Category: श्रद्धांजलि

  • Noida News : दलित शोषण मुक्ति मंच नोएडा ने धूमधाम से मनाई अंबेडकर जयंती

    Noida News : दलित शोषण मुक्ति मंच नोएडा ने धूमधाम से मनाई अंबेडकर जयंती

    नोएडा। दलित शोषण मुक्ति मंच गौतम बुध नगर के तत्वाधान में संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 132 वी जयंती 14 अप्रैल 2023 को सेक्टर- 8, नोएडा बांस बल्ली मार्केट पर धूमधाम से मनाई गई। जन्मोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत बाबा साहब के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किए जाने के साथ हुई।

    सभा को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता माकपा जिला सचिव व किसान सभा के जिला प्रवक्ता डॉ रुपेश वर्मा ने कहा कि हमें भारत रत्न बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की वैचारिक विरासत को बचाने के लिए और शोषण मुक्त, जाति विहीन समाज के निर्माण के लिए आगे आने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने बाबा साहब के विचारों और देश व समाज दिए गए योगदान को रेखांकित किया।

    सभा को संबोधित करते हुए मजदूर नेता सीटू जिलाध्यक्ष गंगेश्वर दत्त शर्मा ने कहा कि देश की आजादी में समाज के हर तबके के लोगों ने कुर्बानियां दी भारी कुर्बानियों के बाद मिली आजादी के बाद देश को विधि सम्मत चलाने के लिए बाबा साहब ने संविधान दिया इसी संविधान के कारण देश में लोकतंत्र स्थापित हो गया आम गरीब, मजदूर- किसानों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं को गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार हासिल हुए परंतु आज सत्ता में बैठे लोग संवैधानिक संस्थाओं पर हमले कर रहे हैं रोजी-रोटी छीन रहे हैं भाईचारा व जनतंत्र को ध्वस्त कर रहे हैं अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं, किसानों- मजदूरों पर हमला कर रहे हैं गरीब रेहड़ी पटरी वालों को उजाड़ा जा रहा है। इन हालात में हमें रोजी-रोटी भाईचारा जनतंत्र को बचाने के लिए आगे आना होगा यही बाबा साहब के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

    सभा को जनवादी महिला समिति की वरिष्ठ नेता आशा यादव, चंदा बेगम, रेखा चौहान, गुड़िया देवी, राखी, सविता उपाध्याय, सीटू नेता लता सिंह, रामस्वारथ, राजकरण सिंह, दलित शोषण मुक्ति मंच के नेता रमाकांत सिंह, भीखू प्रसाद, हरकिशन सिंह, दुर्गा राम, भरत डेंजर, गणेश कुमार, करण कुमार, धर्मेंद्र गौतम अरुण कुमार रामाधार, सुनील, रेहड़ी पटरी के नेता मंजू राय, अमित रस्तोगी, हरी गुप्ता, रामेश्वर स्वामी आदि ने संबोधित कर बाबा साहब को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष रमाकांत सिंह व संचालन सचिव धर्मेंद्र गौतम, उपाध्यक्ष भीखू प्रसाद ने किया।

  • अंबेडकर एक अध्ययन’ में सबसे अधिक दर्शाया गया है बाबा साहेब का जीवन चरित्र

    अंबेडकर एक अध्ययन’ में सबसे अधिक दर्शाया गया है बाबा साहेब का जीवन चरित्र

    राजकुमार जैन 

    आज बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती है। भारतीय संविधान की  निर्मात्री सभा के ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन, डॉक्टर अंबेडकर थे।  डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के जीवन से संबंधित पत्राचार तथा अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों के आधार पर श्री वाल्मीकि चौधरी ने जो कि एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ लोकसभा के सदस्य तथा प्रमुख बुद्धिजीवी थे। उन्होंने 22 भागों में प्रकाशित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था परंतु बाबा साहब के संविधान निर्माण में कुछ भ्रामक बातें लिखी है। उसके प्रत्युत्तर में स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, सोशलिस्ट विचारक तथा चार बार लोकसभा के सदस्य रहे मधु लिमये ने संसद में अपनी जो अमिट छाप छोड़ी वह सर्वविदित है। अपने देहावसान से पूर्व उन्होंने दो लेख एक डॉक्टर अंबेडकर के संदर्भ में तथा दूसरा महात्मा गांधी पर लिखा था। जो उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हो पाया।

    यह मधु लिमये का जन्म शताब्दी वर्ष है। 30 अप्रैल, 2023 को वह 100 वर्ष के हो जाएंगे। उन्होंने यूं तो डॉक्टर अंबेडकर पर कई लेख लिखे हैं परंतु उनकी पुस्तक ‘अंबेडकर एक अध्ययन’ अब तक जितना भी साहित्य डॉक्टर अंबेडकर पर प्रकाशित हुआ है उसमें अधिकतर उनके जीवन चरित्र को दर्शाया गया है। परंतु मधु जी ने उस पुस्तक में उनके वैचारिक पक्ष को प्रस्तुत किया है। वह बहुत ही विचारोत्तेजक, तथ्यात्मक पुस्तक है। यहां मैं बाबा अंबेडकर के बारे में वाल्मीकि चौधरी के लेख के प्रतिवाद में मधु लिमये ने जो लिखा है, उसको प्रस्तुत कर रहा हूं।
  • Tribute to Baba Saheb : बाबा साहेब की जयंती पर भारतीय सोशलिस्ट मंच ने  निकाली अंबेडकर संदेश यात्रा

    Tribute to Baba Saheb : बाबा साहेब की जयंती पर भारतीय सोशलिस्ट मंच ने निकाली अंबेडकर संदेश यात्रा

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने जनपद गाजियाबाद  विजयनगर के सिद्धार्थ विहार में संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई। इस अवसर पर भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

    इस अवसर पर संगठन के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र अवाना ने कहा कि बाबा साहेब दलितों के प्रति इतने चिंतित रहे हैं दलितों के उत्थान के लिए वह हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते थे। बाबा साहेब ने सवर्णों से बहुत अपमान झेला था। हिन्दू कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने लंबा संघर्ष किया। बौद्ध धर्म स्वीकार करने का कारण भी दलितों के साथ बरते जाने वाला भेदभाव ही था। जिलाध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि  मंच बाबा साहेब के बताए रास्ते पर चल रहा है।

    इस मौके पर मंच के प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र सिंह अवाना, राष्ट्रीय सचिव नरेंद्र शर्मा, प्रवक्ता चरण सिंह राजपूत, वरिष्ठ नेता सन्नी गुर्जर, मो. यामीन, सतपाल लोधी, विकास नागर, ज्ञानेंद्र नागर, राजू राणा, सिद्धार्थ गौतम, मनोज कुमार, सुरेश जाटव, मेहराजुद्दीन उस्मानी, रामबीर यादव,  गौरव मुखिया आदि मौजूद रहे।

  • जयंती पर भारतीय सोशलिस्ट मंच ने अंबेडकर संदेश यात्रा निकाली

    जयंती पर भारतीय सोशलिस्ट मंच ने अंबेडकर संदेश यात्रा निकाली

    भारतीय सोशलिस्ट मंच के युवा प्रकोष्ठ ने संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती की  अम्बेडकर संदेश यात्रा निकाली। यह यात्रा गौरव मुखिया के नेतृत्व में गांव झुंडपुरा से सेक्टर 11 के C, D, F, W ब्लॉक में निकाली गई। अंबेडकर संदेश यात्रा को समाजसेवी शालिनी खारी ने झंडी दिखाकर रवाना किया। यात्रा का समापन शिव मंदिर झुंडपुरा पर किया गया। इस मौके पर गौरव मुखिया में कहा कि आज जिस तरह दलितों पिछड़ों का शोषण हो रहा है, ऐसे में फिर से बाबा साहेब की विचारधारा धारा पर काम करने की जरूरत है।

    उन्होंने कहा कि जब तक कमजोरों का शोषण और दमन होता रहेगा तब तक देश के उत्थान में रुकावटें होती रहेंगी। गौरव मुखिया ने कहा कि ने समता मूलक समाज की स्थापना के लिए जो अभियान छेड़ा था। अब उसे हम लोग आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय सोशलिस्ट मंच बाबा साहेब से बताए रास्ते पर चलते हुए कमजोरों की लड़ाई लड़ेगा व भाईचारे को कायम रखते हुए सद्भावना पर काम करेगा। उन्होंने कहा कि गांव-गांव जाकर जागरूकता भीम का संदेश पहुंचाने का अभियान चलाया जाएगा।

    इस मौक पर देवेंद्र सिंह अवाना, देवेंद्र गुर्जर,  चरण सिंह, नरेंद्र शर्मा, सन्नी गुर्जर, रामबीर यादव, मौ यामीन, विक्की तंवर ने भी बाबा साहेब संदेश यात्रा को संबोधित किया। इस अवसर पर इमरान भड़ाना,अभिषेक बैसोया, सौरभ,अंकित, प्रियांशू, हेमंत,शकील, आदि उपस्थित रहे।

  • आज का अम्बेडकर !

    आज का अम्बेडकर !

    केएम् भाई 

    पंडित-मुल्ला से ऊपर हो

    जाति-धर्म से नास्तिक हो !!

    रंगीन लिबास में हो

    मस्त-मौला खुशमिजाज हो !!

     प्रेम का उपासक हो

    सुख-शान्ति का सच्चा साधक हो !!

     दिल से लल्लनटॉप हो

    तकनीकी में गूगल का बाप हो !!

     राजनीति का जांबाज  हो

    सियासत का वो सरताज हो !!

     अय्याशी में गोलेबाज़ हो

    स्टाइल में रजनीकांत हो !!

     हर युवा की पहचान हो

    हर युग में महान हो !!

     बापू हो या न हो

    अम्बेडकर जैसा हर एक इंसान हो !!

     अम्बेडकर जैसा हर एक इंसान हो ….

     

  • भारतीय सोशलिस्ट मंच ने मनाई ज्योतिबा फुले की जयंती 

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने मनाई ज्योतिबा फुले की जयंती 

    मंगलवार को सेक्टर 11 स्थित भारतीय सोशलिस्ट मंच के प्रदेश कार्यालय पर समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
    इस अवसर पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए संगठन के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र अवाना ने कहा कि महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने के लिए रूढ़िवादी विचारों वाले समाज में सुधार लाने के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले है।

    उन्होंने कहा कि 11 अप्रैल 1827 में पुणे के गोविंदराव और चिमनाबाई के घर में ज्योतिराव का जन्म हुआ था। उनका परिवार पेशवाओं के लिए फूल वाले का काम करते थे। मराठी में उन्हें फुले कहा जाता था। उस दौर में महिला विरोधी कुरीतियां फैली हुईं थीं। बाल विवाह, महिलाओं और विधवाओं का शोषण आम बात थी। लेकिन ज्योतिराव फुले ने महिला विरोधी कुरीतियों और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। 19वीं सदी के महान समाज सुधारकों में ज्योतिबा फुले का नाम शामिल हैं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दिया।

    जीवन भर उन्होंने महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह के खिलाफ और विधवा विवाह के समर्थन में कार्य किया और महिलाओं के लिए स्कूल भी खोला। इस अवसर पर जिलाध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में देवेन्द्र सिंह अवाना और देवेंद्र गुर्जर के साथ ही रामवीर यादव, नरेन्द्र शर्मा, विक्की तवर ,मौ यामीन, सन्नी गुर्जर, राकेश शर्मा, मुमताज,जय प्रकाश, आदि साथी उपस्थित रहे।

  • Tribute to Phanishwarnath Renu : सक्रिय राजनीति में रहे दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे रेणु  

    Tribute to Phanishwarnath Renu : सक्रिय राजनीति में रहे दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे रेणु  

    नीरज कुमार 
    पूर्णिया फणीश्वर नाथ रेणु की जन्म स्थली हैं | रेणु के पिता शिलानाथ मंडल संपन्न व्यक्ति थे | भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में उन्होंने भाग लिया था | रेणु सिर्फ सृजनात्मक व्यक्तित्व के स्वामी ही नहीं बल्कि एक सजग नागरिक और देशभक्त भी थे | 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया | इस प्रकार एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई | इस चेतना का वे जीवनपर्यंत पालन करते रहे और सत्ता के दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे | 1950 में बिहार के पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही दमन बढ़ने पर वे नेपाल की जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ वहां पहुंचे और वहां की जनता द्वारा जो संघर्ष चल रहा था उसमें सक्रिय योगदान दिया | दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे रेणु ने सक्रिय राजनीति में भी हिस्सेदारी की | 1975 में लागू आपातकाल का जे. पी. के साथ उन्होंने भी कड़ा विरोद्ध किया |सत्ता के दमन चक्र के विरोध स्वरुप उन्होंने पदमश्री की मानद उपाधि लौटा दी | उनको न सिर्फ आपातकाल के विरोध में सक्रिय हिस्सेदारी के लिए पुलिस यातना झेलनी पड़ी बल्कि जेल भी जाना पड़ा |  जयप्रकाश नारायण, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मीनू मसानी, अचुत्य पटवर्धन, आचार्य नरेंद्र देव, अशोक मेहता से प्रभावित हो रेणु समाजवाद और बिहार सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए |

    रेणु की लेखन शैली प्रेमचंद से काफी मिलती थी इसलिए उन्हें आज़ादी के बाद का प्रेमचंद कहा जाता है |  रेणु ने लगभग 63 कहानियां लिखी जिसमें  ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘सम्पूर्ण कहानियां’, आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। रेणु की कई उपन्यास संग्रह भी जिसमें ‘मैला आँचल’ उनकी प्रसिद्ध उपन्यास हैं | इसके अलावा ‘जूलूस’, ‘दीर्घतपा’, ‘कितने चौराहे’, ‘परती परिकथा’ और ‘पल्टू बाबू रोड’ प्रसिद्ध हैं | कहानी उपन्यासों के अलावा उन्होंने संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्टताज आदि विधाओं में भी लिखा। उनके कुछ संस्मरण भी काफ़ी मशहूर हुए। ‘ऋणजल धनजल’, ‘वन-तुलसी की गंध’, ‘श्रुत अश्रुत पूर्व’, ‘समय की शिला पर’, ‘आत्म परिचय’ उनके संस्मरण हैं। इसके अतिरिक्त वे ‘दिनमान पत्रिका’ में रिपोर्ताज भी लिखते थे। ‘नेपाली क्रांति कथा’ उनके रिपोर्ताज का उत्तम उदाहरण है।

  • Tribute to Chandrashekhar Azad : जब अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ और निवास स्थान ‘जेल’ बताया था चंद्रशेखर आज़ाद ने

    Tribute to Chandrashekhar Azad : जब अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ और निवास स्थान ‘जेल’ बताया था चंद्रशेखर आज़ाद ने

    चंद्रशेखर आज़ाद के शब्द अब उनकी 93 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए प्रेरणादायक और देशभक्ति उद्धरण हैं।

    रोहित सरकार 

    चंद्रशेखर आज़ाद के शब्द अब उनकी 93 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए प्रेरणादायक और देशभक्ति उद्धरण हैं।चंद्रशेखर आज़ाद पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर 23 जुलाई, 1906 को भाबरा, मध्य प्रदेश में पैदा हुए थे। भावरा में उन्होंने अपनी बुनियादी शिक्षा प्राप्त की और उच्च अध्ययन के लिए, वे वाराणसी में संस्कृत पाठशाला गए। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही कट्टरपंथी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था।

    महात्मा गांधी (बापू) के नेतृत्व में अहिंसक, असहयोग आंदोलन के राष्ट्रीय उत्थान से चंद्रशेखर अपने प्रमुख समय में मोहित थे। चंद्रशेखर को आन्दोलन में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और पूछने पर उन्होंने अपना नाम ‘आज़ाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ तथा निवास स्थान ‘जेल’ बताया। इसके बाद आज़ाद की उपाधि अटक गई, जिससे वे चंद्रशेखर आज़ाद हो गए।

    27 फरवरी को भारतीय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की 93वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में थे, जहां 1931 में एक सहयोगी के साथ विश्वासघात करने के बाद सशस्त्र पुलिस ने उन्हें घेर लिया। कुछ समय के लिए, वह बहादुरी से लड़ने में सफल रहे और अच्छी तरह से सशस्त्र पुलिस को एक छोटी पिस्तौल और कुछ के साथ अकेले ही पकड़ लिया। फिर से भरता है।

    हालांकि, अंत में, जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची, तो उन्होंने खुद को सिर में गोली मारने का फैसला किया और अपने संकल्प पर खरा उतरे कि उन्हें कभी भी ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और बंदी नहीं बनाया जाएगा। अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद को अब चंद्रशेखर आज़ाद पार्क के नाम से जाना जाता है।

    आइए भारत के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक चंद्रशेखर आजाद को उनकी 93वीं पुण्यतिथि पर उनके कुछ प्रेरणादायक उद्धरणों से याद करें।

    दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे। आज़ाद ही रहेंगे हैं, आज़ाद ही रहेंगे।

    यदि आपका खून क्रोध नहीं करता है, तो यह पानी है जो आपकी रगों में बहता है।

    मेरा नाम ‘आज़ाद’ है, मेरे पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ है और मेरा निवास स्थान ‘जेल’ है।

    एक विमान हमेशा जमीन पर सुरक्षित रहता है, लेकिन यह उसके लिए नहीं बना है। महान ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए जीवन में हमेशा कुछ सार्थक जोखिम उठाएं।

    ऐसी जवानी किसी काम की नहीं जो अपनी मातृभूमि के काम ना आ सके।

    दूसरों को अपने से बेहतर करते हुए न देखें, हर दिन अपने रिकॉर्ड तोड़ें क्योंकि सफलता आपके और खुद के बीच की लड़ाई है। मैं एक ऐसे धर्म में विश्वास करता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का प्रचार करता है। यदि कोई राष्ट्र के प्रति समर्पित नहीं है तो उसका जीवन व्यर्थ है।

  • भारतीय सोशलिस्ट मंच ने मनाई कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने मनाई कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि

    सत्ता के तमाम प्रलोभन और संसाधनों के बावजूद सादगीभरा रहा जन नायक का जीवन : देवेंद्र अवाना

    कर्पूरी ठाकुर के जीवन से सीख लें आज के समाजवादी : देवेंद्र गुर्जर

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने सेक्टर 11 स्थित प्रदेश कार्यालय पर प्रख्यात सोशलिस्ट और पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि मनाई। इस अवसर कर्पूरी ठाकुर के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की गई। इस अवसर पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई।
    विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए संगठन के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र अवाना ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर का जीवन इतनी सादगीभरा रहा है कि तमाम सत्ता के प्रलोभन औऱ संसाधनों के बावजूद उन्होंने साधारण व्यक्ति की जिंदगी जी। यह कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी ही थी कि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके पिताजी लोगों की हजामत बनाते थे। उनकी पत्नी के बीमार होने पर उन्होंने सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि रिक्शा से उन्हें अस्पताल पहुंचाया। लोहिया जी के संस्कार कर्पूरी ठाकुर में कुट कुट कर भरे थे।

    गौतमबुद्ध नगर के जिलाध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि आज के समाजवादियों को कर्पूरी ठाकुर के संघर्ष से सीख लेनी चाहिए। कर्पूरी ठाकुर ने पूरा जीवन देश और समाज को समर्पित कर दिया। गोष्ठी को राष्ट्रीय प्रवक्ता चरण, सिंह राजपूत, देवेन्द्र गुर्जर , देवेन्द्र अवाना,राष्ट्रीय सचिव नरेंद्र शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष रामवीर यादव,गौरव मुखिया गुलशन चावला पप्पू सिंह मनोज वाहिद ने भी संबोधित किया।

  • Tribute to Bapu : गांधी की हत्या का मधुलिमए पर असर!

    Tribute to Bapu : गांधी की हत्या का मधुलिमए पर असर!

    राजकुमार जैन 

    स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, महान चिंतक, सोशलिस्ट नेता मधुलिमए ने हिंदी, अंग्रेजी, मराठी मे जो लिखा वह 100 से अधिक पुस्तकों में लिपि बद्ध है। परंतु अपनी मृत्यु से पूर्व 29 जनवरी 1995 को अपना अंतिम लेख “एनकाउंटर विद गांधी: इन लाइफ एंड डेथ, (हिंदुस्तान टाइम्स) मे लिखा। जो अब ‘मधुलिमए लास्ट राइटिंग, पुस्तक में प्रकाशित है। इस लेख मे उनके जीवन पर महात्मा गांधी का क्या प्रेरणादायक प्रभाव, तथा खास तौर पर महात्मा गांधी की हत्या की खबर सुनकर नौजवान मधुलिमए के मन पर उसका क्या असर हुआ? उसका बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है। मूल लेख अंग्रेजी में है, उसका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है

    गांधी जी का अंतरंग दर्शन

    जब मैं अपने एक तिहाई से कुछ कम जीवन पर नजर डालता हूँ तो मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि महात्मा गांधी ने मेरी जीवन-दृष्टि तथा मेरे चिंतन को कितना गहरे प्रभावित किया है। जब गांधी दक्षिण अफ्रीका के अपने असाधारण मिशन से लौटे जहाँ उन्होंने सविनय अवज्ञा की तकनीक का अविष्कार किया और अपने व्यक्तिगत रहन-सहन में आमूल परिवर्तन किया, तो भारत में अन्याय का प्रतिरोध करने में प्रारंभिक प्रयोग उन्होंने चम्पारण (नील की खेती करने वालों में) अहमदाबाद (श्रमिकों में) और खेड़ा (अपनी जमीन पर खेती करने वालों) में किए। यद्यपि ये प्रयास महत्वपूर्ण थे फिर भी इनसे वे अभी अखिल भारतीय नेता नहीं बने थे। इसके बाद रौलट कानून बना। गांधी इससे बहुत उद्वेलित हुए। उन्होंने विरोध का एक नया रूप आविष्कृत किया- प्रार्थना की मुद्रा में देशव्यापी शांतिपूर्ण हड़ताल। गुलाम भारत के लिए यह नया आह्लादक अनुभव था। तत्पश्चात असहयोग आंदोलन चला जिसने सारे देश में हलचल मचा दी। बंबई के गवर्नर लॉयड ने अमेरिकी पत्रकार ड्र्यू पीयरसन को लिखा गांधी ने हमें डरा दिया। उसके कार्यक्रम ने हमारी जेलें भर दीं। आप हमेशा लोगों को गिरफ्तार करते नहीं रह सकते— खासकर जब गिरफ्तारी देने वाले 31,90,000 हों। अगर उसने अगला कदम उठाया होता और टैक्स देने से मना कर दिया होता, तो भगवान ही जानता है हमारी क्या हालत होती।” गांधी जी का प्रयोग मानव इतिहास का सबसे बड़ा प्रयोग था और यह सफलता से मुश्किल से एक इंच दूर रहा।

    ये घटनाएं मेरे जन्म से पहले घटी थीं। लेकिन मेरे प्राथमिक स्कूल के बाद का बचपन डांडी मार्च के पश्चात की प्रभात फेरियों, ध्वजारोहणों, पुलिस
    के क्रूर प्रदर्शन और खदरधारी स्वयंसेवकों की गिरफ्तारियों में बीता। बंबई में बीते 1932 के वर्ष ने मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ी हम कांग्रेस हाउस (बादाम बाड़ी) के सामने रहते थे, जो उन दिनों पीली पगड़ीवालों (पुलिस) के कब्जे में दिखाई देता था। मुझे आजाद मैदान के दृश्य याद आते हैं, जब पुलिस लाठियाँ चलाती थी और लोग चुपचाप लाठियों के प्रहार सहते थे। इन दृश्यों को देखकर कौन इस स्थिति से उदासीन रह सकता था? अवचेतन पर उकेरे गए बचपन के उस अनुभव के कारण ही में कभी आतंकवादी कार्यों की ओर आकृष्ट नहीं हुआ, भले ही ये काम वीरतापूर्ण हो मेरे मन में हमेशा ही मानवता के लिए खुद महापीड़ा भोगने वालों के प्रति बहुत सम्मान रहा है, दुष्टों का संहार करने वाले अवतार पुरुषों के प्रति नहीं 1930-32 की मेरी स्मृतियों में देश-सेविकाओं की स्मृति विशेष रूप से ताजा है जिनके हाथ में तिरंगा झंडा होता था, सफेद बार्डर वाली हरी साड़ी और केसरिया ब्लाउज या हरा-सफेद ब्लाउज और केसरिया साड़ी (कभी-कभी गांधी टोपी के साथ) जिनकी वेशभूषा होती थी और जो बड़ी बहादुरी के साथ पुलिस का सामना करती थीं।
    जब मुझे राजनैतिक चेतना आई, तो कांग्रेसी सरकारें काम करने लगी थीं। मैं उन बातों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देता था, जिन्हें कच्ची उम्र के हम नौजवान गांधी जी की हानि रहित सनक और कमजोरियाँ मानते थे। किंतु मुझे मंत्रियों को दी गई यह सलाह अच्छी लगी थी कि वे तड़क-भड़क से बचें और सादा जीवन जी कर गरीबों की सेवा करें।
    लेकिन कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साथ संबंध के उन प्रारम्भिक दिनों में मैं आमतौर पर गांधी जी की आलोचना करता था। निस्संदेह, महाराष्ट्रीय मध्य वर्ग का एक तबका गांधी और उनके कार्यों से जिस तरह घृणा करता था, मुझे उससे नफरत होती थी। ‘क्या एक बनिया हमें राजनीति सिखाएगा ऐसा केलकर पंथी मराठी ब्राह्मण कहते थे। के. एफ. नरीमन और एन. बी. खरे प्रसंगों के कारण भी गांधी जी की निंदा की जाती थी। लेकिन मेरा विचार था कि वे दोनों गलती पर हैं और गांधी जी बिल्कुल सही हैं।
    किंतु 1939 में मुझे अवश्य लगा कि गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस के प्रति कुछ कठोरता दिखाई। निश्चय हो, सुभाष ने क मैं भी स्वीकार नहीं किया और उनमें आजादी की चाह इतनी श्रीक जी को किसानों के बारे में अधिक नहीं रहेंगे। मुझे जी का राजकोट का उपवास भी अच्छा नहीं लगा था। इसके लिए जोर गया, उसका पित्य मेरी नहीं आया। कांग्रेस काशिपुरा में होने वाला था और निर्वाचित अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस गंभीर रूप से अस्वस्थ थे। गांधी जी ने बाद में खुद कहाकि यह उपवास दोषपूर्ण था ठीक उसी कारण से नहीं जिसका मैंने ऊपर जिक्र किया है।
    सितंबर, 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ। गांधी जी ने अपनी नैतिक भूग्रेजों के प्रति दिखाई। बारह साल काग्रेस युद्ध-विरोध के प्रस्ताव पास करती रही थी। मैं उस वक्त दंग रह गया, जब गांधी जी ने वक्तव्य जारी करके इस बात पर विलाप किया कि युद्ध के दौरान ब्रिटिश संसद के सदन और वेस्टमिंस्टर एवी ध्वस्त हो सकते हैं। मैं गांधी जी को मानता था और वे थे भी। किंतु उन्होंने जर्मनी के कोलोन गिरने या शाम के नीटे डाम का नाम क्यों नहीं लिया ? मेरे मन में गुस्से से अधिक खेद था।
    उसके बाद ढाई वर्ष बीत गए जिनमें कुछ समय जेल में बीता। सर स्टेफर्ड क्रिप्स नई योजना लेकर आए। यह सत्ता के ठोस तत्व से रहित खोखली योजना थी। बातचीत असफल हो गयी। पूर्वी युद्ध के लंबे साये भारत पर पड़े, विशेष कर बंगाल की खाड़ी के इलाकों में आम माहौल ऐसा था कि कोई घटना घटेगी। इसमें अनिश्चितता और निराशा का तत्व मिला हुआ था। अचानक अंधकार में प्रकाश की किरण फूटी। महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, जिसने जल्दी ही अप्रत्याशित वेग पकड़ लिया।
    अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन अगस्त में बंबई में हुआ। बंबई के मेयर नौजवानों के प्रिय नेता यूसुफ मेहर अली ने मुझे पंडाल में प्रवेश की सुविधा दी। लगातार भारी वर्षा हो रही थी। ग्वालियर टैंक का मैदान दलदल बन गया था। मैं और मेरे नौजवान साथी धीरे-धीरे मंच के पास सरक आये। देर रात का समय था। मैंने गांधी जी को पहली बार नजदीक से बोलते देखा। यह अविस्मरणीय मुलाकात थी। गांधी जी का भाषण हृदय से प्रेरित था। वे पहले हिंदी में बोले। बाद में अंग्रेजी में उनका अद्भुत भाषण हुआ में भारत के इतिहास के उन महान क्षण का साक्षी था। उसी क्षण मुझे गांधी ने सम्मोहित कर दिया और फिर वर्षानुवर्ष में उनकी ओर अधिकाधिक आकृष्ट होता गया। 1946-47 में उस दुर्बल वृद्ध ने अकेले ही नीआखाली, बिहार और दिल्ली में साम्प्रदायिक घृणा की आग को बुझाने का जो प्रयत्न किया, उससे मैं गहरा प्रभावित हुआ।
    नवंबर, 1947 में मैं सोशलिस्ट पार्टी के प्रेक्षक प्रतिनिधि के रूप में एंटवर्प (बेल्जियम) में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भाग लेने के लिए यूरोप की यात्रा पर गया। एक महीना ब्रिटेन में रहने के अलावा में फांस, स्विटजरलैंड, चेकोस्लोवाकिया और इटली भी गया। मैंने देखा कि पश्चिम के लोग गांधी के नाम से भली-भाँति परिचित थे। मैंने जिन लोगों से बात की, उनमें अधिकांश ने उनके प्रति आदर व्यक्त किया। जनवरी के अंत में मैं जेनेवा फ्लोरेन्स, मिलान, पॉम्पी और नेपल्स आदि शहर देखने के बाद रोम में पहुंचा। इटली की इस राजधानी में (जिसे वहाँ रोमा लिखा जाता है और महाभारत के सभापर्व में भी इसी नाम से उसका उल्लेख है तथा जहाँ विश्व के इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं। मैंने सभी पुराने स्मारकों को देखा और उनकी पृष्ठभूमि का बड़े मनोयोग से अध्ययन किया। हेलोनिक (ग्रेको-रोमन) सभ्यता मेरा प्रिय विषय था। इस प्रकार जनवरी के दूसरे पखवाड़े में रोम के इतिहास और क्लासिकल संस्कृति में पूरी तरह सरोबार हो चुका था। 31 जनवरी, 1948 की सुबह मैंने बिस्तर से उठकर गरम पानी से स्नान किया, कपड़े पहने और अपने होटल से बाहर निकला। कड़ाके की ठंड थी। “कोरेरी डेला केला” अखबार बेचने वाला एक लड़का कुछ दूरी पर जोर-जोर से चिल्ला रहा था। मैंने अखबार खरीदा और उसमें गांधी की तस्वीर देखी। वे जमीन पर गिरे हुए थे। क्या वे मर चुके थे या घातक रूप से जख्मी हुए थे। मैं दौड़कर वापस होटल में आया। होटल का पोर्टर कुछ अंग्रेजी जानता था। मैंने उसे अखबार दिखाया और उससे मतलब समझाने का निवेदन किया। उसने कुछ शब्दों में बताया कि गांधी जी को किसी ने गोली मारी और वे मर गए हैं। फिर यह जानकर कि मैं किस देश का हूँ, सहानुभूति से भर कर उसने कहा, “गांधी अच्छा था, गांधी अच्छा था।”
    मैं ऊपर से नीचे तक बुरी तरह हिल गया। मुझे लगा कि मेरे चारों ओर की दुनिया तेजी से घूम रही है। मैं सड़क पर निकल गया और खोया-खोया चलने लगा। कई लोगों ने तथा एक महिला ने मुझे हिन्दुस्तानी पहचान कर मेरे निकट रुक कर कहा, “हिन्दुस्तानी ? गांधी पर गए।” फिर बोले, “गांधी अच्छा आदमी, गांधी बहुत बड़ा आदमी।” एक क्षण में गांधी का सार्वदेशिक महत्व मेरी समझ में आ गया। लोगों के सहानुभूतिपूर्ण शब्दों ने मेरा मन हल्का किया। तथापि मुझे लगा कि हम अनाथ हो गये हैं। मैं बेमन से चलता रहा। अंत में मैंने देखा कि मैं प्राचीन फोरम में हूँ। पर्यटक ज्यादा नहीं थे। मैं एक जगह बैठ गया। मैं लगभग अकेला था और जल्दी ही में विचारों की दुनिया में खो गया। मैं ग्रीक शोकांतिका के समवेत स्वर का एक पात्र बन गया— जो साक्षी भी होता है और भाग लेने वाला भी शब्द भी मेरे नहीं थे। वे विभिन्न स्रोतों से उमड़े चले आ रहे थे। इसाया, शेक्सपियर, उपनिषद, महाभारत और सबसे ऊपर असीकिलस, साफोकलस, युरी पाइडस आदि रचनाओं से जिनमें मेरी गहरी रूचि थी। मैंने अपनी आँखों के सामने एक कुरूप धर्मांध को गांधी पर गोलियां बरसाते देखा। गांधी जी जमीन पर गिर गए। जब वे आखिरी सांस के लिए छटपटा रहे थे तो मैंने उन्हें धीमी आवाज में कहते सुना :
    गांधी : ओह! इस भयानक यातना का अंत कब उस अंतिम गहन पीड़ा में होगा जो तमाम पीड़ाओं से मुक्ति दिलाती है ?
    समवेत स्वर : ओह! दुखी मानव, भयानक और क्रूर मृत्यु तुम्हें अपने आलिंगन में ले रही है। यह मेरे दिल को चीर रही है, क्योंकि मैं मानता हूं कि तुम अपनी अच्छाई के कारण ही मर रहे हो और तुम मर्मांतक यातना
    इसलिए झेल रहे हो क्योंकि तुमने दुखी मानवता की भलाई के लिए पूर्णतया आत्म-त्याग का रास्ता अपनाया था। मैंने 1937-38 में तुम्हारी आवाज सुनी थी जो दुख में पड़ी हमारी महान मां की आवाज थी। इस आवाज में आग्रह था, आदेश था, जिसे सुन कर मैं, मेरे साथी और अगणित लोग स्वाभिमान से भर गए थे। तुमने एक महान कार्य का उपकरण बनाया और अब तुम हमें बीच में ही अकेला छोड़ कर जा रहे हो।
    गांधी: नहीं, मेरे बच्चों। मेरे पास जो कुछ था तुम्हें दे दिया। अब मुझे जाना होगा।
    समवेत स्वर : तुमने अपना सारा जीवन लंबे समय से दुख भोग रही माँ को सांत्वना देने में लगा दिया। उसकी संतान हजार साल से अधिक समय से भटक गई थी। वीरता और बलिदान के कुछ उज्जवल उदाहरण पेश करने के बाद यह पीढ़ी फिर गुनाह में डूब गई है “यह अन्याय से पापियों के बीज से लद गई है।” नौआखाली और टिपेरा से होते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश से – पंजाब, सिंघ और पेशावर तक भारत माता की ये संतानें अकल्पनीय रूप से राक्षसी बन गई हैं। उन्होंने अपनी समुद्र विरासत को तिलांजलि दे दी है। यह न तो ईश्वर से अधीन भाईचारे को मानती है और न मानवता के बंधन को। हे माता तुम्हारे एक बेटे ने आग की लपटों के बीच मानवता और सभ्यता की मशाल ऊंची जलाए रखी थी। अब पापियों ने उसे खत्म कर दिया है। ओ माँ! हम तुम्हारे उस महान बेटे के ऋण से कैसे उऋण होंगे ?
    गांधी : मेरे नौजवान दोस्तों! अगर तुम सचमुच मुझे प्यार करते हो तो मुझे बुतों में कैद मत करना। उन सिद्धांतों के अनुसार काम करना जो हमें प्रिय रहे हैं…… हे राम! ओ, दिव्य सुगंध की सांस । यद्यपि पीड़ा मुझे जलाए दे रही है, मैं तुम्हारी आनंदमयी उपस्थिति महसूस कर रहा हूं और मुझे शांति मिल रही है। ओह राम! वे तुम्हें अनेक नामों से पुकारते हैं। तुम्हें ईश्वर, अल्लाह और परमात्मा कहते हैं। मैंने तुम्हें दरिद्रनारायण कहा था। तुमने मुझे सबसे नीचे बैठे व्यक्ति की सेवा की प्रेरणा दी। तुमने मुझे मानव के जख्मों को सहलाना सिखाया। तुमने मुझे माताओं के आँसू पोछना सिखाया। तुमने मुझे अपंग और क्षत-विक्षत बच्चों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए प्रेरित किया। तुमने घृणा की आग को बुझाने की चाह मेरे मन में भरी। तुम्हीं ने यह सब मेरे लिए किया और अब एक अवर्णनीय सुख मेरे ऊपर छा रहा है और मुझे लगता है कि यह अंत नहीं, शुरूआत है, क्योंकि मेरा विश्वास है कि तुम इस समय मेरे पास हो ।समवेत स्वर : जैसा कि एक प्राचीन भविष्यवक्ता ने कहा कि तुमने “गरीबों को न्याय से देखा और दुनिया के निर्बल इन्सानों को समानता का दर्जा दिलाया।” तुमने स्त्री-पुरूषों में अहिंसा का संदेश फैलाने का बीड़ा स्वेच्छा से उठाया। तुम्हारा स्वप्न था कि अहिंसा पूर्ण सफल होगी और न केवल भारत के सारे समुदाय मिलजुल कर रहेंगे, बल्कि सारे विश्व में शांति होगी और ‘भेड़िया भेड़ के साथ रहेगा, चीता बच्चे के साथ खेलेगा, बछड़ा और सिंह शावक साथ-साथ भोजन करेंगे और छोटा बच्चा उन्हें चराने ले जायेगा।” वह खूबसूरत सपना अब खंडहर बन गया है। हमें इस बात का बहुत दुख है कि उस स्वप्न को देखने वाला रक्त से लथपथ हो कर जमीन पर लेटा है।
    ओम् शांति, शांति, शांति ।…….