बन पाये. ‘अंकल, क्या आप यकीन करेंगे कि मुझे टोकन नंबर 272 मिला था?’ मैं हिन्द मजदूर सभा से जुड़े एक मशहूर मजदूर-नेता स्वर्गीय त्रिपाठीजी के घर पर था तो उनके बेटे ने ये बात मुझसे कही. कानपुर में, कोविड की दूसरी लहर में त्रिपाठी जी की मृत्यु हुई. नोएडा में प्रौद्योगिकी सी जुड़ी नौकरी करने वाला उनका बेटा मुझसे अपने दुख साझा कर रहा  था कि पिछले साल 25 अप्रैल को जब अपने पिता के शवदाह के लिए वह श्मशान घाट पहुंचा तो उसके साथ क्या-क्या हुआ. उसका अनुमान था कि कानपुर के 14 श्मशान घाटों में हरेक पर उस रोज 200 से 400 यानी कुल मिलाकर 3000-4000 चिताओं को अग्नि दी गई होगी. अगले रोज अखबारों में छपा कि कानपुर में कोविड से 40 लोगों की मौत हुई. वह पीड़ा के इस अनुभव को भुला नहीं पा रहा था- ‘यहां मैं जिस भी परिवार को जानता हूं, वे सब ही उन हफ्तों में किसी ना किसी संत्रास से गुजरे. लेकिन अंकल, चुनावों के वक्त इसकी कोई बात नहीं कर रहा. जो सवाल पूछे जाने चाहिए, उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा.’
    त्रिपाठी जी के लड़के ने बात बिल्कुल पते की कही. दस-ग्यारह दिनों के दरम्यान हम लोगों ने जिन सैकड़ों लोगों से बात की उनमें से किसी ने भी जबतक पूछ ना लिया गया तब तक कोविड के बारे में एक शब्द ना कहा-उत्तर प्रदेश में कोविड के कारण हुई मौतों की संख्या 5 से 10 लाख के बीच हो सकती है. चूंकि ऐसी भयावह त्रासदी के साल भर के अंदर ही चुनाव हो रहे हैं तो आपको निश्चित ही उम्मीद होगी कि कोविड से हुई मौतों का सवाल एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा. लेकिन कोई भी इसकी बात नहीं कर रहा, यहां तक कि विपक्ष भी कोविड से हुई मौतों के बारे में अपने होठ नहीं खोल रहा. जब आप कोविड से हुई मौतों के मामले को उठाते हैं लोग-बाग आपको इससे जुड़े अपने दुख-संताप की बात यों सुनाने लगते हैं मानो कोई प्राकृतिक आपदा आयी थी, जिसपर किसी का वश नहीं चलने वाला. लेकिन फिर इसी क्रम में कुछ ऐसे मसले भी हैं जिन्हें यों तो लोगों का वास्तविक मुद्दा नहीं कहा जा सकता मगर बीजेपी ने ये आस जरुर लगायी थी कि ऐसे मुद्दे जोर पकड़ेंगे. बीजेपी का दुर्भाग्य कहिए कि हमलोगों ने जितने लोगों से बात की उनमें से किसी ने काशी-विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार या फिर अयोध्या-काशी का मसला नहीं उठाया।
    कानून और व्यवस्था का मुहावरा और मुसलमान : मुझे कुछ चौंकाऊ मुद्दों का पता चला. दिल्ली से लगते उस बड़े इलाके में जिसे अलां या फलां नोएडा के नाम से पुकारा जाता है, दादरी और उसके अड़ोस-पड़ोस में कायम यूपी के बने, अध-बने और ना-बने से कस्बों में जहां कहीं चले जाइए, आपको दीख पड़ेगा कि बीजेपी एक संवेदनशील मुद्दे पर पिछड़ रही है. कुछ माह पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार ने  9वीं सदी के गुर्जर-प्रतिहार वंश के शासक, प्रसिद्ध राजा मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया लेकिन प्रतिमा के नाम-पट्ट से गुर्जर शब्द गायब था।  ताकतवर और मुखर गुर्जर(इन्हें गुज्जर भी कहा जाता है) समुदाय ने इस बात को अपनी नाक का सवाल बनाया और प्रतिकार किया, गुर्जर समुदाय को लग रहा है कि उनके गौरव के प्रतीक को एक खास रंग-ढंग में ढालकर सांस्कृतिक तौर पर अनुकूलित करने की कोशिश की जा रही है।  यूपी में, पहले चरण के चुनावों में यह एक ज्वलंत मुद्दा था. जयंत चौधरी ने इस मुद्दे को भुनाते हुए ऐलान किया कि जेवर एयरपोर्ट का नाम गुर्जर राजा मिहिर भोज एयरपोर्ट रखा जाएगा।
    इसके अतिरिक्त कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो यों तो बड़े प्रकट हैं लेकिन उनसे निकलता संदेश मुखर नहीं हो पा रहा. पश्चिमी यूपी में हर कोई गुंडागर्दी की बात कर रहा है. बीजेपी के दर्दमंदों का दावा है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने `बहन-बेटियों की सुरक्षा` सुनिश्चित की है. क्या समाजवादी पार्टी की सरकार के समय बहन-बेटियों की इस सुरक्षा में गड़बड़ी थी? हां, गड़बड़ी थी—आपको तुरंत ही जवाब मिलता है. सामने वाले को कुछ और कुरेदिए और पूछिए कि क्या आस-पास ऐसी कोई घटना हुई थी और वह ऐसी घटना को याद करने की कोशिश में बगले झांकने लगता है. फिर भी, ये मुद्दा है जरुर और अखिलेश यादव जितना बताना-जताना चाह रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा है.
    इलाके में लोगों से बात करते हुए आपको जल्दी ही अहसास हो जायेगा कि `कानून-व्यवस्था की अच्छी हालत` का लोगों के लिए एक खास मतलब है— उनके लिए इस मुहावरे का मतलब है `मुसलमानों को उनकी सही जगह` दिखा देना. `जैसे सर्दी में कबूतर चुपचाप बैठता रहता है ना एक जगह फूलकर, वैसे मुसलमान बैठे हैं पिछले पांच साल से.` सर्दी-गर्मी के मौसम के हिसाब से कबूतरों के ऐसे बरताव को लेकर मुझे कुछ भी असहज नहीं लगता लेकिन कबूतरों की उपमा के सहारे जो बात मुझसे कही गई, वो अपने मायने में बड़ी गहरी थी. ज्यों-ज्यों चुनाव के प्रचार-अभियान पर रंग चढ़ता जा रहा है, बीजेपी तुरुप के इस पत्ते का इस्तेमाल सारे मुद्दों पर पानी फेर देने की जुगत के रुप में कर रही है. लेकिन पश्चिमी यूपी से मध्य यूपी की तरफ जाते हुए मुझे जान पड़ा कि ये मुद्दा अपनी धार में बहुत कुछ कुंद होता जा रहा है. तो फिर, दरअसल यहां मुद्दा है क्या—कानून-व्यवस्था का मामला या मुसलमान?
    महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी जैसे मुद्दों का क्या ? यह आलम तो आपको हर तरफ पसरा नजर आता है. मेरे लिए दलित पासी समुदाय के उन दो बुजुर्गों को भुला पाना मुश्किल है(मायावती के शासन में पुलिस ने अवैध शराब बनाने के आरोप में छापा मारा था, तभी से दोनों बेरोजगार हैं) जो बता रहे थे कि उनकी जिन्दगी बेहतरी की दिशा में बदल चुकी है-  ‘पहले कहां कुछ था, अब तो सबकुछ है’. मैंने सिर घुमाकर चारो तरफ देखा कि जिसे `सबकुछ` कहा जा रहा है वो कहीं दिख जाये लेकिन मुझे तो यही दिखा कि आस-पास घास-फूस से बनी छपरी है, महिलाओं के शरीर पर गर्म कपड़े नहीं हैं, बच्चे कुपोषण की जकड़ में हैं और गलियों में कूड़ा-कर्कट का ढेर लगा है. किसी ने सच ही कहा है कि सुन्दरता की तरह, वंचना की स्थिति भी अक्सर देखने वाले की आंख में हुआ करती है।
    हर कोई महंगाई का दुखड़ा रोने के लिए तैयार बैठा है, पेट्रोल और रसोई गैस के चढ़े दाम वह अंगुलियों पर गिनाने लगता है, लेकिन इससे जाहिर नहीं हो पाता कि महंगाई की मुश्किल उनके लिए इस चुनाव में कोई मुद्दा है या नहीं. महंगाई के लिए मोदी या योगी को दोष देने वाले हर दो व्यक्ति में एक आपको ऐसा मिलेगा जो कह रहा होगा कि महंगाई का होना देश की आर्थिक वृद्धि के लिए जरुरी है. लोग-बाग बेरोजगारी का जिक्र कुछ इस भाव से कर रहे थे मानो वह कुदरत की देन हो. हां, कुछ पढ़े-लिखे और सरकारी नौकरी की आस लगाये नौजवान जरुर मिले जो जबानी गिना रहे थे कि कितनी वैकेन्सिज नहीं भरी गई, कितनी परीक्षाएं नहीं हुईं, कितनी परीक्षाओं के पेपर लीक हुए और किन-किन इंटरव्यू में `फिक्सिंग` हुई. लोगों में अपनी आर्थिक दशा को लेकर बेचैनी तो दिखी लेकिन सत्ता-विरोध की वैसी कोई लहर ना दिखी जो जातियों के उस चश्मे की काट कर सके जिसके सहारे हर कोई हरेक तथ्य को देख और दिखा रहा था।
    इसी तरह, हर कोई कोटेदार के मार्फत दिये जा रहे अतिरिक्त राशन की बात बताता हुआ मिलेगा आपको ( युपी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की राशन-दुकान को कोटेदार की दुकान के नाम से जानते हैं). हर कोई ये मानने को राजी है कि महामारी के दिनों में राशन की आपूर्ति संतोषजनक रही और उसमें भेदभाव नहीं हुआ. लेकिन, इससे ये जाहिर नहीं होता कि चुनाव में यह कोई मुद्दा है. बीजेपी के समर्थक राशन मुहैया कराने की बात को सूबे में जारी `सुशासन` और उसके असांप्रदायिक रवैये के सबूत के तौर पर गिनाते हैं. लेकिन, बाकी लोगों का कहना था कि जो अतिरिक्त अनाज दिया जा रहा है वह चंद दिनों की बात है, इसे बस चुनाव के पूरे होने तक जारी रहना है. बात चाहे जो भी है, ये तो जाहिर ही है कि लोगों को अतिरिक्त राशन के रुप में जो कुछ एक हाथ में मिला उसे महंगाई के रुप में दूसरे हाथ से झटक लिया गया. तो मसला बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि आप अतिरिक्त राशन मुहैया कराये जाने की बात को घुमाते किस तरफ हैं.
    गैय्या की बात तो रह ही गई : आइए, फिर से गैय्या पर लौटें यानी उस बात पर जिससे इस लेख की शुरुआत हुई थी. आप किसानों के किसी समूह से बात कीजिए, पांच मिनट भी पूरे नहीं होंगे कि वह समूह छुट्टा घूमते गाय-बैल की परेशानी की बात पर आ जायेगा. किसान बताने लगते हैं कि छुट्टा घूम रहे गाय-बैलों के कारण उन्हें फसल का कितना नुकसान उठाना पड़ा, वे गिनाने लगते हैं कि खेतों में बाड़ और कांटेदार घेरे लगाने के लिए उन्हें कितनी रकम लगानी पड़ी और कैसे भूखा सांढ़ ऐसे घेरे को भी फांदकर खेत में आ धमका. किसान बताते हैं कि जाड़े की रात में उन्हें मचान लगाककर खेतों की रखवाली करनी होती है. इसकी वजह हर किसी को पता है. गोकुशी पर प्रतिबंध है और गौ-गुंडों के तांडव का भी डर है सो सूबे में पशु-व्यापार एकदम ठप पड़ा है. किसान बछड़े को बड़ा होने पर अपने पास रखना नहीं चाहते क्योंकि उसके दाना-पानी पर खर्च करना होगा, यही बात दूध देना बंद कर चुकी बूढ़ी गायों के मामले में भी है. गोशालाएं सिर्फ कहने भर को हैं, ज्यादातर तो वे कागज पर ही विराज रही हैं. जो इने-गिने गोशाला कायम हैं वहां भ्रष्टाचार ने अड्डा जमा रखा है. हालत ये है कि बीजेपी के समर्थकों तक को गो-रक्षा की दावेदारी का श्रेय लेने में हिचकिचाहट हो रही है. आपको युपी में चारो तरफ छुट्टा, भूखे और आक्रामक पशुओं का झुंड विचरता हुआ दिख पड़ेगा.
    हर किसी को पता है कि इस मुश्किल का निदान क्या है— या तो बड़े पैमाने पर गोशालाओं का निर्माण हो या फिर पशु-व्यापार और मांस-व्यापार को अनुमति दी जाये. अखिलेश यादव को पता है कि यह एक मुद्दा युपी के ग्रामीण अंचलों में बाकी सारे मुद्दों पर भारी पड़ सकता है. लेकिन अखिलेश पसोपेश में हैं: वे ऐसा कोई उपाय नहीं सूझा सकते कि उसे गो-हत्या का मुद्दा बना दिया जाये।  तो फिर युपी के इन चुनावों को मुद्दा क्या है ? इस सैद्धांतिक से सवाल पर सोचने-विचारने में मेरी मदद एक जमीनी स्तर के सेफोलॉजिस्ट ने ही की. उसका कहना था:  ‘देखिए, इश्यू कुछ होता नहीं है, इश्यू बनाने से बनता है.’ मैंने इस सूझ को नोट कर लिया है और आने वाले दिनों में जब `ह्वाट दे डोन्ट टीच यू इन पॉलिटिकल साइंस`(राजनीति विज्ञानों की किताबों में क्या छिपाया जाता है) नाम की किताब लिखूंगा तो इस सूझ का इस्तेमाल करुंगा. अभी तो मुझे 10 मार्च की सांझ तक इंतजार करना होगा कि चुनाव परिणाम आयें तो पता चले कि जनादेश किन मुद्दों पर आया है. लेकिन इन्हीं ख्यालों में खोये मेरे दिमाग में ये भी कौंधा कि जनादेश दरअसल कुछ होता नहीं है, जनादेश तो बनाने से बनता है. जी हां, चुनावी जनादेश अपने से कुछ नहीं कहता—सारा कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप जनादेश की व्याख्या किस तरह करते हैं। (द प्रिंट से साभार)
  • वोटरों पर भड़कीं BJP MLA : सब कुछ दे दिया पर अब वोट मांगते हैं तो दिखा रहे हैं नखरे 

    वोटरों पर भड़कीं BJP MLA : सब कुछ दे दिया पर अब वोट मांगते हैं तो दिखा रहे हैं नखरे 

    द न्यूज 15 
    लखनऊ । उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण के चुनाव के लिए प्रचार अभियान अपने चरम पर है। सभी दलों के बड़े और स्टार प्रचारक अपने प्रत्याशियों को जीत दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। गांवों से लेकर शहरों तक तेजी से प्रचार कार्य चल रहा है। इटावा सदर से मौजूदा विधायक और भाजपा प्रत्याशी सरिता भदौरिया ने विधानसभा क्षेत्र के ग्राम काकरपुर में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि “लोग रुपया खा गए, पैसा खा गए, नमक खा गए और मुंह से नहीं बोल रहे हैं। नमस्कार भी नहीं स्वीकार कर रहे हैं। यह कहां का न्याय है।”
    उन्होंने लोगों से कहा, “अगर आपको इतना ही खराब लग रहा था तो आप पहले ही कह देते कि तुम्हारा गल्ला नहीं खाएंगे। ये तो ईमानदारी नहीं है न, सब कुछ ले लिया, रुपया ले लिया, गल्ला हमें मिले, सुविधाएं हमें मिले, आवास हमें मिले, लेकिन जब हम वोट देने जाएंगे तब न हमें राष्ट्रवाद दिखेगा और न भारत हमें दिखेगा।”
    बोलीं कि हमारी पार्टी ने जो वादा किया उसे पूरा किया। कानून व्यवस्था दुरुस्त की, आपको कई तरह की सुविधाएं दीं, फिर भी आप हमारा नमस्कार स्वीकार नहीं कर रहे हैं। आम जनता से उन्होंने कहा कि सभी प्रत्याशियों की कुंडली आपके पास है। मेरी कुंडली भी आप जानते हैं। समाजवादी पार्टी वाले परेशान हैं। उन्हें पता है कि राजपूत समाज का एक भी वोट उनके पास नहीं जा रहा है। जो जैसा बोया है, वह वैसा ही काट रहा है। वे लोग आपको मेसेज दिए हैं कि राम मंदिर के साथ वे नहीं खड़े हैं, वे तो विरोध में खड़े हैं।
    बोलीं कि योगी जी की सरकार में आपकी सुविधाओं के लिए पैसा आ रहा है। सब काम हो रहा है। सबका साथ और सबका विश्वास के साथ काम हो रहा है। आज परिस्थितियां ऐसी बनी कि भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। कहा कि भारतीय जनता पार्टी में सबका सम्मान बढ़ा, सबका कल्याण हुआ। योगी सरकार जनता के हित में जनता के लिए काम कर रही है। किसान से लेकर खिलाड़ी तक सबके लिए काम किया जा रहा है। विपक्ष लोगों को भड़का रहा है।