Category: एजुकेशन/जॉब्स

  • हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय : वायु प्रदूषण कम करने के लिए पराली से ईंट बनाने का आविष्कार

    हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय : वायु प्रदूषण कम करने के लिए पराली से ईंट बनाने का आविष्कार

    नई दिल्ली, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण कम करने की दिशा में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक नया आविष्कार किया है। छात्रों ने अपने इस आविष्कार के तहत खेतों की पराली से ईंट का निर्माण किया है। खास बात यह है कि इंजीनियरिंग के छात्रों ने खेतों की पराली का इस्तेमाल करते हुए ऐसी ईंट का निर्माण किया है जो कि बेहद मजबूत, हल्की व किफायती है। फिलहाल पराली की इस ईंट की टेस्टिंग की प्रक्रिया जारी है। गौरतलब है कि हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में फसल काटने के बाद बचने वाली पराली को जला दिया जाता है। पराली जलाए जाने के कारण दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है।

    हालांकि अब हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा पराली से ईंट बनाने का जो आविष्कार किया गया है उससे पराली का सदुपयोग किया जा सकेगा। इससे वायु प्रदूषण में काफी कमी आएगी, साथ ही किसानों की आमदनी भी बढ़ सकती है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पराली से ईंट बनाने के नए कारखाने और रोजगार भी विकसित होंगे।

    पराली के कारण प्रदूषण की समस्या को देखते हुए हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के विद्यार्थियों ने एक ऐसी ईंट का निर्माण किया है जो कृषि अपशिष्ट व औद्योगिक अपशिष्ट के मिश्रण से बनी है।

    विश्वविद्यालय के अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी पीठ के अंतर्गत सिविल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विकास गर्ग के मार्गदर्शन में तैयार इस ईंट को पराली संकट के एक उपयोगी निदान के तौर पर देखा जा रहा है।

    विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर टंकेश्वर कुमार ने विद्यार्थियों के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि इस नई खोज के व्यावहारिक पक्षों को देखने के बाद अवश्य ही इसका उपयोग किया जा सकेगा। उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों के इस प्रयास को जनसरोकार के प्रति संवेदनशीलता को प्रदर्शित करने वाला बताया।

    विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विकास गर्ग ने बताया कि बी.टेक. सिविल इंजीनियरिंग में अंतिम वर्ष के विद्यार्थी रमेश बिश्नोई, शैलेश सिहाग और अक्षय कुमार ने अपने प्रोजेक्ट वर्क के अंतर्गत कृषि व औद्योगिक अपशिष्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की समस्या को देखते हुए ऐसी ईंट का निर्माण किया है जो कि बेहद मजबूत हल्दी व किफायती है।

    उन्होंने कहा कि पराली के जलने से होने वाली प्रदूषण की समस्या हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व दिल्ली के लिए हर साल चुनौती बनती है और इसका समाधान बेहद जरूरी है।

    डॉ. विकास गर्ग ने कहा कि विद्यार्थियों के द्वारा तैयार उत्पाद इस दिशा में उपयोगी उपाय साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों द्वारा निर्मित ईंट के व्यवसायिक उपयोग से संबंधित आवश्यक टेस्टिंग की प्रक्रिया जारी है और इसके पूर्ण होने के उपरांत इसके व्यावहारिक उपयोग हेतु प्रयास किए जायेंगे।

  • डीयू: 3 की बजाए अब 7 दिसंबर को आएगी पीजी दाखिलों की तीसरी लिस्ट

    डीयू: 3 की बजाए अब 7 दिसंबर को आएगी पीजी दाखिलों की तीसरी लिस्ट

    नई दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएट दाखिलों के लिए तीसरी मेरिट लिस्ट 3 दिसंबर को जारी की जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने निर्णय लिया है कि पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रमों के लिए अब तीसरी मेरिट लिस्ट 7 दिसंबर को जारी की जाएगी। वहीं दूसरी मेरिट लिस्ट के आधार पर शनिवार 4 दिसंबर तक दाखिला के लिए आवेदन किया जा सकता है।

    दिल्ली विश्वविद्यालय के मुताबिक 7 दिसंबर को जारी की जाने वाली मेरिट लिस्ट के आधार पर छात्र 8 और 9 दिसंबर तक विभिन्न कोर्सेज में दाखिले के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

    विश्वविद्यालय के मुताबिक इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय पीजी कोर्स में प्रत्येक सीट के लिए औसतन 9 छात्रों ने आवेदन किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में विभिन्न स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में लगभग 20,000 सीटें हैं, लेकिन इन पाठ्यक्रमों में करीब 1.80 लाख छात्रों ने आवेदन किया है।

    पीजी एडमिशन के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा दूसरी मेरिट लिस्ट 26 नवंबर को जारी की थी। दूसरी मेरिट लिस्ट के आधार पर 27 नंवबर से 30 नवंबर तक दाखिला प्रक्रिया शुरू की गई। इसके बाद पीजी दाखिले के लिए 3 दिसंबर को तीसरी मेरिट लिस्ट जारी होनी थी। हालांकि यह लिस्ट 7 दिसंबर को जारी की जाएगी।

    उधर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने भी एमए, एमएससी और एमसीए आदि पीजी पाठ्यक्रमों के लिए ली गई प्रवेश परीक्षा के नतीजे घोषित कर दिए गए हैं। जेएनयू के इन पीजी पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए देश भर से विभिन्न राज्यों के हजारो छात्रों ने आवेदन और प्रवेश परीक्षाएं दी थीं।

    जेएनयू अब एमए, एमएससी और एमसीए की प्रवेश परीक्षा में अर्जित किए गए अंकों के आधार पर सफल उम्मीदवारों का चयन कर रहा है। विश्वविद्यालय ने दाखिले के लिए ऐसे सफल छात्रों की सूची जारी कर दी है। छात्र अपने रोल नंबर के जरिए यह लिस्ट वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं।

    दिल्ली विश्वविद्यालय में जहां पीजी के लिए करीब 1.80 लाख छात्रों ने आवेदन किया था वहीं एमफिल और पीएचडी के लिए करीब 28,827 पंजीकरण हुए हैं। रजिस्ट्रेशन करवाने वाले छात्रों की प्रवेश परीक्षा 26, 27, 28, 29 व 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को आयोजित की गई थी।

    एक अहम फैसलें में यूजीसी ने एमफिल और पीएचडी छात्रों को बड़ी राहत प्रदान की है। यूजीसी ने एमफिल और पीएचडी छात्रों को थीसिस जमा करने की अंतिम तिथि में छह महीने का एक्सटेंशन दिया है। यूजीसी द्वारा जारी किए गए इस निर्देश के मुताबिक एमफिल और पीएचडी कर रहे छात्र अब अगले वर्ष 30 जून तक अपनी थीसिस जमा करवा सकते हैं। इससे पहले यह थीसिस इसी वर्ष 31 दिसंबर तक जमा करवाई जानी थी।

  • स्कूली छात्रों को वेद आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाए: संसदीय समिति

    स्कूली छात्रों को वेद आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाए: संसदीय समिति

    नई दिल्ली, शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति चाहती है कि स्कूली छात्रों को वेद और ग्रंथों पर आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाए। इसके लिए स्कूल की किताबों में वेदों और अन्य ग्रन्थों को शामिल किया जाए। समिति ने अपनी यह सिफारिश संसद के समक्ष रखी है।

    भाजपा सांसद विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने स्कूली किताबों और छात्रों के पाठ्यक्रम में बदलाव करने की सिफारिश की है। समिति के मुताबिक एनसीईआरटी को स्कूलों के पाठ्यक्रम में वेदों एवं अन्य ग्रन्थों पर आधारित शिक्षा व ज्ञान को शामिल करना चाहिए।

    विशेषज्ञों का कहना है कि आज की चुनौतियों से निपटने के लिएहम तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और वल्लभी विश्वविद्यालयों से प्रेरणा ले सकते हैं जिन्होंने शिक्षण और अनुसंधान के उच्च स्तर निर्धारित किए थे। विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिए दुनिया भर के विद्वान और छात्र इन केंद्रों में आए थे। उस प्राचीन प्रणाली में आधुनिकता के कई तत्व थे और उसने चरक, आर्यभट्ट, चाणक्य, पाणिनि, पतंजलि, गार्गी, मैत्रेयी और थिरुवल्लुवर जैसे महान विद्वानों को जन्म दिया। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, व्याकरण और सामाजिक विकास में अमूल्य योगदान दिया।

    दुनिया के अन्य हिस्सों के लोगों ने भारतीय विद्वानों के कार्यों का अनुवाद किया और ज्ञान के और विकास के लिए उनकी शिक्षाओं का इस्तेमाल किया। आज के भारतीय विद्वानों को इस तरह के मूल ज्ञान का सृजन करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसका इस्तेमाल समकालीन वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए किया जाए।

    शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि नालंदा , विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों का अध्ययन किया जाए। आज की आवश्यकताओं के अनुरूप उसमें बदलाव कर शिक्षकों को उससे अवगत कराया जाए।

    संसदीय समिति ने स्वतंत्रता संग्राम को लेकर भी न्यायपूर्ण अवधारणा तैयार करने पर जोर दिया है। उन स्वतंत्रता सेनानियों को पाठ्यक्रम में स्थान देने की बात कही गई है, जिन्हें अभी तक उचित स्थान नहीं मिला है।

    इससे पहले शिक्षा की संसदीय स्थायी समिति ने सुझाव दिया था कि केन्द्रीय विद्यालय संगठन को विदेश में अपनी शाखाएं खोलनी चाहिए। समिति के मुताबिक केन्द्रीय विद्यालय संगठन को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीयों की संख्या को ध्यान में रखते हुए विदेशों में अपना विस्तार करना चाहिए।

    भाजपा सांसद विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने बजट सत्र के दौरान संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। अपनी रिपोर्ट में समिति ने केंद्रीय विद्यालयों के कामकाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।

    पैनल ने सुझाव दिया कि केंद्रीय विद्यालय संगठन को और अधिक छात्रों को समायोजित करने के लिए विदेशों में भी अपनी शाखाएं खोलनी चाहिए। संसदीय समिति ने कहा कि कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई भारतीय बसे हुए हैं, इसलिए इन देशों में केंद्रीय विद्यालय खोलने के लिए एक व्यवहार्यता अध्ययन करना चाहिए।

    वर्तमान में मॉस्को, तेहरान और काठमांडू जैसे विदेशी शहरों में केंद्रीय विद्यालय मौजूद हैं। यह सभी स्कूल वहां दूतावास के अंदर हैं और इनका खर्च विदेश मंत्रालय द्वारा वहन किया जा रहा है

  • सीबीएसई: 12वीं की मुख्य परीक्षाएं शुरू, देशभर में हुई समाजशास्त्र की परीक्षा

    सीबीएसई: 12वीं की मुख्य परीक्षाएं शुरू, देशभर में हुई समाजशास्त्र की परीक्षा

    नई दिल्ली, सीबीएसई बोर्ड के 12 वीं कक्षा के छात्रों की मुख्य परीक्षाएं एक दिसंबर से शुरू हो गई हैं। बुधवार को देशभर में सीबीएसई 12वीं के छात्र समाजशास्त्र की परीक्षा में शामिल हुए। 12वीं कक्षा के छात्रों की यह परीक्षाएं 22 दिसंबर तक चलेंगी। इस दौरान 19 मुख्य विषयों की परीक्षा ली जा रही है। सीबीएसई बोर्ड की यह परीक्षाएं केवल ऑफलाइन मोड में आयोजित की जा रही हैं। इन परीक्षाओं में ओआरएम शीट का इस्तेमाल किया जा रहा है। सीबीएसई के मुताबिक इस बार बोर्ड परीक्षा के छात्रों को 20 मिनट का रीडिंग टाइम दिया गया है। शुरू हो चुकी पहले चरण की बोर्ड परीक्षाओं में बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न (एमसीक्यू) पूछे जा रहे हैं।

    12वीं कक्षा के छात्रों की अब 3 दिसंबर को इंग्लिश की परीक्षा है। 6 दिसंबर को गणित, 7 को फिजिकल एजुकेशन, 8 को बिजनेस स्टडी, 9 को ज्योग्राफी, 10 को फिजिक्स, 11 को साइकोलॉजी, 13 को अकाउंटेंसी, 14 को केमिस्ट्री, 15 को इकोनोमिक्स और 16 को हिंदी की परीक्षा ली जाएगी। 17 दिसंबर को राजनीतिक विज्ञान, 18 को बायोलॉजी, 20 दिसंबर को इतिहास, 21 दिसंबर को कंप्यूटर साइंस और 22 दिसंबर को आखिरी परीक्षा होम साइंस की ली जाएगी।

    सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज ने कहा यदि कोविड के कारण दूसरे चरण की परीक्षाएं नहीं हो पाती हैं, तो फिर परीक्षाओं में हासिल किए गए नंबर ही अंतिम माने जाएंगे और इन्हीं के आधार पर रिजल्ट तैयार किया जाएगा।

    हालांकि यदि ऐसी कोई स्थिति नहीं आती है और दूसरे चरण की परीक्षाएं भी सीबीएसई द्वारा सफलतापूर्वक आयोजित करा ली गई तो फिर फाइनल रिजल्ट इन दोनों परीक्षाओं के अंक 50 -50 फीसदी के हिसाब से तय किए जाएंगे।

    सीबीएसई ने देश भर के सभी स्कूलों को 23 दिसंबर तक प्रैक्टिकल के अंक अपलोड करने का निर्देश जारी किया है।

    वहीं मेजर विषयों के लिए सीबीएसई 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं 30 नवंबर से शुरू हो चुकी हैं।

    दूसरे चरण की बोर्ड परीक्षाएं अगले वर्ष मार्च-अप्रैल में हैं। कोरोना या फिर ऐसे किसी भी कारण से दूसरे चरण की परीक्षाएं स्थगित हुई तो पहले चरण की परीक्षाओं को ही अंतिम मानते हुए इन्हीं परीक्षाओं के आधार पर छात्रों का रिजल्ट जारी किया जाएगा।

    संयम भारद्वाज ने कहा कि परीक्षाओं के लिए समुचित व्यवस्था की गई है। कोविड से निपटने की तैयारी की गई है। छात्रों को कोई खतरा न हो इसका भी ध्यान रखा गया है। छात्रों के साथ-साथ परीक्षा लेने वाले अध्यापकों की सुरक्षा की भी व्यवस्था की गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि सीबीएसई परीक्षा के दिन ही परीक्षा पत्रों की जांच और मूल्यांकन प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।

    सीबीएसई द्वारा जारी किए गए शेड्यूल के मुताबिक 30 नवंबर सुबह 11 बजकर 30 मिनट से 10वीं बोर्ड के लिए सोशल साइंस की परीक्षा ली गई। 2 दिसंबर को विज्ञान, 3 को गृह विज्ञान, 4 को गणित, 8 दिसंबर को कंप्यूटर एप्लीकेशन, 9 को हिंदी और 11 दिसंबर को इंग्लिश की परीक्षा आयोजित की जाएगी।

    सीबीएसई के मुताबिक एक केंद्र में ज्यादा से ज्यादा 350 छात्र ही परीक्षा दे सकते हैं। छात्रों के बीच छह फीट की दूरी रखी जा रही है। परीक्षा केंद्र में प्रत्येक छात्र व मौजूद शिक्षक को अनिवार्य तौर पर मास्क पहनना है।

    सीबीएसई ने सभी स्कूलों एवं परीक्षा केंद्र के लिए नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक परीक्षा केंद्र में कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाना अनिवार्य है।

  • डीयू में पांच साल बाद भी लागू नहीं हुआ संसदीय समिति का सकरुलर

    नई दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 पदों के बैकलॉग और रोस्टर को लेकर अनेक विसंगतियां पाई गई थीं। रिक्त पदों को भरने के लिए संसदीय समिति द्वारा सकरुलर भी जारी किया गया। हालांकि यह सकरुलर अब तक लागू नहीं हो सका है।

    अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा मांग की जा रही है कि डीयू में संसदीय समिति द्वारा भेजे गए सकरुलर को लागू किया जाए। संसदीय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण व रोस्टर के मुद्दों को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग, यूजीसी, डीओपीटी और दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय में एससी, एसटी के टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ की आरक्षण नीति और रोस्टर के मुद्दे को लेकर मीटिंग की थी।

    एससी, एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 पदों का बैकलॉग पाया और रोस्टर को लेकर अनेक विसंगतियां पाई थीं। इसके अतिरिक्त तीन कॉलेजों में रोस्टर को डीओपीटी के अनुसार लागू नहीं किया गया था। संसदीय समिति द्वारा भेजा गया सकरुलर पिछले पांच साल से प्रशासन की फाइलों में कैद है, उस पर धूल जम गई है लेकिन कार्यवाही आज तक नहीं किए जाने को लेकर फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस व दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने गहरी चिंता व्यक्त की है। फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने संसदीय समिति में विशेष याचिका दायर कर 22 दिसम्बर 2016 के संसदीय समिति द्वारा डीयू को भेजे गए सकरुलर को लागू करने की मांग की है।

    फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि संसदीय समिति ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर को भेजे गए पत्र में लिखा है कि कॉलेज आरक्षण नीति को सही ढंग से नहीं अपना रहे हैं। रोस्टर प्रणाली के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। ऐसे में यूजीसी को आरक्षण लागू करने के नोडल अधिकारी होने के नाते अनुदान बंद कर देना चाहिए। संसदीय समिति ने डीयू के पूर्व वाइस चांसलर को भेजे गए पत्र में लिखा है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में 4500 पदों का बैकलॉग है, कॉलेजों के रोस्टरों में अनेक विसंगतियां हैं। रोस्टर में कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ( डीओपीटी ) के दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है।

    उन्होंने बताया है कि संसदीय समिति ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्य भट्ट कॉलेज, दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज के द्वारा बनाए गए रोस्टर रजिस्टर में गड़बड़ियां पाई थीं।

    डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि समिति की दो मीटिंग के बाद डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. योगेश कुमार त्यागी को पत्र लिखकर कहा था कि डीयू में 4500 रिक्तियों का बैकलॉग है। इन बैकलॉग रिक्तियों को भरे जाने की समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।

  • झारखंड: सिविल सर्विस परीक्षा के रिजल्ट पर उठे विवाद पर राज्यपाल ने जेपीएससी चेयरमैन को किया तलब, मांगा जवाब

    झारखंड: सिविल सर्विस परीक्षा के रिजल्ट पर उठे विवाद पर राज्यपाल ने जेपीएससी चेयरमैन को किया तलब, मांगा जवाब

    झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विस परीक्षा के परिणाम पर उठे विवाद को लेकर बुधवार को आयोग के चेयरमैन अमिताभ चौधरी को राजभवन तलब किया। इस विवाद के सभी बिंदुओं पर राज्यपाल ने आयोग के चेयरमैन से जानकारी मांगी। राज्यपाल से मिलने के बाद राजभवन से बाहर निकले जेपीएससी चेयरमैन ने सिर्फ इतना कहा कि राज्यपाल से इस मुद्दे पर जो भी बात हुई है, उसके बारे में वह मीडिया को नहीं बता सकते। यह जरूर है कि जेपीएससी को लेकर जितने भी सवाल हैं, उनके जवाब आयोग की ओर से वेबसाइट पर जल्द ही सबको मिल जायेंगे।

    सूत्रों के अनुसार, राज्यपाल ने जानना चाहा कि जेपीएससी के अभ्यर्थियों ने रिजल्ट को लेकर जो आरोप लगाये हैं, उनसे जुड़े वास्तविक तथ्य क्या हैं? अभ्यर्थियों का आरोप है कि जेपीएससी पीटी का जो रिजल्ट जारी किया गया है, तीन दर्जन से भी ज्यादा अभ्यर्थी ऐसे हैं, जिनके रोलनंबर लगातार समान सिरीज में हैं। लोहरदगा, साहिबगंज और लातेहार के कुछ परीक्षा केंद्रों पर एक कमरे में परीक्षा देने वाले लगातार क्रमांक वाले अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित किया गया है। यह कैसे संभव है कि एक साथ इतने मेधावी छात्र एक ही कमरे में परीक्षा दे रहे थे। अभ्यर्थियों ने सरकार की आरक्षण नीति का सही तरीके से अनुपालन नहीं किये जाने और अपेक्षाकृत कम अंक लाने वाले परीक्षार्थियों को उत्तीर्ण घोषित करने जैसे गंभीर आरोप भी लगाये हैं। बताया जा रहा है कि जेपीएससी के चेयरमैन ने राज्यपाल से कहा कि परीक्षार्थियों द्वारा जो भी आपत्तियां उठायी गयी हैं, उन पर अगले तीन दिनों के अंदर आयोग लिखित तौर पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देगा।

    बता दें कि इसके पहले मंगलवार को रांची में जेपीएससी पीटी के रिजल्ट को रद्द करने की मांग को लेकर अभ्यर्थियों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। सैकड़ों अभ्यर्थी रांची के मोरहाबादी मैदान से निकलकर जेपीएससी मुख्यालय पर प्रदर्शन करने जा रहे थे, तब पुलिस ने उनपर लाठी चार्ज किया था। इस प्रदर्शन में भाजपा के दो विधायक भानु प्रताप शाही और नवीन जायसवाल एवं आजसू पार्टी के विधायक लंबोदर महतो भी शामिल थे।

    लाठी चार्ज की घटना के बाद मंगलवार शाम पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की अगुवाई में पार्टी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से राजभवन जाकर मुलाकात कर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में उनसे जेपीएससी की गड़बड़ियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सीधे हस्तक्षेप की अपील की गयी थी। राज्यपाल से मिलने गये प्रतिनिधिमंडल में विधायक रणधीर सिंह, मनीष जायसवाल, अमर बाउरी सहित अन्य नेता शामिल थे।

    झारखंड लोक सेवा आयोग अपनी स्थापना के प्रारंभिक काल से ही लगातार विवादों में रहा है। स्थापना के 20 सालों के दौरान आयोग सिविल सेवा की केवल छह परीक्षाएं ले पाया और इन सभी के रिजल्ट पर विवाद रहा है। दो सिविल सेवा परीक्षाओं में गड़बड़ियों की तो सीबीआई जांच भी चल रही है। जेपीएससी ने 7वीं से 10वीं सिविल सेवा के लिए संयुक्त रूप से पिछले महीने प्रारंभिक परीक्षा आयोजित की थी। विगत एक नवंबर को इसका रिजल्ट घोषित किया गया। रिजल्ट आने के साथ ही इसपर विवाद शुरू हो गया था।

  • दिल्ली सरकार ‘श्रमिक मित्रों’ को करेगी प्रशिक्षित

    नई दिल्ली | दिल्ली सरकार राष्ट्रीय राजधानी में 700 से 800 ‘श्रमिक मित्रों’ को प्रशिक्षित करेगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पंजीकृत निर्माण श्रमिक सरकार द्वारा उनके लिए प्रस्तावित सहायता योजनाओं से अवगत हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, “इस कार्यक्रम के तहत 700 से 800 श्रमिक मित्रों को प्रशिक्षित किया जाएगा जो जिला, विधानसभा और वार्ड स्तर के समन्वयक के रूप में काम करेंगे। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी वाडरें में कम से कम 3-4 श्रमिक मित्र हों जो निर्माण श्रमिकों की मदद कर सकें।

    उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि इन श्रमिक मित्रो का कार्य निर्माण बोर्ड द्वारा पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को सरकार की सहायता योजनाओं के बारे में सूचित करना, इसके लिए आवेदन करना और श्रमिकों को योजना का लाभ मिलने तक उनकी मदद करना होगा।

    दिल्ली में लगभग छह लाख निर्माण श्रमिकों ने केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न पंजीकरण परिसरों के माध्यम से निर्माण बोर्ड में अपना पंजीकरण कराया है।

    उन्होंने कहा कि मजदूरों के बच्चों में प्रतिभा होती है लेकिन वे बड़े सपने देखने से डरते हैं। उन्हें आश्वस्त करना होगा कि आईआईटी जैसा संस्थान बनाने वाले मजदूर का बच्चा भी आईआईटी में पढ़ सकता है। उन्हें पढ़ने दें और सरकार उनकी मदद करेगी। इस देश में संसद तक सड़क बनाने वाले मजदूर आज भी समाज में हाशिए पर हैं। यह आज के समाज की कड़वी सच्चाई है। दिल्ली सरकार अपनी लाभकारी योजनाओं के माध्यम से इन हाशिए के समुदायों को सम्मान दिलाने के लिए काम कर रही है।

    दिल्ली सरकार आवास निर्माण के लिए 3-5 लाख रुपये की सहायता प्रदान करती है, 30,000 रुपये का मैटरनिटी बेनिफिट, ऋण के रूप में 20,000 रुपये और उपकरणों की खरीद के लिए अनुदान के रूप में 5,000 रुपये, श्रमिकों की प्राकृतिक मृत्यु पर 1 लाख रुपये और आकस्मिक मृत्यु पर 2 लाख रुपये, विकलांगता के मामले में 1 लाख रुपये, और 3,000 रुपये प्रति माह पेंशन, 500-10,000 रुपये प्रति माह स्कूली शिक्षा और बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए, और श्रमिकों और उनके बच्चों की शादी के लिए 35,000 रुपये की सहायता करती है।

  • स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी: विश्व के शीर्ष 2 फीसदी वैज्ञानिकों में भारत के 16 शोधकर्ता

    स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी: विश्व के शीर्ष 2 फीसदी वैज्ञानिकों में भारत के 16 शोधकर्ता

    नई दिल्ली | स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए ने दुनिया के शीर्ष 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठित वैश्विक सूची में भारत के 16 शोधकतार्ओं को शामिल किया है। यह सूची कुछ स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एमिनेंट प्रोफेसर, प्रोफेसर जॉन इओनिडिस के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा तैयार की गई है। इसे एल्सेवियर बीवी, विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय ने प्रकाशित किया है। यह सभी 16 शोधकतार्ओं जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से संबंधित है। भारत से कुल 3352 शोधकतार्ओं ने इस सूची में स्थान पाया जो वैश्विक शोध मंच पर देश के बहुमूल्य प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा दो अलग-अलग सूचियां जारी की गईं। पहली प्रतिष्ठित सूची करियर-लॉन्ग डेटा पर आधारित है जिसमें 08 जामिया प्रोफेसरों ने अपनी जगह बनाई। वर्ष 2020 के प्रदर्शन की दूसरी सूची में संस्थान के 16 वैज्ञानिक हैं।

    इस प्रक्रिया में एक लाख से अधिक शीर्ष वैज्ञानिकों का सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटाबेस एक समग्र संकेतक में साइटेशंस, एच-इंडेक्स और साइटेशंस पर मानकीकृत जानकारी प्रदान करता है।

    वैज्ञानिकों को 22 वैज्ञानिक क्षेत्रों और 176 उप-क्षेत्रों में वगीर्कृत किया गया है। करियर-लॉन्ग डेटा को 2020 के अंत तक अपडेट किया जाता है। इसमें चयन सी-स्कोर द्वारा शीर्ष 100,000 या 2 फीसदी या उससे अधिक के प्रतिशत रैंक पर आधारित है।

    जामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने कहा, यह जामिया में किए जा रहे उच्च स्तरीय अनुसंधान की स्वीकृति है। यह मान्यता विश्वविद्यालय को उत्कृष्टता के वैश्विक मानचित्र पर रखती है और संस्थान के लिए बहुत गर्व की बात है।

    जामिया से प्रो. इमरान अली, प्रो. अतीकुर रहमान, प्रो. अंजन ए. सेन, प्रो. हसीब अहसान, प्रो. सुशांत जी. घोष, प्रो. एस. अहमद, प्रो. तोकीर अहमद और डॉ. मोहम्मद इम्तियाज को दोनों प्रतिष्ठित सूचियों में शामिल किया गया है।

    शीर्ष 2 फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में प्रो. आबिद हलीम, प्रो. रफीक अहमद, प्रो. तबरेज आलम खान, प्रो. मो. जावेद, प्रो. अरशद नूर सिद्दीकी, प्रो. मुशीर अहमद, प्रो. फैजान अहमद और प्रो. तारिकुल इस्लाम को शामिल किया गया है।

  • दिल्ली विश्वविद्यालय में ठेका-शिक्षण का मुद्दा

    दिल्ली विश्वविद्यालय में ठेका-शिक्षण का मुद्दा

    प्रेम सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय में इस समय करीब 5 हज़ार शिक्षक तदर्थ हैं. ये तदर्थ शिक्षक हर साल प्रत्येक अकादमिक सत्र में कॉलेज प्रशासन द्वारा लगाए-हटाये जाते रहते हैं. इस प्रक्रिया में उन्हें तदर्थ शिक्षक से अतिथि शिक्षक भी बना दिया जाता है. इनमें से बहुतों को किसी सत्र में अतिथि शिक्षक के रूप में भी अवसर नहीं मिल पाता. दिल्ली विश्वविद्यालय में यह स्थिति पिछले करीब 10 सालों से बनी हुई है. बीच-बीच में ऐसा हुआ है कि कुछ समय के लिए स्थाई नियुक्ति की प्रक्रिया चलाई गई और कुछ तदर्थ शिक्षकों को स्थाई किया गया. लेकिन ऐसा सीमित स्तर पर ही हुआ है. अन्यथा विश्वविद्यालय में तदर्थ शिक्षकों की इतनी बड़ी तादाद नहीं होती. इतनी बड़ी तादाद में तदर्थ शिक्षक हैं, तो ज़ाहिर है उन पदों के लिए जरूरी वर्कलोड भी है, जिस पर ये शिक्षक कार्यरत हैं.

    दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत 90 कॉलेज हैं. इनमें स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अक्सर विज्ञापन निकलते रहते हैं. उम्मीदवार अब पहले की तरह बिना शुल्क के आवेदन नहीं कर सकते. हर कॉलेज एक विषय में आवेदन करने के लिए अप्रतिदेय (नॉन रिफंडेबल) 500 रुपये शुल्क लेता है. दिल्ली और पूरे देश से योग्य उम्मीदवार निर्धारित शुल्क के साथ फार्म जमा करते हैं. लेकिन इंटरव्यू नहीं कराये जाते. फिर से रिक्त स्थानों का विज्ञापन किया जाता है और उम्मीदवार फिर से शुल्क सहित आवेदन फार्म जमा करते हैं. यह चक्र चलता रहता है.

    दिल्ली विश्वविद्यालय में भी अन्य विश्वविद्यालयों की तरह परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र तैयार करने और उत्तर पुस्तिकाएं जांचने के निश्चित नियम हैं. स्नातक स्तर पर पास (अब प्रोग्राम) और आनर्स विषयों की उत्तर पुस्तिकाएं कौन शिक्षक जांचेंगे, इसका भी नियम है. लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थाई शिक्षकों की संख्या घट जाने के चलते तदर्थ शिक्षक बड़ी संख्या में सभी तरह की उत्तर पुस्तिकाएं जांचते हैं. ज़ाहिर है, ठेके पर आने वाले शिक्षक भी उत्तर पुस्तिकाएं जांचने का काम करेंगे. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उत्तर पुस्तिकाएं जांचने के लिए निर्धारित नियमों में संशोधन नहीं किया है.

    दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षक राजनीति में तदर्थ शिक्षकों का मुद्दा अपनी अलग जगह बना चुका है. अपनी समस्या को लेकर तदर्थ शिक्षकों ने कई बार डूटा और उसमें सक्रिय विभिन्न शिक्षक संगठनों से अलग, अपनी स्वतंत्र पहल भी की है. लेकिन न डूटा, न शिक्षक संगठन और न तदर्थ शिक्षकों की स्वतंत्र पहल तदर्थवाद खत्म करने की दिशा में कोई ज़मीन तोड़ पाई है. तदर्थ, अतिथि और पूरी तरह बेरोजगार शिक्षक आशा और आश्वासनों के सहारे जिंदगी की गाड़ी खींचे जा रहे हैं. शिक्षण में तदर्थवाद के चलते छात्र, विषय और शिक्षक के बीच बनने वाले तालमेल का पूरी तरह अभाव रहता है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान छात्रों को होता है. यह सब देश की राजधानी के उस मूर्धन्य विश्वविद्यालय में हो रहा है, जो प्राथमिक रूप से अच्छे शिक्षण के लिए जाना जाता था.

    दिल्ली विश्वविद्यालय का शिक्षक समुदाय इस आशा में था कि जरूर एक दिन तदर्थवाद ख़त्म होगा और स्थायी नियुक्तियां होंगी. लेकिन आशा के विपरीत 16 जनवरी की विद्वत परिषद (अकेडमिक कौंसिल) की बैठक में दिल्ली विश्वविद्यालय में ठेका-शिक्षण (कंट्रेक्टचुअल शिक्षण) का नियम पारित कर दिया गया. जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस XII के तहत केवल स्थायी, अस्थायी और तदर्थ शिक्षक रखने की व्यवस्था है. इस आर्डिनेंस में अनुच्छेद ई जोड़ कर कुल स्थाई रिक्त स्थानों के विरुद्ध 10 प्रतिशत शिक्षक ठेके पर रखने का नियम बना दिया गया है. विद्वत परिषद के सभी चुने हुए प्रतिनिधियों ने इस फैसले का जोरदार विरोध किया. अगले दिन इस फैसले पर आक्रोश में भरे हज़ारों शिक्षकों ने डूटा की अगुआई में रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक रैली निकाली और गिरफ़्तारी दी. उसके अगले दिन दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर धरना दिया गया. दोनों दिन सरकार की ओर से पुलिस और अर्ध-सैनिक बलों की भारी तादाद में तैनाती की गई. सुरक्षा बालों ने आंदोलनरत शिक्षकों पर लाठीचार्ज भी किया. सरकार का कड़ा रुख यह बताता है कि वह यह फैसला वापस नहीं लेना चाहती.

    दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था विद्वत परिषद में शिक्षक समुदाय से चुने गए 26 प्रतिनिधियों के अलावा 150 से अधिक पदेन और मनोनीत सदस्य होते हैं, जिनमें विभागों के अध्यक्ष, प्रोफेसर और कालेजों के प्रिंसिपल शामिल हैं. 16 जनवरी की बैठक में उपस्थित किसी भी पदेन व मनोनीत सदस्य ने फैसले का विरोध तो छोड़िये, उस पर बहस भी जरूरी नहीं समझी. गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षण-व्यवस्था में ठेका-प्रथा लागू करने का नया नियम बनाने से पहले निश्चित प्रावधानों के तहत बहस तक नहीं कराई गई. कुलपति उसे सीधे विद्वत परिषद की बैठक में ले कर आ गए और पदेन व मनोनीत सदस्यों की संख्या के बल पर पारित घोषित कर दिया.

    कुलपति समेत विश्वविद्यालय के किसी प्रोफेसर-प्रिंसिपल को नहीं लगा कि अगर कैरियर की शुरुआत में उन्हें दशकों तक तदर्थ या ठेके पर रखा जाता तो वे जिस मुकाम पर हैं, क्या वहां पहुंच पाते? जो पद, अनुदान, प्रोजेक्ट, विदेशी कार्यभार आदि वे हासिल किये हुए हैं, क्या उन्हें मिल पाते? अपने बच्चों को उन्होंने जिस तरह से सेटल किया है, क्या कर पाते? प्रोविडेंट फंड, पेंशन, मेडिकल फैसिलिटी, इंश्योरेंस आदि के साथ जिस तरह उन्होंने अपना अवकाश प्राप्ति के बाद का भविष्य सुरक्षित किया है, क्या कर पाते? यह बात दूसरी तरह से भी पूछी जा सकती है. अगर उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक तदर्थ, ठेके पर या अतिथि भर होते, तो वे अपने विषय को पूरी गहराई के साथ समझ पाते? जो अकादमिक उपलब्धियां उन्होंने हासिल की हैं, क्या कर पाते?

    ऐसा लगता है निजीकरण की आंधी में देश के शिक्षकों का दायित्व-बोध भी उड़ गया है. उदारवाद के नाम पर 1991 में लागू की गईं नई आर्थिक नीतियों ने पिछले तीन दशकों में हमारे राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में अपना प्रभाव कायम कर लिया है. इस बीच भारत की शिक्षा-व्यवस्था पर निजीकरण का तेज हमला जारी है. स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय के शिक्षण में ठेका-प्रथा लागू करना दरअसल उनके निजीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है. यह प्रक्रिया यहीं रुकने वाली नहीं है. तदर्थवाद और ठेका-प्रथा के खिलाफ आंदोलनरत शिक्षकों को यह हकीकत समझनी होगी. तभी उनके आंदोलन का छात्रों, शिक्षकों, शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था के हित में स्थाई परिणाम निकल पायेगा.

     

  • झारखंड के आईएएस के.के. खंडेलवाल की नि:शुल्क कक्षा में पढ़कर फिर टॉप आईआईटी में पहुंचे पांच छात्र

    झारखंड के आईएएस के.के. खंडेलवाल की नि:शुल्क कक्षा में पढ़कर फिर टॉप आईआईटी में पहुंचे पांच छात्र

    रांची। 5 झारखंड के वरिष्ठ आईएएस ऑफिसर के.के. खंडेलवाल की नि:शुल्क कक्षा में पढ़ने वाले पांच छात्रों ने एक बार फिर देश के टॉप आईआईटी में दाखिला पाया है। सरकारी सेवा की व्यस्तता के बावजूद खंडेलवाल वक्त निकालकर चुनिंदा बच्चों को आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराते हैं। इस वर्ष उन्होंने सात छात्रों को पढ़ाया था, जिनमें से पांच ने शानदार रैंक हासिल कर देश के शीर्ष आईआईटी में प्रवेश पा लिया है। खंडेलवाल झारखंड सरकार के उच्च शिक्षा एवं तकनीकी विभाग में अपर मुख्य सचिव के रूप में पदस्थापित हैं और अब तक 15 विद्यार्थी उनसे ‘गुरुमंत्र’ पाकर आईआईटी पहुंच चुके हैं।

    इस वर्ष सफल विद्यार्थियों में वैष्णवी को आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन मिला है, जबकि शशांक कुमार को आईआईटी गुवाहाटी में कंप्यूटर साइंस में बीटेक में प्रवेश मिला है। अलीशा नामक छात्रा को आईआईटी मुंबई में इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांच मिली है। इसी तरह यशराज और शुभम सोनी को आईआईटी बीएचयू में एडमिशन मिला है। सफल अभ्यर्थियों में वैष्णवी लड़कियों की कैटेगरी में झारखंड स्टेट टॉपर भी रहीं।

    इसके पहले 2017 में भी उन्होंने छह परीक्षार्थियों को तैयारी करायी थी और सभी ने बेहतरीन रैंक में सफलता हासिल की थी। केके खंडेलवाल गणित और भौतिकी विषय की तैयारी कराते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार सफल हुए बच्चे मार्च 2019 से ही उनकी कक्षा में पढ़ रहे थे। ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से लौटने के बाद जितना समय मिला बच्चों को पढ़ाया। बीच में जब भी समय मिलता रहा, बच्चों को पढ़ाते रहे। लगभग दो साल के दौरान उन्होंने जेईई एडवांस लेवल के 200 टेस्ट पेपर कराये। कोविड लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सभी को ऑनलाइन पढ़ाया।

    खंडेलवाल सर की नि:शुल्क कक्षा में पढ़कर आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन लेने वाली वैष्णवी बताती हैं कि सबसे अच्छी बात यह रही कि उन्होंने हर डाउट को गहराई में जाकर क्लीयर कराया। इसी का नतीजा है कि रिजल्ट बेहतर रहा। आईआईटी मुंबई में एडमिशन लेने वाली अलीशा बताती हैं कि एक प्रश्न को तीन-चार तरीके से हल करने का तरीका खंडेलवाल सर ने बताया और जो सबसे शॉर्ट तरीका होता, उसे प्रैक्टिस में लाया। आईआईटी बीएचयू में एडमिशन लेने वाले यशराज बताते हैं सही मार्गदर्शन में गुणवत्ता वाली पढ़ाई ने ही हमें सफलता दिलायी।

    सफल विद्यार्थियों और अभिभावकों ने बाद केके खंडेलवाल के आवास पर जाकर उनका आभार जताया। खंडेलवाल के दो पुत्रों तथा एक भांजे ने भी पांच साल पहले उनके निर्देशन में पढ़ाई कर आईआईटी में दाखिला पाया था। उनके पुत्र अनुपम खंडेलवाल को ऑल इंडिया में 9वीं रैंक हासिल हुई थी।

    बता दें कि के के खंडेलवाल मूल रूप से झारखंड के गिरिडीह जिले के रहनेवाले हैं। उन्होंने खुद आईआईटी से पढ़ाई की है। 1981 में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में उन्हें ऑल इंडिया में 52वीं रैंक मिली थी। लेकिन लक्ष्य यहीं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देखा। वर्ष 1988 में यूपीएससी में सफल परीक्षार्थियों की सूची में आठवां स्थान हासिल किया। टॉप रैंकिंग के कारण होम कैडर भी मिला। वह झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग, उद्योग विभाग, खान एवं भूतत्व विभाग, भवन निर्माण विभाग, योजना सह वित्त विभाग, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग, परिवहन तथा नागरिक उड्डयन विभाग, वाणिज्य कर विभाग आदि विभागों में सचिव और अन्य उच्च पदों पर रह चुके हैं।