Category: देश/विदेश

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  • Bangladesh Crisis : शेख हसीना के बेटे ने कर दिया बांग्लादेश की हिंसा में पाक के हाथ का खुलासा!

    Bangladesh Crisis : शेख हसीना के बेटे ने कर दिया बांग्लादेश की हिंसा में पाक के हाथ का खुलासा!

    ढाका। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय ने देश में हुए विरोध प्रदर्शनों के लिए पाकिस्तान के हस्तक्षेप की बात कही है। न्यूज एजेंसी एएनआई (ANI) से बातचीत में साजिब वाजेद जॉय ने दावा किया कि बांग्लादेश में हाल में हुए प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों को किसी विदेशी खुफिया एजेंसी ने भड़काया था। उन्होंने प्रदर्शन के लिए पाकिस्तान की प्रमुख खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) की संलिप्तता की बात कही है।

    एएनआई से बातचीत में सजीब वाजेद जॉय ने कहा, ‘बांग्लादेश की अशांति, घरेलू मुद्दों के बजाए बाहरी ताकतों से प्रेरित हुई थी। मेरा मां के बयानों को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया जिससे विरोध प्रदर्शन को हवा मिली। मुझे आईएसआई पर पूरा शक है.’ बता दें कि लंबे समय से बांग्लादेश में जारी संकट के लिए बाहरी हस्तक्षेप की बात कही जा रही है।

    आरक्षण पर क्या बोले सजीब?

    सजीब वाजेद जॉय ने कहा, ‘बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन जारी रखे जाने की कोई वजह नहीं थी क्योंकि आरक्षण शेख हसीना सरकार ने अदालत के फैसले से बहाल किया था.’ उन्होंने आरोप लगाया कि शेख हसीना के बयानों को प्रदर्शनकारियों ने तोड़-मरोड़कर पेश किया जिसकी वजह से देश में विरोध प्रदर्शनों ने जोर पकड़ा।

    पुलिस के एक्शन पर क्या कहा?

    उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश की सरकार ने कभी भी किसी को हमला करने का आदेश नहीं दिया था।  पुलिस को भी सरकार ने गोला-बारूद इस्तेमाल करने का आदेश नहीं दिया था। शेख हसीना सरकार ने उन पुलिसकर्मियों को निलंबित किया था जिनके जरिए अत्यधिक बल का इस्तेमाल हुआ था। मेरी मां ने छात्रों को प्राथमिकता देने और नरसंहार रोकने के लिए ही बांग्लादेश छोड़ा.’

    इस्तीफे के बाद 232 लोगों की मौत

    ढाका ट्रिब्यून (Dhaka Tribune) के मुताबिक, शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बांग्लादेश में हिंसा काफी भड़क गई। शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद हुई हिंसा और झड़पों में कम से कम 232 लोगों की जान गई। खबर है कि बांग्लादेश में बीते 23 दिनों में हिंसा में लगभग 560 लोग मारे जा चुके हैं।

  • हम इसी देश में पैदा हुए, यहीं मर जाएंगे…’, बांग्लादेश में हो रहे हमले के बीच हिंदुओं की रैली 

    हम इसी देश में पैदा हुए, यहीं मर जाएंगे…’, बांग्लादेश में हो रहे हमले के बीच हिंदुओं की रैली 

    ढाका। बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन की वजह से शेख हसीना को छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन वहां स्थिति अब भी सामान्य नहीं है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले, आगजनी और लूटपाट की जा रही है. अब इसके विरोध में बांग्लादेश हिंदू जागरण मंच ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है। राजधानी ढाका के शाहबाग में शुक्रवार को हजारों हिंदू जमा हुए और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई. ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां हिंदुओं पर हमले के विरोध में आवाज उठाई गई। आयोजकों ने कहा कि दीनाजपुर में 4 हिंदू गांवों को जलाया गया है, जिसके कारण कई हिंदू बेसहारा हो गए हैं।  मजबूरी में उन्हें सीमावर्ती इलाकों में शरण लेनी पड़ रही है।

     

    ‘हम यहां उड़कर नहीं आए हैं, देश नहीं छोड़ेंगे’

     

    रिपोर्ट के अनुसार, शाहबाग चौराहे पर विरोध जताने वाले हिंदुओं की संख्या हजारों में थी। इस रैली में हिंदू समुदाय ने कछ मांगें भी रखीं, इनमें अल्पसंख्यक मंत्रालय की स्थापना, अल्पसंख्यक संरक्षण आयोग का गठन, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले रोकने के लिए सख्त कानून और अल्पसंख्यकों के लिए 10 प्रतिशत संसदीय सीटों का आवंटन की मांग की गई।

    प्रदर्शनकारी दोपहर 3 बजे के नेशनल प्रेस क्लब के सामने जमा हुए थे। रैली में एक हिंदू नेता ने कहा कि हम इसी देश में पैदा हुए हैं, यह देश सभी का है. यहां के हिंदू देश नहीं छोड़ेंगे। यह हमारे पूर्वजों की जन्मभूमि भी है. हम यहां से उड़कर नहीं आए हैं. यह किसी के बाप का देश नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि भले ही मर जाऊं, अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ूंगा. इस दौरान लोगों ने नारे लिखे पंफलेट भी पकड़े थे. जिनमें लिखा था कि धार्मिक शिक्षा की कोई जरूरत नहीं है, आइए मानवता की शिक्षा में शिक्षित हों. एक पोस्टर पर लिखा हुआ था, देश तभी स्वतंत्र होगा, जब राष्ट्र अच्छी शिक्षा से शिक्षित होगा।

  • बांग्लादेश : भारत के लिए रणनीतिक चुनौती

    बांग्लादेश : भारत के लिए रणनीतिक चुनौती

    शेख हसीना भारत समर्थक हैं , इसलिए उनकी अनुपस्थिति बांग्लादेश में चीनी बढ़त को आमंत्रित कर सकती है , जो भारत के प्रभाव को चुनौती दे सकती है। बांग्लादेश में बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीन की हालिया पहल को और गति मिल सकती है, जिससे भारत की रणनीतिक बढ़त कम हो सकती है। बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति, पश्चिम बंगाल की बंगाली आबादी को प्रभावित सकती है , जो भारत में घरेलू राजनीति और नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है। बांग्लादेश में शरणार्थियों की आमद या राजनीतिक अशांति पश्चिम बंगाल की राज्य राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा बन सकती है , जो चुनावी गत्यात्मकता को प्रभावित कर सकती है।

    डॉ. सत्यवान सौरभ

    बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक उथल-पुथल , जिसमें प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा और उनका भारत चले जाना शामिल है, ने भारत की क्षेत्रीय कूटनीति के लिए नई चुनौतियां और जटिलताएं ला दी हैं। बांग्लादेश में सैन्य शासन और नागरिक अशांति के दौर से गुज़रते हुए , भारत अपने रणनीतिक हितों और क्षेत्रीय नीति को एक ऐसे चौराहे पर खड़ा पाता है, जिससे उसे अपने कूटनीतिक रुख का पुनर्मूल्यांकन करने की ज़रूरत है।

    ढाका के साथ राजनयिक संबंधों में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ देखे तो बांग्लादेश में अचानक राजनीतिक रिक्तता और सैन्य शासन की वापसी, भारत के लिए चुनौती बन गई है जिसने ऐतिहासिक रूप से अपने पड़ोस में लोकतांत्रिक शासन का समर्थन किया है। उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के अचानक समाप्त होने से ढाका में अप्रत्याशित नीतिगत बदलाव हो सकते हैं, जिससे सीमा प्रबंधन और आतंकवाद विरोधी उपायों जैसी द्विपक्षीय पहल प्रभावित हो सकती हैं। विरोध प्रदर्शनों में जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी समूहों की भागीदारी संभावित रूप से बांग्लादेशी राजनीति के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदल सकती है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है और कट्टरपंथ के खिलाफ भारत के प्रयासों पर असर पड़ सकता है। कट्टरपंथी तत्वों के बढ़ते प्रभाव से सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत को और अधिक कड़े सुरक्षा उपाय करने की आवश्यकता होगी।

    बांग्लादेश के साथ भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध खतरे में हैं । सीमा पार से व्यवधान और भारतीय निर्यातकों के लिए भुगतान में देरी ,इन देशों की आर्थिक निर्भरता की संवेदनशीलता को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए: हाल ही में कर्फ्यू और विरोध प्रदर्शनों के कारण पेट्रापोल-बेनापोल सीमा जैसे प्रमुख व्यापार मार्ग अस्थायी रूप से बंद हो गए हैं , जिससे प्रतिदिन लाखों डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हो रहा है। अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य, शरणार्थियों की आमद और सीमा पार अपराधों में वृद्धि का कारण बन सकता है , जिससे भारत को सुरक्षा उपाय कड़े करने पड़ सकते हैं। बांग्लादेश में पिछले राजनीतिक उथल-पुथल ने ऐतिहासिक रूप से शरणार्थी संकट को जन्म दिया है , विशेष रूप से 1971 के युद्ध के दौरान , जिसका भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर स्थायी प्रभाव पड़ा।

    प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत समर्थक हैं , इसलिए उनकी अनुपस्थिति बांग्लादेश में चीनी बढ़त को आमंत्रित कर सकती है , जो भारत के प्रभाव को चुनौती दे सकती है। बांग्लादेश में बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीन की हालिया पहल को और गति मिल सकती है, जिससे भारत की रणनीतिक बढ़त कम हो सकती है ।गैर-हस्तक्षेप और अपने हितों की रक्षा करने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखने से क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता और स्थिरता लाने वाले देश के रूप में भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि दांव पर लग सकती है। बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में अत्यधिक आक्रामक नीतियों या कथित हस्तक्षेप से अंतर्राष्ट्रीय आलोचना हो सकती है और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति प्रभावित हो सकती है। बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति, पश्चिम बंगाल की बंगाली आबादी को प्रभावित सकती है , जो भारत में घरेलू राजनीति और नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है। बांग्लादेश में शरणार्थियों की आमद या राजनीतिक अशांति पश्चिम बंगाल की राज्य राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा बन सकती है , जो चुनावी गत्यात्मकता को प्रभावित कर सकती है।

    भारत को अपने हितों की रक्षा करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अंतरिम सैन्य सरकार सहित बांग्लादेश में सभी राजनीतिक संस्थाओं के साथ संचार के खुले चैनल बनाए रखने चाहिए। स्थिरीकरण प्रयासों और लोकतांत्रिक बदलावों पर चर्चा करने के लिए प्रमुख बांग्लादेशी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के साथ कूटनीतिक वार्ता की मेजबानी करना। व्यापार प्रोत्साहन , सहायता और निवेश जैसे आर्थिक साधनों का उपयोग करके भारत को अपनी सॉफ्ट पॉवर का उपयोग करने और सत्तारूढ़ शासन के बावजूद अच्छे संबंधों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। बांग्लादेश में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए अनुकूल व्यापार समझौते या विकास सहायता को बढ़ाना चाहिए, जिससे आर्थिक संबंध मजबूत होंगे।

    सुरक्षा सहयोग बढ़ाना, खुफिया जानकारी साझा करना , तथा आतंकवाद और सीमा पार अपराधों के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाना राजनीतिक अस्थिरता के परिणामों को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए संयुक्त गश्त और खुफिया जानकारी साझा करने की पहल करना। सांस्कृतिक संबंधों और लोगों के बीच संपर्क को मजबूत करना ,स्थायी संबंधों के लिए आधार के रूप में काम कर सकता है, जिससे राजनीतिक और वैचारिक मतभेद कम हो सकते हैं। दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी समझ और सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक उत्सवों और छात्र विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देना। सुरक्षा और विकास जैसी आम चुनौतियों का समाधान करने के लिए सार्क और बिम्सटेक जैसे मंचों के माध्यम से क्षेत्रीय सहमति बनाना, स्थिरता के लिए सामूहिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए। सुरक्षा और आर्थिक विकास पर केंद्रित क्षेत्रीय संवाद शुरू करना जिसमें बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देश शामिल हों।

    बांग्लादेश में राजनीतिक संकट के चलते भारत को इस संक्रमणकालीन दौर में रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना चाहिए और हस्तक्षेप न करने तथा सक्रिय भागीदारी के बीच संतुलन बनाना चाहिए। भारत की कूटनीतिक रणनीति का विकास क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने तथा अपने पड़ोसी के बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच अपने हितों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण होगा। यह अनुकूल कूटनीति भारत को शांति और विकास के लिए प्रतिबद्ध क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करने में मदद कर सकती है ।

    (लेखक कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)

  • आखिर शेख हसीना को क्यों छोड़ना पड़ गया  बांग्लादेश   ? 

    आखिर शेख हसीना को क्यों छोड़ना पड़ गया  बांग्लादेश   ? 

    बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर शुरू हुए छात्र आंदोलन हिंसक हो गए थे। प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग तेज हो गईं। सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां न चलाने की घोषणा की। आर्थिक स्थिति और बढ़ती बेरोजगारी ने हालात और खराब कर दिए। 

    नई दिल्ली। बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन बेकाबू हो गए हैं। प्रदर्शनकारी ढाका में स्थित पीएम हाउस में घुस चुके हैं। इस बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ढाका छोड़ दिया है। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया है। कहा जा रहा है कि वो भारत की शरण लेंगी। छात्रों के प्रदर्शन से शुरू हुआ आंदोलन इतना कैसे बढ़ गया कि शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा? शेख हसीना के बैकफुट पर आने के 5 बड़े कारण हम आपको बता रहे हैं।

    1. आरक्षण को लेकर आंदोलन

    बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था। ये प्रदर्शन देखते देखते हिंसक हो गया। विवाद उस 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर है, जो स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को दिए जा रहे हैं। छात्रों का आरोप है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं दी जा रही है। सरकार अपने समर्थकों को आरक्षण देने के पक्ष में है।

    2. विपक्षी दलों का भारी विरोध

    बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर शुरू हुए छात्र आंदोलन में विपक्षी दल भी फ्रंटफुट पर आ गए। विपक्ष ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध किया। विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने खालिदा जिया के नेतृत्व में लाखों की भीड़ जुटाकर शेख हसीना की कुर्सी को हिला दिया। विपक्ष ने हसीना से इस्तीफे की मांग की। सरकार भी विपक्ष के विरोध का सामना करने में विफल रही।

    3. सेना ने नहीं दिया साथ

    बांग्लादेश में चल रहे प्रदर्शनों में सेना ने भी सरकार का साथ देने से मना कर दिया। हिंसक प्रदर्शनों में 90 लोगों की जान जा चुकी है। इसके बाद बांग्लादेश की सेना ने कहा कि अब वह प्रदर्शनकारियों पर गोलियां नहीं चलाएंगे। सेना मुख्यालय में बांग्लादेश आर्मी चीफ ने हालात के बारे में चर्चा की और ऐलान किया कि अब प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई जाएगी। इस बयान के बाद सेना का प्रदर्शनकारियों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर नजर आया।

    4. हिंसा भड़काने में पाकिस्तान का हाथ

    बांग्लादेश में हिंसा भड़काने में पाकिस्तान का भी हाथ है। बांग्लादेश की सिविल सोसायटी ने पाकिस्तान उच्चायोग पर कट्टरपंथी छात्र प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान अंदरखाने छात्रों को समर्थन के जरिए बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। कुछ रिपोर्ट में खुलासा हुआ है क पाकिस्तान ‘मिशन पाकिस्तान’ समर्थक जमात से जुड़े छात्र प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग के संपर्क में है, जो बांग्लादेश में प्रतिबंधित है।

    5. बांग्लादेश की आर्थिक हालात खराब बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति वैसे ही खराब थी, वहीं इस आंदोलन से इसे और झटका लगा है। वहां तेजी से बेरोजगारी बढ़ रही है। शेख हसीना लंबे समय से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज हैं। हाल ही में जब वो फिर से बांग्लादेश की पीएम बनीं, तो बेरोजगारों छात्रों में गुस्सा बढ़ गया। छात्र सड़क पर उतर आए और आंदोलन करने लगे।

  • अमेरिका ने कहा- पीएम मोदी रुकवा सकते हैं रूस – यूक्रेन युद्ध

    अमेरिका ने कहा- पीएम मोदी रुकवा सकते हैं रूस – यूक्रेन युद्ध

    राष्ट्रपति पुतिन से मिलने पीएम मोदी जब रूस गए तो अमेरिका ने चिंता जाहिर की थी। उसने ये भी कहा था कि अमेरिका पीएम मोदी के बयानों पर नजर रखेगा, लेकिन अब अमेरिका भारत की ताकत को पहचान चुका है। उसने माना है कि यूक्रेन और रूस के युद्ध को केवल भारत ही रुकवा सकता है। अमेरिका ने माना कि भारत-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है। अमेरिका ने बुधवार को बयान जारी कर कहा, रूस के साथ भारत के पास वो क्षमता है, जिसके चलते वह व्लादिमीर पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए मना सकता है। अमेरिका ने यह बयान मोदी की दो दिवसीय रूस यात्रा के ठीक बाद दिया है।

    व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरीन जीन पियरे ने कहा, हमारा मानना है कि रूस के साथ भारत के संबंध राष्ट्रपति पुतिन से यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने का आग्रह करने की क्षमता देते हैं, लेकिन इसे खत्म करना राष्ट्रपति पुतिन का काम है। पुतिन ने ही युद्ध शुरू किया था और वे ही इसे समाप्त कर सकते हैं।

    पुतिन को गले लगाया तो भड़क गए थे यूक्रेन के राष्ट्रपति

    जब पीएम मोदी ने पुतिन को गले लगाया तो जेलेंस्की ने आलोचना की। उन्होंने इसे शांति प्रयासों के लिए बड़ा झटका बताया था। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने पुतिन को खूनी तक बता दिया था।  उन्होंने कहा कि जब पीएम मोदी पुतिन से मुलाकात कर रहे थे, तभी रूसी मिसाइलें यूक्रेन पर हमला कर रही थीं। रूस कीव में बच्चों के अस्पताल को निशाना बना रहा था। मोदी ने सोमवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से उनके आवास पर मुलाकात की थी। सोमवार सुबह ही रूसी मिसाइलों ने यूक्रेन के शहरों पर हमला किया।
    पीएम मोदी ने जताई चिंता
    राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात के दौरान पीएम मोदी ने मंगलवार को यूक्रेन में 29 महीने से चल युद्ध और उसमें मारे गए लोगों को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने मासूम बच्चों की मौत का जिक्र किया था। पीएम ने कहा कि मासूम बच्चों की हत्या पर उनका दिल फट जाता है। जिस दिन पीएम रूस में पुतिन से मिले थे, उसी दिन यूक्रेन पर हमला किया गया था. इसमें कम से कम 37 लोग मारे गए और 170 अन्य घायल हुए थे।