Category: स्वास्थ्य

  • मोटापे को निमंत्रण देती बदलती जीवनशैली

    अस्वास्थ्यकर खाने की आदतें, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, परिष्कृत शर्करा और चिकना फास्ट फूड का बढ़ता सेवन मोटापे की बढ़ती दरों का एक प्रमुख कारक है। भारतीय शहरों में फास्ट-फूड के चलन ने विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग की आबादी को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप मोटापे के स्तर में वृद्धि हुई है। प्रोटीन, डेयरी और फलों की उच्च कीमतों के कारण कई कम आय वाले परिवार चावल और गेहूँ जैसे सस्ते, उच्च कार्बोहाइड्रेट वाले आहार की ओर रुख करते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) मुख्य रूप से मुख्य अनाज की आपूर्ति करती है, जिसमें संतुलित आहार के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी होती है। डिजिटल मनोरंजन और लंबे समय तक काम करने के साथ-साथ बैठे-बैठे ऑफिस की नौकरी, शारीरिक गतिविधि के लिए बहुत कम समय देती है, जिससे वज़न बढ़ता है।

     डॉ. सत्यवान सौरभ

    भारत में मोटापे में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है, रिपोर्ट में बताया गया है कि 24% पुरुष और 25% महिलाएँ अब अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त हैं। चिंताजनक रूप से, पिछले एक दशक में 5-9 वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापा दोगुना हो गया है। शहरीकरण, आहार में बदलाव, गतिहीन आदतें और पर्यावरणीय प्रभाव जैसे कारक इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। इस मुद्दे से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अधिक वज़न और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं का प्रतिशत 20.6% से बढ़कर 24% हो गया, जबकि पुरुषों के लिए यह 18.9% से बढ़कर 22.9% हो गया है। इसके अलावा, 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापे की दर 2.1% से बढ़कर 3.4% हो गई है और बड़े बच्चों में यह रुझान और भी खराब है। वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2022 का अनुमान है कि 2030 तक 5-9 वर्ष की आयु के 10.81% बच्चे और 10-19 वर्ष की आयु के 6.23% बच्चे मोटे होंगे। द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में लगभग 40% महिलाएँ और 12% पुरुष उदर मोटापे से पीड़ित हैं। आनुवंशिक कारक उदर क्षेत्र में वसा जमा होने की प्रवृत्ति में योगदान करते हैं, जिससे चयापचय सम्बंधी विकारों का ख़तरा बढ़ जाता है। जबकि मोटापा मुख्य रूप से शहरी समस्या है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और आहार सम्बंधी आदतों के कारण यह ग्रामीण आबादी को तेजी से प्रभावित कर रहा है। वर्तमान में, भारत में 60% मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं, जो मोटापे और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण और भी गंभीर हो जाती हैं।
    अस्वास्थ्यकर खाने की आदतें, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, परिष्कृत शर्करा और चिकना फास्ट फूड का बढ़ता सेवन मोटापे की बढ़ती दरों का एक प्रमुख कारक है। भारतीय शहरों में फास्ट-फूड के चलन ने विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग की आबादी को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप मोटापे के स्तर में वृद्धि हुई है। प्रोटीन, डेयरी और फलों की उच्च कीमतों के कारण कई कम आय वाले परिवार चावल और गेहूँ जैसे सस्ते, उच्च कार्बोहाइड्रेट वाले आहार की ओर रुख करते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) मुख्य रूप से मुख्य अनाज की आपूर्ति करती है, जिसमें संतुलित आहार के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी होती है। डिजिटल मनोरंजन और लंबे समय तक काम करने के साथ-साथ बैठे-बैठे ऑफिस की नौकरी, शारीरिक गतिविधि के लिए बहुत कम समय देती है, जिससे वज़न बढ़ता है। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के एक अध्ययन के अनुसार, 50% भारतीय पर्याप्त शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं, जो मोटापे की महामारी का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। पोषण और व्यायाम के बारे में जागरूकता की कमी के कारण जीवनशैली के ग़लत विकल्प चुने जाते हैं, ख़ास तौर पर निम्न आय वर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों में। कई भारतीय परिवार गलती से अधिक वज़न को अच्छे स्वास्थ्य का संकेत मान लेते हैं, जिससे मोटापे के लिए आवश्यक हस्तक्षेप में देरी होती है। ख़ास तौर पर बच्चों के बीच प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, शर्करा युक्त पेय पदार्थों और फास्ट फूड का आक्रामक विपणन आहार विकल्पों को बहुत प्रभावित करता है। सोशल मीडिया प्रचार और सेलिब्रिटी समर्थन युवाओं में जंक फूड की खपत को और बढ़ावा देते हैं। शहरी क्षेत्रों के विस्तार के साथ-साथ डिजिटल मनोरंजन और दूर से काम करने के प्रचलन ने समग्र शारीरिक गतिविधि के स्तर को कम कर दिया है। यातायात की भीड़ और प्रदूषण बाहरी व्यायाम को रोकते हैं, जिससे गतिहीन इनडोर गतिविधियों पर अधिक निर्भरता होती है। पार्क, खेल के मैदान और पैदल चलने वालों के अनुकूल क्षेत्रों की कमी से पैदल चलना और साइकिल चलाना जैसी शारीरिक गतिविधियों में शामिल होना मुश्किल हो जाता है। खराब शहरी नियोजन और साइकिल चलाने के बुनियादी ढांचे की कमी सक्रिय आवागमन को जटिल बनाती है, जिससे मोटापे की दर बढ़ती है। इसके अतिरिक्त, प्रदूषण से सम्बंधित सूजन चयापचय सम्बंधी विकारों के जोखिम को बढ़ाती है, जिससे वज़न बढ़ सकता है। शोध से पता चला है कि भारतीय शहरों में उच्च प्रदूषण स्तर और आंत की चर्बी के संचय और मोटापे में वृद्धि के बीच सम्बंध है। फास्ट-फूड श्रृंखलाओं और प्रसंस्कृत खाद्य बाजारों के अनियंत्रित विस्तार के कारण, विशेष रूप से शहरी केंद्रों में, ताजे उत्पादों की तुलना में अस्वास्थ्यकर विकल्प अधिक सुलभ हो गए हैं।
    मोटापे को दूर करना एक तत्काल प्राथमिकता है। हमें स्वस्थ भोजन विकल्पों के लिए सब्सिडी प्रदान करते हुए शर्करा युक्त पेय पदार्थों और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर उच्च कर लागू करने पर विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मेक्सिको के चीनी कर के परिणामस्वरूप शीतल पेय की खपत में 12% की कमी आई, जो मोटापे से निपटने में इसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, स्कूलों और कार्यस्थलों में अनिवार्य शारीरिक शिक्षा और पोषण शिक्षा कार्यक्रम शुरू करना आवश्यक है। जापान की ‘शोकुइकु’ पहल ने संतुलित आहार पर ज़ोर देकर बचपन के मोटापे की दर को सफलतापूर्वक कम किया है। पैदल यात्री-अनुकूल सड़कें, साइकिल पथ और सुरक्षित सार्वजनिक पार्क बनाना दैनिक शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित कर सकता है। नीदरलैंड के शहरी साइकिल चालन दृष्टिकोण ने सक्रिय आवागमन के माध्यम से मोटापे की दर में कमी दिखाई है। पैकेज्ड सामानों पर स्पष्ट खाद्य लेबलिंग भी उपभोक्ताओं को सूचित आहार सम्बंधी निर्णय लेने में मदद करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। उच्च चीनी और उच्च वसा वाले खाद्य पदार्थों पर चिली के फ्रंट-ऑफ-पैक चेतावनी लेबल ने बच्चों के बीच जंक फूड की खपत को सफलतापूर्वक कम किया है।
    संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और कम चीनी सेवन को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रीय अभियान उपभोक्ता व्यवहार को बदलने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। फिट इंडिया मूवमेंट और ईट राइट इंडिया अभियान जैसी पहलों का उद्देश्य आबादी के बीच स्वस्थ जीवनशैली विकल्पों को बढ़ावा देना है। एक स्वस्थ राष्ट्र वास्तव में एक समृद्ध राष्ट्र होता है। मोटापे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, हमें एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को मज़बूत करे, पौष्टिक भोजन को प्रोत्साहित करे, शारीरिक शिक्षा को एकीकृत करे और सुनिश्चित करे कि शहरी नियोजन सक्रिय जीवन का समर्थन करे। पोषण अभियान और ईट राइट इंडिया जैसी पहलों को समुदाय-संचालित, प्रौद्योगिकी-सक्षम समाधानों के साथ विस्तारित करने से स्थायी परिवर्तन होगा।

  • Special on Vasectomy Fortnight : आज ही शुरुआत करें, पति-पत्नी मिलकर परिवार नियोजन की बात करें

    Special on Vasectomy Fortnight : आज ही शुरुआत करें, पति-पत्नी मिलकर परिवार नियोजन की बात करें

    पूरी तरह सुरक्षित व आसान है पुरुष नसबंदी, परिवार पूरा होने पर जरूर अपनाएं  : मुकेश कुमार शर्मा

    शारीरिक बनावट के मुताबिक़ पुरुष नसबंदी बेहद सरल और पूरी तरह सुरक्षित है। इसमें महज कुछ मिनट लगते हैं। नसबंदी के दो-तीन दिन बाद पुरुष अपने काम पर भी आराम से जा सकते हैं। इसलिए पुरुष यह न सोचें कि परिवार नियोजन या परिवार की सेहत का ख्याल रखना सिर्फ और सिर्फ महिलाओं का काम है। इसमें वह भी बराबर की जिम्मेदारी निभाएं और महिलाओं व बच्चों को स्वस्थ व खुशहाल बनाने में भागीदार बनें। समुदाय तक इस सन्देश को पहुँचाने और परिवार कल्याण कार्यक्रमों में पुरुषों की सहभागिता बढ़ाने के उद्देश्य से ही 21 नवम्बर से चार दिसम्बर तक पुरुष नसबंदी पखवारा मनाया जा रहा है। इस पखवारे की थीम है- “आज ही शुरुआत करें, पति-पत्नी मिलकर परिवार नियोजन की बात करें।“

    पुरुष नसबंदी पखवारा दो चरणों में मनाया जाएगा। पहले चरण में 21 से 27 नवम्बर तक जनजागरूकता, तैयारियों और लाभार्थियों को चिन्हित करने (मोबिलाइजेशन चरण) पर जोर रहेगा और दूसरे चरण में 28 नवम्बर से चार दिसम्बर तक सेवा प्रदायगी चरण के तहत पुरुष नसबंदी की सेवा विशेष तौर पर प्रदान की जाएगी। इसके लिए जनपद से लेकर ब्लाक स्तर तक हर जरूरी प्रबंध किए गए हैं। अभियान के तहत जन-जन तक यह सन्देश पहुँचाया जा रहा है कि नवविवाहित को पहले बच्चे की योजना शादी के कम से कम दो साल बाद ही बनानी चाहिए ताकि इस दौरान पति-पत्नी एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ सकें और बच्चे के बेहतर लालन-पालन के लिए कुछ पूँजी भी जुटा लें। इसके अलावा मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से भी दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखना चाहिए। उससे पहले दूसरे गर्भ को धारण करने योग्य महिला का शरीर नहीं बन पाता और पहले बच्चे के उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बहुत जरूरी होता है। इसके लिए सरकार ने गर्भनिरोधक साधनों की बास्केट यानि “बास्केट ऑफ़ च्वाइस” का प्रबंध किया है, जिससे अपने मनमुताबिक़ साधन चुनकर अपनी सुविधा के हिसाब से परिवार का प्लान बड़ी आसानी से कर सकते हैं। बास्केट ऑफ़ च्वाइस की मौजूदगी के बाद भी अनचाहे गर्भधारण की स्थिति किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं प्रतीत होती। इसके अलावा जल्दी-जल्दी गर्भधारण करना मातृ एवं शिशु के स्वास्थ्य के लिए भी सही नहीं होता। इस तरह गर्भ निरोधक साधनों को अपनाकर जहाँ महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है वहीँ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को भी कम किया जा सकता है। स्वास्थ्य केन्द्रों पर परिवार नियोजन किट (कंडोम बॉक्स) की भी व्यवस्था की गयी है ताकि पुरुषों को बिना झिझक वहां से कंडोम या अन्य परिवार नियोजन के साधन प्राप्त करने में आसानी हो। इसमें कंडोम के साथ प्रेगनेंसी चेकअप किट और आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों को भी शामिल किया गया है।

    पखवारे के तहत पहले चरण में अभियान के प्रभावी समन्वय के लिए सेवा प्रदाताओं, जनप्रतिनिधियों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित सभी आवश्यक हितधारकों की पहचान कर उनके साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। उच्च प्रजनन दर वाले क्षेत्रों का चिन्हांकन कर आवश्यकतानुसार स्थानीय स्तर पर ही विशेष रणनीति तैयार की जाएगी। परिवार नियोजन साधनों और पुरुष नसबंदी किट की उपलब्धता स्वास्थ्य केन्द्रों पर सुनिश्चित करायी जाएगी। इसमें दूरदराज के क्षेत्रों का खास ख्याल रखा जाएगा। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को जरूरी प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए जन प्रतिनिधियों, धार्मिक गुरुओं और प्रभावशाली लोगों को भी अभियान से जोड़ा जाएगा। प्रचार-प्रसार के लिए पोस्टर, ब्रोशर के साथ ही डिजिटल सामग्री का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया के जरिये जरूरी सन्देश भी जन-जन तक पहुँचाया जाएगा। पुरुष नसबंदी से जुड़ी भ्रामक धारणाओं और भ्रान्ति को भी प्रभावी तरीके से दूर किया जाएगा। इसमें सारथी वाहन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जो दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंचकर फिल्मों या अन्य प्रचार सामग्रियों के माध्यम से भ्रांतियों को दूर करते हुए पुरुष नसबंदी के फायदे समुदाय को बताया जाएगा। सेवा प्रदायगी पखवारा यानि 28 नवम्बर से चार दिसम्बर से पहले से चिन्हित और पंजीकृत योग्य दम्पति को स्वास्थ्य इकाई तक लाना और सेवा प्रदान करना सुनिश्चित किया जाएगा। ज्ञात हो कि पुरुष नसबंदी एक स्थायी गर्भनिरोधक विधि है। यह भ्रम पालना बिल्कुल निराधार है कि इससे किसी तरह की कमजोरी, नपुंसकता या यौन शक्ति में कमी आती है।

    (लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल- इंडिया के एक्जेक्युटिव डायरेक्टर हैं)

  • रोजाना केला खाना : एक वरदान

    रोजाना केला खाना : एक वरदान

    दीपक कुमार तिवारी 

    अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक डॉ. हृदयेश कुमार स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूक कर रहे हैं।

    डॉ. हृदयेश कुमार समाज हित में विभिन्न माध्यमों से लोगों के साथ जुड़कर स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। उनके अनुसार, नियमित रूप से केला खाना किसी वरदान से कम नहीं है। आइए जानते हैं उनके अनुसार केले के अद्भुत स्वास्थ्य लाभ:-

    केला दुनिया में सबसे अधिक खाया जाने वाला फल है। यह मिनरल्स और फाइबर से भरपूर होता है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, केला मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट और शर्करा जैसे फ्रुक्टोज, ग्लूकोज, और सुक्रोज से युक्त होता है, जो तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। इस कारण से केला खिलाड़ियों और सक्रिय जीवनशैली जीने वालों के लिए एक उत्तम आहार है।

    पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है:

    केले में भरपूर मात्रा में फाइबर, विशेष रूप से पेक्टिन, होता है जो पाचन तंत्र को मजबूत करता है और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा, यह विटामिन बी6, विटामिन सी और पोटैशियम का एक अच्छा स्रोत है।

    हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी:

    केला हृदय स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि इसमें पोटैशियम भरपूर मात्रा में होता है, जो रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में सहायक होता है। साथ ही, इसमें मौजूद फाइबर पाचन में सुधार करता है और पेट के अल्सर को कम करने में मदद करता है।

    तनाव कम करने में सहायक:

    केले में ट्रिप्टोफैन नामक एमिनो एसिड होता है, जो सेरोटोनिन में बदल जाता है। सेरोटोनिन मूड को बेहतर बनाने और तनाव को कम करने में मदद करता है। इसके साथ ही, इसमें एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी होते हैं, जो त्वचा को स्वस्थ और जवां बनाए रखते हैं।

    किडनी और हड्डियों के लिए फायदेमंद:

    केले का सेवन किडनी की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाता है और किडनी स्टोन के खतरे को कम करता है। साथ ही, इसमें उच्च फाइबर सामग्री मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करती है, जिससे वजन नियंत्रित रहता है। केला हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है, क्योंकि इसमें कैल्शियम भी होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है।

    प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है:

    विटामिन सी और बी6 से भरपूर केला प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और कई बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। मधुमेह के रोगियों के लिए भी केला लाभकारी है, क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

    डॉ. हृदयेश कुमार के अनुसार, केला न केवल स्वादिष्ट है बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है।

  • रक्तदान से अनेक बीमारियां होती हैं स्वत समाप्त : एएसपी ग्रामीण

    रक्तदान से अनेक बीमारियां होती हैं स्वत समाप्त : एएसपी ग्रामीण

    व्यापारियों ने किया रक्तदान शिविर का आयोजन

    बिजनौर । जहां एक और व्यापारी संगठन केवल व्यापारियों के हित का काम करते हैं , उनकी सुरक्षा का काम करते हैं वही जनपद में ऐसा भी संगठन व्यापारियों का है जो व्यापारियों की सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता रहता है ऐसे ही एक आयोजन रक्तदान शिविर का व्यापारी एकता परिषद नगीना इकाई के द्वारा आयोजित किया गया । जिसमें नगीना क्षेत्र के रक्त वीरों ने रक्तदान किया कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण श्रीमान राम अर्ज ने फीता काटकर एवं दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया ,कार्यक्रम का संचालन जिला अध्यक्ष अनुज शर्मा ने किया एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश उपाध्यक्ष कार्यक्रम संयोजक स्वेत कमल गोयल ने की । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण श्री राम अर्ज ने रक्त वीरों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि यह बहुत ही नेक कार्य है और इसने कार्य की वजह से बहुत सारे लोगों की जान बचती है और इसके साथ-साथ रक्तदान करने से शरीर में उत्पन्न होने वाली कई बीमारियों का पता भी चलता है समय-समय पर रक्तदान करने से शरीर में उत्पन्न होने वाली कई बीमारियां स्वयं ही खत्म हो जाती हैं आगे भी इसी प्रकार के आयोजन समाज में सामाजिक संगठन को आयोजित करते रहनी चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति को रक्त की दिक्कत ना हो । प्रदेश महामंत्री देवेश चौधरी ने कहा रक्तदान कर हम जहां एक ओर किसी की जान बचाते हैं, वहीं दूसरी ओर इससे आत्म संतुष्टि मिलती है. कई लोग रक्तदान को लेकर फैली भ्रांतियों के कारण रक्तदान करने से कतराते हैं. जबकि इससे किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती, बल्कि कई प्रकार के लाभ होते हैं. हम सभी को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए ।प्रदेश उपाध्यक्ष स्वेत कमल गोयल ने कहा हॉस्पिटल चलाने के साथ साथ सामाजिक कार्यक्रम में वह ज्यादा रुचि रखते है, उन्होंने कहा कि मेने भी कई बार रक्तदान किया है और उनकी जो नगीना ब्लड सेवा समिति के समस्त टीम भी इसी मुहिम में काम का रहे है साथ ही प्रदेश उपाध्यक्ष स्वेत कमल ,प्रदेश अध्यक्ष राहुल वर्मा के द्वारा सभी उपस्थित अतिथियों को मोमेंटो सिल्ट दिए गए एवं सभी रक्तविरो को गिफ्ट वितरण किए कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में पुलिस क्षेत्र अधिकारी नगीना राकेश वशिष्ठ थाना प्रभारी नगीना प्रवेश कुमार पाठक, डॉ एम पी सिंह ,हिन्दू युवा वाहिनी मंडल प्रभारी प्रदेश संरक्षक एमपी सिंह डीएसपी ,प्रदेश अध्यक्ष राहुल वर्मा व्यापारी प्रतिनिधि प्रदेश महामंत्री देवेश चौधरी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य गोपाल धीमान लजिला अध्यक्ष अनुज शर्मा आदि व्यापारी उपस्थित रहे

  • AIIMS से लेकर LNJP तक, दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टर्स की हड़ताल, यूपी-बंगाल में भी जारी प्रदर्शन  

    AIIMS से लेकर LNJP तक, दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टर्स की हड़ताल, यूपी-बंगाल में भी जारी प्रदर्शन  

    पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में शुक्रवार को सरकारी अस्पताल से महिला ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिलने के बाद से ही रेजिडेंट डॉक्टर्स का प्रदर्शन जारी है। एम्स में कैसे होगा काम, बनाया गया प्लान
    आरडीए द्वारा प्रस्तावित अनिश्चितकालीन हड़ताल के मद्देनजर, एम्स अस्पताल में मरीजों की देखभाल सेवाओं के लिए निम्नलिखित योजना लागू की जाएगी। आपातकालीन सेवाएं: आपातकालीन सेवाएं सामान्य रूप से कार्य करेंगी, और रेजिडेंट डॉक्टर्स अपने निर्धारित कार्यों में जुटे रहेंगे। आपातकालीन मरीजों को संबंधित विभागों के फैकल्टी द्वारा देखभाल प्रदान की जाएगी।
    ओपीडी सेवाएं : ओपीडी सेवाएं 12.08.2024 से सीमित रूप से कार्य करेंगी। केवल उन मरीजों को पंजीकृत किया जाएगा जिनके पास पहले से अपॉइंटमेंट है। नए मरीजों के लिए पंजीकरण सीमित होगा और संबंधित विभाग के फैकल्टी की उपलब्धता के आधार पर किया जाएगा।
    वार्ड सेवाएं : वार्ड सेवाएं सामान्य रूप से कार्य करेंगी. संबंधित विभागों के हेड अपने विभागों में 24 घंटे डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे. किसी भी परिस्थिति में कोई वार्ड डॉक्टरों की अनुपस्थिति में कार्य नहीं करेगा।

  • Special on World Breastfeeding Week : शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिशु को स्तनपान जरूर कराएँ

    Special on World Breastfeeding Week : शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिशु को स्तनपान जरूर कराएँ

    – जन्म के पहले घंटे में जरूर पिलाएं माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध
    – माँ के दूध से बच्चों को मिलती है बीमारियों से लड़ने की ताकत

    मुकेश कुमार शर्मा

    माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध नवजात के लिए अमृत समान होता है। इसलिए नवजात को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान जरूर कराएँ। यह संक्रामक बीमारियों से सुरक्षित बनाने के साथ ही शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है। निमोनिया, डायरिया व अन्य संक्रामक बीमारियों की जद में आने से बचाने में पूरी तरह से कारगर है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सक्षम माँ के पहले पीले गाढ़े दूध (कोलस्ट्रम) को इसीलिए बच्चे का पहला टीका भी माना जाता है। स्तनपान शिशु का मौलिक अधिकार भी है। स्तनपान के फायदे के बारे में जानना हर महिला के लिए जरूरी है। इसके प्रति जागरूकता के लिए ही हर साल अगस्त माह के पहले हफ्ते को विश्व स्तनपान सप्ताह (01-07 अगस्त) के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व स्तनपान सप्ताह की थीम- “अंतर को कम करना, सभी के लिए स्तनपान सहायता” (क्लोजिंग द गैप : ब्रेस्टफीडिंग सपोर्ट फॉर ऑल) तय की गयी है।

    शिशु को छह माह तक केवल स्तनपान कराना चाहिए। इस दौरान बाहर की कोई भी चीज नहीं देनी चाहिए, यहाँ तक कि पानी भी नहीं। छह माह तक माँ के दूध के अलावा कुछ भी देने से संक्रमित होने की पूरी संभावना रहती है। अमृत समान माँ के अनमोल दूध में सभी पौष्टिक तत्वों के साथ पानी की मात्रा भी भरपूर होती है। इसीलिए छह माह तक माँ अगर बच्चे को भरपूर स्तनपान कराती है तो ऊपर से पानी देने की कोई आवश्यकता नहीं है। बच्चे की खुशहाली और दूध का बहाव अधिक रखने के लिए जरूरी है कि माँ प्रसन्नचित रहें और तनाव व चिंता को करीब भी न आने दें। इसके अलावा बीमारी की स्थिति में भी माँ बच्चे को पूरी सावधानी के साथ स्तनपान जरूर कराएं क्योंकि यह बच्चे को बीमारी से सुरक्षित बनाता है। माँ को यह भी जानना जरूरी है कि केवल स्तनपान कर रहा शिशु 24 घंटे में छह से आठ बार पेशाब कर रहा है तो यह समझना चाहिए कि उसे भरपूर खुराक मिल रही है। इसके साथ ही स्तनपान के बाद बच्चा कम से कम दो घंटे की नींद ले रहा है और बच्चे का वजन हर माह 500 ग्राम बढ़ रहा है तो किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह प्रमाण है कि शिशु को भरपूर मात्रा में माँ का दूध मिल रहा है।

     

    शिशु के लिए स्तनपान के लाभ :

     

    माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम पोषक तत्व होता है। सर्वोच्च मानसिक विकास में सहायक होता है और संक्रमण जैसे- दस्त-निमोनिया आदि से सुरक्षित बनाता है। इसके अलावा दमा व एलर्जी से भी सुरक्षित बनाता है। शिशु को ठंडा होने से बचाता है और प्रौढ़ व वृद्ध होने पर उम्र के साथ होने वाली बीमारियों से भी सुरक्षा प्रदान करता है ।

     

    माँ के लिए स्तनपान कराने के फायदे :

     

    नवजात को शीघ्र और नियमित स्तनपान कराने से जन्म के पश्चात रक्तस्राव और एनीमिया से बचाव होता है। इसे एक कारगर गर्भनिरोधक के रूप में भी माना जाता है। मोटापा कम करने और शरीर को सुडौल बनाने में भी यह सहायक होता है। शिशु को स्तनपान कराने से स्तन और अंडाशय के कैंसर से भी बचाव होता है।

     

    बोतल से दूध पिलाने और कृत्रिम आहार के जोखिम :

     

    कृत्रिम आहार या बोतल के दूध में पोषक तत्वों की मात्रा न के बराबर होती है। इसलिए यह बच्चे के पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। कुपोषित होने के साथ ही संक्रमण का जोखिम भी बना रहता है। बौद्धिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।

     

    क्या कहते हैं आंकड़े :

     

    छह माह तक लगातार शिशु को केवल स्तनपान कराने से 11 फीसदी दस्त रोग और 15 प्रतिशत निमोनिया के मामले को कम किया जा सकता है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 (2020-21) के अनुसार उत्तर प्रदेश में जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराने की दर 23.9 प्रतिशत है। इसी तरह छह माह तक बच्चे को केवल स्तनपान कराने की दर एनएफएचएस-5 के सर्वे में 59.7 फीसद रही जबकि एनएफएचएस-4 के सर्वे में यह 41.6 फीसद थी।

    (लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं, साथ ही ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ़ इंडिया (बीपीएनआई) के आजीवन सदस्य भी हैं)

  • क्या ड्रग की लत में फंस रहा हैं आपका बच्चा? AIIMS के साथ ही ऐक्शन में आई सरकार!

    क्या ड्रग की लत में फंस रहा हैं आपका बच्चा? AIIMS के साथ ही ऐक्शन में आई सरकार!

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में कक्षा 12 के एक छात्र को इंप्रूवमेंट एग्जाम में बैठने की अनुमति दी, जिसने इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर (IGD) का सामना किया था। जस्टिस एएस चंदूरकर और राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 4 जुलाई को दिए अपने आदेश में कहा कि 19 वर्षीय छात्र को ‘न्याय के हित’ में एक और मौका मिलना चाहिए।

    अस्पताल में हुआ बीमारी का खुलासा

    लड़के ने अपनी याचिका में दावा किया कि वह हमेशा औसत से बेहतर छात्र रहा है, कक्षा 11 तक 85-93% अंक प्राप्त करता रहा था। हालांकि, मार्च 2023 में जब उसने कक्षा 12 की परीक्षा दी, तो वह अवसाद से जूझ रहा था, जिससे उसे 600 में से केवल 316 अंक ही मिले। याचिकाकर्ता ने कहा कि जुलाई 2023 से दिसंबर 2023 के बीच उसने मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र अस्पताल में चिंता और अवसाद का इलाज कराया था, जहाँ उसे IGD का पता चला। उन्होंने बताया कि इसी वजह से वह जुलाई 2023 में आयोजित पुन: परीक्षा में शामिल नहीं हो सका।

    खुद कोर्ट ने मानी असमर्थता की बात

    अपनी याचिका में, छात्र ने दावा किया कि वह हमेशा औसत से बेहतर छात्र रहा है और कक्षा 11 तक 85-93% अंक प्राप्त करता था। हालांकि, मार्च 2023 में कक्षा 12 की परीक्षा के दौरान वह अवसाद से पीड़ित था, जिससे उसे 600 में से केवल 316 अंक ही मिले। छात्र ने बताया कि जुलाई 2023 से दिसंबर 2023 के बीच उसने मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र अस्पताल में चिंता और अवसाद का इलाज कराया था, जहाँ उसे इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर (IGD) का पता चला। इस कारण वह जुलाई 2023 में पुन: परीक्षा में शामिल नहीं हो सका।

    केंद्र ने लिया स्टडी कराने का फैसला

    मार्च 2024 में होने वाली इंप्रूवमेंट परीक्षा में शामिल होने के उनके अनुरोध को कॉलेज ने अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने कहा कि मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए, याचिकाकर्ता को अपने अंकों में सुधार करने का अवसर दिया जाना चाहिए, क्योंकि मेडिकल कारणों से वह पहले ऐसा करने में असमर्थ था। कोर्ट ने माना कि मेडिकल रिपोर्ट याचिकाकर्ता की इस दलील को पुष्ट करती हैं।

    देख लीजिये ये 3 उदाहरण भी

    उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के संभल जिले के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक को 11 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था। जिला मजिस्ट्रेट ने उनके मोबाइल की गतिविधियों की ‘स्क्रबिंग’ (सेल रिकॉर्ड को डिजिटल रूप से पहचानने की प्रक्रिया) की और पाया कि उन्होंने काम के दौरान एक घंटे से अधिक समय ‘कैंडी क्रश सागा’ खेलने में बिताया था।

    इसी तरह, राजस्थान के अलवर में एक बच्चा, जिसे गंभीर झटके आने और PUBG और फ्री फायर जैसे ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान हारने के बाद अपना ‘मानसिक संतुलन’ खो बैठा था। उसे विशेष उपचार के लिए एक विशेष स्कूल में भेजा गया था।

  • डॉक्टर की लापरवाही का आरोप,महिला की मौत के बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में हंगामा मचाया

    डॉक्टर की लापरवाही का आरोप,महिला की मौत के बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में हंगामा मचाया

    रानीगंज : रानीगंज के आलूगोड़िया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में गुरूवार को एक महिला की मौत हो जाने के बाद उनके परिजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा मचाया और तोड़फोड़ की। घटना के बारे में मृत महिला नुसरत खातून के पति नौशाद खान ने बताया कि आज सुबह 11:30 के आसपास उनकी पत्नी को उल्टी होने एवं छाती में दर्द की शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया था। अस्पताल लाने के बाद उसे एक इंजेक्शन दिया गया जिसके बाद उसकी हालत और ज्यादा खराब हो गई इसके बाद यहां पर नर्स ने हीं डॉक्टर को बुलाया उसके बाद उसे एक दवा दी गई जिसके बाद वह बेहोश हो गई और अब उसकी मौत हो गई। नौशाद खान ने बताया कि अगर यहां के डॉक्टरों द्वारा उसका इलाज संभव नहीं था तो उसे दूसरी जगह रेफर कर दिया जा सकता था। इस विषय में जब हमने स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर तीर्थ गोपाल मंडल ने कहा कि आज नुसरत खातून नामक एक महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया था। उसे उल्टी हो रही थी लेकिन उसकी छाती के दर्द के बारे में बताया नहीं गया था। उसके बारे में बाद में पता चला। उन्होंने कहा कि उल्टी को रोकने के लिए एक इंजेक्शन दिया गया था और बार-बार दस्त हो रही थी उसे रोकने के लिए एक दवा खिलाई गई। उन्होंने कहा कि मरीज भर्ती भी नहीं होना चाहती थी लेकिन उसकी हालत में काफी खराब थी और परिवार के लोग मरीज की बीमारी के इतिहास के बारे में भी कुछ बताना नहीं चाह रहे थे। उन्होंने कहा कि 12:00 बजे के आसपास मरीज को लाया गया और 12:30 बजे के आसपास उसकी मौत हो गई इसमें चिकित्सकीय लापरवाही की कोई बात नहीं है। महिला की लाश को पोस्टमार्टम के लिए आसनसोल जिला अस्पताल ले जाया गया।

  • 21 जून का ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्व तथा भारत की योग परंपरा में

    21 जून का ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्व तथा भारत की योग परंपरा में

    आज 21 जून है। भारतवर्ष के लिए 21 जून की तारीख बहुत ही महत्वपूर्ण है।
    क्योंकि इस दिनांक को भारत वर्ष ने समस्त विश्व को योग से होने वाले लाभ को प्रचारित ,प्रसारित, प्रतिष्ठित एवं प्रतिस्थापित किया है।
    आज के दिन उत्तरी गोलार्ध में पृथ्वी की गति के कारण सूर्य का प्रकाश अधिकतम समय के लिए पृथ्वी पर पड़ेगा ।इसलिए यह उत्तरी गोलार्ध का सबसे बड़ा दिन होगा।
    भारतवर्ष के लिए यह सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण दिन है इसलिए भी है क्योंकि इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस के रूप में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में स्थापित किया गया है, जब सारे विश्व के170 से अधिक देशों ने भारतवर्ष के तत्संबंधी प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में पारित करके स्वीकार किया था।

     

    वैश्विक स्तर पर संपूर्ण मानवता को भारतवर्ष का यह श्रेष्ठतम एवं महत्वपूर्ण उपहार है।
    वास्तव में योग वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति के जीवन दृष्टि का शोध एवं बोध है।
    दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि योग संपूर्ण स्वास्थ्य का विज्ञान होने के साथ-साथ ईश्वर से मिलने का भी एक साधन है। योग से मन स्वस्थ होता है। शरीर स्वस्थ होता है । जीवन में आनंद की अनुभूति होती है। इसलिए योग इन सब का आधार है। क्योंकि नित्य प्रति निरंतर योग अभ्यास करने से उपरोक्त गुण स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि योग में विज्ञान और दर्शन दोनों का समन्वय है।
    वैदिक‌ वांग्मय चिंतन में मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदांत दर्शन हैं।
    यहां यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि योग किसी प्रकार का कर्मकांड नहीं है। बल्कि योग वैदिक काल में दर्शन के साथ ईश्वर मिलन के लिए तैयार किया गया था। क्योंकि आत्मा और परमात्मा दोनों चेतन है। आत्मा अल्पज्ञ है। आत्मा के पास अनंत आनंद नहीं है। आनंद का स्रोत केवल परमात्मा है। इसलिए आत्मा ईश्वर से योग करना अर्थात जुड़ना चाहती है। जिससे आत्मा को भी अनंत आनंद की प्राप्ति ईश्वर से होती रहे । उदाहरण के लिए मोक्ष में जाकर आत्मा को बल ,पराक्रम, आकर्षण ,प्रेरणा, गति, भाषण ,विवेचन ,क्रिया, उत्साह, स्मरण ,निश्चय, इच्छा ,प्रेम ,द्वेष, संयोग ,विभाग, संयोजक,विभाजक,श्रवण ,
    स्पर्शन ,दर्शन, स्वादन, गंधग्रहण, तथा ज्ञान परमात्मा की ये चौबीस शक्तियां प्राप्त होती हैं और वह उन शक्तियों से आनंद का अनुभव मोक्ष में प्राप्त करता है।
    युज धातु से योग शब्द की उत्पत्ति है ।जिसका अर्थ है, मिलना जुलना।
    जिस की परिभाषा निम्न प्रकार की गई है
    युज्यते असौ योग:
    अर्थात जो मिलाता है उसे योग कहते हैं।
    योग दर्शन के भाष्य कार महर्षि व्यास ने योग की परिभाषा करते हुए ‘योगस्समाधि’ अर्थात योग को समाधि बतलाया।
    जिसका अर्थ है कि जीवात्मा इस उपलब्ध असंप्रज्ञात समाधि के द्वारा सच्चिदानंद स्वरूप ब्रह्म का साक्षात करें, उससे मिलन करें।
    योग को परिभाषित करते हुए कर्मयोगी महाराज श्री कृष्ण ने भगवत गीता में “योग: कर्मसु कौशलम” कहकर कर्म में कुशलता और दक्षता को ही योग बताया है।
    लेकिन योग मुकुटमणि पतंजलि ऋषि ने योग की परिभाषा “योगश्चित वृत्ति निरोध :” कहा है। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों के निरोध कर देने का या रोक देने का नाम है।
    साधारण शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि,
    हमारे चित में भिन्न भिन्न प्रकार की वृत्तियां( इच्छाएं) दुष्प्रवृत्तियों (बुरी इच्छाएं) एवं सद प्रवृतियां (अच्छी इच्छाएं)उठा करती हैं उन में से दुष्प्रवृत्तियों को रोक देना चाहिए। इसी का नाम योग है। सदप्रवृत्तियों को ही चित्त से उठाना चाहिए।
    क्योंकि चित्त की दुष्प्रवृतियां (विकृतियों) से मानव के शरीर की ऊर्जा बहिर्मुखी हो जाती हैं। अर्थात बाहर की तरफ संसार में निकलती है। जबकि मानव की वृत्तियां अंतर्मुखी होनी चाहिए। यह सब योग से संभव है । व्रतियों के अंतर्मुखी होने से विकास का आधार बनता है।
    जो नियंत्रित होकर व्यक्ति को मूल चेतना से जोड़ती है। ऐसा बिना मन के नियंत्रण के संभव नहीं हो पाता है। पहले मन अर्थात चित्त को नियंत्रित करना जरूरी होता है तभी योग संभव है।
    चित्त की वृत्तियां ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण बनती है। योग के कारण ही कोई भी कर्म आसक्ति रहित होकर निष्काम भाव से किए जा सकते हैं अर्थात सत अभ्यास से उच्च मनोदशा को प्राप्त जो मनुष्य अनासक्तभाव से अपने सभी कर्म ईश्वर को समर्पित कर देता है(ईश्वर प्राणीधाण) वही योगी है ,क्योंकि ईश्वर को अपने सभी कार्यों को ,अपने आप को अर्थात अपनी आत्मा को,अर्पण करने वाला व्यक्ति दुष्कृत्य नहीं कर सकता, पाप नहीं कर सकता। उसे सांसारिक प्रपंच मे आसक्ति भी नहीं रहती। इस प्रकार ईश्वर को समर्पित कर्मयज्ञ की पावन आहुतियां बन जाती है। समत्व बुद्धि को प्राप्त मानव कर्ताभिमान से मुक्त होकर परम योगी बन जाता है।
    जब बहिर्मुखी वृत्तियों बंद होती है तो अंतर्मुखी वृत्ति स्वयमेव अपना काम करने लगती है।
    चित्त की वृत्तियां राग, द्वेष सुख और दुख आदि के कारण चित्त में उठती रहती हैं ।जिनको समग्र उन्नति के लिए दूर करना आवश्यक होता है।

     

    इस प्रकार योग आत्मा व परमात्मा का विषय है । योग मानव को स्वानुभूति कराता है।योग मानव के विचारों को एकाग्र कर भौतिक से सूक्ष्म और सूक्ष्म से अति सूक्ष्म की ओर ले जाकर उसको आत्मीय बोध कराता है ।योग का संबंध अंतः करण और बाह्य दोनों से है। योग मानव को ईह लौकिक और पारलौकिक दोनों की यात्रा कराता है। योग शरीर मन और इंद्रियों की क्रिया है। योग बाहर की क्रिया नहीं है। योग एकांत और शांत मन की क्रिया है। एकमात्र योग ही ऐसी क्रिया है जो मन को वश में करने का मार्ग बताती है। एक आत्मा को योग जन्म से ही प्राप्त है। आसन एवं प्राणायाम जो हम करते हैं वे योग नहीं है। यह तो योग की बहिर्मुखी क्रिया है। इसी बहिर्मुखी क्रिया को बहुत से लोगों ने पूरा आडंबर करके योग समझ लिया है ,जबकि इसका ईश्वर मिलन से कोई तात्पर्य नहीं है। बल्कि जो लोग योग के नाम पर व्यायाम और प्राणायाम को योग (अंग्रेजों की नकल करने वाले योगा) कहते हैं ऐसे लोग अविद्या का प्रचार प्रसार करते हैं। अविद्या का प्रचार प्रसार करने वाले लोग पाप के भागी होते हैं। यह अधर्म है ।जो वर्तमान काल में अधिकतर देखा जा रहा है।
    योग तो एक विज्ञान है। योग जीवन जीने की विधि भी है। यौगिक व्यवस्थित नियम को प्रतिपादित करता है। योग अनुशासन को प्रदर्शित करता है। योग मन को उद्देश्य पूर्ण दिशा में चलने का बोध देता रहता है ।योग एक प्रयोग भी है ,क्योंकि यही मनुष्य को प्रकृति के अनुकूल चलने के लिए प्रेरित करता है ।योग विचार गति है। भाव उत्पत्ति है। शब्द की अभिव्यक्ति है। योग में सबका अपना महत्वपूर्ण योगदान है ।यह पूरी तरह शरीर के धर्म का प्रकृति का बोध कराता है।
    क्योंकि मानव के शरीर में ही संपूर्ण ब्रह्मांड का वैभव छिपा है। जिस को पहचानने और जानने के लिए योग आवश्यक है। ब्रह्मांड की चेतना और प्रारूप को भी योग के द्वारा ही मनुष्य प्राप्त कर सकता है। आकाश और घटाकाश का भेद मनुष्य योग के द्वारा कर सकता है। ब्रह्म और काया का मनुष्य विमोचन कर पाता है।
    योग की उपयोगिता केवल आध्यात्मिक संदर्भ में ही नहीं है ।
    इसीलिए तो योग के आठ अंग मनुष्य के दैनिक जीवन में भी उपयोगी है।
    योग दर्शन ईश्वर ,जीव और प्रकृति तीनों की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करता है। इनमें से जीव है जिसके कर्तत्व में सहायता देने के लिए दर्शन की रचना हुई।
    हमारे ऋषियों के द्वारा योग की व्यवस्था की गई।
    प्राचीन भारत में विज्ञान दर्शन की अनेक उपलब्धियां हमारे आर्ष साहित्य से प्राप्त हो जाएंगी।
    यह योग ही है जो केवल विश्व को “कृण्वंतो विश्वमार्यम्” अर्थात श्रेष्ठतम संसार बनाने का, तथा “मनुर्भव”, अर्थात मनुष्य बनाने का सिद्धांत प्रदान करता है।
    यह योग ही है जो” सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” के सिद्धांत को सिखाता है। क्योंकि योग से सबके सुखी होने और निरोग होने की परिकल्पना की गई है। इसमें किसी जाति विशेष अथवा धर्म विशेष अथवा क्षेत्र विशेष के लोगों को विभाजित नहीं किया गया और ना ही किसी प्रकार का भेदभाव किया गया। बल्कि यह समष्टि के लिए है ।संपूर्ण सृष्टि के लिए है।
    यही वैदिक संस्कृति की उच्चता एवं श्रेष्ठता है कि वह भेदभाव नहीं करती। बल्कि मनुष्य मात्र के लिए, प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कार्य करती एवं शिक्षा देती है।
    यम ,नियम, आसन, प्राणायाम ,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के आठ अंग हैं। अब प्रश्न उठता है कि
    योग दर्शन में चित्त की वृत्तियों के निरोध का जो विधान किया गया है वह क्यों किया गया है?
    योग के आठ अंग।
    जब तक चित एकाग्र रहता है तब तक चित्त की वृत्तियांअपने काम में लगी रहती हैं, तथा आत्मा की बहिर्मुखी वृत्ति में ही काम करती रहती हैं। चित्त की एकाग्रता से आत्मा की बहिर्मुखी वृत्ति जागृत होती है ,लेकिन जब बहिर्मुखी वृत्ति को भी बंद कर दिया जाता है तब अंतर्मुखी वृत्ति स्वमेव जागृत होकर अपना काम करने लगती है।
    अब प्रश्न उठा कि चित्त की बहिर्मुखी वृत्तियां कौन-कौन सी हैं जिनको निरोध करना चाहिए।
    1 प्रमाण अर्थात प्रत्यक्ष अनुमान और आगम, आप्तोपदेश,
    2 विपर्यय अर्थात मिथ्याज्ञान,
    3 विकल्प __अर्थात वस्तु शून्य कल्पित नाम ,
    4 निद्रा___ अर्थात सोना,

    5 स्मृति ___अर्थात पूर्व में सुना गया और देखे गए पदार्थ के स्मरण चित् में आना।
    उपरोक्तपांच बहिर्मुखी वृत्तियोँ चित्त की होती हैं।
    अब प्रश्न पैदा होता है कि चित्त को एकाग्र कैसे किया जा सकता है?
    योग दर्शन में इसके लिए निम्न आठ अंगों का विधान किया गया है।
    1 यम।
    अपने चारों ओर शांति का वातावरण उत्पन्न करना यम है।
    अपने आप पर नियंत्रण करने का नाम यम है
    यम को भी 5 उपांगों में विभक्त कर सकते हैं। जिनके अपने जीवन में धारण करने से, अपनाने से शांति का वातावरण अपने चारों ओर उत्पन्न होता है। एक मनुष्य को सबसे पहले इसी सीढ़ी पर चलना होता है। अर्थात यह योग की प्रथम सीढ़ी है।
    1अहिंसा,2 सत्य ,3अस्तेयं,
    4 ब्रह्मचर्य ,5 अपरिग्रह ।
    अब इन पांच उपांगो को भी जान लेते हैं।
    अहिंसा _मन, वचन और कर्म तीनों से किसी भी प्राणी को कष्ट न देना अहिंसा है।
    सत्य _मन, वचन और कर्म तीनों से सत्य में प्रतिष्ठित होना सत्य है।

    अस्तेयम
    मन वचन और कर्म तीनों से चोरी न करना अस्तेयं है।

    ब्रह्मचर्य शरीर में रज -वीर्य की रक्षा करते हुए लोकोपकारक विद्याओं को ग्रहण करना । “मातृवत परदारेशु”की भावना में रहना ब्रह्मचर्य है।
    अपरिग्रह __धन के संग्रह करने, रखने,खोए जाने तीनों ही अवस्था दुखदाई हैं इसलिए धन की इच्छा न करना अपरिग्रह कहा जाता है।
    परंतु आवश्यकता के लिए धन संग्रह अवश्य करना चाहिए। क्योंकि बीमारी अथवा अन्य विपत्ति में संग्रह किया हुआ धन ही कार्य में आता है। तो इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि बिल्कुल धन नहीं होना चाहिए। प्रार्थना के आठ मंत्रों में हम ईश्वर से रयीणाम अर्थात रईस होने की प्रार्थना करते हैं।हम प्रत्येक प्रकार से संपन्न होने की प्रार्थना करते हैं।
    2 नियम
    अपने कर्म फल में दुखी नहीं होना पड़े इसलिए इन निम्नलिखित 5 बातों का भी पालन करना चाहिए जो’ नियम’ के उपांग हैं।
    शौच -बाह्य और आंतरिक शुद्धि रखना शौच है। अपने एवं दूसरे के शरीर को मल मूत्र का समझना शौच है।
    संतोष -पुरुषार्थ से जो प्राप्त है उससे अधिक की इच्छा ना रखना संतोष है।
    तप -शीतोष्ण, सुख-दुख आदि को एक जैसा समझना और नियमित जीवन व्यतीत करना तप कहलाता है।
    महर्षि पतंजलि महाराज से जब एक शिष्य ने प्रश्न किया कि आपने जितने अभी तक ईश्वर को प्राप्त करने के साधन बताए हैं क्या वही सब पर्याप्त है, या कोई और साधन शेष है ।तब उन्होंने ईश्वर प्रणिधान सबसे अंतिम उपाय के रूप में बताया है।
    ईश्वरप्राणिधान या ईश्वर परायणता ___ओंकार का श्रद्धापूर्वक जप करना और वेद उपनिषद आदि उद्देश्य साधक ग्रंथों का निरंतर अध्ययन करना स्वाध्याय है। उपरोक्त के अतिरिक्त
    ईश्वर का प्रेम ह्रदय में रखना, उसको ही अत्यंत प्रिय एवं परम गुरु ,राजा, आचार्य एवं न्यायाधीश समझना, अपने समस्त कर्मों का उसके अर्पण करना, सदैव उसी के ध्यान में रहना ही ईश्वर प्राणि धान अर्थात ईश्वर परायणता है।
    3 आसन

    सुख पूर्वक बैठने को आसन कहते हैं।
    4—- प्राणायाम।
    प्रकाश अर्थात ज्ञान पर तम अर्थात अंधकार के आवरण को दूर करने की विधि को प्राणायाम कहते हैं।
    एक नाक से सांस लेकर दूसरी नाक से निकाल देने का नाम प्राणायाम नहीं है। जो ऐसा कहते हैं अथवा सिखाते हैं वह अविद्या का प्रचार प्रसार करते हैं। आज 21 जून के दिन मात्र इतना ही लोग करेंगे अर्थात योग के वास्तविक अर्थ को जीवन में नहीं उतार पाएंगे, जबकि सही अर्थ को समझना वउतारना चाहिए।

    5 प्रत्याहार ।

    इंद्रियों का अपने विषय से पृथक हो जाना, रूप, रस, गंध ,शब्द और स्पर्श से पृथक हो जाना प्रत्याहार कहा जाता है। प्रत्याहार आत्मीय शक्ति को एकत्रीकरण करना है ।
    प्रत्याहार किसी वस्तु को पीछे हटने के लिए भी कहते हैं। जिसमें इंद्रियां अपने विषयों से पीछे हट जाती हैं ।इसमें चित्त के मौलिक पावन स्वरूप का योगी को अनुकरण सा होने लगता है।

    6 धारणा ।

    चित्त को किसी एक केंद्र पर केंद्रित करना जैसे नासिका के अग्रभाग पर या नाभि चक्र पर ध्यान केंद्रित करना जिसमें मन एकाग्र हो जाता है, उसको धारणा कहते हैं।

    7 __ध्यान ।

     

    उस धारणा में प्रत्यय अर्थात ज्ञान का एक सा बना रहना ध्यान है ।जिस लक्ष्य पर चित्त एकाग्र हुआ उस एकाग्रता का ज्ञान निरंतर बने रहना ध्यान ,निर्विषय मन अर्थात महामुनि कपिल के अनुसार मन निर्विषय( जिस समय में मन में कोई अन्य विषय न उठे)होने का नाम ध्यान है।

    8 समाधि ।

    ध्यान की अवस्था में ध्याता को ध्यान और ध्येय का ज्ञान रहता है अर्थात जब वह ईश्वर के और अपने विषय में यह जानता होता है कि वह ईश्वर की भक्ति में है।परंतु जब ध्याता का घ्यान अर्थात् नाता केवल ध्येय से ही रह जाए (ध्याता, ध्येय, ध्यान में धाता का अर्थ है ध्यान करने वाला, साधना करने वाला साधक, ध्येय का अर्थ है जिसको ध्याया जाता है अर्थात साध्य या जिसको साधा जाता है वह परमात्मा, तथा ध्यान का अभिप्राय है साधना) जब साधक का संबंध केवल साध्य से ही रह जाए और अपने रूप से शून्य सा हो जाए तब समाधि की अवस्था होती है।
    समाधि भी दो प्रकार की होती हैं ।
    प्रथम _ सबीज समाधि या संप्रज्ञात समाधि ।
    द्वितीय असंप्रज्ञात समाधि या निर्बीज समाधि।
    सबीज समाधि में चित्त एकाग्र तो हो जाता है परंतु चित् की वृत्ति निरुद्ध नहीं होती । अर्थात सबीज समाधि में चित्त की वृत्तियों पर पूर्णतया पर रोक नहीं लगाई जाती।उसमें बीज रूप वृत्तियों का बना रहता है। इसका संधि विच्छेद करने के पश्चात अर्थ निम्न प्रकार आता है। इसे समझने से पहले ज्ञात शब्द को जान लें।
    ज्ञात अर्थात जाना पहचाना हुआ।
    इससे पहले संप्र शब्द का अर्थ है संपूर्ण रूप से।
    संप्रज्ञात अर्थात जिस स्थिति में संपूर्ण रूप से आत्मा को अपने चित्त की वृत्तियों का ज्ञानभाव रहता है

    जबकि असंप्रज्ञात समाधि में चित्त की वृत्तियों का संपूर्ण निरोध हो जाता है । चित्त की वृत्तियां की जानकारी योगी को नहीं रहती। इसी समाधि की बुद्धि (प्रज्ञा )को ऋतंभरा रित का अर्थ होता है सत्य और भरा का अर्थ होता है ‘से पूर्ण ‘इस प्रकार ऋतंभरा का अर्थ हुआ जो सत्य से पूर्ण है या भरा हुआ है) कहते हैं। ऋतंभरा की अवस्था में विषय _वासना के ज्ञान और ध्यान से ध्याता शून्य रहता है । अर्थात विषय- वासना का और अपने खुद का ध्यान नहीं रहता।तत्पश्चात ऋतंभरा को भी रोक देने पर सब रूप असंप्रज्ञात समाधि की सिद्धि होती है।

    धारणा ,ध्यान और समाधि तीनों का जब एकीकरण होता है, तब संयम की स्थिति आती है।
    संयम के सिद्ध होने से प्रज्ञा का आलोक अर्थात प्रकाश हो जाता है। ऋतंभरा प्रज्ञा से जो संस्कार उत्पन्न होते हैं वह उक्त प्रकार की दृष्टि से निरोधज होते हैं। निरोधज संस्कारों के बार-बार उत्पन्न होने से उनका निरोध करने से जब निरोधज संस्कार भी नष्ट हो जाता है, तब बीज रहित (अर्थात मन के निर्विषय होने या मन में जब किसी भी प्रकार के भाव रूपी बीज का अंकुरण न हो) हो जाने पर निर्बिज समाधि अर्थात असंप्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती है।
    यह है संपूर्ण और समग्र आत्मिक सामाजिक ,राष्ट्र की ,सृष्टि की उन्नति की हमारे पूर्वजों की परिकल्पना एवं प्रक्रिया।
    इसलिए प्राणायाम, आसन को योग न मानकर उससे आगे समाधि में पहुंचने की हमारी कोशिश होनी चाहिए।
    देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट

  • न्यू इंडिया’ को ‘स्वस्थ भारत’ में बदलेंगे आयुर्वेद और योग

    न्यू इंडिया’ को ‘स्वस्थ भारत’ में बदलेंगे आयुर्वेद और योग

    आयुर्वेद और योग ने प्राचीन भारतीय विज्ञान के रूप में 5000 साल पहले अपनी यात्रा शुरू की थी। जबकि सिद्ध दक्षिण भारत में लोकप्रिय दवाओं की प्राचीन प्रणालियों में से एक है, यूनानी, चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीस में हुई है। आयुष अपने नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा देखभाल प्रदान करके ‘न्यू इंडिया’ के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘न्यू इंडिया’ को ‘स्वस्थ भारत’ भी होना चाहिए, जहां उसकी अपनी पारंपरिक प्रणालियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन जामनगर, गुजरात दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए पहला और एकमात्र वैश्विक चौकी केंद्र होगा।

    प्रियंका सौरभ

    आयुष उन चिकित्सा प्रणालियों का संक्षिप्त रूप है जिनका भारत में अभ्यास किया जा रहा है जैसे आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी। स्वास्थ्य, रोग और उपचार पर इन सभी प्रणालियों का मूल दृष्टिकोण समग्र है। आयुष, स्वास्थ्य सेवाओं की बहुलवादी और एकीकृत योजना का प्रतिनिधित्व करता है। आयुष अपने नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा देखभाल प्रदान करके ‘न्यू इंडिया’ के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘न्यू इंडिया’ को ‘स्वस्थ भारत’ भी होना चाहिए, जहां उसकी अपनी पारंपरिक प्रणालियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन जामनगर, गुजरात दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए पहला और एकमात्र वैश्विक चौकी केंद्र होगा।

    आयुर्वेद और योग ने प्राचीन भारतीय विज्ञान के रूप में 5000 साल पहले अपनी यात्रा शुरू की थी। जबकि सिद्ध दक्षिण भारत में लोकप्रिय दवाओं की प्राचीन प्रणालियों में से एक है, यूनानी, चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीस में हुई है। होम्योपैथी का विकास 1800 के दशक की शुरुआत में जर्मन चिकित्सक सैमुअल हैनिमैन ने किया था। इन प्रणालियों ने वर्षों से लोगों के निरंतर संरक्षण का आनंद लिया है। आयुर्वेद सहित भारत की अधिकांश पारंपरिक प्रणालियों की जड़ें लोक चिकित्सा में हैं। आयुर्वेद पर कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ जैसे कि सारंगधारा संहिता और वांगा सेन द्वारा चिकित्सा संग्रह, यागरात बाजार और भवमिस्र के भावप्रकाश को संकलित किया गया था।

    योग अनिवार्य रूप से आध्यात्मिक है और यह स्वस्थ जीवन जीने की एक कला और विज्ञान है जो शरीर और मन के बीच सामंजस्य लाने पर केंद्रित है। चिकित्सा की यूनानी प्रणाली की उत्पत्ति ग्रीस में हुई, फिर मध्यकालीन भारत में मिस्र, अरब, ईरान, चीन, सीरिया और भारत जैसी प्राचीन सभ्यताओं के पारंपरिक ज्ञान का विलय हुआ। यह स्वाभाविक रूप से होने वाली ज्यादातर हर्बल दवाओं और जानवरों, समुद्री और खनिज मूल की कुछ दवाओं के उपयोग पर जोर देती है। दारा शिकोह को समर्पित नूरुद्दीन मुहम्मद की मुसलजती-दर्शीकोही, ग्रीक चिकित्सा से संबंधित है और अंत में, लगभग संपूर्ण आयुर्वेदिक सामग्री औषधि है। सिद्धा भारत में चिकित्सा की प्राचीन प्रणालियों में से एक है जिसका द्रविड़ संस्कृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। सिद्ध शब्द का अर्थ है उपलब्धियाँ और सिद्ध वे हैं जिन्होंने चिकित्सा में पूर्णता प्राप्त की है। कहा जाता है कि 18 सिद्धारों ने योगदान दिया है। सोवा रिग्पा या आमची हिमालयी क्षेत्र में लोकप्रिय चिकित्सा की सबसे पुरानी जीवित प्रणालियों में से एक है। इसे 2009 में जोड़ा गया था। यह हिमालयी क्षेत्रों में विशेष रूप से लेह और लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, दार्जिलिंग आदि में प्रचलित है। यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया आदि जैसी पुरानी बीमारियों के प्रबंधन में प्रभावी है।

    समकालीन समय में, भारतीय चिकित्सा पद्धति विभाग नामक एक विभाग मार्च 1995 में बनाया गया था और नवंबर 2003 में आयुष का नाम बदलकर इन प्रणालियों के विकास पर अधिक ध्यान देने पर ध्यान दिया गया था। 2014 में, भारत की केंद्र सरकार के तहत एक अलग मंत्रालय बनाया गया था, जिसके प्रमुख राज्य मंत्री होते हैं। आयुष मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कार्यालय द्वारा गैर-मूल आविष्कारों पर पेटेंट के अनुदान को रोकने के लिए सीएसआईआर के सहयोग से टीकेडीएल (पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी) का शुभारंभ किया। राष्ट्रीय आयुष मिशन में पीएचसी, सीएचसी और जिला अस्पतालों में आयुष का सह-स्थान, अस्पतालों का उन्नयन और 50 बिस्तर वाले एकीकृत आयुष अस्पतालों की स्थापना शामिल है।

    कुपोषित होने की तुलना में गैर-संचारी रोग बड़ी समस्या बन सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा के विपरीत, आयुष केवल बीमारी के इलाज पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अधिक समग्र दृष्टिकोण का पालन करता है। इस तरह का दृष्टिकोण गैर-संचारी रोगों के मामले में अधिक महत्व रखता है, जो एक बार पुरानी स्थिति में विकसित हो जाने के बाद इलाज करना मुश्किल होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणालियों, विशेष रूप से योग के स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में अधिक से अधिक वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हो रहे हैं।

    यह संदेह से परे साबित हो चुका है कि वैकल्पिक दवाओं के साथ प्री-डायबिटीज और प्री-हाइपरटेंसिव स्थितियों में समय पर हस्तक्षेप से बीमारियों का प्रतिगमन और स्वास्थ्य की बहाली हो सकती है। योग न केवल रोकथाम और नियंत्रण में बल्कि रोगों के उपचार में भी प्रभावी है। आज पूरी दुनिया स्वस्थ जीवनशैली के लिए योग को अपना रही है। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर, आयुष मंत्रालय ने श्वसन स्वास्थ्य के विशेष संदर्भ में निवारक स्वास्थ्य उपायों और प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कुछ स्व-देखभाल दिशानिर्देशों की सिफारिश की। ये आयुर्वेदिक साहित्य और वैज्ञानिक प्रकाशनों द्वारा समर्थित हैं। आयुष मंत्रालय की पहल के बाद कई राज्य सरकारों ने भी प्रतिरक्षा और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पारंपरिक चिकित्सा समाधानों पर स्वास्थ्य सलाह का पालन किया, जो विशेष रूप से कोव की पृष्ठभूमि के खिलाफ प्रासंगिक हैं।

    आयुष दवाओं और पद्धतियों की सुरक्षा और प्रभावकारिता के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाना महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से आयुष क्षेत्र में क्षमता निर्माण और सक्षम पेशेवरों के महत्वपूर्ण समूह को विकसित करने की दिशा में काम करना, पारंपरिक और आधुनिक प्रणालियों का सच्चा एकीकरण समय की आवश्यकता है। इसके लिए समान शर्तों पर आधुनिक और पारंपरिक प्रणालियों के बीच सार्थक क्रॉस-लर्निंग और सहयोग की सुविधा के लिए एक ठोस रणनीति की आवश्यकता होगी। एक प्रभावी एकीकरण की पूर्वापेक्षाओं के संबंध में पर्याप्त आधारभूत कार्य सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

    एक मजबूत पारंपरिक चिकित्सा साक्ष्य कोष का निर्माण, आयुष प्रथाओं और योग्यताओं का मानकीकरण और विनियमन, एक एकीकृत ढांचे में प्रत्येक प्रणाली की सापेक्ष शक्तियों, कमजोरियों और भूमिका को चित्रित करना, प्रणालियों के बीच दार्शनिक और वैचारिक विचलन पर बातचीत करना और तदनुसार, देश में पहले से ही चल रहे सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान को देखते हुए और इस कारण में योगदान करने के लिए आयुष की विशाल क्षमता को ध्यान में रखते हुए निर्बाध एकीकरण के लिए एक मध्यम और दीर्घकालिक योजना तेजी से विकसित की जानी चाहिए।

    -प्रियंका सौरभ
    रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
    कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,