Category: एजुकेशन/जॉब्स

  • अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए शिक्षा स्तर बढ़ाने की जरूरत : कुलपति

    अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए शिक्षा स्तर बढ़ाने की जरूरत : कुलपति

    समस्तीपुर पूसा डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विद्यापति सभागार में शिक्षा परिषद 2024 की बैठक का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति एवं अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ पुन्यव्रत सुविमलेंदु पांडेय ने कहा कि केंद्रीय कृषि विश्वविधालय अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मानकों को एक एक कर पूरा कर रहा है और एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनने की ओर अग्रसर है। इस बैठक में अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए शिक्षा के स्तर बढ़ाने और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई । बैठक के दौरान एक व्यापक रोडमैप तैयार करने पर भी चर्चा की गई जिसमें अगले सौ दिनों का रोड मैप, अगले एक वर्ष का एक रोड मैप और अगले पांच वर्षों का रोड मैप तैयार करने पर भी विचार किया गया । नई शैक्षणिक नीति के कार्यावन्यन एवं नए पाठ्यक्रम तथा अन्य शैक्षणिक क्षेत्रों का विस्तार को लेकर भी निर्णय लिया गया।

     


    इस बैठक में प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों और प्रयोग को कृषि छात्रों के पाठ्यक्रम में समाहित करने पर भी चर्चा की गई। हाल ही में विश्वविद्यालय ने देश में पहली बार प्राकृतिक खेती में बी एस सी के पाठ्यक्रम का शुरुआत की है।
    कुलपति डॉ पांडेय ने कहा कि अब विश्वविद्यालय के कृषि छात्र गाँवों में जायेंगे और किसान के साथ मिलकर उनकी समस्या पर अनुसंधान करेंगे। इसे पाठ्यक्रम के हिस्सा बनाया जायेगा।
    इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कृषि और संबंधित कोर्स के पाठ्यक्रम को पूरी तरह से पुनर्निर्देशित किया जाएगा जिससे कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने के लिए देश पहले से तैयार हो सके।

    कुलपति डॉ पुन्यव्रत सुविमालेंदु पांडेय ने कहा कि विश्वविद्यालय के छात्रों ने देश और दुनिया में अपना नाम किया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के छात्र वर्ल्ड बैंक सहित दुनिया भर के बीस से अधिक देश में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षा के स्तर की पहचान छात्रों से होती है। विश्वविद्यालय के 136 छात्रों ने नेट जेआरएफ परीक्षा में सफल हुए हैं, दस से अधिक छात्र को विदेशी विश्वविद्यालयों से फेलोशिप मिला है और छात्रों का लगभग सौ प्रतिशत प्लेसमेंट हुआ है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय देश को 2047 तक विकसित बनाने में अपना योगदान देने को तत्पर है और उसी अनुरूप अपना लक्ष्य निर्धारित कर रहा है।
    विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा मृत्युंजय कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय में शार्ट टर्म के साथ साथ अगले पच्चीस वर्ष का भी लक्ष्य तय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ वर्ष में विश्वविद्यालय ने तीव्र गति से प्रगति की है।
    निदेशक शिक्षा डा उमाकांत बेहरा ने कहा कि छात्रों के लिए परंपरागत शिक्षा के अतिरिक्त नेट जेआरएफ की परीक्षा, बीपीएससी और यूपीएससी की परीक्षा के लिए भी तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष से ही इसके लिए विशेष प्रयास शुरू किए गए हैं। छात्रों के लिए पुस्तक और विशेषज्ञों की भी व्यवस्था की गई है। पुस्तकालय के अतिरिक्त प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए अलग से सभी सुविधायुक्त हॉल और कमरे तैयार किये गये है। कार्यक्रम के दौरान, एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कॉलेज, तिरहुत कृषि महाविद्यालय, मत्स्यकी महाविद्यालय, वानिकी महाविद्यालय, सामुदायिक विग्यान महाविद्यालय, आधारभूत एवं मानविकी महाविद्यालय समेत सभी महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने अपने विचार व्यक्त किए और आने वाले वर्षों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने को लेकर अपने विचार प्रकट किए।
    कार्यक्रम के दौरान सभी अधिष्ठाता डा अंबरीश कुमार, डा उषा सिंह, डा कृष्ण कुमार, निदेशक प्रसार शिक्षा, डॉ एम एस कुंडू, डॉ मयंक कुमार, डॉ पीपी श्रीवास्तव, डॉ पीपी सिंह, डॉ अमरेश चंद्रा, एकेडमिक इंचार्ज, विश्वविद्यालय पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ राकेश मणि शर्मा सूचना पदाधिकारी डॉ कुमार राज्यवर्धन समेत विभिन्न वैज्ञानिक शिक्षक एवं पदाधिकारी उपस्थित थे।

  • बालमन को लुभाने वाली मनोरंजक एवं संवेदनशील कविताओं से सजी पठनीय कृति ‘प्रज्ञान’

    बालमन को लुभाने वाली मनोरंजक एवं संवेदनशील कविताओं से सजी पठनीय कृति ‘प्रज्ञान’

    (प्रज्ञान, बाल साहित्यकार डॉ. सत्यवान सौरभ जी की इक्यावन बाल कविताओं का सुन्दर संग्रह है। इन कविताओं में जीवन के विविध रंग देखने को मिलते हैं। सन् 1989 में हरियाणा में जन्मे डॉ. सत्यवान सौरभ बालसाहित्य के एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। साहित्यकार, पत्रकार और अनुवादक डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’ ने बच्चों के साथ ही बड़ों के लिए भी विपुल साहित्य सृजन किया है। बाल कविता की पुस्तकों के साथ ही प्रौढ़ साहित्य में दोहा, कथा, कविता, अनुवाद, रूपान्तर, सम्पादन की कई कृतियों का सृजन कर उन्होंने हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। बीस वर्षों से स्वतंत्र रूप से लेखन कर साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।)

    सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’

    ‘प्रज्ञान’ संग्रह की पहली कविता ‘बने संतान आदर्श हमारी’ है इसमें एक माता-पिता अपने आने वाले बच्चे के लिए सपने संजोते है। माता-पिता अपना बच्चा कैसा चाहते है। अपने आने वाले बच्चे के बारे में कवि सोचता है। हमारे नायकों का उदाहरण देते हुए कवि का कहना है कि उनका बच्चा भी जीवन में उनके अच्छे गुणों का समावेश करें और उनके बताये रास्ते पर चले। इस कविता में हमारे वीर-वीरांगनाओं का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। कवि का मानना है कि हर आम बच्चे में हमारे आदर्शों का होना जरुरी है –

    पुत्र हो तो प्रह्लाद-सा, राह धर्म की चलता जाये।
    ध्रुव तारा-सा अटल बने वो, सबको सत्य पथ दिखलाये।।
    पुत्री जनकर मैत्रियी, गार्गी, ज्ञान की ज्योत जलवा दूँ मैं।
    बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।

    बालसाहित्य बच्चों का साहित्य है। इसमें बच्चों की कोमल भावनाओं का ध्यान रखा जाता है। बच्चे मनोरंजन पसन्द करते हैं, लेकिन कवि चाहता है कि बच्चे जीवन के विषय में भी जानकारी प्राप्त करें। आसपास जो विसंगतियाँ फैली हुई हैं उनसे बच्चों को अवगत कराना भी कवि अपना धर्म समझता है। वह बच्चों की संवेदनशीलता को सम्पूर्ण समाज तक विस्तृत करना चाहता है। ‘गूगल की आगोश में ‘ कविता में कवि की यह भावप्रवण संवेदना मर्मस्पर्शी है –

    छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन से सब चाव।
    दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव।।
    मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन ।
    दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन।।

    आज के बच्चे ही कल के कर्णधार हैं। बड़े होकर ये ही देश की बागडोर सँभालेंगे। बच्चों में प्रारम्भ से ही देशप्रेम की भावना भरना आवश्यक है, जिससे कि बड़े होकर वे अच्छे नागरिक बन सकें और देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन भली -भाँति कर सकें। ‘उड़े तिरंगा बीच नभ’ कविता में कवि ने अपने देश के प्रति बालकों के मन में गौरव का भाव जगाते हुए कहा है –

    देश प्रेम वो प्रेम है, खींचे अपनी ओर।
    उड़े तिरंगा बीच नभ, उठती खूब हिलोर।।
    शान तिरंगा की रहे, दिल में लो ये ठान।
    हर घर, हर दिल में रहे, बन जाए पहचान।।

    बचपन का समय जीवन का स्वर्ण काल होता है। यह समय ही व्यक्ति के भविष्य की दशा एवं दिशा निर्धारित करता है। बचपन ही वह नींव है जिस पर बालक के भविष्य की इमारत का निर्माण होता है। बचपन में पड़े संस्कारों का प्रभाव जीवन भर बना रहता है। कवि चाहता है कि बच्चे अपने समय का सदुपयोग कर जीवन को सुन्दर बनाएँ। ‘नैतिकता की राह’ कविता के माध्यम से कवि समय के साथ चलने का संदेश देते हुए कहता है –

    कभी न भूलें हम सभी, शिक्षक का उपकार।
    रचकर नव कीर्तिमान दे, गुरु दक्षिणा उपहार।।
    नैतिकता की राह से, दे जीवन सोपान।
    उनके आशीर्वाद से, बनते हम इंसान।।

    पर्यावरण संरक्षण आज के समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है। बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण आज साँस लेना भी दूभर होता जा रहा है। पेड़ हमें प्राणवायु देते हैं और वातावरण में नमी बनाए रखकर तापमान भी नियंत्रित करते हैं। पेड़ों की सघनता वर्षा लाने में सहायक होती है । कवि ‘ओजोन’ कविता के माध्यम से बच्चों को पेड़ों का महत्त्व समझाते हुए वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करता है –

    आज बिषैली गैस पर, नज़र रखेगा कौन।
    आग उगलती चिमनियाँ, चीर रही ओजोन।।
    बढ़े प्रदूषण या घटे, हमको क्या है आज।
    लूट रहे है मिल सभी, हम धरा की लाज।।

    बच्चों के जीवन में मम्मी-पापा का स्थान सर्वोपरि होता है। वे अपनी हर आवश्यकता की पूर्ति के लिए मम्मी-पापा पर निर्भर रहते हैं। बिना मम्मी-पापा के बच्चों के सुखमय जीवन और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस काव्य संग्रह के शीर्षक की आधार बनी कविता ‘रिश्ते’ में कवि ने बच्चे के जीवन में मम्मी और पापा की भूमिकाओं का चित्रण करते हुए कहा है –

    पाई-पाई जोड़ता, पिता यहाँ दिन रात।
    देता हैं औलाद को, खुशियों की सौगात।।
    माँ बच्चो की पीर को, समझे अपनी पीर।
    सिर्फ इसी के पास है, ऐसी ये तासीर।।

    जीवन में हमेशा गतिशील बने रहने से निराशा और उदासी नहीं रहती है। हमें बाधाओं से बिना डरे निरन्तर आगे बढ़ने के प्रयास करते रहना चाहिए। कवि नदी के उदाहरण के द्वारा बच्चों को बिना घबराए अपना निर्धारित काम करते रहने का सकारात्मक संदेश देते हुए ‘समय सिंधु’ कविता में कहता है –

    पथ के शूलों से डरे,यदि राही के पाँव।
    कैसे पहुंचेगा भला,वह प्रियतम के गाँव।।
    रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष।
    नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष।।

    बचपन मधुर कल्पनाओं का समय होता है। हर बच्चा अपने बचपन में बड़े – बड़े सपने देखता है। ये सपने ही बच्चों की आशाओं के सुन्दर गहने हैं। जीवन के प्रति यह आशावादी दृष्टिकोण बच्चों के जीवन में उत्साह और उमंग के रंग भर देता है। बाल मनोविज्ञान पर आधारित कविता ‘बचपन के गीत’ में कवि ने बच्चों की इन्हीं भावनाओं को शब्द देते हुए कहा है –

    बचपन में भी खूब थे,कैसे-कैसे खेल ।
    नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल ।।
    यादों में बसता रहा, बचपन का वो गाँव ।
    कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव ।

    बच्चे प्रकृति से अपनापन अनुभव करते हैं। प्राकृतिक दृश्य उन्हें बहुत लुभाते हैं। कवि के अन्दर का नन्हा बच्चा भी प्रकृति के इन मनोरम दृश्यों को मुग्ध होकर देखता है। ‘बचपन के वो गीत’ एक ऐसी ही कविता है जिसमें कवि ने बचपन का मानवीकरण करते हुए इसके क्षण-क्षण परिवर्तित रूप का बड़ा ही मनोहारी चित्रण किया है। प्रतीकात्मक और लाक्षणिक शैली का प्रयोग देखते ही बनता है –

    बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद ।
    मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद ।।
    छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन से सब चाव ।
    दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव ।।

    कवि का मानना है कि हमें परिवर्तनों को सहज स्वीकार करना चाहिए। बड़े – बुजुर्ग लोग हर समय परिवार के लिए मजबूत स्तम्भ रहें हैं। कवि को उनका जाना पसन्द नहीं है। दादा -दादी के जाने के बाद कवि का जीवन सूना हो गया है, कवि तरह – तरह की कल्पना करता है जिससे कि हर समय उसे उनकी याद आती है। ‘दादा-दादी ‘ कविता में कवि की कल्पना की ताजगी द्रष्टव्य है –

    दादा-दादी बिन हुआ, सूना-सूना द्वार |
    कौन कहानी अब कहे, दे लोरी का प्यार ।।
    दादा-दादी बन गए, केवल अब फरियाद।
    खुशियां आँगन की करे, रह-रह उनको याद।।

    कवि की संवेदनशीलता का हाल यह है कि वह पुराने हो चुके झाड़ू में भी वृद्ध लोगों की छवि देखता है। कवि का हृदय वृद्धों की उपेक्षा से व्यथित है। ‘काम लेकर फेंक देने की प्रवृत्ति’, स्वार्थ और संकीर्णता पर आधारित है। वृद्धों का सम्मान करने की सीख देती कविता ‘वृद्धों की हर बात का’ अद्भुत है –

    वृद्धों की हर बात का, रखता कौन खयाल।
    आधुनिकता की आड़ में, हर घर है बेहाल।।
    यश वैभव सुख शांति के, यही सिद्ध सोपान।
    घर है बिना बुजुर्ग के, खाली एक मकान।।

    उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्रज्ञान बाल संग्रह की रचनाओं का प्रमुख स्वर मानवीय संवेदना और करुणा है। पर्यावरण, मौसम, धूप, सुबह, चिड़िया, तितली, गिलहरी, पत्ते, घास, हाथी, बादल,झील, चाँद, सूरज, बचपन, मम्मी, पापा, दीया, चिठ्ठी-पत्री, बेटियां, नया साल, देश, त्यौहार, नैतिकता, क्षमा भाव, हमारे शहीद, ट्यूशन, गूगल, तिरंगा, किताब, स्कूल, पुलिस, नाना-नानी और अन्य रिश्तों आदि विषयों पर बालमनोविज्ञान के अनुरूप सुन्दर रचनाओं का सृजन पूरी गम्भीरता के साथ किया गया है। भाषा बालमन के अनुरूप सरल, सरस और सहज बोधगम्य है। मुद्रण सुन्दर एवं त्रुटिरहित है। फैलते आकाश के साथ कवि के पुत्र ‘प्रज्ञान’ के मनमोहक चित्र से सजा आवरण अत्यन्त आकर्षक है। बालमन को लुभाने वाले मनोरंजक एवं संवेदनशील कविताओं से सजी पठनीय कृति ‘प्रज्ञान’ के सृजन के लिए डॉ. सत्यवान सौरभ जी को हार्दिक बधाई।

    -सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’

  • आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?

    आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?

    पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

     

    डॉ. सत्यवान सौरभ

    साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

    आज हम देखते हैं कि अधिकांश साहित्य और कला अकादमियों के मंच पर पुरस्कृत होने वाले लोगों में अधिकतर को कोई जानता भी नहीं है। यह सच है कि आज जितनी राजनीति में राजनीति है उससे अधिक राजनीति साहित्य और कलाओं में है। प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे जलने वाली मशाल कहा था। लेकिन देश भर में आज साहित्य राजनेताओं के पीछे चल रहा है। पिछले दशकों में हुए साहित्य, संस्कृति और भाषा के पतन का असर आगामी पीढ़ियों तक जाएगा। लेकिन किसे फिक्र है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। उदाहरण के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी के वार्षिक परिणामों की घोषणा का साल खत्म होने को है, मगर अभी तक नहीं हुई है। न ही आगामी साल का प्रपत्र जारी किया गया है। एक अकादमी के भीतर क्या- क्या खेल चलते है ? पारदर्शिता के अभाव में किसी को पता नहीं चलता।

    वैसे कोई भी पुरस्कार या सम्मान उत्कृष्टता का पैमाना नहीं हो सकता। हिंदी भाषा में निराला, मुक्तिबोध, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव, असगर वजाहत जैसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों को भी साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं दिया गया और बहुत से ऐसे लेखकों को पुरस्कृत किया गया, जिन्हें कभी का भुलाया जा चुका है। इस बारे में विचार करना चाहिए और पुरस्कार की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। आज जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। पुरस्कारों की दौड़ में साहित्य का भला नहीं हो सकता।

    *पुरस्कारों की दौड़ में खोकर,
    भूल बैठे हैं सच्चा सृजन ।
    लिख के वरिष्ठ रचनाकार,
    करते है वो झूठा अर्जन ।।
    मस्तक तिलक लग जाए,
    और चाहे गले मे हार ।
    बड़े बने ये साहित्यकार।।*

    आज साहित्य और कला जगत में बहुत सी संस्थाएं काम कर रही है। जब मैं इन संस्थाओं की कार्यशेळी देखता हूँ या इनके समारोहों से जुडी कोई रिपोर्ट पढ़ता हूँ तो सामने आता है एक ही सच। और वो सच ये है कि किसी क्षेत्र विशेष या एक विचाधारा वाली संस्थाएं आपस में अग्रीमेंट करके आगे बढ़ रही है। ये एग्रीमेंट यूं होता है कि आप हमें सम्मानित करेंगे और हम आपको। और ये सिलसिला लगातार चल रहा है अखबारों और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरता है। खासकर ये ऐसी खबर शेयर भी खुद ही आपस में करते है। आम पाठक को इससे कोई ज्यादा लेना देना नहीं होता। अब बात करते है सरकारी संस्थाओं और पुरस्कारों की। इनकी सच्चाई किसी से छुपी नहीं। जिसकी जितनी मजबूत लाठी, उतना बड़ा तमगा। सिफारिशों के चौराहों से गुजरते ये पुरस्कार पता नहीं, किस को मिल जाये। किसी आवेदक को पता नहीं होता। इनकी बन्दर बाँट तो पहले से ही जगजाहिर है। ऐसे पुरस्कारों की विश्वसनीयता को लेकर देश भर में गंभीर आरोप लग रहे हैं। सच्चा रचनाकार इनके चक्कर में कम ही पड़ रहा है।

    *अब चला हाशिये पे गया,
    सच्चा कर्मठ रचनाकार ।
    राजनीति के रंग जमाते,
    साहित्य के ये ठेकेदार ।।
    बेचे कौड़ी में कलम,
    हो कैसे साहित्यिक उद्धार ।
    बड़े बने ये साहित्यकार।।*

    आज संस्थाएं एक दूजे की हो गयी है। एक दूसरे को सम्मानित करने और शॉल ओढ़ाने में लगी है। सरकारी पुरस्कार बन्दर बाँट कहे या लाठी का दम। जितनी जान-पहचान उतना बड़ा तमगा। ये प्रमाण पुरस्कार विजेताओं की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। आज देशभर की साहित्य अकादमियां पद और पुरस्कारों की बंदर बांट करने में लगी है।अधिकांश अकादमियों के कामकाज को देखकर तो यही लगता है। जब तक विशेषज्ञता के क्षेत्र में राजनीतिक नियुक्तियां होती रहेगी तब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेगी। सिविल सेवा कमिशन और प्रदेशों की अकादमी में सदस्यों और अध्यक्षों की राजनीतिक नियुक्तियों ने इन संस्थाओं की विशेषज्ञता पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। बिना साधना के कैसा साहित्य?

    *देव-पूजन के संग जरूरी,
    मन की निश्छल आराधना ।।
    बिना दर्द का स्वाद चखे,
    न होती पल्लवित साधना ।।
    बिना साधना नहीं साहित्य,
    झूठा है वो रचनाकार ।
    बड़े बने ये साहित्यकार।।*

    अब समय आ गया है कि देश की सभी राज्य अकादमियों को केंद्रीय साहित्य अकादमी की तरह सचमुच स्वायत बनाया जाए और इनका काम पूरी तरह से साहित्यकारों, कलाकारों को सौंपा जाए। किसी भी अकादमी के वार्षिक कार्यों की प्रगति समयानुसार और पूरी तरह पारदर्शी बनाने पर जोर देना होगा ताकि सच्चे साहित्यकारों का विश्वास उन पर बना रहे।

     

    उदाहरण के लिए हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा जिसका राज्य के साहित्यकार बेसब्री से इंतज़ार करते है, के वर्ष 2022 के परिणाम अभी 2024 में भी जारी नहीं हुए है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है कि समाज को आईना दिखाने वाले किस क़द्र सोये पड़े है। हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी हर वर्ष 12 से अधिक साहित्यिक पुरस्कार जिसमें एक लाख से सात लाख तक की पुरस्कार राशि दी जाती है और श्रेष्ठ कृति के अंतर्गत पद्रह सौलह विधाओं में 31 -31 हज़ार रुपये की राशि सम्मान स्वरुप प्रदान करती है। इन पुरस्कारों के अलावा वर्ष भर की श्रेष्ठ पांडुलिपियों को चयनित कर उन्हें प्रकाशन अनुदान प्रदान करती है। लेकिन हरियाणा में सरकारी भर्तियों की तरह ये भी बड़ा दुखद है कि जो परिणाम अगस्त में घोषित होने थे; वो अगले साल कि जनवरी बीत जाने के बाद भी नहीं घोषित किये गए न ही साल 2023 का प्रपत्र जारी किया गया जिसमें आने वाले साल के लिए साहित्यकारों को आवेदन करना होता है; आखिर क्यों ?

    उम्मीद है कि राज्य सरकारें अकादमियों के वर्तमान विवादास्पद कार्यों की जांच कराएगी और अकादमी में योग्य और प्रतिभाशाली लेखक, कलाकारों को नियुक्त करेगी। ताकि देश भर पर भाषा, साहित्य और संस्कृति नित नए आयाम गढ़ती रहे।

  • मैथमेटिकल टैलेंट सर्च टेस्ट के लिए सोलह हजार से अधिक छात्रों ने कराया रजिस्ट्रेशन

    मैथमेटिकल टैलेंट सर्च टेस्ट के लिए सोलह हजार से अधिक छात्रों ने कराया रजिस्ट्रेशन

    राजगीर। शिक्षा विभाग के सहयोग से बिहार मैथमेटिकल सोसायटी द्वारा आयोजित होने वाली टैलेंट सर्च टेस्ट इन मैथमेटिकल साइंसेज 2023 में ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया समाप्त फरवरी में समाप्त हो गया है। टैलेंट सर्च टेस्ट के लिए कुल 82397 छात्रों में जूनियर वर्ग (कक्षा 6 से 12 ) से कुल 80892 एवं सीनियर वर्ग स्नातक स्नातकोत्तर से कुल 1505 छात्रों द्वारा पंजीकरण किया गया है। बिहार मैथमेटिकल सोसायटी के संयोजक सह संयुक्त सचिव डॉ विजय कुमार ने यह जानकारी दी है।
    उन्होंने बताया कि इसमें पुरुष वर्ग से 50600 और महिला वर्ग से 30166 ने पंजीकरण किया है।आनलाईन पंजीकरण में कक्षा 6 से कुल 12959, कक्षा 7 से 13854, कक्षा 8 से 17833, कक्षा 9 से 20223, कक्षा 10 से 8343, कक्षा 11 से 4163 कक्षा 12 से 3157 छात्रों ने पंजीकरण किया है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षा से मात्र 1505 छात्रों ने पंजीकरण किया गया है। उन्होंने बताया कि जिला स्तर पर पंजीकरण की अधिकतम समस्तीपुर से 12895, पटना से 6990 पश्चिमी चंपारण से 3758, भोजपुर से 3226, पूर्णिया से 3124, गया से 2914, बक्सर से 2909, पूर्वी चंपारण से 2199, वैशाली से 2169, मधुबनी से 2160, बेगूसराय से 2157, दरभंगा से 2146, मुजफ्फरपुर से 2047 नालंदा से 1869, रोहतास से 1830, सिवान से 1824, कैमूर से 1791, सारण से 1732, जहानाबाद से 1661, सुपौल से 1656, औरंगाबाद से 1624, भागलपुर से 1573, सीतामढ़ी से 1459, कटिहार से 1443, खगड़िया से 1313, मुंगेर से 1258, जमुई से 1145, सहरसा से 1043, नवादा से 907, शेखपुरा से 959, गोपालगंज से 955, बांका से 951, एरिया से 920, किशनगंज से 916 मधेपुरा से 916, लखीसराय से 886, अरवल से 880 एवं शिवहर से 422 छात्रों ने पंजीकरण कराया है। इसमें 82397 छात्रों में बीएसईबी से 47701 सीबीएसई 31294 एवं 400 छात्रों ने पंजीकरण किया है। इन छात्रों के लिए प्रतियोगिता परीक्षा एवं प्रवेश पत्र जारी करने हेतु शीघ्र ही सूचित किया जाएगा।इन पंजीकृत छात्रों में से कक्षा 6 से 12 के लिए 1253 छात्रों एवं स्नातक एवं स्नातकोत्तर से लिए 286 छात्रों का चयन किया जाएगा। सभी सैनिक छात्रों को पुरस्कृत एवं 1 जून से 30 जून 2024 तक प्रशिक्षित किया जाना है।

  • टोक्यों विश्वविद्यालय जापान के छात्रों ने किया कानपुर के गांवों का भ्रमण

    टोक्यों विश्वविद्यालय जापान के छात्रों ने किया कानपुर के गांवों का भ्रमण

    आईआईटी कानपुर में आयोजित पाँचवी “Japanese Language Students’ Workshop” के अंतर्गत  “टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान” से आये हुए विद्यार्थियों  एवं उनके साथ आयी प्रोफेसर Yumiko Furuichi ने इस कार्यशाला में भाग लिया।  इसी बीच जापानी शिक्षा कार्यक्रम की अनुदेशिका श्रीमती वत्सला मिश्रा ने उन्हें चौबेपुर के ग्राम रुद्रपुर बेल का भ्रमण कराया। जहाँ गाँव के एक युवा किसान अरुण सिंह चंदेल ने उन्हें अपना गांव और गांव की पाठशाला को दिखाया और वहां के लोगों से मिलवाया ।
    अरुण सिंह ने उन्हे अपना पेड़-पौधों पर आधारित “ग्रीन धरा” स्टार्ट-अप भी दिखाया, जिसकी श्रीमती मिश्रा और विधार्थियों द्वारा तारीफ की गयी। इस अवसर पर आगंतुकों द्वारा पर्यावरण हितार्थ वृक्षारोपण भी किया गया जहाँ विभिन्न ग्राम पंचायतों के ग्रामीण भी उपस्थित रहे |
  • How will the mother tongue be Saved : हरियाणा के सरकारी स्कूलों में टीजीटी हिंदी के 1100 और पीजीटी हिंदी के 1000 पद सालों से खाली

    How will the mother tongue be Saved : हरियाणा के सरकारी स्कूलों में टीजीटी हिंदी के 1100 और पीजीटी हिंदी के 1000 पद सालों से खाली

    (पिछले दस सालों से न तो नियमित और न ही कौशल के तहत भरे गए हिंदी के पद। हिंदी विषय के लिए न ही टीजीटी और न ही पीजीटी पदों के नियमित भर्ती का कोई विज्ञापन नहीं आया। एक बार साल 2022 में कौशल के तहत 1100 टीजीटी पदों के लिए भर्ती आई मगर इन पदों पर शॉर्टलिस्ट हुए उम्मीदवारों को अब तक जॉइनिंग नहीं दी गयी।)

     

    चंडीगढ़। एक तरफ तो वर्तमान सरकार सभ्यता और संस्कृति बचने के भाषण देती है दूसरी तरफ हरियाणा राज्य में उच्च और वरिष्ठ स्कूलों में हज़ारों पद मातृभाषा हिंदी के खाली है। ऐसे में आप सोच सकते है कि बच्चों को राज्य में कैसी शिक्षा मिल रही है? दूसरी और हरियाणा के हज़ारों योग्य उम्मीदवार कई बार एचटेट किये घर बैठे है जो हरियाणा को बेरोजगारी में नंबर एक पर सालों से बनाये हुए है। लेकिन सरकार पता नहीं क्यों इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही? पिछले दस सालों में हिंदी विषय के लिए न ही टीजीटी और न ही पीजीटी पदों के नियमित भर्ती का कोई विज्ञापन नहीं आया। एक बार साल 2022 में कौशल के तहत 1100 टीजीटी पदों के लिए भर्ती आई। मगर इन पदों पर शॉर्टलिस्ट हुए उम्मीदवारों को अब तक जॉइनिंग नहीं दी गयी।

    हरियाणा कौशल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संदीप मखीजा से इस बारे बात हुए तो उन्होंने ये कहकर बात टाल दी कि प्रोसेस चल रही है। लेकिन ये प्रोसेस दो साल से चल रही है पता नहीं कब खत्म होगी। जब आप स्कूलों में मातृभाषा के पदों की रिक्तियां नहीं भर सकते तो उस राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह स्वाभाविक है। विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा देना मनोविज्ञान और व्यावहारिक रूप से वांछनीय है , क्योंकि, विद्यालय आने पर बच्चे यदि अपनी भाषा में पढ़ते हैं, तो वे विद्यालय में आत्मीयता का अनुभव करने लगते हैं और यदि उन्हें सब कुछ उन्हीं की भाषा में पढ़ाया जाता है, तो उनके लिए सारी चीजों को समझना बेहद आसान हो जाता है।

  • एक आम व्यक्ति को खास बनाता है “अध्ययन” 

    एक आम व्यक्ति को खास बनाता है “अध्ययन” 

  • Farewell Ceremony : बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हुई छात्र-छात्राओं की विदाई

    Farewell Ceremony : बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हुई छात्र-छात्राओं की विदाई

    मंडावर। चंडक रोड आदर्श विद्या निकेतन इंटर कॉलेज ग्राम शहबाजपुर मे विद्यालय प्रिंसिपल गिरिराज सिंह के नेतृत्व में इंटरमीडिएट छात्र-छात्राओं का विदाई समारोह बड़े ही हर्षोल्लास आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिवकुमार राजपूत अध्यक्ष रवा राजपूत सभा जनपद बिजनौर द्वारा की गई तथा कुशल संचालन विद्यालय शिक्षिका पूनम राजपूत द्वारा किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती जी की छवि सम्मुख दीप प्रज्वलित कर एवं विद्यालय परिसर में लगी ठाकुर श्री हरगुलाल सिंह जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया, कार्यक्रम में विद्यालय प्रिंसिपल गिरिराज सिंह, शिक्षक,शिक्षिकाएं समस्त विद्यालय स्टाफ छात्र-छात्राएं विद्यालय उप प्रबंधक संजीव राजपूत, सत्येंद्र कुमार,गुरुजी मास्टर मूला सिंह उपस्थित रहे छात्र छात्राओं द्वारा बहुत ही सुंदर मनमोहक सराहनीय प्रस्तुति प्रस्तुत की गई छात्र-छात्राओं एवं शिक्षक शिक्षिकाओं को भी पुरस्कृत किया गया ।

    प्रिंसिपल श्री गिरिराज सिंह जी द्वारा छात्र-छात्राओं को अच्छा संदेश देते हुए उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए बधाई और शुभकामनाएं दी विद्यालय की ओर से सभी को जलपान कराया गया अंत में कार्यक्रम अध्यक्ष द्वारा छात्र-छात्राओं को उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए बधाई शुभकामनाएं दी,विद्यालय में इंटरमीडिएट के छात्र-छात्राओं का विदाई समारोह बहुत ही सुंदर ढंग से किए जाने पर प्रिंसिपल गिरिराज सिंह, एवं शिक्षक शिक्षिकाओं समस्त विद्यालय स्टाफ को बधाई शुभकामनाएं दी सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद के साथ कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।

  • क्यों 23 जनवरी को मनाया जाता है पराक्रम दिवस?

    क्यों 23 जनवरी को मनाया जाता है पराक्रम दिवस?

    23 जनवरी भारत के लिए कैलेंडर की सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि यह इतिहास में लिखा हुआ और दिलों में अंकित एक दिन है, जिसे पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का इतिहास पराक्रमी सेना के वीर जवानों की कहानी से भरा रहा है । भारत का पराक्रम देख पूरी दुनिया सहम जाती है। ऐसे में सेना के सम्मान को बढ़ाने के लिए हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है। पराक्रम दिवस को भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्म जयंत के रूप में मनाया जाता है। हालांकि पहले उनके जन्म दिवस के मौके पर किसी तरह का आयोजन नहीं किया जाता था लेकिन भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 में इस दिन को खास बनाने का ऐलान करते हुए हर साल पराक्रम दिवस मनाने की घोषणा की।

    पराक्रम दिवस मनाकर पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नमन करता है और उनके योगदानों को याद करता है। सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजादी के जंग में उनका ओजस्वी नारा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ ने पूरे देश में हर भारतीय के खून में उबाल ला दिया था और आजादी की जंग में एक नई जान फूंक दी थी। भारत माता के इसी वीर सपूत के जन्म दिवस को याद करते हुए हम पराक्रम दिवस मनाते हैं। इस दिन स्कूल कॉलेज में नेताजी को लेकर नाटक का भी आयोजन किया जाता है। वहीं बच्चों को नेताजी के जीवन और उनके स्पीच के बारे में जानकारी दी जाती है। जिसकी मदद से वह अपने भविष्य की राह आसान बनाते हैं।

    नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, ओडिशा में हुआ था। वह एक राजनीतिक पकड़ वाले नेता थें जो देश की आजादी के लिए साहसिक और निर्णायक कदम उठाने में विश्वास रखते थे। उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के गठन में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है, जिसने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपना पूरा जीवन भारत की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था। उनका जीवन भारत के युवाओं के लिए एक आदर्श की तरह है। उन्होंने आजादी की जंग में शामिल होने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा को छोड़ दिया था और इंग्लैंड से भारत वापस लौट आए थे। भारत में स्वतंत्रता आदोलन की लड़ाई को तेज करने के लिए उन्होंने आजाद हिंद सरकार, आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद बैंक का बनाया था। उन्हें इसमें कई देशों का साथ भी मिला था। आजादी के जंग में उनकी इसी जज्बे को याद करते हुए हर साल पराक्रम दिवस देश में मनाया जाता है ।

  • यूपी में सरकारी टीचर्स को अब नहीं मिलेगा मनचाहे जिले में ट्रांसफर? हाईकोर्ट ने कहा- यह संवैधानिक अधिकार नहीं

    यूपी में सरकारी टीचर्स को अब नहीं मिलेगा मनचाहे जिले में ट्रांसफर? हाईकोर्ट ने कहा- यह संवैधानिक अधिकार नहीं

    यूपी के बेसिक स्कूलों में टीचर्स के एक से दूसरे जिले में ट्रांसफर से जुड़ी बड़ी खबर आई है।  ट्रांसफर को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला आया है। हाईकोर्ट ने कहा, टीचर्स को मनचाहे जिले में ट्रांसफर पाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि ट्रांसफर नीति प्रशासनिक फैसला होती है. यह कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।

    अदालत ने कहा कि ट्रांसफर प्रक्रिया के मूल अधिकार में शामिल नहीं होने की वजह से कोर्ट इस मामले में सीधे तौर पर दखल नहीं दे सकती। हाईकोर्ट ने कहा, जब तक किसी मामले में मनमानी न हो, तब तक सीधे तौर पर दखल देना उचित नहीं है. हाईकोर्ट ने इसी आधार पर कई टीचर्स द्वारा दाखिल की गई चारों याचिकाओ को खारिज कर दिया। यह सभी टीचर्स प्रमोट होकर हेड मास्टर हो गए थे।

    बेसिक शिक्षा परिषद ने प्रमोशन के आधार पर इनका ट्रांसफर निरस्त कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता टीचर्स ऐसे जिलों में ट्रांसफर होकर जा रहे हैं, जहां इन्हीं के बैच के कई दूसरे असिस्टेंट टीचर्स पहले से कार्यरत हैं. यदि इनका ट्रांसफर किया गया तो उन जिलों में असहज स्थिति हो सकती है।

    सहकर्मी के साथ  असामंजस्यता की वजह से इन टीचरों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में पढ़ा रही श्रद्धा यादव, मिथिलेश यादव, मीनाक्षी गुप्ता और विवेक श्रीवास्तव समेत 16 टीचर्स ने याचिका दाखिल की थी. अदालत ने सभी चारों याचिकाओं को खारिज किया।

    चारों याचिकाओं पर कोर्ट ने एक साथ सुनवाई की थी। अदालत में यूपी सरकार को इस बारे में बनी हुई नीति के नियमों को और स्पष्ट करने को भी कहा है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया। यूपी सरकार ने पिछले साल 2 जून को एक से दूसरे जिले में ट्रांसफर की नीति जारी की थी।

    टीचर्स से ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे. तमाम टीचर्स के ट्रांसफर भी किए गए थे. कुछ के ट्रांसफर किए गए, लेकिन उन्हें रिलीज नहीं किया गया था। जिस पर हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल की गई थी. अदालत ने हिंदी में सोलह पन्नों का फैसला दिया है।