Category: अपराध

  • क्या मुकेश चंद्राकर की हत्या के लिए जिला प्रशासन भी जिम्मेदार नहीं ?

    क्या मुकेश चंद्राकर की हत्या के लिए जिला प्रशासन भी जिम्मेदार नहीं ?

    चरण सिंह 
    क्या छत्तीसगढ़ के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के लिए ठेकेदार के साथ ही जिला प्रशासन भी नहीं है ? क्या डीएम और एसएसपी को इस पत्रकार की रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए था ? क्या इस पत्रकार की रिपोर्ट के आधार पर इस ठेकेदार पर कार्रवाई हो जाती तो इस पत्रकार की हत्या का दुस्साहस यह ठेकेदार करता ? मतलब इसको मनमानी करने का मौका मिलता रहा और यह करता रहा। देश में बिना मतलब की बहस को बढ़ावा दिया जा रहा है। क्या इन मुद्दों को लेकर बहस नहीं होनी चाहिए ?
    दरअसल देश में यदि आज की तारीख में किसी मुद्दे को लेकर बहस की जरूरत है तो वह भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारी कौन ? भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खड़े होने वाले लोग, भ्र्ष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को दी जाने वाली सुरक्षा है। इन मुद्दों को लेकर बहस की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि भ्र्ष्टाचारी अधिकतर वे लोग हैं, जिनके जिम्मे भ्र्ष्टाचारियों को खत्म करने की जिम्मेदारी है। मतलब ये लोग बड़ा अपराध कर रहे हैं। भ्र्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले लोग तमाम विषम परिस्तिथियों के बावजूद देश समाज के लिए लड़ते हैं।
    एक तो ऐसे लोग ईमानदार होते हैं तो स्वभाविक है कि इन लोगों के पास पैसे का अभाव होता है। दूसरे भ्र्ष्टाचारियों मतलब ताकतवर लोगों के खिलाफ लड़ते हैं तो इनकी जिंदगी में तमाम जोखिम होते हैं। क्योंकि पैसों का अभाव होता है तो अपनों की ही सुननी पड़ती है। ऐसे में यदि कोई युवा पत्रकार उन लोगों से लोहा ले रहा था, उनके काले कारनामे उजागर कर रहा था जो देश और समाज दोनों के दुश्मन की तरह काम कर रहे थे। तो समझ लीजिये कि यह पत्रकार कितना बड़ा काम कर रहा था ? क्या ऐसे पत्रकार को सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए थी ? एक दम से तो ठेकेदार ने उसकी हत्या नहीं की होगी ? जब यह पत्रकार जोखिमों से खेल रहा था तो क्या जिला प्रशासन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस पत्रकार की जान को खतरा हो सकता है। क्या ऐसे में उसका क्या ख्याल रखा गया ? जी हां छत्तीसगढ़ बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के लिए जिला प्रशासन भी जिम्मेदार है।
    अब जब इस पत्रकार की हत्या कर दी गई तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ओर से  सख्त रुख अपनाने की बात सामने आ रही है। आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की बात सामने आ रही है। जब यह पत्रकार इस ठेकेदार के हजारों करोड़ के काले का पर्दाफाश कर रहा तो इस ठेकेदार पर शिकंजा क्यों नहीं कसा गया ? अब सरकार के निर्देश पर प्रशासन मुख्य आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाकर कड़ा संदेश देने की बात सामने आ रही है। जब यह स्वतंत्र पत्रकार इस ठेकेदार के काले कारनामे का पर्दाफाश कर सकता है तो फिर प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार क्या कर रहे थे ? मीडिया की क्या जिम्मेदारी थी ? मतलब देश में भ्र्ष्टाचारियों के खिलाफ लड़ने वाले लोग बहुत कम हैं। यदि भ्र्ष्टाचारियों के खिलाफ लड़ने वाला किसी पत्रकार की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है तो यह पूरे समाज के लिए शर्मनाक है।

     

    पुलिस संदेह व्यक्त कर रही है कि यह हत्या जिले में सड़क निर्माण कार्य में ‘‘अनियमितताओं’’ की एक हालिया खबर से जुड़ी है, जिसे मुकेश ने कवर किया था और सुरेश चंद्राकर उसी निर्माण कार्य में शामिल बताया जाता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि इस पत्रकार ने अनियमितता उजागर की तो फिर इस ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? मतलब जिला प्रशासन ने इस ठेकेदार को इस पत्रकार की हत्या करने का मौका दिया। अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस पत्रकार के परिवार को आश्वासन दे रहे हैं कि मुकेश चंद्राकर की नृशंस हत्या में शामिल किसी भी दोषी को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
    क्या इस पत्रकार की रिपोर्ट को अनदेखा करने में डीएम और एसएसपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। सीएम मुकेश चंद्राकर के परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त कर रहे हैं। इस कठिन समय में उनके साथ खड़ा होने की बात कर रहे हैं। सीएम को इस भ्रष्टाचार और इस पत्रकार की हत्या की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए ? कैसे उन राज में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकार की हत्या नहीं की गई है ?
    दरअसल बीजापुर शहर में एक स्थानीय ठेकेदार के परिसर में बने सेप्टिक टैंक में 33 वर्षीय मुकेश चंद्राकर का शव बरामद किया गया है। मुकेश एक जनवरी की रात से लापता थे। मुकेश चंद्राकर कई समाचार चैनलों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करते थे और एक यूट्यूब चैनल ‘बस्तर जंक्शन’ भी चलाते थे जिस पर लगभग 1.59 लाख सब्सक्राइबर हैं। ये वही पत्रकार हैं जिन्होंने अप्रैल 2021 में बीजापुर के टेकल गुंडा नक्सली हमले के बाद माओवादियों की कैद से कोबरा कमांडो रामेश्वर सिंह मन्हास को रिहा कराने में अहम भूमिका निभाई थी। इस घटना में 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे।
  • बिहार: कोर्ट से लौट रहा था मुंशी, बीच रास्ते अपहरण

    बिहार: कोर्ट से लौट रहा था मुंशी, बीच रास्ते अपहरण

     मारपीट कर कराया पकड़ौआ विवाह,  पुलिस में हड़कंप

     पटना/नालन्दा। बिहार के नालंदा जिले से एक पकड़ौआ विवाह का मामला सामने आया है। मामला रहुई थाना इलाके के जगनंदनपुर गांव का है। यहां सोमवार को एक युवक का पकड़ौआ विवाह कर दिया गया। युवक ने जब शादी से इनकार किया तो दुल्हन के परिवार वालों ने उसके साथ मारपीट भी की। युवक के परिवार वालों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने युवक को छुड़ाकर इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया है। पुलिस मामले की जांज कर रही है।

    मिली जानकारी के मुताबिक, रहुई थाना क्षेत्र के हवनपुरा गांव निवासी सुरेंद्र यादव का पुत्र लवकुश बिहारशरीफ कोर्ट में एक वकील के यहां निजी मुंशी का काम करता है। यहां से काम कर लवकुश घर लौट रहा था। इस दौरान भंडारी गांव के समीप कुछ लोगों ने जबरन उसे अगवा कर लिया और जगनंदनपुर गांव ले गए, जहां लवकुश की जबरन शादी करवा दी।
    काफी देर बाद जब युवक अपने घर नहीं लौटा तो परिवार वालों ने खोजबीन की। इसी दौरान बेटे के अगवा किए जाने की बात पता चली। इसके बाद युवक के पिता सुरेंद्र यादव ने थाना में लिखित शिकायत की। सूचना मिलते ही पुलिस जगनंदनपुर गांव पहुंचकर युवक को छुड़ाकर अपने साथ थाना लाई। इसके बाद उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। युवक अभी कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है।
    रहुई थानाध्यक्ष कुणाल कुमार ने बताया कि मामले की छानबीन की जा रही है। युवती के परिवार वालों का कहना है कि वह लड़की से मिलने के लिए गांव आया था। दोनों को एक साथ देख परिवार वालों ने शादी कर दी। युवक के बयान के बाद ही कुछ स्पष्ट बताया जा सकता है।

  • ‘अब हम तुम्हें पढ़ाएंगे’, महिला टीचर के साथ हैवानियत

    ‘अब हम तुम्हें पढ़ाएंगे’, महिला टीचर के साथ हैवानियत

     सड़क पर गिराया, फिर कपड़े फाड़ दिए

     मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक महिला टीचर के साथ बीच सड़क पर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी गईं। घटना मंगलवार की है, जब एक प्राइवेट स्कूल टीचर स्कूटी से अपने घर जा रही थी। तभी रास्ते में 5 युवकों ने पहले उनकी स्कूटी में जानबूझ कर अपनी कार से टक्कर मारी। कार की टक्कर लगते ही टीचर गिर गई। इसके बाद आरोपियों ने उनके साथ बदसलूकी शुरू कर दी। उसके कपड़े फाड़ दिए। घटना मुजफ्फरपुर के सदर थाना क्षेत्र की है।
    शिक्षिका ने बताया कि वह स्कूल से पढ़ाकर अपने घर वापस जा रही थीं। तभी रास्ते में मोहम्मद शाकिर, जो अपने तीन भाइयों के साथ कार में था, उसने जान बूझकर उनकी स्कूटी में कार मारी। कार में मोहम्मद शाकिर के अलावा मोहम्मद शबीर उर्फ उजोल, मोहम्मद जाकिर उर्फ गोलू, मो. अलकमा और मोहम्मद ओसामा भी था। शिक्षिका के गिरते ही सभी कार से उतरे और उनके बाल पकड़ कर उन्हें घसीटने लगे। उनका दुपट्टा छीन लिया।
    शिक्षिका ने पुलिस को दिए बयान में बताया, ‘आरोपियों ने कहा कि पढ़ाती हो अब हम तुम्हें पढ़ाएंगे। और फिर मेरे साथ छेड़खानी करने लगे। कपड़े फाड़ दिए। विरोध करने पर मारपीट की। शोर सुनकर मेरे दोनों भाई मौके पर पहुंचे। भाइयों ने बचाने की कोशिश की तो आरोपितों ने रॉड व लाठी से उनपर भी जानलेवा हमला कर दिया।’
    गांव के लोगों के जुटने पर सभी आरोपी मौके से फरार हो गए। घटना में शिक्षिका घायल हो गई हैं। इस मामले में पुलिस ने शिक्षिका के बयान पर एफआईआर दर्ज कर ली है। फरार आरोपियों की तलाश में छापेमारी की जा रही है। थानाध्यक्ष अस्मित कुमार ने बताया कि आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है। जल्द ही सभी आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली जाएगी।

  • कौन हैं ASP सीमा पाहुजा? हाथरस और उन्नाव के बाद मिली बंगाल रेप-मर्डर केस की कमान

    कौन हैं ASP सीमा पाहुजा? हाथरस और उन्नाव के बाद मिली बंगाल रेप-मर्डर केस की कमान

    सीबीआई की सबसे तेज तर्रार अधिकारियों में से एक माने जाने वाली ASP सीमा पाहुजा को इस मामले की जांच का जिम्मा सौंपा गया है. पाहुजा का स्पेशल क्राइम यूनिट के तहत कई मामलों की जांच का लंबा अनुभव है, जिससे उन्हें इस जटिल मामले के लिए सबसे अच्छा विकल्प बनाया गया है. 2007 से 2018 के बीच, उन्हें उनके एक्सीलेंट इनवेस्टिगेशन वर्क के लिए दो बार गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया. शिमला में “गुड़िया” के बलात्कार और हत्या के मामले को सुलझाने के दौरान पाहुजा ने पहली बार एक यूनिक साइंटिफिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया था. उन्होंने वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर हाथरस मामले को भी निष्कर्ष पर पहुंचाया . एक समय, पाहुजा ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का फैसला किया था, लेकिन तत्कालीन सीबीआई निदेशक ने उन्हें रिटायमेंट नहीं लेने के लिए मना लिया. अपनी ईमानदारी और बेदाग करियर के लिए जानी जाने वाली पाहुजा को बाहरी दबावों से मुक्त माना जाता है, और किसी भी मामले में उनकी शामिल होने को सफलता की गारंटी के रूप में देखा जाता है.

    कब कब मिले अवॉर्ड

    सीमा पाहुजा को पहला गोल्ड मैडल बेस्ट इन्वेस्टीगेशन अवार्ड 2007 में हरिद्वार में हुए डबल मर्डर केस को सुलझाने के लिए मिला था.
    2018 में ही सीमा पाहुजा को बेस्ट इन्वेस्टीगेशन के लिए गोल्ड मैडल के साथ 50000 कैश अवार्ड मिला ये सम्मान सीमा पाहुजा को शिमला का गुड़िया का रेप और मर्डर केस को सुलझाने की वजह से मिला. इस केस की इन्वेस्टीगेशन को सीबीआई की बेहतरीन इन्वेस्टीगेशन भी माना जाता है.
    सीबीआई में सराहनीय सेवाओं के लिए सीमा को 15 अगस्त 2014 को पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था.

    क्यों सौंपे जाते हैं ऐसे मामले

    छवि सख्त और ईमानदार होने की वजह से ऐसे मामले सौंपे जाते हैं जो बेहद पेचीदा हों
    कई वर्षों तक सीबीआई की स्पेशल क्राइम यूनिट-1 में दे चुकी हैं अपनी सेवाएं
    तेज तर्रार महिला अधिकारी को बेहतर काम के लिए मिल चुके हैं कई सम्मान जिनमें पुलिस पदक भी हैं शामिल

  • बिहार से पहली बार दिल्ली गया पटना के कारोबारी का बेटा, जाते ही हुआ ‘गायब’

    बिहार से पहली बार दिल्ली गया पटना के कारोबारी का बेटा, जाते ही हुआ ‘गायब’

     परिवार को अनहोनी का डर

    दीपक कुमार तिवारी
    पटना/नई दिल्ली। बिहार के पटना में एक कारोबारी का बेटा पहली बार दिल्ली आते ही संदिग्ध हालात में लापता हो गया। परिवार किडनैपिंग या हत्या की आशंका जताते हुए पटना से दिल्ली पहुंचा। करीब एक हफ्ते से दिल्ली के संभावित ठिकानों पर खोज रहा है। मंगोलपुरी थाने में कंप्लेंट देकर पुलिस से मामले की गुत्थी को सुलझाने की गुहार लगाई है। पुलिस ने बीएनएस की धारा 140(3) (किसी को जबरदस्ती अगवा कर किसी गुप्त जगह पर बंदी बनाकर रखना) के तहत मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी है। आधी रात को करीब 1 बजे एक सीसीटीवी फुटेज में लापता लड़के के पास एक ट्रक दिखाई देता है। ट्रक के जाते ही लड़का भी गायब है। पुलिस की टीमें सभी पहलुओं पर तहकीकात कर रही हैं।
    पुलिस के मुताबिक, लापता लड़के का नाम पंकज है। उसके छोटे भाई चंदन ने बयान दिया कि वह मूल रूप से पटना के रहने वाले हैं। पिता नगेंद्र राय बिजनेसमैन हैं, 6 ट्रक हैं जो पटना में चलते हैं। गांव में खेती है। चंदन ने पुलिस को बताया कि बड़े भाई पंकज के साथ में तीन लड़के और एक लड़की दिल्ली के लिए घर से निकले थे।
    आरोप है कि इन सभी को गांव का एक युवक जो पिछले 20 साल से दिल्ली में रह रहा है, वो जॉब के नाम पर बुलाकर लाया था। मां-पिता के मना करने पर भी पंकज इनके बहकावे में 4 अगस्त को दिल्ली आ गया। 5 अगस्त को मंगोलपुरी स्थित एक कंपनी से लौटकर रात में करीब 9 बजे अपनी पत्नी से पंकज ने फोन पर बात की। फिर खाना खाने के बाद बात करने को कहा। उसके बाद फोन नहीं आया।
    6 तारीख की सुबह मां ने फोन किया। गांव से आए लड़कों में से एक ने फोन उठाया, लेकिन वह सही जवाब नहीं दे पाया। चंदन का दावा है कि मां के पूछने पर उस लड़के ने कहा कि पिस्तौल दिखाकर पंकज को कोई अगवा कर ले गया है। पंकज के साथ आई लड़की ने बताया कि उसकी चप्पल, मोबाइल, बैग सब यहीं पर पड़े हैं। इसके बाद परिवार को अनहोनी की आशंका हुई।
    7 अगस्त को परिजन दिल्ली पहुंचे। खोजबीन के बाद परिजनों ने मंगोलपुरी थाने में शिकायत दी। परिजनों ने साथ आई उस लड़की की मां पर शक जताया है। क्योंकि पंकज का उस लड़की की मां से निजी संपर्क था। परिजनों को शक है पंकज का अपहरण कर हत्या की गई है। तीन दिन पहले मंगोलपुरी पुलिस ने संबंधित धारा में केस दर्ज कर लिया है।

  • Kolkata Incident: लुटती जाए द्रौपदी, जगह-जगह पर आज

    Kolkata Incident: लुटती जाए द्रौपदी, जगह-जगह पर आज

    अगर यह बलात्कार संस्कृति नहीं है, जिसे समाज के समझदार पुरुषों और महिलाओं, संस्थानों और सरकारी अंगों द्वारा समर्थित और बरकरार रखा जाता है, तो यह क्या है? आप सभी कानून, सभी तेज़ अदालतें, यहाँ तक कि मौत की सज़ा भी ला सकते हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदल सकता जब तक कि एक समान मानसिकता में बदलाव न हो जो लड़कियों और महिलाओं के बारे में सोचने का एक नया तरीका शुरू करे। हमने बलात्कार संस्कृति को खत्म करने का काम भी शुरू नहीं किया है। हमने पितृसत्ता को जलाने वाली माचिस भी नहीं जलाई है। इन हमलों की क्रूर और भयावह प्रकृति ने भारतीय समाज को झकझोर दिया है और एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है।

    प्रियंका सौरभ

    2012 में 23 वर्षीय दिल्ली की छात्रा निर्भया काण्ड यानी ज्योति सिंह के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया और भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिया था। निर्भया हत्याकांड के बाद यौन हिंसा पर सख्त कानून बनाए गए और अंततः बलात्कार के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया। इसके बावजूद यौन अपराध खत्म नहीं हुए हैं। बलात्कार की प्रकृति अधिक आक्रामक, अधिक क्रूर हो गई है और एक हद तक सतर्कतावाद और गैंगस्टरवाद का एक रूप बन गई है। भारत में लगभग हर दिन क्रूर बलात्कार की रिपोर्ट की गई है, और हाल के वर्षों में भयानक यौन हमलों की रिपोर्ट में वृद्धि हुई है। “यह नया भारत है जहाँ कानून का शासन पूरी तरह से टूट गया है, जिसका सीधा असर महिलाओं पर पड़ रहा है, क्योंकि यह पितृसत्ता के बेधड़क अतिक्रमणों का दौर भी है। पीड़ितों के इर्द-गिर्द प्रचलित कलंक और पुलिस जाँच में विश्वास की कमी के कारण बड़ी संख्या में बलात्कार की रिपोर्ट नहीं की जाती है। भारत की पंगु पड़ी आपराधिक न्याय प्रणाली में मामले सालों तक अटके रहने के कारण दोषसिद्धि दुर्लभ बनी हुई है।

    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, भारत में औसतन प्रतिदिन लगभग 90 बलात्कार की रिपोर्ट की गई। वर्ष 2022 में, पुलिस ने एक युवती के साथ कथित क्रूर सामूहिक बलात्कार और यातना के बाद 11 लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें उसे दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया था। 2022 में ही, भारत में एक पुलिस अधिकारी को भी गिरफ्तार किया गया था। उन पर एक 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप है, जो अपने साथ सामूहिक बलात्कार की रिपोर्ट करने के लिए उनके स्टेशन गई थी। मार्च में, अपने पति के साथ मोटरसाइकिल यात्रा पर गई एक स्पेनिश पर्यटक के सामूहिक बलात्कार के बाद कई भारतीय पुरुषों को गिरफ्तार किया गया था। 2021 में, मुंबई में एक 34 वर्षीय महिला की बलात्कार और क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किए जाने के बाद मृत्यु हो गई। एक भारतीय छात्रा के कुख्यात सामूहिक बलात्कार और हत्या ने 2012 में वैश्विक सुर्खियाँ बटोरीं। 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी की छात्रा ज्योति सिंह के साथ उस वर्ष दिसंबर में नई दिल्ली में एक बस में पाँच पुरुषों और एक किशोर ने बलात्कार किया, हमला किया और उसे मरने के लिए छोड़ दिया। इस भयानक अपराध ने भारत में यौन हिंसा के उच्च स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बटोरीं और हफ़्तों तक विरोध प्रदर्शन हुए और अंततः बलात्कार के लिए मृत्युदंड पेश करने के लिए कानून में बदलाव किया गया। इन हमलों की क्रूर और भयावह प्रकृति ने भारतीय समाज को झकझोर दिया है और एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है।

    भारत की सदियों पुरानी भेदभावपूर्ण जाति व्यवस्था के सबसे निचले स्तर की महिलाएँ – जिन्हें दलित के रूप में जाना जाता है – यौन हिंसा और अन्य हमलों के लिए विशेष रूप से असुरक्षित हैं। महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और भी सामान्य हो गई है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पर ट्रोल, जो हर मुखर महिला या उसकी बेटी को चुप कराना, गाली देना या बलात्कार करना चाहते हैं, उन्हें जवाबदेह नहीं बनाया जाता है। उल्लंघनकर्ताओं के पास बढ़ती हुई दंडमुक्ति और न्यायिक साधन भी राजनीतिक आकाओं के सामने आत्मसमर्पण करने के साथ, बलात्कार से लड़ना कठिन हो गया है। देश में महिलाओं के खिलाफ़ यौन अपराधों में वृद्धि, साथ ही देश की कठोर जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर रहने वालों के साथ व्यवहार, ऊपर से नीचे तक दंडमुक्ति की संस्कृति के परिणामस्वरूप एक उत्साहजनक कारक के रूप में कार्य करता है। यह महिलाओं के अधिक सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा करने और लगभग सभी क्षेत्रों में पुरुष आधिपत्य को चुनौती देने के खिलाफ़ एक प्रतिक्रिया है। अधिकांश पुरुष अभिभूत हैं और नहीं जानते कि अपने आहत अहंकार को कैसे संभालें और व्यापक बेरोजगारी ने समग्र रूप से निराशा पैदा की है। भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में मामलों के वर्षों तक अटके रहने के साथ दोषसिद्धि का निम्न स्तर भी ऐसे क्रूर अपराधों का जन्मदाता है। पुरुष अक्सर यौन हिंसा का इस्तेमाल दमनकारी लिंग और जाति पदानुक्रम को मजबूत करने के लिए एक हथियार के रूप में करते हैं।

    रिपोर्ट किए गए बलात्कार के मामलों की संख्या में वृद्धि और अधिक महिलाओं के आगे आने के बावजूद, देश में सजा की दर कम बनी हुई है। कई मामलों में, सबूतों की कमी को अक्सर कम सजा दर या उच्च न्यायालयों द्वारा सजा को पलटने का कारण बताया जाता है। कुछ साल पहले स्पेनिश पर्यटक के साथ जो हुआ वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और देश में अराजकता के बारे में बहुत कुछ बताता है। हम जानते हैं कि यौन अपराधों की बहुत कम रिपोर्टिंग होती है और इसे बदलना होगा। अगर यह बलात्कार संस्कृति नहीं है, जिसे समाज के समझदार पुरुषों और महिलाओं, संस्थानों और सरकारी अंगों द्वारा समर्थित और बरकरार रखा जाता है, तो यह क्या है? आप सभी कानून, सभी तेज़ अदालतें, यहाँ तक कि मौत की सज़ा भी ला सकते हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदल सकता जब तक कि एक समान मानसिकता में बदलाव न हो जो लड़कियों और महिलाओं के बारे में सोचने का एक नया तरीका शुरू करे। हमने बलात्कार संस्कृति को खत्म करने का काम भी शुरू नहीं किया है। हमने पितृसत्ता को जलाने वाली माचिस भी नहीं जलाई है।

    दिसंबर 2012 में, सरकार ने आखिरकार हमारी बात सुनी। एक पल के लिए, ऐसा लगा कि हम आगे बढ़ रहे हैं। इसके बजाय आज हम रुक गए हैं या इससे भी बदतर, पीछे चले गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर, अब हमारे पास ऐसे कानून हैं जो वस्तुतः अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रतिबंध लगाते हैं और अदालतें उन जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार करती हैं जो अपने जीवन के लिए डरते हैं। स्वतंत्र भारत में आधुनिक समान नागरिक संहिता के लिए पहला नमूना लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण की बात करता है। हर स्तर पर महिलाओं की स्वायत्तता और स्वतंत्र एजेंसी को छीना जा रहा है। ऐसा नहीं है कि घर हमेशा एक सुरक्षित जगह है। डरावनी कहानियों में अनाचार और घरेलू हिंसा शामिल हैं। भारत में, जहां अंतरंग साथी द्वारा हिंसा की दूसरी सबसे बड़ी व्यापकता है, 46% महिलाएं कुछ परिस्थितियों में इसे स्वीकार्य मानती हैं – ससुराल वालों का अनादर करना या बिना अनुमति के घर से बाहर जाना। जब तक हम उन विचारों को नहीं बदल सकते, तब तक हम भारत की प्रतिष्ठा के नुकसान पर विलाप करते रहेंगे, इसलिए नहीं कि हमारे पास बलात्कार की समस्या है, बल्कि इसलिए कि यह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खराब दिखता है। दुःख यही है कि-

    चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन।
    प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन।।
    राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।
    घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार।।
    कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार।
    जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार।।
    बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।
    पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर।।
    वक्त बदलता दे रहा, कैसे- कैसे घाव।
    माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव।।
    घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस।
    बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश।।
    वही खड़ी है द्रौपदी, और बढ़ी है पीर।
    दरबारी सब मूक है, कौन बचाये चीर।।
    लुटती जाए द्रौपदी,जगह-जगह पर आज।
    दुश्शासन नित बढ़ रहे, दिखे नहीं ब्रजराज।।
    छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव।
    बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव।।
    नहीं सुरक्षित बेटियां, होती रोज शिकार।
    घर-गलियां बाज़ार हो, या संसद का द्वार।।
    सजा कड़ी यूं दीजिये, काँप उठे शैतान।
    न्याय पीड़िता को मिले, ऐसे रचो विधान।।
    लुटती जाए द्रौपदी, बैठे हैं सब मौन।
    चीर बचाने चक्रधर, बन आए कौन।।

    (लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
    कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

  • कर्ज से परेशान सहारनपुर के दंपति ने गंगा में कूदकर दी जान, सेल्फी और लोकेशन परिजनों को भेजी

    कर्ज से परेशान सहारनपुर के दंपति ने गंगा में कूदकर दी जान, सेल्फी और लोकेशन परिजनों को भेजी

     ‘मैं कर्ज के दलदल में इस कदर फंस गया हूं कि बाहर नहीं निकल पा रहा। मरने से पहले की फोटो हम सभी को शेयर कर देंगे…’ये लाइनें लिखने वाला शख्स अब इस दुनिया में नहीं है। दिल दुखाने वाली इस घटना में पति-पत्नी ने गंगा नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। मरने से पहले उन्होंने सेल्फी ली और गंगा नदी में कूद गए। गंगा नदी में कूदकर जान देने के लिए वे 80 किलोमीटर बाइक यात्रा कर हरिद्वार पहुंचे थे। पुलिस के हाथ सुसाइड नोट लगा है, जिसमें आत्महत्या की वजह बताई गई है।

    जान देने वाले दंपत्ति सहारनपुर के हैं। शख्स सराफा कोरोबारी था। गंगा में सुसाइड करने के लिए वह पत्नी सहित बाइक से शनिवार रात हरिद्वार पहुंचा। जहां गंगनहर के पुल पर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा, सेल्फी ली और गंगा में छलांग लगा दी। फिलहाल कारोबारी का शव गंगनहर में तैरता हुआ मिला, जबकि पत्नी लापता है।

    सुसाइड नोट लिखकर वॉट्सऐप ग्रुप में भेजा

    सुसाइड करने से पहले शख्स ने वॉट्सऐप ग्रुप में एक नोट भेजा। जिसमें लिखा था मैं कर्ज के दलदल में इस कदर फंस गया हूं कि बाहर नहीं निलक पा रहा। मरने से पहले की फोटो हम सभी को शेयर कर देंगे। पुलिस की जांच में अबतक यबह बात सामने आई है कि कोरोबारी पर 10 करोड़ का कर्ज था। मृतकों के परिजन सूचना मिलते ही हरिद्वार के रवाना हो गए।

    मासूम बच्चों के सिर से उठा मां-बाप का साया

    कोरोबारी की पहचान नगर कोतवाली क्षेत्र में किशनपुरा के रहने वाले सौरभ बब्बर के रुप में हुई है। जिसकी उम्र 35 साल थी। सौरभ घर में ही श्री साई ज्वेलर्स नाम से दुकान चलाता है। सौरभ की शादी 15 साल पहले मोना बब्बर से हुई थी। सौरभ के दो बच्चे है। 12 साल की बेटी श्रद्धा और 10 साल का बेटा संयम। सौरभ का बेटा दिव्यांग है। जानकारी के अनुसार 5 साल पहले सौरभ का छोटे भाई से बंटवारा हो गया। जिसके बाद सौरभ अपने माता-पिता से अलग रहने लगा था। छोटा भाई मां-बाप के साथ गोविंदनगर में रहता है।

    दरअसल, सौरभ सोने-चांदी के अलावा कमेटी का भी काम करता था। कमेटी में लोग अपना पैसा जमा करते थे। जिसे वह ब्याज के साथ लौटाता था। इस बीच सौरभ का व्यापार ठप हो गया था। सौरभ पर 10 करोड़ रुपये का कर्ज था। लोग अपना पैसा मांग रहे थे। सौरभ ने यह बात अपनी पत्नी मोना को बताई थी। दोनों काफी समय से परेशान थे।

    दोनों बच्चों को छोड़ा नाना-नानी के घर

    सुसाइड करने से पहले सौरभ ने अपने दोनों बच्चों को नाना-नानी के पास छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि वे किसी जरुरी काम से जा रहे है, आकर बच्चों को लेकर जाएंगे। इसके बाद दोनों हरिद्वार चले गए। दोनों ने वहां गंगनहर पुल पर सेल्फीली। सुसाइड नोट को वॉट्सऐप ग्रुपों पर भेजा और फिर नदी में कूदकर अपनी जान दे दी।

     

     

  • चंडीगढ़ कोर्ट में फायरिंग, पंजाब के पूर्व AIG ने दामाद को गोलियों से भूना

    चंडीगढ़ कोर्ट में फायरिंग, पंजाब के पूर्व AIG ने दामाद को गोलियों से भूना

    चंडीगढ़ कोर्ट कॉम्प्लेक्स में फायरिंग की घटना सामने आई है। दरअसल दो पक्ष एक मैरिज डिस्प्यूट के सिलसिले में फैमिली कोर्ट में आए थे। इस दौरान पंजाब पुलिस के पूर्व एआईजी मलविंदर सिंह सिद्धू ने अपने दामाद पर गोलियां चला दीं, जिससे उसकी मौत हो गई, मरने वाला दामाद कृषि विभाग में आईआरएस था।

    दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही थी कि तभी आरोपी  ने बाथरूम जाने की बात कही. इस पर उसके दामाद ने कहा कि मैं रास्ता बताता हूं। दोनों कमरे से बाहर निकल गए। इसी दौरान आरोपी ने अपनी बंदूक से पांच फायर किए। इनमें से दो गोली युवक को लगी, वहीं एक गोली अंदर कमरे के दरवाजे पर लगी। दो फायर खाली चले गए. गोली की आवाज सुनते ही कोर्ट में हड़कंप मच गया।  मौके पर पहुंचे वकीलों ने आरोपी को पकड़कर एक कमरे में बंद कर दिया और पुलिस को सूचना दी। इसके बाद घायल को सेक्टर 16 अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और कमरे में बंद आरोपी को हिरासत में लिया और थाने ले गई।

  • पाकेट 7 के कई फ्लैटों में एक ही रात हुई चोरी

    पाकेट 7 के कई फ्लैटों में एक ही रात हुई चोरी

    हफ्ते भर बीत जाने के बावजूद पुलिस के हाथ खाली

    आर डब्ल्यू ए के पदाधिकारियों ने की पुलिस कमिश्नर से मुलाकात

    नोएडा सेक्टर 82 पाकेट 7 जनता फ्लैट में 20-21 जुलाई की रात में 6 फ्लैटों में ताला तोड़कर चोर सामान उठा ले गए।
    लेकिन आज एक सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं लगा।
    पाकेट वासियों में इस बावत काफी गुस्सा भरा हुआ है। इसी संदर्भ में आज आर डब्लू ए उपाध्यक्ष रवि राघव के नेतृत्व में डिप्टी कमिश्नर से मुलाकात की और अपनी सोसाइटी मे पिछले सप्ताह हुई चोरी की घटनाओं के विषय में बातचीत की और अभी तक अपराधियों के न पकड़े जाने पर रोष व्यक्त किया।
    डिप्टी कमिश्नर ने आश्वाशन दिया कि पुलिस अपना कार्य कर रही है और अपराधी अति शीघ्र पकड़े जाऐंगे, इस अवसर पर गोरे लाल, सुशील पाल,दीपक तिवारी, अनूप सिंह,अंगद सिंह तोमर,श्री राम त्रिपाठी,मनोज झा,रणवीर सिंह,रमेश चन्द्र शर्मा आदि पदाधिकारी एवं पॉकेटवासी उपस्थित रहे।

  • नोएडा तक पहुंची किडनी कांड की जांच

    नोएडा तक पहुंची किडनी कांड की जांच

    ऋषि तिवारी
    नोएडा। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच टीम ने पिछले दिनों अवैध रूप से किडनी ट्रांसप्लांट के आरोप में 7 आरोपियों को गिफ्तार किया था और इस मामले में आरोपियों से पूछताछ करने पर नोएडा के कई नामी अस्पतालों का भी नाम सामने आया है। अब इस मामले में क्राइम ब्रांच टीम नोएडा सेक्टर 39 स्थित सीएमओ ऑफिस में रिकार्ड खंगाले के लिए पहुची हैं। टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति से जुड़े रिकॉर्ड जब्त कर लिए हैं। साथ ही जिला स्तरीय अंग प्रत्यारोपण समिति के फैसले भी जांच के दायरे में आ गए हैं।

    बता दे कि क्राइम ब्रांच टीम वर्ष 2022 से अब तक किडनी ट्रांसप्लांट के लिए दी गई सभी अनुमतियों की जांच कर रही है। इनमें गौतमबुद्ध नगर के यथार्थ अस्पताल के अलावा फोर्टिस अस्पताल, जेपी और प्राइमाकेयर सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में हुए ट्रांसप्लांट के मामले शामिल हैं। बताया जा रहा है कि सीएमओ की तरफ से टीम को किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े सभी दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए हैं। इसमें मरीज और डोनर के दस्तावेज और मेडिकल हिस्ट्री भी शामिल है। वहीं, सीएमओ डॉ. सुनील कुमार शर्मा ने बताया कि जिला स्तरीय अंग प्रत्यारोपण समिति के सामने जो रिकॉर्ड आते हैं। उनकी जांच के बाद ही किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति दी जाती है।

    किडनी ट्रांसप्लांट के सभी दस्तावेज करा दिए उपलब्ध
    मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, क्राइम ब्रांच की टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति के मामले में जानकारी मांगी थी। इससे जुड़े सभी दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए हैं। इसमें मरीज और डोनर के दस्तावेज और मेडिकल हिस्ट्री भी शामिल हैं। वहीं, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सुनील कुमार शर्मा ने कहा कि जिला स्तरीय अंग प्रत्यारोपण समिति के सामने जो भी रिकॉर्ड आते हैं। उनकी जांच के बाद ही किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति दी जाती है। दिल्ली पुलिस की जांच में स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से सहयोग करेगा।

    समिति ने दी अब तक 119 मामलों की अनुमति
    मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सुनील कुमार शर्मा ने इस मामले में किसी भी प्रकार की विभागीय जांच कराने से साफ इंकार कर दिया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सुनील कुमार शर्मा के पास इस बात की जानकारी नहीं है कि 2022 से अब तक समिति द्वारा जिन 119 मामलों में अनुमति दी गई है। उनमें से कितने किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े हुए हैं।

    सीएमओ की अध्यक्षता में होता है फैसला
    साल 2018 के शासनादेश के बाद सीएमओ की अध्यक्षता में जिला स्तरीय अंग प्रत्यारोपण कमेटी का गठन किया गया था। समिति में सीएमओ के अलावा स्वास्थ्य विभाग, एनजीओ और निजी अस्पताल के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। समिति कैमरे के सामने मरीज और डोनर दोनों से बातचीत कर जरूरी दस्तावेज की जांच कर प्रत्यारोपण की अनुमति देती है। वीडियो रिकॉर्डिंग को भविष्य के लिए साक्ष्य के रूप में भी रखा जाता है। साल 2018 से पहले यह कमेटी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में काम करती थी।