Category: श्रद्धांजलि

  • Tribute to Mulayam Singh Yadav : भारतीय राजनीति में इतिहास रचा नेताजी ने : सूबे यादव

    Tribute to Mulayam Singh Yadav : भारतीय राजनीति में इतिहास रचा नेताजी ने : सूबे यादव

    देवेंद्र अवाना ने कहा-नेता जी ने किसानों मजदूरों और दबे कुचले लोगों के लिए किया काम, देवेंद्र गुर्जर ने कहा-चौधरी चरण सिंह के बाद यदि किसी नेता ने किसानों की सुध ली तो वे नेता जी ही थे 

    सपा कार्यकर्ताओं ने सेक्टर 71 स्थित सपा कार्यालय पर श्रद्धांजलि सभा कर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को किया याद 

    नोएडा। समाजवादी पार्टी के संरक्षक एवं पूर्व मुख्यमंत्री  नेताजी  मुलायम सिंह यादव की श्रद्धांजलि सभा सेक्टर 71 में सपा कार्यालय पर आयोजित की गई।  पूर्व अध्यक्ष सूबे यादव एवं देवेन्द्र गुर्जर अध्यक्ष नोएडा विधानसभा ने सपा कार्यकर्ताओं के साथ मा मुलायम सिंह यादव नेता जी के चित्र पर माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
    श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए पूर्व अध्यक्ष सूबे यादव ने कहा कि मुलायम सिंह यादव भारत के एक राजनेता एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री थे। वे भारत के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं।  वे मूलतः एक शिक्षक थे किन्तु शिक्षण कार्य छोड़कर वे राजनीति में आये थे। तथा समाजवादी पार्टी बनायी थी।

    मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक जीवन में 10 बार विधायक चुने गए और 7 बार सांसद भी रहे. वे तीन बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने।  नेताजी का जीवन संघर्ष सफलता की अनूठी मिसाल है उनका जीवन संघर्ष प्रेरणादायक है ।  नेताजी गांव गरीब किसान मजदूर की समस्याओं को समझते थे ।   इसलिए मुलायम सिंह यादव जी को धरतीपुत्र के नाम की ख्याति प्राप्त हुई उन्होंने विषम परिस्थितियों के बावजूद वह कर दिखाया जिस का सपना देखना भी किसी साधारण इंसान के लिए मुश्किल है।

    सपा नेता देवेंद्र अवाना ने कहा कि नेता जी ने किसानों मजदूरों और दबे कुचले लोगों के लिए काम किया। इस अवसर पर  कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया कि वे नेता जी के बताए रास्ते पर चलेंगे जैसे नेता जी कमजोरो की आवाज बने वैसे ही हम लोग भी कमजोरो की समस्याओं के लिए संघर्ष करेंगे।

    इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि कार्यकर्ताओं ने नेताजी के आत्मीयता के संबंधों को आत्मसात करने की बात कही चौधरी चरण सिंह के बाद यदि किसी नेता ने किसानों की सुध ली तो वे नेता जी ही थे उन्होंने नेताजी के आत्मीयता के संबंधों को याद करते हुए कहां की जो व्यक्ति नेताजी से जुड़ गया उन्होंने कभी नेताजी को नहीं छोड़ा नेताजी कार्यकर्ताओं को डांटते भी स्नेह भी करते थे और कार्यकर्ताओं की समस्याओं को समझते थे

    इस मौके पर पूर्व मंत्री अय्यूब अंसारी,अशोक चौहान, सूबे यादव, राकेश यादव देवेंद्र अवाना,भरत यादव, देवेन्द्र गुर्जर,जगत चौधरी, रामवीर यादव, सुन्दर यादव, विनोद यादव,मनोज चौहान,अरुण यादव, भीष्म यादव, मोहम्मद नौशाद ,लखन यादव,नरूला हसन,कालू यादव,प्रेमपाल यादव, नरेन्द्र शर्मा, मुन्ना आलम मोहम्मद तस्लीम, चिंटू त्यागी, राहुल त्यागी, ओमवीर गुर्जर,मीन्टू चौहान,टीटू यादव,वीरपाल अवाना,लोकेश यादव, भूषण शर्मा,आदि नेता गण मौजूद रहे।

  • Tribute to Netaji : ताल ठोक! समाजवादी मुलायम सिंह यादव

    Tribute to Netaji : ताल ठोक! समाजवादी मुलायम सिंह यादव

    प्रो.  राजकुमार जैन

    1968 दिसंबर या जनवरी का महीना,’ नेताजी’ राजनारायण (उस वक़्त सोशलिस्टों में नेताजी की पदवी केवल राजनारायण जी को ही मिली थी) का 95 साउथ एवेन्यू वाला सरकारी घर में, मैं अपने नेता प्रो. विनयकुमार तथा सांवलदास गुप्ता जी के साथ बैठा हुआ था कि सहसा चार आदमी कमरे में दाखिल हो गए। प्रो. विनयकुमार और गुप्ता जी खड़े हो गए उनकी देखा देखी मैं भी खड़ा हो गया। एक लम्बे क़द का आदमी मंकी टोपी लगाए तथा पुराने ज़माने का ओवरकोट, धोती पहने हुए था। उन्होंने पूछा कि राजनारायण जी कहाँ हैं? जबाव प्रो. विनय कुमार ने दिया कि गुसलखाने में है, आने ही वाले है रामसेवक जी। फिर विनय कुमार जी ने उनसे मेरा तारीफ करवाते हुए कहा कि यह हमारे नेता, रामसेवक यादव जी है, जो अखिल भारतीय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री है।

    हालाँकि मंकी टोपी ओवरकोट के कारण पहचान नहीं पाया था, परंतु मैं उनको उनके नाम से जानता था तथा डॉ. लोहिया के निधन के बाद जो पहली शोकसभा साउथ एवन्यू एम.पी. क्लब के हॉल में मामाबालेश्वर दयाल की सदारत में हुई थी, उसमें उनको बोलते हुए सुना था। फिर विनय जी ने बताया कि ये वीरेश्वर त्यागी जी, मन्जूर अहमद तथा मुलायम सिंह यादव है। ये तीनों उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य हैं। रामसेवक जी जितने लम्बे क़द के थे मुलायम सिंह जी उतने ही छोटे क़द के। हमारे दिल्ली के नेता, सांवलदास, गुप्ता जी एकदम उत्साह में बोले रामसेवक जी, आज शाम को दिल्ली के जामा मस्जिद पर हो रहे ‘भारत-पाक एका महासंघ’ की सभा में इन सबको लेकर आप ज़रूर आये। इतनी देर में नेताजी बैठक में पहुँच गए, दरअसल गुप्ता जी नेताजी को याद करवाने आए थे कि आप जलसे में कितने बजे पहुँचेगे? गुप्ता जी ने नेताजी से कहा कि आप अपने साथ इन सभी को साथ लेकर आइये, नेताजी ने कहा क्यों नहीं, फिर गुप्ता जी ने अन्य नेताओं से अलग से इसरार किया आपको ज़रूर जलसे में आना है, सभी ने बातचीत में इसको कबूल कर लिया।

    शाम को जलसा चल रहा था, डॉ. अब्बास मलिक जो कॉरपोरेशन के सदस्य भी थे उनकी तकरीर चल रही थी कि अचानक ज़ोर से नारा लगा, ‘साथी राजनारायण जिंदाबाद, डॉ. लोहिया अमर रहे’, जलसे में हलचल मच गई। देखा कि एक टैक्सी से राजनारायण जी, मन्जूर अहमद, मुलायम सिंह यादव आए हैं, रामसेवक जी नहीं।

    उन दिनों ना तो टेलीविजन, मोबाइल फोन की ईजाद हुई थी, अख़बार, पोस्टर और आल इण्डिया रडियो से समाचार सुनने पढ़ने को मिलते थे। दिल्ली शहर में सोशलिस्टों के जलसे में बड़ी तादाद में आसपास के लोग सुनने आ जाते थे, क्योंकि शहर का रिवाज़ था कि शाम को अपने कारोबार, नौकरी पेशे से फारिग होकर लोग,पान-खाने, बीड़ी, सिगरेट, दूध पीने के लिए दुकानों के सामने बने फट्टों पर बैठकर गप्प करते थे। इसलिए जलसों की नफरी बढ़ जाती थी और देर रात तक चलता था। हम मंच के नीचे समाजवादी साथियों के साथ बीच-बीच में नारे लगाते रहते थे मैंने एकाएक देखा कि मन्जूर अहमद और मुलायम सिंह यादव पीछे से मंच से उतर कर नीचे आ गए और मन्जूर अहमद ने पूछा कि चाय की तलब लगी है चाय कहाँ मिलेगी। मैंने कहा कि चितली कवर पर चाय मिलती है, सामने ही है। मैं, मन्जूर अहमद, मुलायम सिंह यादव वहाँ चाय पीने के लिए चले गए। चाय पीते हुए पहली बार मुलायम यादव जी से बातचीत हुई। जब मैंने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ का उपाध्यक्ष रहा हूँ, तो उन्होंने कहा कि छात्र मार्च के सिलसिले में तुम्हारा नाम सुना था।

    मैं हर रोज़, बेनागा मधुलिमए जी के घर जाता था, उनके घर पर आने वाले मुलाकातियों के लिए दरवाज़ा खोलने, चाय, काफ़ी बनाने तथा संसद की लायब्रेरी जाने चुनाव क्षेत्रों से आने वाले ख़तोका मधुजी के निर्देशानुसार जबाव भी भेजने लगा। मधुजी व्यक्तिगत रूप में बहुत सिद्धांतवादी, शुद्धतावादी, सचेत तथा संकोची थे परंतु मैंने उनके विश्वास को जीत लिया था। मधु जी के घर प्रधानमंत्री, मंत्री एम.पी., विधायक, राज्यपालों, मुख्तलिफ दलों के नेताओं, पत्रकारों, संगीतकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों के आर-जार का तांता लगा रहता था।

    इसी बीच मुलायम सिंह यादव भी जब दिल्ली आते तो मधु जी के घर ज़रूर आते थे। वहीं पर मुलायम सिंह जी से निकटता बढ़ती गई। चन्द्रशेखर जी की अध्यक्षता में समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ। चौ. ओमप्रकाश चौटाला उसके महासचिव बने तथा मुलायम सिंह जी भी पार्टी के वरिष्ठ नेता थे। मैं दिल्ली प्रदेश समाजवादी जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। अक्सर बैठकों में बहस-मुहाबसे में मुलायम सिंह जी और मेरा स्वर एक जैसा होता था। कई बार दूसरे साथियों से टकराव हो जाता था। मुलायम सिंह जी ने समाजवादी जनता पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया। दिल्ली से सांवलदास गुप्ताजी के नेतृत्व में कई साथी सम्मेलन में शिरकत करने के लिए सम्मेलन में पहुँचे। परंतु मैं नहीं गया, मधुजी ने मुझसे पूछा कि तुम क्यों नहीं गए? मैंने कहा मधुजी इस समय चन्द्रशेखर जी का राजनैतिक बुरा समय चल रहा है, मैं इनको छोड़कर नहीं जाना चाहता। सम्मेलन के बाद मुलायम सिंह जी मधु जी से दिल्ली मिलने आए तो उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम क्यों नहीं पहुँचे? मैंने गोलमोल जवाब दे दिया। कुछ दिन बाद फिर मुलायम सिंह मधुजी के यहाँ आए तो उन्होंने मधु जी से मेरी शिकायतें लहजे में कहा कि ये राजकुमार पहले हर वक़्त कहते थे कि समाजवादी पार्टी बननी चाहिए अब बन गई है तो ये दिल्ली की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं संभालते। मैंने फिर कहा कि नहीं, मैं आपसे कहाँ अलग हूँ? इस बीच एक बड़ी घटना सोशलिस्ट पार्टी में लखनऊ में हुई। हैदराबाद के हमारे पुराने सोशलिस्ट साथी हंसकुमार जायसवाल जिनको मुलायम सिंह जी ने राष्ट्रीय समिति का सदस्य बनाया हुआ था। उन्होंने मीटिंग में जातिवाद को लेकर कोई अप्रिय बात कही। उनके कहते ही कुछ लोग उनको मारने दौड़े तथा यहाँ तक कहा कि हम तो नेताजी मुलायम सिंह जी का लिहाज़ कर रहे हैं वरना इसको गोमती में फैंक देते। उसके बाद उनको पार्टी से बर्खास्त भी कर दिया गया। इस ख़बर से मुझे बड़ी तकलीफ़ हुई अब मैंने पक्का इरादा बना लिया कि मैं समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं होऊँगा। मधु जी चाहते थे कि मैं समाजवादी पार्टी में चला जाऊँ तो मैंने साफ़ तौर पर मधु जी को कह दिया कि ‘मधु जी मेरी उस पार्टी में निभेगी नहीं अगर बोलने की भी आज़ादी नहीं होगी तो क्या फायदा?’ एक यही तो आकर्षण है कि हर तरह की तकलीफ़ सहकर, दिल्ली जैसे शहर में जहाँ सोशलिस्ट पार्टी का कोई वजूद नहीं उसके बावजूद पार्टी जलसों में दरिया बिछाने, स्टेज लगाने, मुनादी करने, नेताओं के जिंदाबाद नारे लगाने से जो सुख मिलता है, वह भी न मिले तो फिर क्या फायदा? फिर मैंने मधुजी को हंसकुमार जायसवाल का क़िस्सा सुना दिया, उसके बाद उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा।

    दिल्ली का बाशिंदा होने के कारण, मुझे सोशलिस्ट नेताओं से इतर हिंदुस्तान की मुख्तलिफ पार्टियों के नेताओं को नज़दीक से जानने तथा संगत करने का मौका मिला है। मेरे पचास साल से ज़्यादा के सियासी तजुर्बे में, हिंदुस्तान के तीन सोशलिस्ट नेता, लोकबंधु राजनारायण, कपूरी ठाकुर जी और मुलायम सिंह यादव ज़मीन से जुड़े ऐसे नेता रहे है, जो चौबीस घंटे, आठों पहर, राजनैतिक, जद्दोजहद में गुजारते थे, ये अपने कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते थे। कार्यकर्ताओं के दुःख-सुख उनके अपने थे। इन नेताओं की ज़िंदगी संघर्षों, रेल-जेलों में गुजरी है। चुनाव में टिकट से लेकर पैसों के इंतजाम तथा उनके व्यक्तिगत जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी भी यही निभाते थे।

    आजकल के वातानुकूलित कमरों, कारों तथा बेशुमान धन-दौलत के बल पर सियासत करने वाले नेता अंदाज़़ा भी नहीं लगा सकते, आँधी तूफ़ान, बारिश, गर्मी, सर्दी में पार्टी के प्रोग्रामों, मोर्चा, संघर्षों कार्यकर्ताओं के दुःख-सुख के मौके पर हाजिर हो जाते थे। सौलह-अठारह घंटे धूल फांकते दिन रात जागते, गाँव देहात, कस्बों में अलख जगाते रहते थे। इन नेताओं ने, विपक्ष में रहते हुए, पुलिस की मार, जेलों की तकलीफों को भोगा है।

    इसी कारण ये ज़मीनी नेता भी बने। इन पर इनके कार्यकर्ताओं को नाज रहा है। इन नेताओं को अपने कार्यकर्ता का नाम, गाँव, शहर तक अधिकतर मुँह जबानी याद रहता था, जलसे के बाद जहाँ रात पड़ी, वही खेत, दुकान, मकान में खाट बिछाकर लेट गए। इस कारण ये जन-नेता भी बनें। अपने दम पर अपनी पार्टियों को खड़ा किया।

    सोशलिस्ट तहरीक में पहली कतार के नेताओं को छोड़कर हिंदी पट्टी में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव तथा हाल फिलहाल में कुछ हद तक नीतीश कुमार जननेता के रूप में उभरे, इनसे सोशलिस्टों को एक नयी आशा जगी थी। ख़ास तौर से मुलायम सिंह यादव से,क्योंकि मुलायम सिंह यादव ही ऐसे नेता थे। जो ताल ठोकर, ढंके की चोट पर अपने को फ्रख़ के साथ लोहिया अनुयायी घोषित करते थे और पार्टी का नाम भी समाजवादी पार्टी रखा। मुलायम सिंह में एक खांटी समाजवादी की सारी खूबियाँ सोशलिस्ट रहबर कमाण्डर अर्जुन सिंह मदौरिया तथा नत्थू सिंह से विरासत में मिली थी। यह भी कबूल करना पड़ेगा कि हिंदुस्तान के आम नागरिक में लोहिया के नाम का जितना प्रचार मुलायम सिंह के कारण हुआ, वह बेमिसाल है।

    मुलायम सिंह ने सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना के समय घोषणा की थी कि “समाजवादी पार्टी समीकरण की नहीं बल्कि संघर्ष की राजनीति करेगी” कुछ हद वो इस पर चले भी, इसी कारण उन्हें ‘धरतीपुत्र’ ‘जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है’। जैसे नारों से नवाजा गया। छोटी उम्र में एम.एल.ए. बन गये। 12 बार एमएलए ॰एमएल॰सी॰।
    1989 में पहली बार मुख्यमंत्री
    1993 में दोबारा मुख्यमंत्री
    1996 में हिंदुस्तान के रक्षामंत्री
    2003 में फिर मुख्यमंत्री। सात बार संसद सदस्य बनने का मौका मिला।

    अब सवाल उठता है कि क्या सत्ता में आने पर उन्होंने समाजवादी नीतियों, कार्यक्रमों, सपनों को परवान चढ़ाया? क्या उनका खांटीपन आखि़र तक कायम रहा, इस पर बहुत सारे प्रश्नचिह्न हैं?
    सत्ता प्राप्त करने के लिए उन्होंने क्या-क्या रास्ते अपनाए, उनकी रणनीति किस प्रकार अपने रंग बदलती रही, सन्तति और संपत्ति के मोह से वो कितना बचे, यह तो विवादास्पद पहलू है। परंतु कुछ ऐसी सगुण ठोस नजीरे हैं जो ज़ाहिर तौर पर उनको कटघरे में खड़ा करती है।

    अमर सिंह, अमिताभ बच्चन, अनिल अम्बानी, सहारा श्री, जयप्रदा जैसों की सोहबत, सैफई में फिल्मी सितारों का हुडदंग, 2005-2006 में दादरी में अनिल अम्बानी की रिलायंस के लिए भूमि अधिग्रहण। उत्तर प्रदेश की जनता ने मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बहुमत दिया, परंतु उन्होंने राजशाही अंदाज़ में अपने गैर राजनीतिक अनुभवहीन बेटे के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज पहरा दिया।

    उन्होंने न जाने किन कारणों से, दो सियासी दाग जो अपने ऊपर लगाए उसका कलंक, उनके नाम के इतिहास के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा। पहला 23 अप्रैल 2007 को इलाहाबाद की रैली में उनकी रहनुमायी में चन्द्र बाबू नायडू, एस॰ बंगरप्पा, ओम्प्रकाश चौटाला, जयललिता आदि ने तीसरा मोर्चा बनाने की पहल सार्वजनिक रूप से करी थी परंतु मुलायम सिंह ख़ामोश रहे। जनता दल के पाँच दलों के विलय का प्रयास हुआ। नयी पार्टी का अध्यक्ष चुनाव चिह्न सब उन्हीं का माना गया परंतु एकता तो दूर, बिहार में महागठबंधन का हिस्सा तो क्या, अपनी पार्टी के उम्मीदवार भी महागठबंधन को हरवाने के लिए उतार दिये।

    एक सोशलिस्ट के नाते मुझे सबसे ज़्यादा रंज उस घटना से है, जब एक ऐसा मौका आया कि हिंदुस्तान के सभी तरह के सोशलिस्टों ने, जिनमें लालू प्रसाद यादव, नीतिश कुमार, केरल के एम.पी. वीरेन्द्र कुमारम हैदराबाद से बदरी विशाल पित्ति ने एक आवाज़ में मुलायम सिंह की अध्यक्षता में सोशलिस्ट पार्टी बनाने तथा उनका चुनाव चिह्न पार्टी का नाम कबूल करने का निर्णय मुलायम सिंह के घर पर लिया था, उसी वक़्त नीतिश कुमार को बिहार में मुलायम सिंह के दबाव में लालू यादव ने मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार कर लिया था। सारी बातें तय हो गई थी। तमाम हिंदुस्तानी सोशलिस्ट कार्यकर्ता, जोश में भरे हुए थे। मुलायम सिंह जी ने उस मुहीम पर पलीता लगा दिया। कलंक की आखि़री कील 2019 के आम चुनाव में ठोकी जब उन्होंने संसद में खड़े होकर कहा कि मोदी जी सबको साथ लेकर चलते हैं, मैं चाहता हूँ कि अगली बार भी वे प्रधानमंत्री बने।

    अंत में मैं बहुत शिद्दत से महसूस करता हूँ कि मुलायम सिंह यादव की सारी राजनैतिक यात्रा का मूल्यांकन किया जाए तो उनका त्याग, संघर्ष, सोशलिस्ट, तन्जीम का परचम लहराने में बड़ा योगदान है। अपने साधारण कार्यकर्त्ताओं से जुड़ाव बेमिसाल है। सांप्रदायिकता के खि़लाफ़, चट्टान की तरह खड़ा होकर, सब कुछ दाँव पर लगाने से हिंदुस्तान की अकलियत को यह अहसास दिलाना की तुम अकेले नहीं हो, भले ही तासुब्बी, नफरती ताकतें अगर ज़हर उगल रही है तो अक्सिरयत की बड़ी तादाद उनको नेतनास्तुब करने के लिए भी खड़ी है।
    डंके की चोट, ताल ठोक समाजवादी नेता को अपने श्रद्धा सुमन व्यक्त करता हुआ कहूंगा, कि अगर वो, सत्ता की राजनीति से थोड़ा अलग हटकर काम करते तो सोशलिस्ट तहरीक में उनका निर्विवाद स्थान होता।

  • Apj abdul kalam Birth Anniversary : भारतीय सोशलिस्ट मंच ने याद किए पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम : देवेन्द्र अवाना

    Apj abdul kalam Birth Anniversary : भारतीय सोशलिस्ट मंच ने याद किए पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम : देवेन्द्र अवाना

    जिंदगी के हर मोड़ पर कलाम रहे बेमिसाल : देवेन्द्र गुर्जर

    नोएडा । सेक्टर 11 स्थित कार्यालय पर भारतीय सोशलिस्ट मंच ने भारत के मिसाइल मैन के रूप में लोकप्रिय भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम की जयंती पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.
    इस मौके पर भारतीय सोशलिस्ट मंच के प्रदेश प्रभारी श्री देवेंद्र सिंह अवाना ने कहा कि मिसाइल मैन के नाम से विख्यात डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन संघर्ष और सफलता की अनूठी मिसाल है उन्होंने विषम परिस्थितियों के बावजूद वह कर दिखाया जिसका सपना देखना भी किसी साधारण इंसान के लिए मुश्किल है डॉक्टर कलाम की सफलता उनकी गहन सोच का प्रणाम था उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियों को प्राप्त किया और देश विदेश में सर्व गर्व से ऊंचा किया
    दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग हैं जिनका पूरा जीवन ही प्रेरणादायक हो।
    इस मौके पर भारतीय सोशलिस्ट मंच के जिलाध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि भारत के महान वैज्ञानिक तथा पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम निश्चित तौर पर एक ऐसे ही व्यक्ति थे। भले ही आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कही एक-एक बात हमें एक सच्चे, अच्छे और जिम्मेदार इंसान बनने के लिए आज भी प्रेरित करती है।
    कहा जाता है कि खुद अपने हाथों से बहुत सारे थैंक्यू नोट्स लिखते थे। एक बार एक व्यक्ति ने उनकी एक पेंटिंग बनाई और उसे उन्होंने राष्ट्रपति भवन भेजा। डा. कलाम को वह पेंटिंग बेहद पसंद आई और फिर उन्होंने अपने हाथों से थैंक्यू नोट लिख कर उस व्यक्ति को धन्यवाद कहा।
    राष्ट्रीय सचिव नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि अब्दुल कलाम की सादगी और उनके आदर्श देश के महान् वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रख्यात शिक्षाविद् डा. एपीजे अब्दुल कलाम सच्चे अर्थों में ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बीतने के बाद भी पूरा जीवन देश और मानवता की सेवा में व्यतीत कर दिया।
    इस अवसर पर देवेन्द्र सिंह अवाना, देवेन्द्र गुर्जर, नरेन्द्र शर्मा,गौरव मुखिया, पप्पू राम, गुलशन चावला, सुनील,अजीत, संजय सिंह सोहनलाल जवाहरलाल आदि लोग शामिल हुए

  • Tribute to Mulayam Singh Yadav : शोकसभा कर सपा कार्यकर्ताओं ने दी नेताजी को श्रद्धांजलि 

    Tribute to Mulayam Singh Yadav : शोकसभा कर सपा कार्यकर्ताओं ने दी नेताजी को श्रद्धांजलि 

    चौधरी चरण सिंह के बाद किसानों की सुध लेने वाले नेताजी ही थे : देवेंद्र गुर्जर 

    नोएडा । सेक्टर 11 में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन पर शोक आयोजित की। शोक सभा में नेताजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर नेताजी के किसानों, मजदूरों औऱ दबे कुचले लोगों के लिये किये गए कार्यों को याद किया गया। कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया कि वे नेताजी के बताये रास्ते पर चलेंगे। जैसे नेताजी कमजोर की आवाज बने ऐसे ही वे लोग भी कमजोरों की समस्याओं के लिए संघर्ष करेंगे। इस अवसर पर कार्यकर्ताओं ने नेताजी के आत्मीयता के संबंधों को आत्मसात करने की बात कही।

    शोकसभा में  विधानसभा अध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि चौधरी चरण सिंह के बाद यदि किसी नेता ने किसानों की सुध ली तो वे नेताजी ही थे। उन्होंने नेताजी के आत्मीयता के संबंधों को याद करते हुए कहा कि जो व्यक्ति नेताजी से जुड़ गया उसने कभी नेताजी को नहीं छोड़ा। नेताजी कार्यकर्ताओं को डांटते थे तो स्नेह भी करते थे। वे कार्यकर्ताओं की समस्याओं को भी समझते थे।
    इस मौके पर वरिष्ठ नेता देवेन्द्र अवाना ने कहा छोटे कद का बड़ा जादूगर चला गया जो लोगों की परेशानी पल भर में समझ जाता था डॉक्टर लोहिया जी की नर्सरी के बड़े वृक्ष थे नेताजी
    इस मौके पर रामवीर यादव ने कहा किसानों नौजवानों के प्रेरणा स्रोत थे नेताजी का जीवन देश के लिए समर्पित था
    इस मौके पर वरिष्ठ नेता देवेंद्र अवाना वाना विधानसभा अध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर रामवीर यादव ,नरेंद्र शर्मा, चरण सिंह राजपूत ,विक्की तंवर मोहम्मद यामीन, मेहराजुद्दीन उस्मानी ,गौरव मुखिया ,पप्पू, जोगिंदर ,आदि लोग मौजूद थे

  • Lohia Jayanti : एक चिंतन है लोहिया जी का जीवन : देवेंद्र अवाना

    Lohia Jayanti : एक चिंतन है लोहिया जी का जीवन : देवेंद्र अवाना

    समाजवाद के प्रणेता डॉ. लोहिया के बताये रास्ते पर चल रहा भारतीय सोशलिस्ट मंच : देवेंद्र गुर्जर 

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने मनाई राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि  

    भारतीय सोशलिस्ट मंच ने सेक्टर 11 स्थित प्रदेश कार्यालय पर समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि मनाई। इस अवसर पर उन चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र अवाना ने कहा कि लोहिया का जीवन ही एक चिंतन हैं | वह आधुनिक भारत के ऐसे प्रतिभाशाली राजनीति-विचारक थे, जिन्होंने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन और समाजवादी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई | उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए, एशिया की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर, समाजवाद की एक नई व्याख्या और नया कार्यक्रम प्रस्तुत किया |देवेंद्र अवाना ने कहा कि लोहिया जी ने अपनी महत्वपूर्ण कृति ‘इतिहास-चक्र’ के अंतर्गत यह विचार प्रस्तुत किया कि इतिहास तो चक्र की गति से आगे बढ़ता है |

    इस व्याख्या के अंतर्गत उन्होंने चेतना की भूमिका को मान्यता देते हुए द्वंद्वात्मक पद्धति को एक नई दिशा में विकशित किया जो हेगेल और मार्क्स दोनों के व्याख्याओं से भिन्न था |उन्होंने कहा कि लोहिया जी के अनुसार, जाति और वर्ग ऐतिहासिक गतिविज्ञान की दो मुख्य शक्तियां हैं | इन दोनों के बीच लगातार चलती रहती है, और इनके टकराव से इतिहास आगे बढ़ता है | जाति रुढ़िवादी शक्ति का प्रतीक है जो जड़ता को बढ़ावा दती है, और समाज को बंधी-बंधाई लीक पर चलने को विवश करती है |गौतमबुद्धनगर के जिला अध्यक्ष देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि लोहिया जी के अनुसार, भारत के इतिहास में दासता का एक लंबा दौर जाति-प्रथा का परिणाम था, क्योंकि वह भारतीय जन-जीवन को सदियों तक भीतर से कमजोर करती रही | इस जाति-प्रथा के विरुद्ध अनथक संघर्ष करने वाले को ही सच्चा क्रांतिकारी मानना चाहिए | भारतीय सोशलिस्ट मंच लोहिया जी बताये रास्ते पर चल रहा है।
    देवेंद्र गुर्जर ने कहा कि लोहिया जी ने अपनी चर्चित कृति ‘समाजवादी नीति के विविध पक्ष’ के अंतर्गत यह तर्क दिया कि समाज की संरचना में चार पर्ते पाई जाती हैं, गाँव, मंडल, प्रांत और राष्ट्र  | यदि राज्य का संगठन इन चारों पर्तों के अनुरूप किया जाए तो वह समुदाय का सच्चा प्रतिनिधि बन जाएगा | अतः राज्य में चार स्तंभों का निर्माण करना होगा | इस व्यवस्था को लोहिया ने ‘चौखम्बा राज्य’ की संज्ञा दी है | जैसे चार खम्बे अपना पृथक-पृथक अस्तित्व रखते हुए भी एक छत को संभालते हैं, वैसे ही यह व्यवस्था केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण की परस्पर-विरोधी अवधारणाओं में सामंजस्य स्थापित करेगी |कार्यक्रम में राष्ट्रीय प्रवक्ता चरण सिंह राजपूत ने भी गरिमामय शिरकत रही। कार्यक्रम को राष्ट्रीय सचिव नरेंद्र शर्मा ने भी संबोधित किया।

  • Lohia Jayanti : जब लोहिया ने  “दिल्ली जो देहली भी कहलाती है” लिखा था लेख

    Lohia Jayanti : जब लोहिया ने “दिल्ली जो देहली भी कहलाती है” लिखा था लेख

    प्रोफेसर राजकुमार जैन
    आज डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की की पुण्यतिथि है। मैं दिल्ली शहर का बाशिंदा हूं तथा इतिहास का विद्यार्थी भी ही रहा हूं। इसलिए दिल्ली के इतिहास को जानने में मेरी  हमेशा दिलचस्पी रही है। मैंने दिल्ली के इतिहास के बारे में लिखी गई कई किताबों, लेखो, किस्सागोई को पढ़ा, सुना है।
    डॉक्टर लोहिया ने दिल्ली पर जो लेख लिखा है वह अद्भुत है। उसके कुछ अंशों को आज पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते, हुए मैं खुशी महसूस कर रहा हू।
    डॉ  लोहिया ने सितंबर 1959 में एक लेख “दिल्ली जो देहली भी कहलाती है”। के शीर्षक से लिखा था। इसमें इसके इतिहास, वैभव, विदेशियों के हमले,यहां के किलो,संस्कृति के बारे में दूसरे देशों की राजधानियों से  तुलना करते हुए लिखा।
    इतिहास पूर्व की कृष्ण कथाओं में दिल्ली के पूर्व रूप इंद्रप्रस्थ को वैभव और छल- बल की नगरी कहा गया है। जिसका निर्माण ही वर्तमान शासक को छोड़ अन्य सभी को नीचा दिखाने के लिए हुआ है,दिल्ली का इतिहास लगभग 750 वर्ष पूर्व शुरू होता है। दिल्ली ने अपने हर नए विजेता के लिए अपना स्थान बदला। संभवत वह पुरानी यादों से अपने को परेशान नहीं करना चाहती थी। आठ से कम शताब्दियों में 15 मील के घेरे में सात  दिल्ली या सात दिल्लीया’ बसी और कुछ के अनुसार आठ। तुगलकाबाद  सबसे बड़ा नगर था। हालांकि यह आज खंडहर बना है, आज भी वह बेजोड़ है। मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने सारी दुनिया में इतना विशाल किला देखा। अधिकांश दिल्लया’ विदेशियों ने बसाई जो देसी  बन गए।  मैंने एक रात भारतीय इतिहास के इस सुनसान खंडहर( तुगलकाबाद के किले) में बिताई और मै एक बार फिर ऐसा करना चाहता हूं ताकि मैं उसके रहस्य को खोज सकूं।मैंने बड़ी देर तक उस त्रिकोण का अध्ययन किया जो शाही कुतुब और अलाउद्दीन की अधबनी और अनगढ़ मीनार तथा उसके ऊपर बने काले खूबसूरत लौह स्तंभ से बनी थी। मैं अकेला था और चंद्रमा इतना छोटा था कि मेरी मदद नहीं कर पा रहा था।
    दिल्ली ने अपनी छातियों को विजेताओं के लिए खोला किंतु अक्सर उसका तत्काल उपयोग नहीं हुआ तैमूर और नादिरशाह ने उसे दागों से कुरूप बना दिया जब इसकी कोई जरूरत नहीं थी। उसने आत्मसमर्पण कर दिया था।किंतु इस बूढ़ी जादूगरनी( दिल्ली)के पास कुछ ऐसे मरहम और लेप थे की स्थाई दाग नहीं बचे। अन्य शहरों को जीत के लिए लूटा गया। दिल्ली को जीतने के बाद लूटा गया।
    राय पिथौरा का लोह स्तंभ और अशोक के दो अशोक स्तंभ, एक  कोटला में और दूसरा रिज पर, दिल्ली के नहीं है, उन्हें लुटेरे दूर से ले आए थे अपने को प्राचीनता का सम्मान देने के लिए।यहां मध्यकाल कि या आधुनिक काल की सुंदर इमारतें भी ज्यादा नहीं है’।शायद दिल्ली का यही आकर्षण है। दिल्ली याद नहीं रखती।  उसके प्रति पक्षपात न हो इसलिए यह बताना भी जरूरी है कि यही स्थिति गंगा और यमुना की वादियों के अन्य शहरों की है।महाकाल सब पर राज करता है, सबको विस्मृति में धकेल देता है, कुछ भी नहीं बचता। दिल्ली अपनी सुरुचि संपन्न  कुटेव के साथ आगे बढ़ सकती है, पिछली यादों की परेशानी के बिना। मैंने इसी बात के लिए उसकी प्रशंसा की है।यह दुष्ट बूढ़ी औरत( दिल्ली) कुमारी से भी ज्यादा खूबसूरत है।
    दिल्ली असाधारण है। वह पैरिस, वाशिंगटन, टोक्यो या दमिश्क की तरह नहीं है। उसमें इन सभी के कुछ कुछ गुण हैं; इसमें प्रत्येक राजधानी की गंदगी और खूबसूरती का बढ़ा हुआ रूप मिलेग। मैंने टोक्यो को कठोर और कुरूप शांत मुद्रा में देखा है, चेहरे पर खूबसूरत मुस्कान के साथ जब लोग बातचीत करते हैं। मैंने काहिरा भी देखा है, हालांकि उस तरह नहीं जैसे पेरिस को लेकिन
    बुसेल्स  की तरह तो देखा ही है,लेकिन जहां एक भाग में आधुनिक आवास है और शेष भागों में गंदगी, बदबू और गरीबी। ये विरोधी स्थितियां स्वास्थ्यकर नहीं है, ये चल नहीं सकती। पेरिस और लंदन अपनें शासकों के प्रति बेपरवाह हैं और रोम तथा बर्लिन भी।मैंने मास्को नहीं देखा है लेकिन मैं उस शहर का बड़ा प्रशंसक हूं। मास्को के लोग अपनी रक्षा के लिए लड़ाई के मैदान में उतरे, दबाव में आकर वे पीछे हटे,मास्को  की हर गली और घर को छोटे-छोटे किलो में बदल दिया।
    मैं देसी और विदेशी दोनों को सुझाव दूंगा कि वह 2 दिन या उससे लंबा समय सातवीं या आठवीं दिल्ली का दौरा करने में लगाएं मैंने इस अपकुशने शहर को बड़ी देर तक देखा है और कभी कभी मैं इसकी भव्यता की प्रशंसा करने लगा हू।

  • JP Jayanti : संपूर्ण क्रांति…जिसने देश में किया था बड़ा बदलाव, पीएम मोदी से लेकर बिहार के सीएम नीतीश तक भी इसी आंदोलन की देन

    JP Jayanti : संपूर्ण क्रांति…जिसने देश में किया था बड़ा बदलाव, पीएम मोदी से लेकर बिहार के सीएम नीतीश तक भी इसी आंदोलन की देन

    सुनील पांडेय 
    वैसे तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संघर्ष के अनगिनत किस्से हैं पर सम्पूर्ण क्रांति के नारे के साथ जब उन्होंने 70 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थी। इसी जेपी आंदोलन के बल ही देश में बड़ा बदलाव हुआ था। देश में समाजवादियों की सरकार बनी थी।

    बात 5 जून 1974 को शाम की है जब पटना के गांधी मैदान में करीब 5 लाख लोगों की अति उत्साही भीड़ थी। भरी जनसभा में पहली बार ‘संपूर्ण क्रांति’ के लिए आह्वान किया गया था । लोकनायक जयप्रकाश ने पहली बार ‘संपूर्ण क्रांति’ शब्द का उच्चारण किया था। क्रांति शब्द नया नहीं था, लेकिन ‘संपूर्ण क्रांति’ नया था। गांधी परंपरा में ‘समग्र क्रांति’ का इस्तेमाल होता था।

    47 साल का हुआ संपूर्ण क्रांति

    पटना के गांधी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ 5 जून 974 को ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया था। उसके बाद जो लपटें उठीं, उससे पूरे देश की सियासत में एक नए युग की शुरुआत हुई। बिहार सहित पूरा देश प्रभावित हुआ। उस दौर के नेताओं के दायरे से बिहार की राजनीति आज भी बाहर नहीं निकल पाई है। राष्‍ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार बीजेपी के सीनियर नेता सुशील कुमार मोदी तब आंदोलन में सक्रिय थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जेपी के आंदोलन की ही उपज हैं।

    जेपी ने तब कहा था ‘संपूर्ण क्रांति’ से मेरा मतलब समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। बिहार से उठे जेपी के संपूर्ण क्रांति के नारे का असर पूरे देश में देखने को मिला। वर्तमान में बिहार से लेकर देश तक की बागडोर जेपी के आंदोलनकारियों के हाथों में है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जेपी के 1974 आंदोलन के ही उपज हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में इसका जिक्र कर चुके हैं।

    सत्ता पर संपूर्ण क्रांति का छाप

    नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील मोदी, शिवानंद तिवारी, नरेंद्र सिंह सहित कई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। दरअसल 1965 से 70 के दौरान दुनिया भर में, खासकर फ्रांस में नौजवानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ था। वहीं से भारत के छात्रों को प्रेरणा मिली थी। वहीं, 1973 में गुजरात में छात्रों के आंदोलन की वजह से चिमन भाई पटेल की सरकार बदल गई थी। गुजरात के आंदोलन को भी जेपी ने समर्थन दिया था।

     

    राजनीति की नई पीढ़ी के तेजस्वी यादव और चिराग पासवान को भी उसी जमीन का सहारा लेना पड़ रहा है, जिसे जेपी ने उर्वर बनाया था। बिहार की सियासत में तीन दशक से सीधे जेपी के ध्वज वाहक ही परिवर्तन की इबारत लिख रहे हैं। सबने पटना के गांधी मैदान को अपने राजनीतिक जीवन में समाहित किया। जहां से जेपी ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था।

    पटना के गांधी मैदान में बजा था बिगुल

    गांधी मैदान पटना शहर के बीचोबीच है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसे पटना लॉन्स या बांकीपुर मैदान कहा जाता था। अंग्रेज यहां हवाखोरी के लिए आते थे। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत चंपारण सत्याग्रह से की थी। भारत का पहला सिविल नाफरमानी का संघर्ष शुरू करने के बाद बापू की विशाल जनसभा जनवरी 1918 में इसी गांधी मैदान में आयोजित हुई। तभी से इसका नाम गांधी मैदान पड़ा। इस क्रांति के स्मारक के तौर पर महात्मा गांधी की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है।

    आजादी से पहले बांकीपुर मैदान नाम से पहचाने जाने वाले गांधी मैदान में 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम लीग की एक ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में नव गठित फॉरवर्ड ब्लॉक की पहली रैली को पटना के इसी ऐतिहासिक मैदान में किया था। कांग्रेस के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1974 में गांधी मैदान में ही संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। उनकी एक आवाज पर यहां जुटी पांच लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ ने पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ बिगुल बजने का संदेश दे दिया था। पटना के इसी गांधी मैदान में हुई जेपी की वह रैली इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो गई। बिहार और देश के कई शख्सियतों ने सियासी करियर की शुरुआत इसी गांधी मैदान से की, जहां से संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजा था।

  • Tribute : नेताजी ने मुझे दिया था पीएम बनने का आशीर्वाद, मुलायम सिंह यादव को नरेंद्र मोदी ने कुछ यूं दी श्रद्धांजलि

    Tribute : नेताजी ने मुझे दिया था पीएम बनने का आशीर्वाद, मुलायम सिंह यादव को नरेंद्र मोदी ने कुछ यूं दी श्रद्धांजलि

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात दौरे पर हैं। जहां भरूच की एक रैली में उन्होंने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को श्रदंजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव का जाना देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। इसके साथ उन्होंने एक किस्सा साझा कर बताया कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था।

    पीएम मोदी ने मुलायम सिंह को दी ऐसी श्रद्धांजलि

    पीएम मोदी ने कहा कि उनका मुलायम सिंह के साथ विशेष नाता रहा है। मुलायम सिंह यादव से जुड़ा एक किस्सा सा जाकर उन्होंने बताया कि जब वह दोनों मुख्यमंत्री थे तो एक दूसरे से मिला करते थे, तब भी एक दूसरे के प्रति अपनेपन का भाव अनुभव करते थे। 2014 लोकसभा चुनाव का जिक्र कर पीएम मोदी ने बताया कि जब भाजपा ने २०१४ के लिए मुझे प्रधानमंत्री पद के लिए आशीर्वाद दिया तब मैंने विपक्ष के कई राजनेताओं से आशीर्वाद लेने का एक उपक्रम किया था।

    पीएम मोदी ने साझा किया ऐसा किस्सा

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली के दौरान बताया कि उन्होंने मुलायम सिंह यादव को आशीर्वाद के लिए फोन किया था तो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के लिए आशीर्वाद भी दिया था। पीएम ने यह भी कहा कि मुलायम सिंह जी का वह आशीर्वाद उनकी कुछ सलाह और शब्द आज भी मेरी अमानत है। पीएम मोदी ने कहा कि मुलायम सिंह यादव की विशेषता रही कि उन्होंने कभी भी उतार-चढ़ाव नहीं आने दिया। घोर राजनीतिक विरोधी बातों के बीच २०१९ में जब संसद का आखिरी सत्र चल रहा था तो मुलायम सिंह जैस वरिष्ठ नेता ने संसद में जो बात बताई वह किसी भी राजनीतिक कार्यकर्ता के जीवन में बहुत बड़ा आशीर्वाद होता है। पीएम मोदी ने आगे कहा कि संसद में खड़े होकर कहा था कि मोदी जी सब को साथ लेकर चलते हैं। इसलिए मुझे पक्का विश्वास है कि वह २०१९ में फिर से चुनकर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि मैं आदरणीय मुलायम सिंह जी को गुजरात की धरती से मां नर्मदा के तट से उनको आदर पूर्वक भावभीनी श्रद्धांजलि देता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनके परिवार उनके समर्थकों को ये दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।

    गुरुग्राम में हुआ मुलायम सिंह यादव का निधन

    उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य मुलायम सिंह यादव का निधन सोमवार यानी १० अक्टूबर को हो गया। मुलायम सिंह यादव को यूरिन इंफेक्शन के साथ सांस लेने में तकलीफ होने के चलते कुछ दिन पहले दिल्ली के गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मुलायम सिंह यादव ने पार्थिव शरीर को सैफई ले जाया जा रहा है और कल शाम ३ बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

  • Tribute : पार्टी कायर्कर्ताओं से आत्मीयता से जुड़े थे नेताजी

    Tribute : पार्टी कायर्कर्ताओं से आत्मीयता से जुड़े थे नेताजी

    चरण सिंह राजपूत
    मुलायम सिंह यादव को ऐसे ही नेताजी नहीं कहा जाता है। एक गरीब परिवार में पैदा हुए मुलायम सिंह यादव का न तो नाक नक्शा कोई खास था और न ही वह कोई बहुत अच्छे वक्ता था और न ही उनको राजनीति विरासत में मिली थी फिर भी उन्होंने राजनीतिक बुलंदी को छूआ। वह न केवल तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने बल्कि देश के रक्षामंत्री बनने का भी गौरव उन्होंने प्राप्त किया।

    ऐसे में हर किसी के दिमाग में प्रश्न उठेगा कि आखिरकार नेताजी में ऐसा क्या करिश्मा था कि उन्होंने राजनीतिक के क्षेत्र में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया। दरअसल नेताजी के कार्यकर्ताओं से आत्मीयता के संबंध थे। एक समय था जब नेताजी लैंडलाइन फोन से किसी भी कार्यकर्ता को फोन लगा थे और संगठन के बारे में न केवल पूछते थे बल्कि काम करने लिए प्रोत्साहन भी देते थे। वह नेताजी ही थे जिन्होंने साइकिल से घूम-घूम कर संगठन को मजूबत किया था। वह माद्दा नेताजी में ही था कि जिसे अपना मान लिया उसके साथ हर स्तर से रहे। उत्तर प्रदेश में जब राजा भैया पर माायावती ने पोटा लगाया था तो वह नेताजी ही थे जो खुलकर राजा भैया के साथ खड़े हो गये थे। यही वजह रही कि भले भी अखिलेश यादव से राजा भैया के कितने भी मतभेद हों पर नेताजी की हालत गंभीर होने पर राजा भैया उनकी खबर लेने के लिए गुरुगांव मेदांता अस्पताल पहुंचे थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया को अपना आदर्श और चौधरी चरण सिंह को अपना रानजीतिक गुरु मानने वाले नेताजी ने किसानों के लिए अलग हटकर काम किया।

    मैं भले ही पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं मैं भी नेताजी का सक्रिय कायर्कर्ता रहा हूं। बात उन दिनों की है जब उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था और २००३ में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी। उस समय मैं समाजवादी पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेता रहता था। २००५ में जब मैंने अपनी बहन की शादी की तो शादी के कार्ड नेताजी और अमर सिंह समेत पार्टी के लगभग सभी नेताओं को भेजे थे। वह नेताजी ही थे जिन्होंने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए भी शादी की शुभकामनाओं का पत्र मेरे गृह जनपद बिजनौर के डीएम को भेजा था। डीएम कार्यालय से एक सरकारी कर्मचारी नेताजी की वह शुभकामना पत्र लेकर मेरे गांव पहुंचा था। वह नेताजी के आत्मीयता के संबंध ही रहे हंै कि आज अखिलेश यादव का व्यवहार कार्यकर्ताओं के प्रति नेताजी जैसा न होने के बावजूद कार्यकर्ता सपा से जुड़े हैं और आज नेताजी के निधन पर गमजदा हैं।

  • Tribute : नेताजी की फ़िक्र में न सो सका था रातभर 

    Tribute : नेताजी की फ़िक्र में न सो सका था रातभर 

     

    डॉ. सुनीलम

    आज रात सो नहीं सका , बैचेनी रही, कल दिन में  मेदांता अस्पताल, गुड़गांव गया था, अखिलेश जी, रामगोपाल जी, रामगोविंद चौधरी जी , ओम प्रकाश जी  और शिवपाल जी के साथ 2 घंटे बैठा। सभी को लगता था नेताजी  ठीक हो जाएंगे । रात भर नेताजी के साथ बिताए पल बार बार याद आते रहे, तमाम दृश्य आंखों के सामने घूमते रहे । रात को नेताजी को लेकर लिखा भी। वही सांझा कर रहा हूं ।
    अभी खबर मिली कि नेताजी नहीं रहे। नेताजी को भावभीनी श्रद्धांजलि!
    नेताजी को इस जीवन में कोई भी समाजवादी नहीं भुला पाएगा।
    नेताजी ने जिन समाजवादी मूल्यों के साथ जीवन जिया अब वही हमारी धरोहर है। अलविदा धरती पुत्र मुलायम सिंह, आपका जलवा कायम था, कायम रहेगा नेताजी !सैफई जाऊंगा।
    यूं तो मेरी मुलाकात नेता जी से बहुत पुरानी है लेकिन प्रगाढ़ता तब बनी जब नेता जी से मेरी आमने- सामने की मुलाकात किसान, मजदूर, आदिवासी क्रांति दल के समाजवादी पार्टी में विलय को लेकर जनेश्वर मिश्र जी के निवास पर हुई। चार बार विस्तृत तौर पर जनेश्वर जी के निवास पर बातचीत हुई। नेता जी का कहना था कि किसी भी परिवर्तन के लिए राजनीतिक औजार की जरूरत होती है। किसान संगठन से आंदोलन तो खड़ा किया जा सकता है, कुछ मांगे मनवाई जा सकती है लेकिन बुनियादी परिवर्तन के लिए राजनीतिक पार्टी होना चाहिए।
    वे इस तरह से उदाहरण देते थे कि  महेंद्र टिकैट, नन्जूल स्वामी और शरद जोशी ने बड़े आंदोलन खड़े किए लेकिन वे राजनीतिक ताकत नहीं बना पाए, ना ही अपने प्रभाव क्षेत्र में विधायक- सांसद जीता पाए। वे कहते थे कि आंदोलन सतत रूप से चलना संभव नहीं होता। सरकार द्वारा मांगे माने जाने पर आंदोलन समाप्त हो जाता है और लंबे समय तक मांगे न माने जाने पर भी आंदोलन समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक हथियार की जरूरत होती है। मैंने जब नेता जी से पूछा था कि आप मुझे जनेश्वर जी के यहां क्यों बुलाते हैं, अपने घर पर क्यों नहीं ? तब वे कहते थे कि यदि समाजवादी चिंतक मधु लिमये जी जिंदा होते तो मैं उनसे कहकर तुम्हारे कान पकड़वाकर सब कुछ करवा सकता था, लेकिन अब वे नहीं है। मुझे मालूम है कि तुम अगर सुनोगे तो जनेश्वर जी की बात सुनोगे, इस कारण तुम्हें यहां बुलाता हूं। तीन बार बात होने के बाद चौथी बार जब बात हुई तब जनेश्वर जी ने कहा कि अब कोई बात नहीं होगी।  किसान मजदूर आदिवासी क्रांति दल का भोपाल में विलय होगा। मैं और मुलायम सिंह आएंगे  जनेश्वर जी ने नेता जी से कहा कि तुम्हारे पास सुनीलम की शिकायतें लेकर बहुत सारे लोग आएंगे। जरा फास्ट है ,बहुत नेताओं से मिलता जुलता है। तुम उन पर ध्यान मत देना, मन में गलतफहमी मत पालना, सीधे बुला कर पूछ लेना। मुझे भरोसा है कि वह तुमसे झूठ नहीं बोलेगा। जो लाइन बताओगे उसी पर काम करेगा, फिर भी यदि कभी गड़बड़ करे तो मुझे बताना, मैं कान पकड़कर सब करवा लूंगा। भोपाल में विलय की तारीख तय हो गई। तब से आज तक में समाजवादी पार्टी में हूं।
    अन्ना आंदोलन के दौरान जब मैं पार्टी का  राष्ट्रीय सचिव था, तब मैंने प्रयास किया कि समाजवादी पार्टी, अन्ना आंदोलन का समर्थन करें। नेता जी ने कहा कि समाजवादी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने में सक्षम है, आपको किसने रोका है। तब मैं अन्ना आंदोलन में सक्रिय रहा तथा मुझे अन्ना आंदोलन की कोर कमेटी में शामिल किया गया।
    जब तक मैं पार्टी का राष्ट्रीय सचिव रहा तथा मध्य प्रदेश में 8 विधायकों के विधायक दल का नेता रहा, कई बार ऐसे अवसर आए, जब मैंने नेताजी को जनेश्वर जी की बात याद दिलाई। असल में किसान संघर्ष समिति को लेकर तमाम लोग गलतफहमी  पैदा करने की कोशिश करते थे। अमर सिंह तो नेताजी के सामने जितनी बार मिले होंगे, उतनी बार कहते थे कि तुम हरा गमछा क्यों डालते हो? मैं बराबर कहता था कि यह किसानों के संघर्ष की शहीदों की निशानी है तथा मैं कौन से कपड़े पहनूं यह मेरा अपना निर्णय है, मैं आपके कपड़ों को लेकर कभी टिप्पणी नहीं करता, आपको भी मेरे कपड़ों को लेकर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।
    दूसरी गलतफहमी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के साथ तमाम कार्यक्रमों में शामिल होने को लेकर होती थी। मेरे सामने ही कहा कि वीपी सिंह लगातार आप के खिलाफ काम करते हैं।
    उन दिनों दादरी का आंदोलन चल रहा था। नेता जी मुख्यमंत्री थे । मैंने नेता जी से कहा कि अमर सिंह जी पार्टी के महामंत्री और कर्ताधर्ता है लेकिन वे सभी पार्टियों से मिलते जुलते हैं तथा मुझे पता है कि वीपी सिंह जी के साथ भी मुलाकात करते हैं। उनकी मुलाकात ठाकुर होने के चलते होती है। मैंने कहा कि पार्टी का अनुशासन सब पर एक जैसा लागू होना चाहिए। इस तरह की नोकझोंक मेरी नेताजी के सामने अमर सिंह जी के साथ चलते रहती थी।
    अमर सिंह जी ने एक बार सीधे-सीधे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुझ पर बड़ा आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि कार्यकारिणी में एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा है, जो मुझे जेल पहुंचाने का षड्यंत्र कर रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को पार्टी से निकाला जाना चाहिए। उन्होंने नेताजी को धमकाते हुए कहा कि यदि मैं जेल जाऊंगा तो आप भी नहीं बचेंगे। असल में अमर सिंह जी पूर्व विधायक किशोर समरीते  की शिकायत कर रहे थे, क्योंकि उन्होंने पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए राशि को छापा डालकर पकड़वाने की कोशिश की थी। किशोर को पार्टी से निकाल दिया गया। मैंने पर्ची लिख कर भेजी यह ठीक नहीं हुआ।
    उन्होंने कहा अमर सिंह से बात कर लो। मैंने बात की, किशोर से माफी मंगवाई ,पार्टी से बर्खास्तगी वापस हो  गई । नेताजी ने किशोर की पीठ ठोककर कहा – पार्टी के सभी नेताओं का सम्मान करना सीखो! (डॉ. सुनीलम समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव रहे हैं  )

    क्रमश 1