Category: मनोरंजन

  • Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!

    Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!

    Kishore Kumar: भारतीय सिनेमा के हरफन मौला कलाकार

    हाथ में चाय, शाम का समय और ठंडी-ठंडी हवा चल रही हो और पीछे कहीं से हलकी आवाज में आपके कानों में , “ये शाम मस्तानी” की धुन सुनाई दे रही हो! ये सब कुछ कितना Perfect लगेगा ना?

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    जैसे ये गाना इस Situation को Perfectly Compliment करता है, वैसे ही  भारतीय सिनेमा को Perfectly Compliment करते थे Kishore Kumar । Kishore Kumar , भारतीय सिनेमा के एक ऐसे हरफनमौला कलाकार जिनके जैसा ना कोई कलाकार आया है ना कोई आ सकता है। अपने दौर के सबसे मशहूर और उम्दा शख्सियत का आज जन्मदिन है। इस मौके पर हम बताएंगे आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।

    ऐसे बने संगीतकार

    4 अगस्त, 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्म हुआ आभास कुमार का यानी किशोर कुमार का। जी हाँ! Kishore Kumar जिन्हें सब प्यार से किशोर दा बुलाते थे, उनका असली नाम आभास कुमार था। भाई-बहनों में सबसे छोटे किशोर का रुझान बचपन से ही संगीत में था। वो महान अभिनेता और गायक केएल सहगल से बहुत प्रभावित थे और उनकी तरह ही गायक बनना चाहते थे। उनसे मिलने का सपना लिए वह 18 वर्ष की आयु में मुंबई जा पहुंचे मगर उनका सपना अधूरा ही रह गया।

    Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!
    Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!

    उस समय बड़े भाई अशोक कुमार ने भारतीय सिनेमा में बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना ली थी। वो चाहते थे कि किशोर भी अभिनेता के रुप में ही अपनी पहचान बनाए, मगर किशोर अदाकारी नहीं गायकी करना चाहते थे। जबकि उन्होंने संगीत की कोई भी प्रारंभिक शिक्षा नहीं ली थी। बिना किसी ट्रेनिंग के उन्होंने अपना सपना पूरा कर संगीत की दुनिया में एक ऐसा मुकाम हासिल किया, कि वो खुद ही कई लोगों का सपना बन गए।

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    अभिनय में भी थे उम्दा

    Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!

    किशोर दा ने ना केवल संगीत जगत में अपनी जगह बनाई बल्कि बतौर अभिनेता भी उन्होंने सबका दिल जीता हैं। उन्होंने 1946 में फिल्म “शिकारी” से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत, जिसके बाद 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फिल्म “आन्दोलन” में काम किया मगर फिल्में फ्लॉप हो गई। 1954 में बिलम रॉय की “नौकरी” में एक बेरोजगार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर दुनियाभर को अपनी अदाकारी से प्रभावित कर दिया। जिसके बाद उन्होंने लगातार “ बाप रे बाप”, “नई दिल्ली”, “आशा”, “मि.मेरी” और  “चलती का नाम गाड़ी” जैसी कई फिल्मों में काम किया और सफलता हासिल की।

    मधुबाला और किशोर!

    जहां किशोर दा को इतनी सफलता मिल रही थी, वही उनका दिल आया फिल्म अभिनेत्री मधुबाला पर। किशोर दा की पहली शादी रूमा देवी के से हुई थी, लेकिन जल्दी ही शादी टूट गई और इस के बाद उन्होंने मधुबाला के साथ विवाह किया। उस दौर में दिलीप कुमार जैसे सफल और शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचे अभिनेता जहाँ मधुबाला जैसी रूप सुंदरी का दिल नहीं जीत पाए वही मधुबाला किशोर कुमार की दूसरी पत्नी बनी।

    Kishore Kumar : The one who Perfectly Complimented Bollywood!

    1961 में बनी फ़िल्म “झुमरू” में दोनों एक साथ आए। यह फिल्म किशोर दा ने ही बनाई थी और उन्होंने खुद ही इसका निर्देशन किया था। इस के बाद दोनों ने 1962 में बनी फिल्म “हाफ टिकट” में एक साथ काम किया जिस में किशोर दा ने यादगार कॉमेडी कर अपनी एक अलग छवि पेश की। 1969 में मधुबाला की मृत्यु के बाद 1976 में उन्होंने योगिता बाली से शादी की मगर इन दोनों का यह साथ मात्र कुछ महीनों का ही रहा।

    सबके चहेते किशोर दा

    किशोर दा हमेशा से सबके चहेते थे। कॉलेज के दिनों में वह गाना गा कर खुद भी खाना खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे। होता कुछ यूं था कि किशोर दा की आदत थी कॉलेज के कैनटीन से उधार लेकर खुद भी खाना और अपने दोस्तो को भी खिलाना। वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी।

    किशोर दा पर जब कैंटीन वाले के पाँच रुपए का उधार हो गया और कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पाँच रुपए चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पाँच रुपया बारह आना का बहुत ही भली-भांति प्रयोग किया।

    किशोर दा से जुड़े Interesting Facts!

    किशोर दा की लाइफ स्टोरी की बात करें तो उनकी कहानी अपने आप में ही किसी रोचक हिन्दी फिल्म से कम नहीं थी। लव, ट्रेजडी, ड्रामा, एक्शन हर चीज उनकी जिंदगी से जुड़ी रही। जैसे कि बात करें किशोर दा के एक सपने की। वह अपने शहर खंडवा में वेनिस जैसा एक घर बनवाना चाहते थे। उन्होंने मजदूरों को अपने बंगले के चारों तरफ एक नहर खोदने को कहा, यह खुदाई महीनों तक चली, लेकिन बीच में एक कंकाल का डरावना हाथ मिलने से मजदूरों ने आगे खुदाई करने से मना कर दिया। और बस फिर किशोर दा का ये सपना सपना ही रह गया।

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    किशोर दा के सेट पर मजाकिया अंदाज से लोगों को हैरान- परेशान करने की कहानियाँ हमेशा से लोकप्रिय रही है। वो अपने हंसमुख और मजाकिया अंदाज के लिए जाने जाते थे। ऐसा ही एक किस्सा था जिसनें डायरेक्टर को हैरान कर दिया था। हुआ कुछ यूँ कि किशोर दा हमेशा अपने फिल्मों के लिए अडवांस पेयमेंट लिया करते थे, मगर एक फिल्म के लिए उन्हें डायरेक्टर ने आधी पेयमेंट की। अगले दिन सेट पर किशोर दा केवल आधे चेहरे पर मेकअप लगाकर पहुंच गए। जब डायरेक्टर ने इसकी वजह पुछी तो उन्होंने कहा कि, ‘आधा पैसा, आधा मेकअप।’

    उनके जिंदगी जीने का तरीका काफी अलग और दिलचस्प था। इसकी झलक हमें साफतौर पर उनकी निजी जिंदगी में दिख सकती है। बताया जाता है कि उन्होंने अपने घर के बाहर एक बोर्ड लगवाया था जिसपर लिखा था ‘BEWARE OF KISHORE’। इससे जुड़ा एक काफी चर्चित किस्सा है। एक बार निर्माता-निर्देशक एचएस रवैल उनके घर उनसे मिलने आए और उनसे हाथ मिलाने की कोशिश की तो किशोर दा उन्हें अपने मुंह से काट लिया और कहा कि आपको घर में आने से पहले बाहर बोर्ड पढ़ना चाहिए था।

    THE LEGENDARY KISHORE KUMAR खुद में ही एक पूरी कहानी थे। उनके जिंदादिली और हरफन मौला अंदाज के सभी कायल थे। अगर उनके बारे में जानने की इच्छा हुई तो उनके किस्से कम पड़ जाएंगे मगर आपका दिल नहीं भरेगा।

  • Box Office : ‘बॉलीवुड’ का मुश्किल दौर

    Box Office : ‘बॉलीवुड’ का मुश्किल दौर

    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    Box Office: सालाना सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाली सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है बॉलीवुड। कोरोना महामारी की वजह से 2 साल बाद भी बॉलीवुड इंडस्ट्री को मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ रहा है।

    पहले की तरह अब सिनेमा हॉल खचाखच नहीं भरे रहते, फिल्म देखने वाले इस बात को लेकर अब ज्यादा सचेत हो गए कि वे अपना पैसा कहां खर्च कर रहे हैं। इससे फ़िल्म उद्योग को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। महामारी ने बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है। Box Office के आंकड़ों के अनुसार इस साल के शुरुआती छह महीनों में रिलीज़ होने वाली 20 उल्लेखनीय हिंदी फिल्मों में से 15 फ़िल्में, Box Office पर औंधे मुंह गिरी हैं। इनमें अक्षेय कुमार, कंगना रनौत, रणवीर सिंह जैसे बड़े Superstars की फिल्में भी मौजूद है।

     

    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    इन फ़िल्मों को क़रीब सात सौ से नौ सौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। फ़िल्मों के सैटेलाइट और डिजिटल राइट्स को बेचकर मुश्किल से भरपाई की गई है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो इस साल सिनेमाहॉल का कुल राजस्व 450 मिलियन डॉलर से अधिक नहीं होगा। 2019 में Box Office पर बनी लगभग 550 मिलियन डॉलर की हिंदी फिल्मों से ये 100 मिलियन डॉलर कम है।

    Box Office पर चलने वाली मिड-बजट फिल्में क्यों नही कर पा रही अच्छा व्यवसाय?

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     सवाल अब ये है कि कोविड के पहले Box Office पर चलने वाली मिड-बजट और गंभीर विषय वाली फ़िल्में भी कोविड के बाद अच्छा व्यवसाय क्यों नहीं कर रही हैं?

    एक वक्त था जब कंटेंट भले ही कमज़ोर हो लेकिन कलाकारों की फैन फॉलोइंग उन्हें सिनेमाहॉल तक खींच लाती थी और फिल्मों की ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी। लेकिन वो कहते है न कि वक्त के साथ सब बदल जाता है। वैसे ही अब लोगों की प्राथमिकता बदल गई है, अब वे कंटेंट पर ज्यादा ध्यान देते है।

    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    दर्शक अब फ़िल्मों में अच्छा कंटेंट और बड़े कलाकार दोनों देखना चाहते हैं। निर्माताओं में दुविधा कि स्थिति है। लगातार Box Office पर पिट रही फिल्मों की वजह से यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि दर्शक कैसी फिल्में देखना चाहते है। Streaming Platforms की पहुंच और सिनेमाघरों से लोगों की बढ़ती दूरी के बीच Box Office पर एक फिल्म को सफल बनाना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है।

      कोरोना का Box Office पर बुरा असर

    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    फ़िल्मों की बढ़ती रिलीज़ डेट, कैंसलेशन और कोविड प्रोटोकॉल के कारण फ़िल्मों का Average  बजट 10 से 15 फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं  टिकट अधिक महंगे हो गए हैं, थिएटर की क्षमता कम हो गई है और कई स्क्रीन महामारी के दौरान स्थाई रूप से बंद हो गए हैं। लोगों में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की बढ़ती लोकप्रियता और दर्शकों के बदले स्वभाव ने बेशक व्यवसाय पर प्रभाव डाला है। यही वजह है कि बढ़ी- बढ़ी फिल्में भी Box Office पर औंधे मुंह गिर रही है।

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    South की फिल्मों ने संभाला Box Office

    दक्षिण भारत की फिल्में अपने क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करती हैं। आजकल हिंदी सिनेमा में इन फिल्मों का Dubbed Version भी काफी लोकप्रियता बटोर रहा है। इन फ़िल्मों ने यहां काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है और Box Office कलेक्शन के मामले में बॉलीवुड फिल्मों के समकक्ष खड़ी नज़र आती हैं। जैसे दक्षिण की एक्शन फ़िल्में ‘RRR’, ‘केजीएफचैप्टर-2’ और ‘पुष्पा’।

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    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    जब आप घर होते हैं तो एक वक्त के बाद हिंदी फ़िल्मों से आपका मन ऊब जाता है। महामारी में घर बैठे लोगों ने स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर कई गैर-हिंदी, दक्षिण भारतीय फिल्मों को Search किया। लेकिन इस Trend को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता है क्योंकि क्षेत्रीय फ़िल्में अपने पारंपरिक बाजार के बाहर Comparatively कम ही प्रभावी होती है।

     क्या है आगे की तैयारी?

    बॉलीवुड अब ‘फॉरेस्ट गंप’ के हिंदी रीमेक ‘लालसिंह चड्ढा’ और रणबीर कपूर की एक्शन ड्रामा फ़िल्म ‘शमशेरा’ जैसी बहुप्रतीक्षित रिलीज़ पर दांव लगा रहा है। साल के शुरू में रिलीज हुई फिल्मों की तुलना साल के अंत तक अधिक फिल्में रिलीज होने जा रही है। ऐसा करने का मकसद है पहली 6 महीनों की भरपाई आखिरी 6 महीने की फ़िल्मों से करना।

    एक रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में ऐसे कई मामले होंगे जहां दर्शक सिनेमा हॉल जा कर फ़िल्म देखने की बजाय उनके OTT Platforms पर रिलीज होने का इंतज़ार करेंगे, खासकर तब, जब फ़िल्में Average होंगी। साथ ही फिल्मों के ‘Direct to Streaming’ रिलीज़ की संख्या भी बढ़ने की संभावना जताई गई है।

    Box Office : OTT Platforms का दबदबा!

    भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म ने Original Content के लिए 500 मिलियन डॉलर का निवेश किया है, जो बढ़ते Subscriber की तुलना में कहीं अधिक है। लेकिन बदलाव का यह पैटर्न इसी तरह रहेगा, क्योंकि Subscriber की संख्या Content से ज़्यादा फीस पर निर्भर करती है। हालांकि इस OTT Industry के लिए ये अच्छी खबर है, क्योंकि जिस तुलना में Streaming से होने वाला मुनाफा बढ़ेगा उसी तुलना में फ़िल्म निर्माताओं पर दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाने का दबाव भी बढ़ेगा।

  • Bollywood : Shahrukh Khan फैंस का सदाबहार प्यार

    Bollywood : Shahrukh Khan फैंस का सदाबहार प्यार

    Bollywood : 25 जून को कर लिए हैं बेहतरीन 30 साल पूरे   

    Bollywood : “I feel like the KING of the world” आखिर सच ही तो है Bollywood के ‘King Khan’ Shahrukh Khan का यह डायलॉग। Shahrukh Khan करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करते है। अपनी चार्मिंग पर्सनालिटी के कारण वो हर दिल की धड़कन बन चुके हैं, उनके फैंस का उनके लिए प्यार सदाबहार है। पिछले महीने 25 जून को, शाहरुख खान ने हिंदी सिनेमा में 30 साल का बेहतरीन सफर पूरा किया ।

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    इस मौके पर उन्होंने अपने फैंस को एक Video के ज़रिए उनके प्यार और Indian movies support के लिए धन्यवाद किया और साथ ही अपनी आगामी फिल्म ‘पठान’ की रिलीज Date Share की। अपने 30 साल के करियर में शाहरुख ने वो मुकाम हासिल की है जो शायद ही किसी और ने की हो, उनकी सफलता revolution नहीं evolution  की तरह हैं। उन्हें अपने अभिनय की वजह से दुनिया में एक अलग पहचान मिली है। उनकी स्थायी लोकप्रियता ही जाहिर करती है कि क्यों वह आज भी दुनिया के Biggest Film Icons में से एक हैं।

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    “ॠतु आए फल होय” की तरह ही शाहरुख का करियर भी धीरे-धीरे nourish हुआ। उनके करियर की शुरुआत बिलकुल basic से हुई। नुक्कड़ नाटक, TV shows, TV Shows में lead role, Indian movies, फ़िल्मी वीलन और फिर कहीं जा कर उनके नाम के आगे लगा ‘THE’! ‘THE SHAHRUKH KHAN’। TV से फ़िल्मों तक का सफर तय कर आज वह इंडस्ट्री के टॉप एक्टर्स में से एक हैं। 1992 में Shahrukh Khan की पहली फिल्म ‘दीवाना’ रिलीज हुई। इस फिल्म में वैसे तो ऋषि कपूर लीड रोल में थे लेकिन चर्चा हुई डब्यू एक्टर शाहरुख खान की, जिन्होंने लोगों को अपनी एक्टिंग का दिवाना बना दिया।

    इसके बाद उन्होंने ‘डर’ और ‘बाजीगर’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मो के सहारे खुद को साबित किया और फिर उन्हें ऊंचाइयों की सीढ़ी चढ़ने से कोई नही रोक पाया। Shahrukh Khan की ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’, ‘वीर-जारा’, ‘कुछ कुछ होता है’ जैसी रोमांटिक फिल्मों की वजह से उन्हें लोग ‘King Of Romance’ के नाम से जानने लगें। ‘डर’, ‘बाजीगर’, ‘अंजाम’ जैसी फ़िल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं भी अदा की है। उन्होनें कई प्रकार की भूमिकाएं निभाई हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़िल्मों में काम किया है जिनमें रोमांस फ़िल्में, हास्य फ़िल्में, खेल फ़िल्में व ऐतिहासिक ड्रामा शामिल हैं।

    लेकिन सवाल यह आता है कि King Of Romance Shahrukh Khan से आखिर क्यों करते है लोग इतना प्यार? इसका जवाब भी उनकी फिल्मों की तरह ही रोमांटिक और भावुक है। खान ने हमेशा भारत और South Asian Subcontinent में सबसे अच्छा व्यक्त और प्रतिनिधित्व किया है। वह हमें एक समृद्ध, बहुवचन और मानवीय क्षेत्र की एक झलक दिखाते हैं – एक जो आक्रोश के बिना खुद पर हंस सकता है।

    करोड़ो भारतीयों के लिए शाहरुख देश के विकास गाथा के पीछे भी शामिल दिखते है। बाजार सुधारों की एक श्रृंखला के हिस्से के रूप में, देश ने दूरसंचार क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया, जिसने भारत में नए मीडिया नेटवर्क को प्रसारित करने की अनुमति दी। इन चैनलों ने सुनिश्चित किया कि Shahrukh Khan की फिल्में, गीत और साक्षात्कार उनके पहले किसी भी Movie Celebrity की तुलना में अधिक घरों तक पहुंचे। जैसे ही भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को और उदार बनाया, नए सोडा और कारों ने अचानक बाजार में प्रवेश किया, और खान के साथ उनके Brand Ambassador के रूप में भागीदारी की। एक विनम्र दिल्ली परिवार के वैश्विक हस्ती के रूप में शाहरुख का आना भारत की पारम्परिक नव-उदारवादी परी कथा है। शाहरुख इस बात का एक उदाहरण कि बिना किसी फ़िल्मी कनेक्शन के शीर्ष पर कैसे आया जाए। बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ खान का कद बढ़ता गया।

    डेटा से पता चलता है कि ख़ान के role Bollywood के अन्य male actors द्वारा निभाई गई भूमिकाओं की तुलना में महिलाओं के साथ अधिक जुड़ाव रखते हैं। लेकिन Shahrukh Khan के पात्रों के प्यार की तलाश न केवल एक महिला का पारंपरिक प्यार है, बल्कि वे अपने पिता, दोस्तों और साथी देशवासियों के प्यार और अनुमोदन की सख्त तलाश करती हैं। Shahrukh Khan जो भी भूमिका निभाते हैं उसे वह गहराई से महसूस करते हैं।  लगातार दूसरे की निगाहों के प्रति संवेदनशील होते हैं, और कई आँसू बहाते हैं। फिल्म लेखक अक्सर इस पर टिप्पणी करते हैं कि खान दुनिया के अधिकांश अभिनेताओं से बेहतर कैसे रो सकते हैं। मानवता के इन अश्रुपूर्ण प्रदर्शनों ने ही उन्हें अनगिनत प्रशंसकों का प्रिय बनाया है।

    • अदिति पाण्डेय 
  • Maharana Pratap ki Kahani : राजतंत्र में भी लोकतंत्र की नजीर बन गये थे महाराणा प्रताप

    Maharana Pratap ki Kahani : राजतंत्र में भी लोकतंत्र की नजीर बन गये थे महाराणा प्रताप

    Maharana Pratap ki Kahani : जनता ने जगमाल को गद्दी से उतरवाकर महाराणा को बनवाया था राजा

    जून के महीने की गर्मी कितनी भीषण होती, इसका अंदाजा तो मौजूदा हालात में ही महसूस करने से मिल जाएगा। वह भी जगह राजस्थान हो तो समझा जा सकता है कि गर्मी का मिजाज कैसा होगा। इस महीने की भीषण गर्मी में यदि युद्ध की बात हो तो समझने में देर नहीं लगेगी कि लड़ने वाले सैनिकों की मनोस्थिति क्या होगी ? और युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप की सेना के बीच हुआ हो तो जून के महीने में कितनी खून की धार बही होगी, बताने की जरूरत नहीं है। बात हो रही है Maharana Pratap ki Kahani की। दरअसल 21 जून 1576 को शुरू हुए हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की सेना के दांत खट्टे कर दिये थे। यह महाराणा का आम लोगों के साथ मिलकर किया गया संघर्ष ही था कि उनकी सेना में भीलों की संख्या ज्यादा थी।

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    Maharana Pratap ki Kahani

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    निश्चित रूप से राजतंत्र में राजा के बड़े बेटे के राजा बनने की परंपरा गलत थी। राजतंत्र में जनता की कहीं पर भी सुनवाई नहीं होती थी पर मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का इतिहास कुछ इससे अलग है। अध्ययन करने से पता चलता है कि महाराणा प्रताप को राजा उनके पिता उदय सिंह ने नहीं बल्कि जनता ने बनवाया था। दरअसल महाराणा के पिता उदय सिंह ने अपनी छोटी पत्नी धीर बाई (भटियानी) से विशेष अनुराग के चलते उनके पुत्र जगमाल को युवराज घोषित कर दिया था।

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    राजपूत राजाओं में ऐसी प्रथा थी कि युवराज पिता के दाह संस्कार में नहीं जाता था। 28 फरवरी 1572 को जब उदय सिंह की मृत्यु हुई तो महाराणा प्रताप को दाह संस्कार में देखकर मेवाड़ की जनता भड़क उठी। Maharana Pratap Photo की बात करें तो उनकी बड़ी बड़ी मूंछें लम्बा चौड़ा कद काठी देखकर ही बताया जा सकता है कि वह दुश्मन पर कितने भारी पड़ते होंगे। बताया जाता था कि महाराणा प्रताप आम लोगों से बहुत घुल मिलकर रहते थे। पिता उदय सिंह के साथ पहाड़ियों में संघर्ष करने की वजह से भीलों के साथ उनका काफी मेल मिलाप था। यही वजह थी कि हल्दीघाटी के युद्ध में भीलों ने उनका भरपूर साथ दिया था।

    बताया जाता है कि उदय सिंह का दाह संस्कार चल ही था कि भटियानी रानी ने कुछ सरदारों के सहयोग से जगमाल का राजतिलक कर करवा दिया। जगमाल का राजतिलक होने पर मेवाड़ की जनता ने प्रताप के पक्ष में बगावत कर दी थी। यह जनता की ही बगावत थी कि गोगुंदा लौटने के बाद मेवाड़ के सरदारों को प्रताप का राजतिलक करना पड़ा था। राजतिलक का Maharana Pratap Photo देखते ही जगमाल नाराज होकर अकबर के पास पहुंच गया था। महाराणा प्रताप को राजगद्दी पर बैठने ही तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। ऐसी भी जानकारी मिलती है कि जगमाल अकबर के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए भी तैयार था। बाद में अकबर ने जगमाल को जहाजपुर की जागीर प्रदान कर दी थी। हालांकि 1583 में दताणी युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो गई थी।

    बताया जाता है कि जब महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे तो उस समय मेवाड़ की स्थिति बड़ी सोचनीय थी। Struggle of Maharana Pratap की बात करें तो उनके गद्दी संभालने से पहले ही चितौड़, बदनोर, रायला, शाहपुरा सभी रजवाड़ों पर मुगलों का अधिकार हो गया था। इससे न केवल राजस्व प्रभावित हुआ था बल्कि मेवाड़ की प्रतिष्ठा भी गिरी थी। उस समय एक राजा के रूप में महाराणा प्रताप के सामने दो ही रास्ते थे।

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    एक वह अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी आत्मा मारकर अकबर के रहमोकरम पर राजसी सुख सुविधाएं भोगें, दूसरा रास्ता स्वाधीनता के लिए मुगलों से मोर्चा लें। यह Struggle of Maharana Pratap था कि उन्होंने लड़ाई के रास्ते को चुना। महाराणा प्रताप में संगठन निर्माण की गजब की क्षमता थी। महाराणा प्रताप ने सबसे पहले लड़ाके भीलों को अपने साथ मिलाया और अपना निवास स्थान गोगुंदा से कुंभलगढ़ कर दिया।

    जब महाराणा प्रतान ने मेवाड़ की बागडोर संभाली थी तो उस समय अकबर अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगा था। कई राजपूत रियासतों को अपनी अधीन करने के बाद अकबर मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए बेताब था। राजस्थान में महाराणा प्रताप उसकी आंखों की किरकिरी बने हुए थे। महाराणा प्रताप को अपने अधीन करने लिए अकबर ने प्रयास शुरू किये। अकबर ने पहले सितम्बर 1572 में जलाल खां को भेजा था, लेकिन वह इसमें नाकाम रहा था। दूसरे क्रम में यानी कि 1573 में आमेर के मान सिंह को भेजा गया। यह Battle of Haldighati से बचने का अकबर का बड़ा प्रयास था।

    बताया जाता है कि महाराणा ने मान सिंह के सम्मान में एक भोज का आयोजन किया, जिसमें खुद न जाकर अपने पुत्र अमर सिंह को भेज दिया। बताया जाता है कि इससे मान सिंह चिढ़ गया था और वहां से बिना भोजन किये ही चला गया था। इस बात की जानकारी कर्नल टॉड की पुस्तक में मिलती है। हालांकि जिस तरह का महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व था उनके द्वारा मान सिंह के अपमान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

    यह भी जानकारी मिलती है जब मान सिंह अकबर के पास लौटा तो अकबर भी उससे कुछ समय के लिए नाराज हो गया और उसकी ड्योढ़ी भी बंद करवा दी थी। अकबर ने महाराणा प्रताप को मनाने के लिए 1573  में भगवान दास और अंतिम राजदूत के रूप में 1573  में ही राजा टोडरमल को भेजा था पर इनमें से कोई भी महाराणा प्रताप को मना नहीं पाया था। अकबर के वे सभी प्रयास के विफल होने के बाद ही Battle of Haldighati हुआ था।

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    कुछ इतिहासकार हल्दीघाटी का युद्ध मानसिंह के अपमान की परिणती मानते हैं पर इमसें काफी संदेह है। अकबर मात्र मान सिंह के अपमान के लिए अपनी सेना को युद्ध में नहीं झोंक सकता था। दरअसल अकबर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान कुचलना चाहता था। वैसे भी 1573 के बाद Battle of Haldighati 1576  में मलतब तीन वर्ष बाद महाराणा प्रताप की मानसिंह से मुलाकात होती है। वह अकबर की साम्राज्यवादी मंशा और महाराणा प्रताप को नीचा दिखाने का प्रयास था, जिसके चलते हल्दी घाटी युद्ध हुआ था।

    दरअसल गुजरात राजस्व का बड़ा केंद्र होने की वजह से अकबर महाराणा प्रताप की स्वतंत्रता को खत्म करना चाहता था। यही वजह थी कि हल्दीघाटी के युद्द में अकबर ने मान सिंह को सेना और धन देकर मेवाड़ को जीतने के लिए भेजा था। मान सिंह 3 अप्रैल 1576  को अजमेर से रवाना होकर मांडलगढ़ होता हुआ मोलेला गांव (खमनोर) में आ डटा। 21  जून 1576  को Battle of Haldighati शुरू हो गया। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से राणा पूंजा, हकीम खां सूरी, रामदास राठौड़ भीम सिंह, मान सिंह झाला और भामाशाह थे तो मुगल सेना से मान सिंह के नेतृत्व में सैयद अहमद खां, जगन्नाथ कछवाहा, मिहतार खान युद्ध में थे।

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    हालांकि राजपूतों की संख्या मुगलों से काफी कम थी पर युद्ध में राजपूत मुगलों पर भारी पड़ रहे थे। खतरनाक युद्ध का बिगुल बज चुका था। राजपूत सेना का पहला वार बहुत घातक साबित हुआ था। इस हमले ने मुगलों की सेना के छक्के छुड़ा दिये गये थे। जून के महीने में युद्ध चल रहा था कि दोनों दलों के सैनिक आपस में घुल मिल गये थे। बताया जाता है कि प्रताप की सेना के राजपूतों और मुगलों के राजपूतों को पहचानना मुश्किल हो गया था।

    बताया जाता है कि Battle of Haldighati के दौरान बदायूनी ने आसिफ खां से पूछा कि अपने और महाराणा प्रताप के राजपूतों को कैसे पहुचानें ? तो आसिफ खान ने जवाब दिया था कि तुम बस वार करते जाओ किसी भी पक्ष का राजपूत मरे फायदा मुगलों को ही होगा। महाराणा प्रताप अकबर की सेना को चीरते हुए मान सिंह के हाथी के पास पहुंच गये थे। प्रताप के घोड़े चेतक ने छलांग लगाकर अपने दोनों पांव मान सिंह के हाथी पर टिका दिये और प्रताप ने मान सिंह का मौत के घाट उतारने के लिए भाले से वार किया परंतु मान सिंह का भाग्य अच्छा था कि वह तो बच गया। हालांकि मान सिंह का महावत मारा गया। बताया जाता है कि इसी दौरान चेतक की एक टांग हाथी की सूंड में लगे खंजर की वजह कट गई।

    महाराणा चारों ओर से मुगल सेना से घिर चुके थे परंतु महाराणा प्रताप इस घेराव से निकल गये और मान सिंह झाला ने महाराणा प्रताप का मुकुट सिर पर लगाकर युद्ध करना शुरू कर दिया और अंत तक ऐसे ही करते रहे। बताया जाात है कि युद्ध के दौरान घायल चेतक महाराणा प्रताप को लेकर दौड़ लगा रहा था कि बीच में एक नाले में छलांग लगाने के पश्चात घायल चेतक की मृत्यु हो गई। यह वह समय था कि एक साये के रूप में महाराणा का साथ निभाने वाला चेतक उनको छोड़कर चला गया था।

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    बताया जाता है कि अकबर की ओर से लड़ रहा शक्ति सिंह महाराणा के पीछे-पीछे दौड़ता रहा। शक्ति सिंह ने प्रताप के पीछे लगे दो मुगलों को भी मार गिराया। बताया जाता है कि बाद में महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह आपस में गले मिलकर बहुत राये थे। हालांकि यह कहानी सत्यता से परे लगती है। अगर शक्ति सिंह मुगल सेना की ओर से लड़ रहा होता तो उसका नाम बदायूनी की सूची में जरूर होता। हो सकता है कि यह दोनों भाईयों को मिलाने के लिए कहानी बनाई गई हो। बताया जाता है कि शक्ति सिंह पहले ही चितौड़ के आक्रामण में काम आ चुका था। महाराणा के युद्ध भूमि से लौटने के बाद मेवाड़ी सेना ने जान की बाजी लगाना शुरू कर दिया था, जिसमें सभी प्रमुख वीर यौद्धा युद्ध में काम आये। वैसे हल्दीघाटी का कोई परिणाम नहीं निकला। पूरा युद्ध एक दिन से भी कम समय में समाप्त हो गया।

    हालांकि यह जीत राजपूतों की मानी जाएगी क्योंकि संख्या बल और गोला बारूद मुगल सेना के पास ज्यादा होने के बावजूद राजपूत सेना मुगल सेना पर भारी पड़ी थी। मुगल सेना के मारे गये सैनिकों की संख्या और हताहत हुए सैनिकों की तादाद भी राजपूतों से बहुत ज्यादा थी। Struggle of Maharana Pratap के तहत राजपूत सेना ने मुगल सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। इसे राजपूत सेना की जीत ही माना जाएगा कि युद्ध के पश्चात भी मुगल सेना के डेरे में भी भीलों की लूट खसोट और घात प्रतिघात चालू था।

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    बताया जाता है कि इससे तंग आकर मान सिंह अपनी सेना लेकर अगली सुबह गोगुंगदा की ओर रवाना हो गया। इस युद्ध के बाद अकबर भी 13  अक्टूबर 1576  को गोगुंदा आया लेकिन महाराणा प्रताप यहां भी मुगलों के हाथ नहीं आ पाये। हल्दीघाटी युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपॉली भी कहा जाता है। राजपूतों में पीठ दिखाना स्वीकार नहीं माना जाता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया था कि महाराणा को मैदान से जाना पड़ा।

    दरअसल महाराणा के खेत छोड़ने के कई कारण थे। बताया जाता है कि युद्ध भूमि में उन्होंने जमीनी युद्ध लड़ना शुरू कर दिया था जो परंपरागत युद्ध प्रणाली थी। जमीनी युद्ध में मुगल सैनिक अधिक पारंगत थे। बताया जाता है कि महाराणा प्रताप का मैदान छोड़ने का फैसला बिल्कुल सही था, उन्होंने साहस के साथ धैर्य से भी काम लिया, वहां से मैदान छोड़कर आगे की कई सफलताएं प्राप्त की और आगे भी अकबर की मुगल सेना को छकाये रखा दिवेर युद्ध में हराया भी।
    महाराणा प्रताप के साथ ही उनके बाल्यावस्था के दोस्त भामाशाह का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। भामा शाह ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी संपूर्ण संपत्ति प्रताप को अर्पित कर दी थी। इसलिए भामाशाह का नाम इतिहास में दानवीरता के लिए प्रद्धि है।

    Myths about Maharana Pratap : हम लोग महाराणा प्रताप के बारे में पढ़ते हैं कि प्रताप जंगलों में घास फूस की रोटियां खाते थे। एक कहानी के अनुसार जब प्रताप के पुत्र अमर सिंह के हाथ से बिल्ली रोटी का टुकड़ा लेकर भाग गई तो उनका पुत्र रोने लगा महाराणा प्रताप के स्वयं के भी दुखी होने की बात कही जाती है। यह बात इसलिए गले नहीं उतरती क्योंकि महाराणा जिस क्षेत्र में घूमते-फिरते थे वह क्षेत्र काफी ऊपजाऊ था। मेवाड़ की जनता भी काफी उदार थी जो उन्हें बहुत प्रेम करती थी तो ऐसे में महाराणा प्रताप और उनके बच्चों को कम से कम भूखे रहने की नौबत तो नहीं आई होगी।

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    दिवेर का युद्ध : प्रताप ने अपने सैन्य संगठन, शक्ति में बढ़ोतरी करने का कार्य किया था। भामाशाह से मिली सहायता से महाराणा प्रताप ने एक बड़ी फौज तैयार की। यह फौज गौरिल्ला पद्धति में माहिर बताई जाती थी। अकबर को उत्तर पश्चिम में उलझा देख महाराणा प्रताप ने फायदा उठाया और मुगलों की टुकड़ियों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। War of Diver अक्टूबर 1582  में लड़ा गया था। मुगल सेनापति सुल्तान खां थे जो रिश्ते में अकबर के चाचा भी लगते थे। दिवेर पर महाराणा अपनी सेना लेकर आ धमके। इससे मुगलों में हड़कंप मच गया।

    युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने अपने भाले से ऐसा वार किया कि सुल्तान खां के घोड़े समेत दो टुकड़े हो गये। War of Diver में महाराणा प्रताप ने भी बहलोल खां को घोड़े ने भी बहलोल खां को घोड़े समेत दो भागों में विभाजित कर दिया था। उसके बाद अपने सेनापति एवं अन्य प्रमुखों के मारे जाने से मुगल सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध में महाराणा की विजय हुई। मेवाड़ पर 36  प्रमुख मुगल ठिकानों पर महाराणा ने अधिकार कर लिया।

    कर्नल जेम्स टॉड ने War of Diver को मेवाड़ के मैराथन की संज्ञा दी थी। 1585 में चावंड के लूणा चावंडिया को परास्त कर चावंड पर अधिकार कर लिया एवं चावंड को अपनी नई राजधानी बनाई। महाराणा प्रताप के व्य्त्विव के बारे में कहा जाता था कि उनका व्यक्तित्व बड़ा गजब का था। साढ़े सात फुट ऊंची कद काठी के महाराणा प्रताप 72  किलो का कवच एवं 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। उनका प्रिय घोड़ा चेतक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। महाराणा प्रताप युद्ध के दौरान अपने घोड़े के आगे हाथी की सूंड लगाकर विपक्षी खेमे के घोड़ों को भ्रमित किया करते थे।

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    अकबर की उच्च महत्वाकांक्षा, शासन, निपुणनता एवं असीम संसाधन भी प्रताप की वीरता एवं साहस को दबाने में नाकाम रहे। बताया जाता है कि जब प्रताप के पुत्र अमर सिंह द्वारा मुगलों की कुछ महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता है तो महाराणा अमर सिंह पर बहुत नाराज होते हैं और उन महिलाओं को सम्मानपूर्वक वापस भेजने का आदेश देते हैं। महाराणा प्रताप ऐसे वीर हुए हैं जिन पर न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत को गर्व है। अकबर को महाराणा प्रताप का इतना खौफ था कि वह कभी प्रताप के समक्ष नहीं आया। यह Struggle of Maharana Pratap था कि जब अधिकतर राजा महाराजा अकबर की अधीनता स्वीकरा कर चुके थे उसके बीच अकेले महाराणा प्रताप ने स्वाधीनता ही चुनी।

    दरअसल History of Rajputs ने हमेशा से भारत के लोगों में उत्साह एवं जोश भरने का काम किया है। उसी राजपूताने में एक मेवाड़ राज्य था। मेवाड़ राज्य में बप्पा रावल, राणा, हम्मीर, महाराणा कुंभा, राणा सांगा जैसे प्रतापी शासक हुए, जिन्होंने कभी किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। ऐसे ही वीर योद्धा थे महाराणा प्रताप। महाराणा प्रताप ने जंगलों में रहना इतिहास, उनके बारे में अनेक भ्रांतियां हैं।

    दरअसल महाराणा प्रताप का जन्म 9  मई 1540  में मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा प्रताप का संबंध (History of Rajputs) सिसोदिया वंश से था। महाराणा प्रताप के पिता राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह थेे। उनकी माता का नाम जयवंता बाई था जो पाली के सोनगरा अखैराज की पुत्री थी। महाराणा प्रताप की प्रमुख रानियों में एक अजबदे पंवार थीं, जिनके अमर सिंह और भगवान दास पैदा हुए थे।

    चितौड़गढ़ पर अकबर के आक्रमण के कारण Struggle of Maharana Pratap यह था कि उन्होंने अपना बचपन घाटियों एवं पहाड़ियों में रहकर बिताया। उन पहाड़ी इलाकों में भील जनजाति के लोग अपने बच्चे को कीका या कूका के नाम से पुकारते थे। इसलिए महाराणा प्रताप को कीका भी कहा जाता है। अपने पिता उदय सिंह के साथ जंगल में पानी में रहकर प्रताप युद्ध कला एवं छापामार युद्द में पारंगत हुए थे।

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    How many Wife of Maharana Pratap : कई इतिहासकारों का कहना है कि उनकी 12 पत्नियां थीं, लेकिन कहा जाता है कि उनकी प्रमुख पत्नियां अजबदेह पंवार, रानी सोलंकीनी पुबाई, फूल कंवर राठौड़ प्रथम, चंपा कंवर झाला, रानी जसोबाई चौहान, रानी फूल बाई राठौड़, रानी शहमाती बाई हाड़ा, रानी खीचर अशबाई, रानी आलमदेबाई चौहान, रानी अमरबाई राठौड़, लखाबाई राठौड़ आदि थीं। जब How many Wife of Maharana Pratap की बात होती है तो यह भी बताया जाता है कि उनकी 4 रानी मुस्लिम थीं।

    महाराणा की मृत्यु : बताया जाता है कि महाराणा प्रताप के पांव में असावधानी बरतने से कमाल लग गई थी, जिससे बीमार होकर अंत में 19  जनवरी 1597 में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई। बताया जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी राये थे। उन्होंने कहा था कि आज देश का एक वीर चला गया। महाराणा प्रताप का चावंड के निकट बंडोली गांव के पास बहने वाले नाले के तट पर अंतिम संस्कार हुआ। वहीं उनकी एक छोटी सी छतरी बना दी गई थी। Maharana Pratap ki Kahani अपने आप में एक इतिहास है।

  • Wonderful Kids : गजब के आज के बच्चे 

    Wonderful Kids : गजब के आज के बच्चे 

    आज के दौर में काफी हद्द तक चीज़े इतनी ज्यादा बदल गयी हैं कि पुराने समय की चीजें गौण होती जा रही है। आप टेक्नोलॉजी की ही देख लीजिये कि लोगों के रहने का ढंग देख लीजिये।  पुराने ज़माने के बच्चों को देख लीजिये जहां पुराने समय में आँख उठाकर अपने गुरुओं को बच्चे देखा नहीं करते थे तो वही आज के समय में Wonderful Kids हैं। बच्चो का पढ़ाई लिखाई और टीचर्स से कोई मतलब ही नहीं होता…..दादी – नानी से काफी बार किस्से कहानी में आपने भी सुना होगा कि पुराने वक़्त में बच्चे लाइट न आने की वजह से कैंडल जला कर पढ़ा करते थे, लेकिन अब के समय की अगर बात करें तो बच्चों ही नानी-दादी को समझा देते हैं। उनका कहना सीधा यही होता है कि  “वो आपका ज़माना हुआ करता था”, अब के दौर के ज्यादातर बच्चे पढ़ाई को देख ऐसे दबे पाओ भागते हैं जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो।  आज के बच्चो का पढ़ाई की तरफ से ध्यान बिलकुल ही हट गया है तभी तो, अपने एग्जाम आंसर शीट में वो अतरंगी और फनी फनी जवाब देते हैं।  …..जैसे एक बच्चे से पूछा गया “what comes after 10 ?” तो उस बच्चे जवाब दिया “?” जी हाँ क्वेश्चन मार्क क्युकी सवाल में 10 के बाद क्वेश्चन मार्क लगा था।

    एक सवाल में बच्चे से पूछा गया 3 जानवरो नाम तो बच्चे ने जवाब दिए “मेंढक , मेंढक के पापा , मेंढक की मम्मी”, एक सवाल पूछा गया कि find x तो बच्चे ने जवाब में एक फिगर बनाई उस पर x लिख कर उसे सर्कल मार्क कर दिए और फिर एक एरो बनाते हुए लिखा ” here it is”, एक बच्चे को जब अपना टेस्ट साइएन करने को दिया गया तो बचे ने पेरेंट्स सिग्नेचर की जगह मॉम लिख कर टीचर को दे दिया। आपको सिर्फ सुनकर इतनी हंसी आ रही है सोचिये उन शिक्षकों का हंस हंस कर क्या हाल होता होगा। आज के समय में बच्चे भी किसी से पीछे नहीं है। अगर उन्हें जवाब नहीं आते तो वो उन सवालों के जवाब ढूंढने के बदले अपने ही अलग अलग और अतरंगी जवाब देने में लग जाते है, जिसे पढ़ कर कभी कभी शिक्षकों को हंसी भी आती और कभी कभी गुस्सा भी। … कभी कभी जवाब देख कर शिक्षक इतने खुश हो जाते हैं कि उनकी कुछ शब्दों में तारीफ कर एक्स्ट्रा मार्क्स भी दे देते हैं तो वही कभी कभी जवाबो से नाराज़ होकर मार्क्स काट भी लेते हैं।

    -अपूर्वा चौधरी  

     

  • Amar Singh Rathore ki Kahani : जब अमर सिंह ने शाहजहां के दरबार में घमासान मचाकर दिया था वीरता का परिचय  

    Amar Singh Rathore ki Kahani : जब अमर सिंह ने शाहजहां के दरबार में घमासान मचाकर दिया था वीरता का परिचय  

    Amar Singh Rathore ki Kahani : अमर  सिंह के साले अर्जुन सिंह गौड़ ने धोखे से मार दिया था अमर सिंह को 

    देश में ऐसे कितने वीर नायक हुए हैं, जिनका वर्णन इतिहास में न के बराबर हैं। इन नायकों एक थे अमर सिंह राठौड़। अमर सिंह राठौड़ की वीरता की कहानी (Amar Singh Rathore ki Kahani) नाटकों, फिल्मों और लोकगीतों में देखने को मिलती है। पृथ्वीराज चौहान फिल्म आने के के बाद एक अच्छी बात यह हुई है कि देश के वीरों के बारे में जानकारी देने के लिए सोशल मीडिया में एक बड़ा अभियान छिड़ चुका है।

    इस अभियान से कम से कम इतना फायदा जरूर हो रहा है कि नई पीढ़ी को देश के वीरों के बारे में जानकारी मिल मिल रही है। आज की तारीख में जिस तरह से नई पीढ़ी में नीरसता का एक भाव पैदा हो रहा है ऐसे में देश के वीरों की कहानियां युवा पीढ़ी में एक नई ऊजा का संचार कर सकती है। इन्हीं वीरों में में एक ऐसे महायौद्धा हुए हैं, जिन्हें स्वाभिमान और वीरता का प्रतीक माना जाता है। बात मुगल शासक शाहजहां के सेनापति अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ki Kahani) की हो रही है।

    Amar Singh Rathore History in Hindi

    बताया जाता है कि राजस्थान माड़वाड़ क्षेत्र के राजा गज सिंह का राज्य मुग़ल शासक शाहजहां के अधीन था। राजा गज सिंह के बेटे अमर सिंह राठौड़ एक देशभक्त और महान योद्धा हुए। एक बार अमर सिंह ने मुगलों से एक डाकू को बचा लिया तो उनके पिता ने उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया था।

    अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore History in Hindi) मुग़ल बादशाह शाहजहां के सिपेहसालार बन गए। शाहजहां  अमर सिंह की वीरता से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें नागौर का जागीरदार बना दिया। शाहजहां के साले सलामत खां शाहजहां द्वारा की जाने वाली अमर सिंह की तारीफ से बहुत जलता था।  वह अमर सिंह को बदनाम कर करने का मौका ढूंढता रहता था। सलामत खां को यह मौका मिल भी गया।

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    दरअसल जब अमर सिंह हाडा रानी से गौना करने गए तो जितने दिन की छुट्टी लेकर गए थे, उससे अधिक दिन की छुट्टी ले ली और सूचना भी नहीं दी। जब इस बात का पता सलामत खां को लगा तो उसने बात का बतंगड़ बना दिया।  सलामत खां ने मामले को इतना बढ़ा दिया कि अमर सिंह को सजा दी जा सके। शाहजहां ने सलामत खां को अमर सिंह को सजा देने के लिए अधिकृत कर दिया। सलामत खां अमर सिंह को धमकाकर अर्थ दंड देने को कहा।  (Amar Singh Rathore History in Hindi) साथ ही सलामत खां ने यह भी चेतावनी भी दे दी कि वह अमर सिंह राठौड़ से अर्थ दंड लिए बिना जाने नहीं देगा।

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    Amar Singh Rathore ki Kahani मै बताया जाता है कि सलामत खां की बातों से आक्रोशित होकर अमर सिंह ने अपनी तलवार निकाली सलामत खां को मौत के घाट उतार दिया। यह देखकर शाहजहां भी घबरा गए और उन्होंने अपने सैनिकों को हुक्म दे दिया कि वे अमर सिंह को मार गिराएं , अमर सिंह ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए उन पर हमला करने वाले सभी सैनिकों को मार गिराया। बताया जाता है कि अमर सिंह ने घोड़े पर सवार होकर किले से छलांग लगा दी और सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए।

    जब अमर सिंह किले में घमासान मचाकर चले गए तो अगले दिन शाहजहां ने दरबार में घोषणा कर दी कि अमर सिंह को मारने वाले को नागौर का जागीरदार बना दिया जाएगा। अमर सिंह की बहादुरी से कोई दुश्मनी नहीं लेना चाहता था। अमर सिंह का एक साला था। उसका नाम अर्जुन गौड़ था।

     शाहजहां ने उसे लालच दिया और यह कहकर की बादशाह आप जैसे योद्धा को खोना नहीं चाहते हैं। उन्हें अपनी गलती का एहसास है। इसलिए उन्होंने आपको बुलाया है कहकर अमर सिंह को बुलाने के लिए भेज दिया। हालांकि शुरुआत में अमर सिंह को बादशाह पर विश्वास नहीं हुआ पर बाद में वह अर्जुन सिंह राठौड़ को अपना रिश्तेदार समझ उसके षड्यंत्र में आ गए।

    बताया जाता है कि एक षड्यंत्र के अनुसार शाहजहां ने अर्जुन सिंह गौड़ से अमर सिंह राठौड़ से अलग में मिलने की बात कर दरबार के सामने बनी खिड़की से लाने के लिए कहा था। शाहजहां जानते थे कि अमर सिंह झुकने की वजह से पैरों के रास्ते दरबार में घुसेंगे और तभी उन्होंने अर्जुन सिंह से अमर सिंह पर वार करने को कहा था।

    बताया जाता है कि अमर सिंह की बहादुरी देखकर एक उत्सुक फ़क़ीर ने शाहजहां से पूछा था कि इतने सारे योद्धाओं वाले हिन्दुस्तान को आप कैसे जीत सकते हैं ? फ़क़ीर के जवाब में शाहजहां ने जवाब दिया था कि रुको और देखो कि कैसे जीतेंगे ?

    जब अर्जुन सिंह गौड़ अमर सिंह को लेकर आये और उस खिड़की से ले जाने की बात करने लगे शाहजहां के सामने झुकने की वजह से उन्होंने उस खिड़की से जाने से इंकार कर दिया। षड्यंत्र के अनुसार अर्जुन सिंह गौड़ ने अमर सिंह राठौर को सिर बाहर कर दरवाजे में घुसने को कहा।

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    अमर सिंह अर्जुन सिंह कर का षड्यंत्र समझ न सके। उन्होंने अर्जुन सिंह गौड़ की सलाह मान ली। जैसे ही अमर सिंह ने सर खिड़की से बाहर कर पैरों को दूसरी और बढ़ाया तो तभी षड्यंत्र के अनुसार अर्जुन सिंह गौड़ ने अमर सिंह की छाती में खंजर घौंप दिया।

    जब अमर सिंह राठौर वीर गति को प्राप्त हो गए तो अर्जुन सिंह गौड़ ने अमर सिंह का सिर काट लिया और उसे शाहजहां के दरबार में ले गया। अमर सिंह के सिर को देखकर शाहजहां ने फ़क़ीर की ओर इशारा किया और कहा कि अब तो तुम्हें पता चल गया होगा कि हमने योद्धाओं से कैसे छुटकारा पा लिया। बताया जाता है कि बाद में शाहजहां ने अर्जुन सिंह को यह कहकर मार दिया कि जब तुम अपने के नहीं हुए तो हमारे किए होंगे ?

    बताया जाता है कि अमर सिंह की वीरगति की सूचना पाकर अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी ने अमर सिंह के दोस्त नरशेबाज पठान को इस बात की सूचना भेजी। बताया जाता है कि जब अमर सिंह गौना करके अपनी पत्नी हाड़ा रानी के साथ अपने घर लौट रहे थे तो रास्ते में नरशे बाज पठान मिले थे। प्यास लगने पर उन्होंने इन लोगों से पानी मांगा था तब अमर सिंह ने नरशे बाज पठान को एक लौटा पानी पिलाया था।

    अमर सिंह को अपना मानते हुए नरशे बाज पठान ने जरुरत पड़ने पर याद करने को कहा था। बताया जाता है कि सूचना पाकर तुरंत नरशे बाज पठान शाहजहां से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे। नरशे बाज पठान, अमर सिंह का भतीजा राम सिंह और बल्लू जी चंपावत के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने किले पर उस जगह धावा बोल दिया, जहां अमर सिंह का मृत शरीर पड़ा था। (Amar Singh Rathore History in Hindi) बताया जाता है कि इन वीरों ने अमर सिंह का मृत शरीर तो हाड़ा रानी के पास पहुंचा दिया था पर ये तीनों वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

    बताया जाता है कि बाद में शाहजहां ने यह खिड़की यानि कि संकीर्ण दरवाजा बंद करा दिया था। एक अंग्रेज अधिकारी ने अमर सिंह की बहादुरी की दास्तां सुनकर इस दरवाजे को न केवल खुलवाया बल्कि इस दरवाजे का नाम अमर सिंह दरवाजा भी रखवाया। लोग अब इस दरवाजे को अमर सिंह दरवाजे के नाम जानते हैं। (Amar Singh Rathore ki Kahani) कुछ इतिहासकारों का यह कहना है कि क्योंकि इस दरवाजे से अमर सिंह सलावत खां को मारकर शाहजहां के दरबार में घमाशान मचाकर निकले थे। इसलिए यह दरवाजा राजपूतों के हाथों हार की याद दिलाता था। इसलिए शाहजहां ने इसे बंद करा दिया था।

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    नागौर जिले में अमर सिंह राठौड़ की 16 खम्बों की छतरी बताई जाती है।

    अमर सिंह राठौड़ को कटार का धनी कहा जाता है। आज भी आगरा के लिए में आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य द्वार अमर सिंह द्वार ही है।  अमर सिंह को इतिहास में असाधारण शक्ति, इच्छा और स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। वह अपने फैसले लेने में सक्षम थे। अमर सिंह राठौर वीरगति को प्राप्त हुए। बल्लू जी चंपावत की बहादुरी अभी भी राजस्थान में लोकगीतों में सुनने को मिलती है।

    Amar Singh Rathore Nautanki

    गांवों और देहातों में अमर सिंह राठौड़ की नौटंकी भी खूब सुनने को मिलती है। नौटंकी के माध्यम से अमर सिंह राठौड़ और राम सिंह की वीरता की कहानी सुनाई जाती है। 1970 में अमर सिंह की बहादुरी पर वीर अमर सिंह राठौड़ नामक एक फिल्म भी बनी थी। इस फिल्म (Amar Singh Rathore Nautanki) का निर्देशन राधाकांत ने किया था। इस फिल्म में देवकुमार, कुमकुम, जब्बा रहमान थे। अमर सिंह राठौड़ पर आधारित एक फिल्म गुजराती में भी बनी है। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में गुजराती सुपर स्टार उपेंद्र त्रिवेदी थे।

    अमर सिंह राठौड़ की वीरता का लोहा शाहजहां मानते थे। बताया जाता है कि जब अर्जुन सिंह गौड़ू ने अमर सिंह को मार दिया और उनका सिर लेकर शाहजहां के दरबार में पहुंचा तो शाहजहां को अपना सेनापति खोने का एहसास हुआ था। अर्जुन सिंह गौड़ पर इतने आक्रोशित हो गये थे कि तत्कालन उन्होंने अर्जुन सिंह गौड़ को मार दिया था। (Amar Singh Rathore ki Kahani) अमर सिंह अपनी कटार हमेशा अपने पास रखते थे। कई नाटकों में ऐसा भी वर्णन है कि अमर सिंह ने मरते वक्त अर्जुन सिंह गौड़ की नाक काट अपनी कटार से काट दी थी।

    -चरण सिंह राजपूत

  • Salman Khan latest news: सलमान खान और पिता सलीम की बढ़ाई गई सुरक्षा

    Salman Khan latest news: सलमान खान और पिता सलीम की बढ़ाई गई सुरक्षा

    Salman Khan: सलमान खान को मिली धमकी

    Salman Khan latest news: हाल ही में हुई  पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद सलमान खान को धमकी भरा खत मिला है। जिसके बाद सलमान खान की सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है। बॉलिवुड के भाईजान सलमान खान के पिता सलीम खान को रविवार को एक धमकी भरा लेटर (Salman Khan latest news) मिला है। जिसके बाद से सलमान खान और उनके पिता की सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है।

    सलमान खान के पिता रविवार को जॉगिंग पर गए थे।  जहां पर वे रेस्ट के लिए एक बेंच पर बैठे तो उसी बैंच पर एक धमकी भरा लेटर रखा हुआ था। इस लेटर के मिलने के बाद से सलमान खान की सिक्योरिटी को बढ़ा दिया गया है (Salman Khan ko dhamki)।  लेटर मिलने के बाद से पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया हैं।

    Also Read:- कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा है मूसेवाला हत्याकांड !

    लेटर मिलने के बाद से सलमान खान के फैंस बहुत परेशान हो गए है और सलमान खान की सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है। आपको बता दें, कि कुछ दिनों पहले पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की  गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद से इंड्स्ट्री में शोक का माहौल बना हुआ है।

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    Salman Khan Threat

    पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद से प्रशासन ने सिक्योरिटी  देनी शुरू कर दी है।  सलमान खान को धमकी भरा लेटर मिलने के बाद उनको और उनके पिता की सिक्योरिटी  को बढ़ा दिया गया है।

    आपको बता दें, कि सलमान खान हाल ही में आइफा 2022(Salman Khan At IIFA 2022)आवार्ड इवेंट से फ्री हुए है।  यह इवेंट अबु धाबी में आयोजित किया गया था। आइफा 2022 इवेंट (Salman Khan At IIFA 2022) को होस्ट करके अब सलमान खान मुंबई आ चुके है।  उनके इंवेट होस्ट करने की विडियों और तस्वीरे सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।

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    Salman Khan latest news: सलमान खान के वर्कफ्रंट की बात करें तो सलमान खान टाइगर 3 में कैटरीना कैफ के साथ नजर आने वाले है। यह फिल्म अगले साल सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है।

  • Aalha Udal Ki Kahani : पृथ्वीराज चौहान को भी अपनी वीरता का लोहा मनवाने वाले आल्हा उदल !

    Aalha Udal Ki Kahani : पृथ्वीराज चौहान को भी अपनी वीरता का लोहा मनवाने वाले आल्हा उदल !

    Aalha Udal Ki Kahani

    चरण सिंह राजपूत/नई दिल्ली-

    Aalha Udal Ki Kahani:पृथ्वीराज चौहान फिल्म रिलीज होने के बाद मुग़ल शासकों औरंगजेब, अकबर, छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे शासकों को लेकर एक बहस छिड़ गई है। इस बीच में इतिहास से गायब बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा ऊदल की वीरता की दास्तां को लेकर भी एक अभियान शुरू हो चुका है। इस अभियान में आल्हा ऊदलऔर उनके चचेरे भाई मलखान के पृथ्वीराज चौहान को भी अपनी वीरता का लोहा मनवाने को प्रमुखता से दिखाया (Aalha Udal Ki Kahani) जा रहा है।

    Alha Udal story in hindi : दरअसल बारहवीं शताब्दी में बुंदेलखंड की धरती के वीर आल्हा-ऊदल और इनके चचेरे भाई मलखान अपनी वीरता के लिए देशभर में विख्यात थे। इतिहास में भले ही इनकी वीरता का  वर्णन ज्यादा न किया गया हो पर जगनेर के राजा जगनिक ने जिस आल्ह-खण्ड काव्य की रचना की थी, उसमें बावन गढ़ की लड़ाइयों में इन वीरों की गाथा का बहुत वर्णन किया गया है। इन लड़ाईयों में कई बार इनका मुकाबला पृथ्वीराज चौहान से हुआ और इन वीरों ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त भी किया।

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    हालांकि आल्हा खंड में ऊदल और मलखान  के पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते वीरगति प्राप्त करने का भी वर्णन है। आल्हा खंड में वर्णन है कि अपने छोटे भाई उदल की वीरगति की खबर सुनकर आल्हा अपना अपना आपा खो बैठे थे और आक्रामकता के साथ पृथ्वीराज चौहान की सेना पर काल बनकर टूट पड़े थे। आल्हा एक घंटे तक सेना को चीरते हुए पृथ्वीराज चौहान तक पहुंच गए और दोनों में भीषण युद्ध हुआ।

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    बताया जाता है कि आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को बुरी तरह से घायल कर दिया था। आल्हा खंड में ऐसा वर्णन है कि आल्हा पृथ्वीराज चौहान को मारने ही वाले थे कि आल्हा के गुरु गोरखनाथ ने युद्ध में पहुंचकर आल्हा को बीच में ही रोक दिया और पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिलवा दिया। आल्हा खंड में आल्हा ऊदल और मलखान की पृथ्वीराज चौहान से जो लड़ाई का वर्णन है वह 1182 ई० का है।

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    आल्हा खंड में जो लिखा है उसके अनुसार आल्हा ऊदल को महोबा के चंदेल राजा परमाल के सेनापति जसराज के पुत्रों के रूप में बताया गया है। मलखान जसराज के छोटे भाई बछराज के पुत्र थे। ये बनाफल वंश के बताये जाते हैं। बनाफल वंश चन्द्रवंशी क्षत्रिय वंश माना जाता है। पंडित ललिता प्रसाद मिश्र के ग्रन्थ आल्हाखण्ड में तो आल्हा को युधिष्ठिर तो ऊदल को भीम का अवतार तक दर्शाया गया है। बताया जाता है कि यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों में जोश भरने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने आल्हा खंड का सहारा लिया था।  इस तरह से आल्हा उदल की वीरता की कहानी (Aalha Udal Ki Kahani) आल्हा खंड में दिखाई गई है।

    नोट : द न्यूज 15 आल्हा खंड में वर्णित 52 गढ़ की लड़ाईयों की जानकारी क्रमवार देगा। कृपया सुझाव दें। 
  • Prithviraj Chauhan Movie: पृथ्वीराज चौहान, फिल्म और  इस्लामिक देशों में बैन!

    Prithviraj Chauhan Movie: पृथ्वीराज चौहान, फिल्म और इस्लामिक देशों में बैन!

    Prithviraj Chauhan Movie

    Prithviraj Chauhan Movie: दिल्ली का गद्दी पर राज करने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी के जीवन पर आधारित फिल्म आ रही हैं लेकिन इस फिल्म के आते ही विवादों का आना जारी हो गया, पहले देश के गृह मंत्री अमित शाह फिल्म देखने गए जिस पर राहुल गांधी ने उन्हे कश्मीर में हो रहे हमलों के लिए घेर लिया इसके बाद अब खबर आ रही कि इस्लामिक देशों ने इस फिल्म को बैन कर दिया हैं।

    देश में जब ताजमहल की तेजो महल बताने की कवायद चल रही हो, ज्ञानवापी और कुतुब मीनार के जरिए एक धार्मक बहस को बढ़ावा मिलने के समय पर, दिल्ली की गद्दी पर आखिरी हिन्दु शासक कह जाने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर आ रही फिल्म (Prithviraj Chauhan Movie) को इस्लामिक देशों में इस फिल्म के विषय से असमत होकर बैन कर दिया, इस्लामिक देशों का ये कदम  पृथ्वीराज चौहान के जीवन की कहानाी को दबाने के समान हैं।

    कौन थे पृथ्वीराज –

    अगर आप पृथ्वीराज जी के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं (The Real History of Prithvi raj) तो एक बात समझिए कि जितनी बात उतनी कहानियां, पृथ्वीराज के बारे में सबसे ज्यादा ‘पृथ्वीराज रासो’ का जिक्र आता हैं जिसकी रचना चंद बरदायी ने किया था। चंदबरदाई कवि थे जो कि पृथ्वीराज की सभा में रहते थे, चंदबरदाई के बारे में सबसे प्रसिद्ध व्याख्यान तब मिलता हैं जब पृथ्वीराज अपनी आंख गंवाने के बावजूद उन्होंने मुहम्मद ग़ौरी को भरी सभा में मौत के घाट उतार दिया।

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    ” चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,

    ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।”

      शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुइजुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी उर्फ मुहम्मद ग़ौरी को पृथ्वीराज के शत्रु माना गया, इन दोनों के बीच हुए युद्ध को लेकर लोगों के बीच अलग मत रहते हैं जिसे कि कुछ लोगों का मानना है कि पृथ्वीराज ने गोरी को 16 बार हराया था और दूसरा पक्ष की पृथ्वीराज ने एक ही बार ग़ोरी को हराया और दूसरी बार वे खुद पस्त हो गए।

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    शुरुआती जीवन –

    पृथ्वीराज दिल्ली के तो राजा थे लेकिन वे अजमेर के राजा सोमेश्वर के बेटे थे। उनके पिता सोमेश्वर की शादी दिल्ली के राजा अनंगपाल की बेटी कमला से हुई, दूसरी बेटी की शादी कन्नौज के राजा विजयपाल से हुई जिनसे जयचंद पैदा हुए। इन्ही जयचन्द्र को धोखा देने वाला माना जाता हैं। और इन्ही की बेटी संयोगिता से पृथ्वीराज की शादी हुई थी। अनंगपाल ने बेटी कमला के बेटे पृथ्वीराज को गोद लिया, जयचंद इस बात से खुश नहीं थे।

     इतिहास को लेकर विवाद – 

    ‘पृथ्वीराज रासो’ को लेकर अनेक इतिहासकारों में भी अलग मत (The Real History of Prithvi raj) हैं हिन्दी के प्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘पृथ्वीराज रासो’ में बताए गए समय (संवत) से तत्कालीन इतिहास की घटनाएं मेल नहीं खाती हैं। इसी कारण इस पर विवाद हैं। ‘पृथ्वीराज रासो’ में शासन काल का समय 1177 से 1192 बताया जबकि तैमूर जो कि 200 साल के बाद शासन करने आए उनका जिक्र ‘पृथ्वीराज रासो में मिल जाता है जो कि संभव नही।

    ‘पृथ्वीराज रासो’ का पक्ष रखने वाले इतिहासकारों नें इसका कारण शक संवत और विक्रम संवत और इंग्लिश कैलेंडर में फर्क को बताया वर्तमान समय जिसे हम इंग्लिश कैलेंडर भी कह सकते हैं तो इससे 78 साल पीछे शक संवत और विक्रम संवत 57 साल आगे चलता है।

    कैसी है सम्राट पृथ्वीराज के जीवन पर आधारित फिल्म – 

    फिल्म (Samrat Prithvi raj movie Update) की बात करें तो निर्देशक चन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने फिल्म के लिए 15 साल तक रिसर्च की लेकिन वे इसे पर्दे पर उकेर नहीं पाए, फिल्म की सबसे बड़ी खामी मुख्य किरदार ही हैं जिन्हे हिन्दी बोलने में समस्या हो रही हैं, न ही इतिहास के इतने बड़े व्यक्तित्व को निभाने के लिए बड़ा संघर्ष किया। लोग अक्षय को उनकी फेक मूंछ के इस्तेमाल के लिए भी उन्हें ट्रोल कर रहें।

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    वही मानुषी अपनी फिल्म करते हुए भी अपने किरदार में सहज लग रहीं हैं और सोनू सूद और संजय नाम मात्र के लिए दिखाई दे जाते हैं।

    बचपन से टीवी धारावाहिक, गौरव गाथा से हर किसी के हीरो रहे पृथ्वीराज की छवि के साथ न्याय नहीं किया। लोगो को अक्षय कुमार के बाला और पृथ्वीराज के किरदार में फर्क नहीं पता चल पा रहा।

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    बीते कुछ सालों से न केवल लोगों में बल्कि फिल्म निर्माताओं में इतिहास की ओर देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है इसके बाद पक्ष विपक्ष एक जुट होकर फिल्म की कहानी पर अपनी राजनीति चमकाने लगते हैं, इसे एक अच्छी पहल ही माना जाएगा कि हम अपने अतीत की गौरवशाली इतिहास को याद कर रहें लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि हम पहले की कुरुतियों का बदला आज के लोगों से न लेने लगें।

    इतिहास के एक बड़े किरदार पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित फिल्म (Prithviraj Chauhan Movie) के साथ निर्देशक और ग्राफिक टीम ने तो अच्छा काम किया लेकिन उम्मीद है कि लोगों के बीच पृथ्वीराज चौहान की समझ और अच्छी बनें।

  • India’s First Sologamy: गुजरात की क्षमा करने जा रहीं खुद से शादी

    India’s First Sologamy: गुजरात की क्षमा करने जा रहीं खुद से शादी

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    India’s First Sologamy: हमने सोशल मीडिया की दौर में ब्रेकअप के बाद खुद से प्यार करने के लिए 100 तरह के टिप्स और ज्ञान वाले वीडियो देखे होंगे इसके अगर ना भी देखा हो तो हर ग्रुप में एक न एक ज्ञानी या भोगी होता हैं जो इस बात पर नेताओं की तरह घंटों बात कर सकता हैं। लेकिन अब एक लड़की का भरोसा उठ जाने के कारण खुद से शादी करने की खबर आ रही हैं।

    खबर आ रही है कि गुजरात की क्षमा अब खुद से शादी करने जा रहीं है। भारत वर्ष में ये पहली बार (India’s First Sologamy)  हैं जब किसी नागरिक ने ऐसा किया। क्षमा बिंदु 11 जून को गुजरात के वडोदरा शहर के एक मंदिर में पूरे हिंदू रीति-रिवाज के साथ शादी करेंगी। क्षमा बिंदु 11 जून को वह लाल शादी का जोड़ा पहनेंगी, हाथों में मेहंदी लगाएं और लाल सिंदूर से अपनी मांग भरेंगी। अग्नि को साक्षी मानकर शादी के सात फेरे लेंगी।

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    यही नहीं क्षमा बिंदु शादी (Kshama Bindu Gujarat) की पूरी रस्में अकेले निभानें वाली हैं, क्षमा हल्दी की रस्म , संगीत और मेहंदी की रस्म सभी रस्मों का भरपूर आनंद उठाकर शादी करने जा रही। आजकल शादी के बाद हनीमून जाना तय रहता है अब क्षमा भी शादी के बाद की सारी रस्में निभाते हुए हनीमून जाने वाली हैं, क्षमा ने बताया कि वे हनीमून पर गोवा जाएंगी। क्षमा ने खुद से ही हनीमून के लिए 2 हफ्ते के लिए गोवा जाएंगी।

    कौन हैं ये क्षमा बिंदु?

    क्षमा 24 साल की गुजरात (Kshama Bindu Gujarat) की रहने वाली हैं और समाजशास्त्र की स्टूडेंट हैं, इसके साथ ही वो एक BLOGGER भी हैं। क्षमा कहती हैं,”बहुत से लोग मुझसे कहा करते हैं कि मैं एक अच्छा कैच हूं तो मैं उन लोगों से कहती हूं कि हां, और इसीलिए मैंने ख़ुद को चुन लिया है” यानी घूम फिर कर बात Self Love पे तो आ ही गई। क्षमा बता रहीं है कि शादी के बाद से वे पूरी जिंदगी खुद से प्यार करते हुए बिताएंगी।

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    कब शुरू हुई सोलोगामी –

    ख़ुद से शादी करना यानी कि सोलोग्रामी की पहली ख़बर 20 साल पहले सुनने में आई थी। जब कैरी ब्रैडशॉ (अमेरिकन सिरीज़ सेक्स एंड द सिटी का मशहूर किरदार) ने इसके बारें में बात की थी, लेकिन इस शो का थीम कॉमेडी ड्रामा था।

    रिपोर्ट्स को देखें तो इतने सालों में इस तरह की सैकड़ों शादियां हुई हैं और सोलोगैमी के मामले में सिंगल औरतें सबसे आगे हैं।

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    ब्राज़ीलियाई मॉडल  का मामला भी जानना चाहिए , 33 वर्षीय ब्राज़ीलियाई मॉडल मे अपनी शादी के कुछ समय बाद ही ख़ुद से तलाक़ भी ले लिया।

    सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया – 

    क्षमा के इस ऐलान के बाद वे देखते ही देखते सोशल मीडिया में फेमस हो गई हैं। लोग उनसे तरह तरह के सवाल पूछ रहें, देखना होगा कि भारत में क्या इस तरह के मामले (Sologamy In India) और देखने को मिलेंगे या भारत जहां इतनी कुरीतियों पहले से ही पसरी हैं वहां इस तरह की परंपरा को लोग कैसे स्वीकारेगें।

    वही मनोचिकित्सक इस परिकल्पना से पूरी तरह सहमत नही नजर आए उनके अनुसार “खुद से प्यार करना एक स्वयं की प्राकृतिक प्रक्रिया है इसके लिए आपको कुछ और नही करना पड़ता हैं ”

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    साक्षी अपने खिलाफ आलोचकों को  इतना ही कहती हैं, “ये मेरा फ़ैसला है कि मैं किससे शादी करना चाहती हूं, चाहे वो लड़की हो या लड़का, और ख़ुद से शादी करके मैं सिर्फ़ सोलेगैमी को सामान्य साबित करना चाहती हूं, मैं लोगों को बताना चाहती हूं कि इस दुनिया में आप अकेले ही आए थे और अकेले ही जाएंगे, तो ऐसे में आपको आपसे अधिक प्यार कौन कर सकता है? अगर आप गिरते हैं तो यह आप ही होंगे जो ख़ुद को संभालेंगे भी”

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    भारत की पहली खुद से शादी (India’s First Sologamy) करने वाली 24 वर्षीय क्षमा 11 जून को खुद से शादी करने वाली हैं। सोलोगैमी का एक बिजनेे मॉडल भी है इसने भी लोगों को रोजगार दिया हैं सरकार के दावे पूरे हो न हो लेकिन सोलोगैमी ने लोगों को रोजगार दिया हैं।