Category: अदालत

  • Supreme Court : हिमांशु कुमार कुमार पर लगाया 5 लाख का जुर्माना, नहीं देंगे तो जेल

    Supreme Court : हिमांशु कुमार कुमार पर लगाया 5 लाख का जुर्माना, नहीं देंगे तो जेल

    विक्रम नारायण चौहान ने बताया असाधारण यौद्धा 

    नई दिल्ली/रायपुर। बस्तर के आदिवासियों के बीच दो दशक रहकर उनकी लड़ाई और हक़ के लिए अपना खून पसीना बहाने वाले हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है।  यह राशि उन्हें 4 हफ्तों में देनी होगी। अगर जुर्माना नहीँ दे पाए तो उन्हें जेल जाना होगा।  छत्तीसगढ़ सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि धारा 211 के तहत उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करें।

    इस मामले को लेकर विक्रम नारायण चौहान ने कहा है कि हिमांशु कुमार वह एक असाधारण योद्धा हैं। वे युवा रहते हुए ही आदिवासियों की भलाई के लिए बस्तर आये और परिवार के साथ बस्तर के दंतेवाड़ा में ही रहना शुरू किए। वनवासी चेतना आश्रम बनाकर आदिवासियों के बीच काम करने लगे। छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार जब माओवादियों के नाम पर भोले -भाले आदिवासियों को मारने लगे तो उन्होंने विद्रोह किया। उनके आश्रम को रमन सिंह सरकार ने उजाड़ दिया। इसी दौरान कल्लूरी नामक एक दुर्दांत पुलिस अधिकारी ने बस्तर में खूब मारकाट मचाया  और सैकड़ो आदिवासियों को नक्सली कहकर मरवा दिया।

    विक्रम नारायण चौहान का कहना है कि 2009 में सुकमा ज़िले के गोमपाड़ में 16 आदिवासियों के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने और एक मासूम बच्चे का हाथ काटने के मामले में हिमांशु कुमार ने सुरक्षा बलों पर आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 13 साल बाद न्याय तो नहीं मिला लेकिन हिमांशु कुमार को आदिवासियों के लिए न्याय मांगने पर सजा जरूर मिल गई है। पिछले दिनों ब्रेन हेमरेज झेलने वाले हिमांशु कुमार चेहरे पर मुस्कान रख तानाशाही से लड़ते हैं।  उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर उन्हें 2007 से जानते हैं।  वे एक वेबसाइट में बस्तर के अलग -अलग हिस्सों में सुरक्षा बलों के जुल्म की कहानी लिखते थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट में वे कई मामले लेकर गए और उन्हें तब न्याय भी मिला।

    हिमांशु कुमार अभी कहते हैं उनके जेब में 5 लाख तो क्या 5 हजार भी नहीं हैं। हर एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की जेब की यही कहानी है। उनके पास क्या होगा मैं बता सकता हूँ, उनके झोले में बस्तर के आदिवासियों की चिट्ठी होगी। देश के किसी हिस्से में इस तानाशाही सरकार के खिलाफ लड़ने, एक होने का पम्पलेट होगा।

    उन्होंने कहा कि कल संजीव भट्ट को गुजरात दंगा मामले में जेल से ही गिरफ्तार किया गया है और आज 13 साल बाद आदिवासियों के लिए न्याय मांगने पर हिमांशु कुमार को जेल भेजने की पूरी तैयारी है। हम हमारे लिए इस तानाशाही दौर में लड़ने और लड़ने की हिम्मत देने वाले साथियों को खोते जा रहे हैं। उन्हें जेल में ठूंसा जा रहा है, प्रताड़ना दी जा रही है।

  •  Taj Mahal News Today- काले ताजमहल की अनसुनी कहानी, जो आपने भी नहीं सुनी होगी!

     Taj Mahal News Today- काले ताजमहल की अनसुनी कहानी, जो आपने भी नहीं सुनी होगी!

    Taj Mahal News Today- इन दिनों ताजमहल के बंद कमरों की चर्चाएं सुर्खियों में हैं। ताजमहल आठ अजूबों में सें एक हैं। जिसे देखने दुनियाभर के लोग दूर दूर से आते हैं। लेकिन ताजमहल को लेकर न राजनीति खत्म हो रही हैं, न ड्रामा। इसलिए ताजमहल को पिछले महीने सबसे ज्यादा सर्च किया गया है। ( Taj Mahal News Today ) इसका एक उदाहरण यह भी है, कि कुछ लोग ताजमहल को कभी असंतोषजनक टिप्पणी करते हैं तो कभी ईद के दिन पूजा करने की बात करते हैं। और कभी कोर्ट में ऐसी याचिका लेकर पहुँच जाते हैं। जिसके न सर होते है न पैर।

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    यदि आप ताजमहल गए हैं तो वहां के गाइड से आपने इसकी कहानी जरूर सुनी होगी. किस तरह शाहजहां ने नदी के उस पार काले संगमरमर से बने एक मकबरे का सपना देखा था. लेकिन औरंगजेब ने इस काले संगमरमर के मकबरे को बनाने से पहले ही शाहजहां को कैद कर लिया था. और काले ताजमहल के बारे में कहा जाता है कि ये यमुना नदी की दूसरी तरफ सफेद ताजमहल के सामने बनाया जाना था. वही दूसरी ओर दावे के मुताबिक मुगल बादशाह ने अपनी तीसरी बीवी मुमताज महल की तरह अपने लिए भी एक मकबरा बनाने की बात सोची थी।

    शाहजहां ने नदी की दूसरी तरफ अपने लिए मकबरा बनाना शुरू किया था लेकिन उसके बेटे औरंगजेब ने उसको कैद कर लिया था। आगे चलकर ये कहानी काफी प्रसिद्ध हो गई। हालांकि मॉर्डन आर्केलॉजिस्ट इस कहानी को सच नहीं मानते।

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    ये तो एक कहानी थी काले ताजमहल की। जो आपने नहीं सुनी होगी। यदि आपने इस कहानी को सुना होगी तो कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। वही अब नज़र डालते हैं आज की अपडेट पर कि ताजमहल क्यों एक बार फिर सुर्खियों में आ गया।

    Taj Mahal News Today

    आज के समय में किसी को भी अपने तर्क कहने का अधिकार हैं। इसी अधिकार से आजकल कुछ लोग बिना तर्क की बातें करते हैं। इसके बारें में आज आपको बताएंगे, साथ ही बात करेंगें कि ताजमहल के बंद कमरों की कहानी कहां से शुरू हुई और कैसे ताजमहल सुर्खियों में आया।

     दरअसल, भाजपा के अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी डॉ रजनीश सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high court) तक पहुँच गये। उनका दावा था कि ताजमहल कोई मकबरा शिव मंदिर हैं। वे चाहते थें कि कोर्ट  (Allahabad high court) एएसआई को ताजमहल के 22 कमरें खोलने की इजाज़त दें। जो सील बंद हैं  और सरकार एक फेक्ट फांइडिग कमेठी बनाकर ताजमहल के इतिहास को मालूम कर जांच करें।

    Taj Mahal News Today , Allahabad high court
    Taj Mahal News Today

    ऐसी एक याचिका 2000 में भी आ चुकी है,  जिसमें पीएनओ ने मांग की थी कि ताजमहल को एक हिंदू राजा ने बनवाया था। यह पीएनओ की एक किताब “ताजमहल अ ट्रूथ हिस्टरी” (Taj Mahal a Truth History)  पर आधारित थी।

    इसी याचिका के आधार पर डॉ. राजनीश सिंह कोर्ट पहुँचे और इसी याचिका का हवाला उन्होनें कोर्ट में दिया। परंतु सन् 2000 में आई याचिका कोर्ट (Allahabad high court) ने खारिज कर दी थी। उसी का हवाला देते हुए रजनीश एक बार फिर कोर्ट जा पहुँचे। हालांकि इस बार याचिका में थोड़े बहुत परिवर्तन थे।

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    परंतु जजो की बैंच ने याचिका की सुनवाई में कहा कि आदेश केवल आधिकारों के उल्लंघन होने पर ही दिए जाते हैं। बैंच के वकील से कौन से हक की बात कर रहे है पुछनें पर वकील नें सूचना के अधिकार की बात कही।

    सुनवाई में बहस के बाद याचिकाकर्ता के वकील यह साबित करने में न कामयाब रहें कि ताजमहल के बंद कमरो को खुलवाना और जांच कराना कौन से कानून में आता हैं।, तथा उनकी याचिका सूचना के अधिकार के अंतर्गत कैसे आती हैं।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high court) का फैसला 

    अंत में बैंच ने यह तंज भी कसा कि “जाइए और पढ़कर आइए पहले एम.ए की पढ़ाई फिर पी.एच.डी. इसमें आप अपने विषय को चुनिए और अगर तब उस विषय पर शोध से आपको कोई संस्थान रोके, तो हमारे पास आइएगा”  और बैंच ने फैसला सुनाया “कि सरकार एक फेक्ट फांइडिग कमेठी बनाने की अनुमति नहीं दे सकती और ताजमहल के 22 कमरें खोलने की इजाज़त किसी शोध के तहत सतत प्रक्रिया के अंतर्गत ही दिया जा सकता हैं। अन्यथा नहीं”।

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    Taj Mahal News Today- अंत में आपको बता दें कि ASI   के पूर्व रिजनल डायरेकटर के के मोहम्मद ने एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में बताया कि “ताजमहल में तहखाने के कमरे सील नहीं किए गए हैं। उनमें सिर्फ ताले लगाए गए हैं, ताकि पर्यटक वहां न जा सके। ASI  इन सभी बेसमेंट के कमरों की देख-रेख करता हैं। जब मैं ASI का आगरा चीफ़ था तब मैंने उन कमरों के अंदर कोई धार्मिक चित्र या मूर्ति, चिह्न देखी हैं।

  • Rajiv Gandhi Assassination : पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे को आर्टिकल 142 के तहत बेल

    Rajiv Gandhi Assassination : पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे को आर्टिकल 142 के तहत बेल

    Rajiv Gandhi Assassination

    Rajiv Gandhi Assassination : सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को अपने फैसले में 31 साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारे एजी पेरारिवलन को रिहा  कर दिया है, ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा फैसला लेने मे बेवजह देरी करने पर किया गया। आरोपी एजी पेरारिवलन पर पूर्व प्रधानमंत्री के हत्या के लिए उपयोग में आए बम को बनाने में समान उपलब्ध कराने के लिए दोषी पाया गया था।

    पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या (Rajiv Gandhi Assassination) 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमला कर कर दी गई थी। इस हमले का मास्टरमाइंड प्रभाकरन ने हत्या की साजिश की कमान शिवरासन को दी थी। प्रभाकरन ने शिवरासन की चचेरी बहनों धनु और शुभा को उसके साथ भारत भेज दिया था। इस आत्मघाती हमले में बम में 9 एमएम की बैटरी का प्रयोग किया गया जिसको पेरारिवलन ने उपलब्ध कराया था।

    जानिए क्या हैं राजद्रोह का कानून

    28 जनवरी, 1998 की तारीख में पेरारिवलन टाडा अदालत ने फांसी की सजा सुनाई गई थी।

    18 फरवरी, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा मिलने के बाद भी 11 साल की देरी हो जाने पर पेरारिवलन की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

    क्या है आर्टिकल 142 जिसके चलते राजीव गांधी के हत्यारे को रिहा दिला दी –

    आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष अधिकार देता है जिससे तहत वे किसी भी मामले में सम्पूर्ण न्याय के लिए फैसला दे सकती है। तो चलिए इस आर्टिकल को समझते है। आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को 2 विशेष अधिकार दिये गए हैं।

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    • सुप्रीम कोर्ट भारत की क्षेत्रीय सीमा में किसी भी मामले के लिए न्याय के लिए किसी भी प्रकार का फैसला सुना सकता है इसके साथ ही वो इस फैसले को भारत की क्षेत्रीय सीमा के अन्दर लागू कराने का अधिकार देता हैं।
    • सुप्रीम कोर्ट किसी भी इंसान को कोर्ट में हाजिर करवा सकते हैं किसी से भी उसके डाक्यूमेन्ट को मंगवा सकता है और इसके अपनी अवमानना के लिए सजा सुना सकते हैं।
    • 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन को रिहा (Perarivalan Bail) कर दिया।

    दिसम्बर 2015 में पेरारिवलन फिर से तमिलनाडु के गवर्नर के समक्ष अपनी दया याचिका फिर रखते है ताकि आजीवन कारावास खत्म किया जा सके। इसके बाद तमिलनाडु कैबिनेट ने 9 सितंबर 2018 को ही पेरारिवलन को रिहा (Perarivalan Bail) करने की सिफारिश करते हुए राज्यपाल से अनुरोध किया था कि वह अनुच्छेद 161 के तहत इसे मंजूरी दे दें। लेकिन राज्यपाल ने बताया कि उनके पास ये विशेष अधिकार नहीं है और ढाई साल बाद इस मामले को राष्ट्रपति को सौंप दिया।

    कौन है पेरारिवलन ? – 

    पेरारिवलन की गिरफ्तारी 11 जून 1991 को हुई थी । उस समय पेरारिवलन की उम्र 19 साल थी। पेरारिवलन ने 12 वीं की परीक्षा को जेल में बैठ कर उत्तीर्ण की। उसने तमिलनाडु ओपन यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में डिप्लोमा का कोर्स किया था। जिसमें उसे गोल्ड मेडल मिला था। उसने इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से बीसीए किया और फिर कंप्यूटर में ही मास्टर्स की डिग्री हासिल की।

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    इस देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहां कि राज्यपाल द्वारा इस मामले को लटका कर रखना सही नहीं और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य तथा केन्द्र के अधिकार क्लियर करते हुए इस मामले में आर्टिकल 142 का प्रयोग किया। पेरारिवलन की रिहाई (A G Perarivalan Released) का मामला सामने आने के बाद अब लोग इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इतने सालों के बाद भी प्रधानमंत्री जैसे बड़ी हस्ती के हत्यारों को भी सजा नही मिल सकीं।

    पेरारिवलन की रिहाई के लिए तमिलनाडु की राज्य सरकार और जय ललिता की सरकार ने सजा को रिहाई में बदलने के लिए कई प्रयास किये हैं जिससे केन्द्र और राज्य के बीच राजीव गांधी के हत्या (Rajiv Gandhi Assassination) के आरोपी पेरारिवलन के रिहाई (A G Perarivalan Released) को लेकर संघर्ष चलता रहा। देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा।

     

  • Abortion cases in India- नहीं होना चाहिए गर्भपात “पटना हाईकोर्ट”

    Abortion cases in India- नहीं होना चाहिए गर्भपात “पटना हाईकोर्ट”

    Abortion cases in India- देश में बलात्कार के मामलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही हैं। 2020 में देशभर में बलात्कारों की संख्या 28046 दर्ज हुई हैं। ये वे मामले हैं, जो दर्ज हुए हैं। और उन मामलों के कारण पीड़िताओं कों कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। (Abortion cases in India)इन्हीं मामलों की दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट द्वारा क्या क्या निर्णय लिए गए हैं। और कौन से मामलो को सज्ञांन में लिया गया हैं। इन्हीं पर आज हम चर्चा करने जा रहें हैं।

    दरअसल, पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) में एक याचिका दायर (Medical Termination of pregnancy Act ) की गई थी, जिसमें पीड़िता ने बलात्कार से पैदा हुए गर्भ का गर्भपात कराने की अनुमति माँगी थी। वारदात के काफी समय बाद लड़की को गर्भवती होने का पता चला। अब लड़की की सेहत और गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत को लेकर सवाल उठने लगे थें। और मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया, जहां कोर्ट ने पीड़िता को एबॉर्शन की इजाजत नहीं दी।

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    इस याचिका पर हाईकोर्ट ने सात सदस्यीय डॉक्टरों की टीम का गठन किया गया था और कई याचिकाओं में जांच कर डॉक्टरों को कानून के तहत फौरन गर्भपात कराने का भी आदेश दिया गया था।

    Patna high Court- कोर्ट ने कि याचिका खारिज़

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए रेप पीड़िता को गर्भपात कराने से मना कर दिया हैं। य़ह याचिका बिहार की एक पीड़िता द्वारा दायर की गई थी। जिसमें पीड़िता के साथ रेप हुआ था। और पीड़िता गर्भ से हो गई थी। पटना हाईकोर्ट नें इस याचिका को खारिज़ (Medical Termination of pregnancy Act) कर दिया क्योंकिं गर्भ 30 से 32 सप्ताह का हैं और पीड़िता की उम्र 19 वर्ष हैं। इस हालत में गर्भ करना बहुत खतरनाक हो सकता हैं। इसलिए कोर्ट द्वारा य़ाचिका को खारिज़ कर दिया गया हैं।

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    Patna High Court

     कोर्ट का पीड़िता को एक लाख रूपये देने का आदेश

    कोर्ट नें रेप पीड़िता को गर्भपात कराने से मना कर याचिका को खारिज कर दिया गया। कोर्ट नें पीड़िता के गर्भ को 30 से 32 सप्ताह का बताया है। और पीडिता की उम्र 19 साल बताई हैं। इस हालत में गर्भपात कराना खतरनाक साबित हो सकता हैं (Medical Termination of pregnancy Act)। इसलिए कोर्ट ने याचिका को खारिज कर पीड़िता की जिम्मेदारी सरकार को दी हैं और राज्य सरकार को पीड़िता के पिता के बैंक खाते में एक लाख रूपये डालने के आदेश भी दिये गये हैं।

    इस याचिका को पॉक्सो कोर्ट ने गर्भपात कराने की अनुमति देने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिय़ा हैं। पॉक्सो कोर्ट के उसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसकी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने पटना एम्स में पीड़िता की जांच कराने के लिए सात सदस्यीय डॉक्टरों की टीम का गठन किया गया और जांच की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए गए।

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    पीड़िता को सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधा

    सात सदस्यीय डॉक्टरों की टीम द्वारा प्राप्त रिपोर्टो में पीड़िता को 30 से 32 सप्ताह का गर्भ है इस हालत में प्रसव कराना उचित नहीं हैं। कोर्ट ने इसी के मद्देनजर बाल कल्याण समिति और बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक और बेगूसराय के डीएम को पीड़िता की देखभाल कराने के साथ ही उसे सरकारी अस्पताल में मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। और साथ ही पीड़िता  का  सुरक्षित प्रसव तथा अन्य सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया गया। कोर्ट ने पीड़िता के परिवार के सदस्य को अलग से कमरा देने का आदेश दिया।

    कोर्ट ने कहा कि जन्म के बाद अगर पीड़िता बच्चे को अपने पास रखना नहीं चाहेगी तो उस स्थिति में उसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। कोर्ट ने पीड़िता को विक्टिम कंपन्सेशन स्कीम के तहत मुआवजा देने का आदेश भी राज्य सरकार को दिया। पटना हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वह चाहे तो बच्चे को जन्म के बाद छोड़ सकती है। और किसी NGO में उसका पालन पोषण होगा और कोई उसे गोद लेना चाहेगा तो ले सकता है। राज्य सरकार पीड़िता की देखभाल के साथ ही खाने-पीने की भी व्यवस्था करेगी।

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    2018 में कोर्ट नें प्रसव की अनुमति Abortion cases in India

    पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने 2018 में एक रेप पीड़‍िता (Misdeed Victim) को 28 सप्ताह का गर्भपात का आदेश दिया था। साथ ही कोर्ट ने संबंधित मामले में दो सदस्यीय डाक्टरों की टीम गठन कर पीड़‍िता की फौरन जांच कर कानून के तहत गर्भपात कराने की कार्रवाई करने का भी  आदेश दिया था। न्यायाधीश अनिल कुमार की एकलपीठ ने नाबालिग के साथ हुए दुष्कर्म के बाद गर्भवती बच्ची के गर्भपात कराने के लिए दायर अर्जी पर सुनवाई करते उक्त आदेश दिया था

    मामले में 16 वर्षीय नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार पीड़‍िता गर्भवती पाई गई थी। और 28 सप्ताह का गर्भ पाया गया था। कोर्ट ने पीड़‍िता तथा उसकी मां को डीएमसीएच के अधीक्षक से संपर्क करने का आदेश दिया था।

    (Abortion cases in India) देश में बढ़ रहे रेप मामलों से पीड़िताओं की जान चली जाती हैं तो कभी पीड़िता गर्भ से हो जाती है। इन सबका खामयाज़ा पीड़िता और उसके परिवार जनों को भुगतना पड़ता हैं। कोर्ट द्वारा दोनों मामलों में अलग अलग आदेश को आप किस नजरिये से देखते है। यह कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा।

     

     

     

  • Gyanvapi Masjid : जानिए पूरा घटनाक्रम

    Gyanvapi Masjid : जानिए पूरा घटनाक्रम

    Gyanvapi Masjid

    Gyanvapi Masjid : भारत में खुदरा महंगाई 15 फीसदी बढ़ चुकी है यानि पिछले दशक से भारत ने इतनी महंगाई नहीं देखी थी जितनी कि आज झेल रहा। साथ ही घरों से ज्यादा चोरी और धांधली की खबरें सरकारी नौकरियों की भर्तियों में आ रही है। लेकिन खबरों में मंदिर और मस्जिद के विवाद उफान पर है कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब किसी मस्जिद के अतीत को मंदिर न जोड़ा जाए, जोड़ने के बाद के क्रम में उसके अतीत के न्याय और राजनीति चमकाने पर चली जाती है।

    उत्तर प्रदेश के डिप्टी CM ने अपने पुराने Tweet कर बताया था कि अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा की बारी है, लोगों ने इस Tweet के बाद कयास लगाना शुरु कर दिया कि बात मस्जिदों को मन्दिरों से रिप्लेस की हो रही जबकि भारत में 1991 का उपासना स्थल क़ानून भी है जो कि किसी भी धार्मिक स्थल में 15 अगस्त 1947 के बाद परिवर्तन का विरोध करता हैं उसकी वस्तु स्थिति में परिवर्तन का विरोध करता है। वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद और और मथुरा की शाही ईदगाह दोनों ही इस कानून के अंतर्गत आते हैं। इसके बावजूद भी निचली अदालतों ने ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की मंजूरी दे दी।

    क्या है 1991 का कानून ?

    1991 के समय पर देश में मंदिर का मुद्दा उबाल पर था, केन्द्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी। लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथ यात्रा लेकर निकले जिससे देशभर में धार्मिक हिंसा चरम पर बढ़ गया। ऐसे में केन्द्र सरकार ने 18 सितम्बर 1991 उपासना स्थल कानून को संसद की सहायता से लागू किया था।

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    P. V. Narasimha Rao के समय पर आया उपासना स्थल क़ानून

    इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थल जिस भी स्थिति और स्वरूप में थे, वह उसी स्थिति में रहेगा, उस स्थल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।

    कानून के सामने आने के बाद BJP की उमा भारती ने और अन्य नेताओं के साथ इस कानून का विरोध किया। उनके अनुसार हम इस तरीके से अपने इतिहास से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।

    ज्ञानवापी को लेकर कब- कब हुए विवाद –

    ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ये विवाद नया नहीं है, इतिहास में 1809 में इसके विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे। इसके बाद रथयात्रा और उपासना स्थल कानून आने के बाद मस्जिद में सर्वे के लिए कोर्ट में 3 लोग हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने याचिका दायर की थी। वर्तमान में हरिहर पांडेय के अलावा अन्य दोनो याचिकाकर्ता अब जीवित नहीं हैं।

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    ज्ञानवापी मस्जिद

    इस याचिका के विरोध में ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ‘उपासना स्थल क़ानून, 1991’ का हवाला देकर रोक की मांग की। तब इलाहाबाद हाईकोर्ट साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।

    आखिर क्यों भारत के लोगों में बढ़ रहा धार्मिक तनाव ? जानिए मानसिक कारण 

    2017 में हरिहर पांडेय ने पुनः याचिका वाराणसी के सिविल कोर्ट में दायर की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ही अन्य मामलों की रुलिंग का हवाला दिया कि किसी भी 6 महीने से ज्यादा स्टे ऑर्डर वैध नहीं माना जाएगा। 2019 में फिर से मस्जिद के सर्वे की याचिका दायर की इस बार कोर्ट ने मंदिर पक्ष के पुरातात्विक सर्वे की अनुमति दी। इसके बाद पुनः ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ‘उपासना स्थल क़ानून, 1991’ का हवाला दिया जिससे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। ये मामला अभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में है बिना किसी निर्णय के।

    1991 के कानून के बाद भी सर्वे कैसे?

    18 अगस्त 2021 को उसी वाराणसी जगह के अन्य कोर्ट में 5 महिलाओं ने याचिका दायर किया की। जिसमें से एक महिला और अन्य 4 महिलाएं वाराणसी की निवासी है। इन महिलाओं ने मन्दिर परिसर में उपस्थित देवा देवताओं के मूर्ति के दर्शन करना, पूजा करना और भोग लगाने की मांग की ।

    इसके अलावा किसी भी देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए और राज्य सरकार मंदिर के परिसर की सुरक्षा को बनाए रखें। इसके साथ ही एक एडवोकेट कमिश्नर की मांग की जो सुरक्षा को सुनिश्चित करें।

    आखिर क्यों भारत के लोगों में बढ़ रहा धार्मिक तनाव ? जानिए मानसिक कारण

    अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद को देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए, और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया जाए कि वो “प्राचीन मंदिर” के प्रांगण में देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन, पूजन के लिए सभी सुरक्षा के इंतज़ाम किया जाए।

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    भारत के इतिहास में कई बाहरी आक्रांताओं ने मन्दिरों पर आक्रमण किया हैं जो कि इतिहास में बकायदा दर्ज है इस बात से किसी भी पक्ष को इनकार नही  लेकिन अब अतीत के मुद्दो को लेकर सिविस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई साथ ही BJP के प्रवक्ता “अश्विनी उपाध्याय” ने 1991 के उपासना स्थल क़ानून को ही चुनौती दे डाली। देखना होगा कि क्या भारत में आम जनता के मुद्दो को कब तक मन्दिर – मस्जिद (Gyanvapi Masjid) राजनीति से दबाया जाएगा।

  • Sedition Law : जानिए क्या हैं राजद्रोह का कानूुन

    Sedition Law : जानिए क्या हैं राजद्रोह का कानूुन

    Sedition Law

    Sedition Law : अंग्रेजो की तरफ से आंदोलनो को कुचलने के लिए बनाया गया एक कानून जो कि भारत की आजादी के इतने साल बाद भी इतने सालों तक अलग – अलग सरकारों के आने जाने के बाद भी बना रहा और आज सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगा दी है अगले फैसले तक सुप्रीम कोर्ट ने और नये मामलों को दाखिल करने से मना करते हुए। मौजूदा आरोपियों को जमानत के लिए याचिका का अधिकार दिया हैं।

    अगर आप इन कानूनों के तहत आए लोगों के नामों की लिस्ट देखे तो आपको पता चलेगा कि सारे स्वतंत्रता सेनानियों को इस कानून के तहत नाप लिया गया। इस कानून के आने के बाद से ही अंग्रेजी हुकूमत ने सरकार के खिलाफ उठने वाले सभी स्वरों को दबाने की कोशिश करने लगी। सरकार के खिलाफ न केवल बोलना बल्कि अच्छी नियत

    जानिए नेता कैसे बनें? 

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    सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने  N V Ramana इस मामले की अगली सुनवाई की। अब जुलाई के तीसरे हफ्ते में इसकी सुनवाई होगी। कोर्ट ने साथ ही कहा कि इस दौरान केंद्र सरकार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा निर्देश दे सकती है।

    राजद्रोह की परिभाषा (Sedition Law) –

    भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में राजद्रोह (Sedition Law in India) की परिभाषा बताई गई है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी विषय पर लिखा या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124A में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता साथ ही अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।

    छत्तीसगढ़ के IPS जी.पी. सिंह के खिलाफ सरकार ने एंटी करप्शन ब्यूरो का मामला, फिर चाहे पत्रकार विनोद दुआ पर हिमाचल पुलिस का मामला हो जिसमें कोरोना के समय पत्रकार पर सरकार के खिलाफ बोलने का मामला जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया । हालही के नवनीत राणा और जिग्नेश मेवाणी का मामला हो । छोटी – छोटी बातों पर समय समय पर भारत में इसका प्रयोग कर सरकार (Sedition Law in India) इस तरह के कानूनों का दुरुपयोग करती रहती हैं।

    राजद्रोह के कानून पर सुप्रीम कोर्ट (Sedition Law Supreme Court) के जज CJI N V Ramana ने भी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बता कर इस पर टिप्पणी की थी कि ये कानून गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे क्रांतिकारियों के खिलाफ किया जाता हैं। (Sedition Law Supreme Court)

    Sedition Law, Sedition Law in India, Sedition Law Supreme Court
    Sedition Law

    इंग्लैंड में इस कानून को 2009 में ही बंद कर दिया गया था। भारत की बात करें तो भारत में किसी प्रकार का कोई भी राजशाही शासन नहीं हैं इसलिए ये कानून किसी मतलब का नहीं हैं। भारत में पहले से ही देशद्रोह को लेकर कई अच्छे तथा कड़े कानून उपस्थित हैं।

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    देशद्रोह और राजद्रोह (Sedition Law) में सरकारों का स्पष्ट अंतर रखना चाहिए । सरकार की आलोचना एक लोकतंत्र के लिए अच्छा माना जाता हैं। इसके साथ हर 5 साल में सरकार बदलना ये एक सतत प्रक्रिया है। देखना होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इस तरह के मामलों में कभी आएगी या फिर हालात वैसे ही बने रहेगे।

  • Jignesh Mevani MLA Arrested : जिग्नेश की हुई तीसरी बार गिरफ्तारी 3 महीने की जेल

    Jignesh Mevani MLA Arrested : जिग्नेश की हुई तीसरी बार गिरफ्तारी 3 महीने की जेल

    Jignesh Mevani MLA Arrested

    Jignesh Mevani MLA Arrested : जिग्नेश मेवाणी की मुश्किल कम होने का नाम नही ले रहीं पहले असम पुलिस ने जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस ने PM के खिलाफ आपत्तिजनक Tweet मामले पर गिरफ्तार कर लिया कुछ दिन में जमानत मिलने के बाद उन्हे महिला पुलिस से बदत्तमीजी करने के मामले में पुलिस ने फिर धर लिया और अह 2017 के मेहसाणा में अनुमति के बिना रैली निकालने के मामले में गिरफ्तार कर लिया ।

    गुजरात मेहसाणा की एक अदालत ने विधायक जिग्नेश मेवाणी और पाटीदारों और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता रेशमा पटेल सहित 10 लोगों को तीन महीने जेल की सज़ा सुनाई है। जिसमे जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार (Jignesh Mevani MLA Arrested) कर लिया गया है। इसके साथ ही सभी पर 1 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया हैं।

    क्या हुआ आज –

    बता दे कि 2017 में मेहसाणा से धनेरा तक आजादी मार्च निकालने के मामले में सजा सुनाई गई हैं। सभी पर सरकारी अनुमति के बिना ही मार्च निकालने में दोषी पाया गया है। हालाँकि 10 अभियुक्तों में से एक की अब मौत हो चुकी है, जबकि एक फरार हैं।

    Jignesh Mevani MLA Arrested, Jignesh Mevani Tweet on PM
    जिग्नेश की हुई तीसरी बार गिरफ्तारी 3 महीने की जेल

    बता दे कि गुजरात राज्य के जिग्नेश मेवाणी बनासकांठा ज़िले की वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय से विधायक है। जिन्हे PM पर ट्वीट (Jignesh Mevani Tweet on PM) करने के चलते भी इसी महीने गिरफ्तार किया गया था। असम पुलिस से रात 12 बजे जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्त मे ले लिया था।

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    इस मामले में मेहसाणा के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी JA परमार ने कहा, “रैली करना अपराध नहीं है, लेकिन बिना अनुमति के रैली करना अपराध है.” परमार ने यह भी कहा कि “अवज्ञा को कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।”

    वहीं दूसके पक्ष के वकील MN मलिक के अनुसार, ”नेशनल दलित राइट्स फोरम के नेतृत्व में 2017 के दंगों के ख़िलाफ़ जुलाई 2017 में मेहसाणा से धनेरा तक एक रैली का आयोजन किया गया था। सभी अभियुक्तों को आईपीसी की धारा 143 के तहत सज़ा सुनाई गई है। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हम उच्च अदालत में जाएंगे”

    क्या था मामला –

    गिरफ्तारी के मामले की बात करें तो  12 जुलाई, 2017 को, ऊना में कुछ दलितों की सार्वजनिक पिटाई के एक वर्ष होने पर दलितो के खिलाफ हुई हिंसा को चिह्नित करने के लिए मेवानी और उनके सहयोगियों ने मेहसाणा से धनेरा जो कि बनासकांठा जिले में स्थित है तक एक ‘आजादी कूच’ का नेतृत्व किया था। दलितों की पिटाई के मामले में राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था।

    Jignesh Mevani MLA Arrested, Jignesh Mevani Tweet on PM
    Jignesh Mevani MLA Arrested, जिग्नेश की हुई तीसरी बार गिरफ्तारी 3 महीने की जेल

    10 आरोपियों मे से एक कौशिक परमार ने मेहसाणा के कार्यकारी मजिस्ट्रेट से राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के बैनर तले रैली की अनुमति मांगी थी, जो जिग्नेश द्वारा स्थापित एक संगठन है और इसे शुरू में अनुमति दी गई थी। हालांकि बाद में प्राधिकरण ने इसे रद्द कर दिया, लेकिन आयोजकों ने फिर भी रैली निकाली और मामला दर्ज कर लिया गया।

    जिग्नेश के साथ अन्य लोगो पर इजाजत के बिना मार्च निकालने पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 143 तहत गैरकानूनी सभा का मामला दर्ज किया था। मेहसाणा पुलिस ने मामले में 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। जिग्नेश अभी ही प्रधानमंत्री के खिलाफ किये गए ट्वीट (Jignesh Mevani Tweet on PM)  के चलते अदालत के चक्कर लगा रहे थे।

    JNU के कन्हैया कुमार भी है आरोपी –

    बता दे कि JNU से चर्ची में आए नेता कन्हैया कुमार जो कि इस समय कांग्रेस में कार्यरत है वे भी इसी मामले में जिग्नेश मेवाणी के साथ आरोपी है लेकिन उन पर इस मामले पर सुनवाई अलग से की जाएगी क्योकि कन्हैया कुमार पिछले साल अप्रैल में आरोपियों के खिलाफ अदालत द्वारा आरोप तय करने के समय अनुपस्थित थे इसलिए अदालत ने उनकी सुनवाई के लिए अलग से मुकदमा चलाना तय किया।

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    एक कयास ये भी लगाए जा रहे कि जिग्नेश को लेकर पुलिस और प्रशासन की अति सक्रियता और उनकी गिरफ्तारी (Jignesh Mevani MLA Arrested) ये बता रही कि 2022 के गुजरात चुनाव में जिग्नेश कुछ कमाल दिखा सकते है क्योकि वे चर्चा का विषय बने हुए है BJP भी चाहती है कि AAP की जगह कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी बने क्याोकि BJP कांग्रेस से ज्यादा AAP से गुजरात में खतरा महसूस कर रहीं।

  • देवा गुर्जर(Deva Gurjar) की कहानी : सोशल मीडिया से कैसे बना डॉन

    देवा गुर्जर(Deva Gurjar) की कहानी : सोशल मीडिया से कैसे बना डॉन

    देवा गुर्जर(Deva Gurjar) : ये कहानी है ये एक ऐसे डॉन की। जिसका बही-खाता राजस्थान के साथ साथ कई अन्य पुलिस थानों में चलता था। बही-खाते में बेशक वो एक हिस्ट्रीशीटर था। लेकिन सोशल मीडिया का चस्का उसे बहुत था। क्योंकि सोशल मीडिया ने की देवा को डॉन बनाया था। इस डॉन का नाम देवा गुर्जर(Deva Gurjar) है, देवा गुर्जर(Deva Gurjar) उर्फ डॉन देवा। राजस्थान के कोचिंग सेंटर यानी की कोटा का रहने वाला था देवा गुर्जर(Deva Gurjar)।

    लंबा कद, पतली मूछें और आंखों पर काला चश्मा। ऐसा था डॉन देवा यानि देवा, जिसे सोशल मीडिया ने सुपरस्टार बनाया था। देवा रोज ही सोशल मीडिया पर लाइव होता था। जिसमें वो अपने जिम वीडियो और ताकत की नुमाइश करता था। लेकिन देवा  को दुश्मनों की कमी ना थी। रोजाना ही देवा  का झगड़ा किसी ना किसी से होता था। क्योंकि वो जुर्म की दुनिया का नया चेहरा बनना चाहता था। जुर्म की दुनिया में बदमाश बनने के लिए आपको हिस्ट्रीशीटर वाले रिज्यूम की जरूरत होती है, जिसके चलते देवा  पुलिस स्टेशन में एक एक कर कई पर्चे दर्ज करवाता चला गया।

    बेशक आप कितने भी ताकतवर क्यों ना हों, लेकिन आपको दुश्मन हमेशा ही कुचलने की कोशिश करते रहते हैं। फिर चाहें आप डॉन ही क्यों ना हो। अब जब डॉन की बात कर रहे हैं तो अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन का एक डायलॉग याद आता है कि डॉन को 11 मुल्कों की पुलिस ढूंढ रही है। लेकिन जनाब असल दुनिया में जहां तक पुलिस नहीं पहुंची वहां तक जुर्म की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले पहुंच जाते हैं।

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    ऐसा ही कुछ देवा  के साथ हुआ। 4 अप्रैल 2022 का दिन था। कोटा में बहुत तेज गर्मी पड़ रही थी। दोपहर को अकसर लोग घर से बाहर निकले कतराते हैं। ऐसे में शाम को देवा  अपने घर से बाहर निकला। शाम के करीब 5 बज रहे थे। तब देवा  एक सैलून में शेविंग कराने पहुंचा। लेकिन इस रोज़ मौत पहले ही घात लगाए उसका इंतजार कर रही थी।

    अभी उसे सैलून में दाखिल हए चंद मिनट ही गुज़रे थे कि पीछे से दनदनाते हुए दसियों बदमाशों ने उस सैलून पर धावा बोल दिया। और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, लाठी-डंडे, तलवार और फरसों से लैस बदमाशों ने उस पर ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया, देखते ही देखते बीच बाजार में हुए इस हमले से पूरे रावतभाटा कस्बे में सनसनी फैल गई। जब तक पुलिस मौके पर आती,  और हमलावरों को रोका जाता, तब तक देर हो गई थी और सभी के सभी बदमाश डॉन देवा  को बड़े आराम से निशाना बना कर पैदल ही सैलून से निकल फ़रार हो गए।

    इस वारदात ने पूरे इलाके में दहशत भर दी। सैलून के बाहर कुछ लोगों ने वीडियो बनाया तो कुछ के सीसीटीवी में पूरी वारदात रिकॉर्ड हो गई। लेकिन सवाल ये था कि डॉन को मारने वाला कातिल कौन हैं। किस गैंग ने डॉन देवा  का कत्ल किया। देवा  के सोशल मीडिया पर लाखों की तादात में फैंस हैं। जिसका इतनी बेरहमी से कत्ल किया गया। पुलिस अभी जांच कर रही थी। तब पुलिस ने कातिल के नाम पर एक ऐसे शख्स की बात की। जिसे सुनकर सभी हैरान हो गए। क्योंकि देवा  का कातिल कोई और नहीं बल्कि बाबूलाल गुर्जर है।

    कौन हैं बाबूलाल गुर्जर जिसने देवा गुर्जर (Deva Gurjar) को मारा –

    बाबूलाल गुर्जर हत्याकाण्ड
    बाबूलाल गुर्जर हत्याकाण्ड

    अब हम आपको बताते हैं कि बाबूलाल गुर्जर कौन है। तो बाबूलाल गुर्जर भी ठीक देवा  की तरह की बदमाश है। जिसका सिक्का कोटा और उसके आस-पास के इलाकों में चलता है। दोनों में फर्क बस इतना था कि देवा  गुर्जर अपनी पर्सनैलिटी और अपनी पसंद नापसंद की वजह से सोशल मीडिया में कुछ ज्यादा ही फेमस था, जबकि बाबूलाल गुर्जर को उस हिसाब से कम ही लोग जानते थे। अब जबकि पुलिस ने देवा  गुर्जर के क़त्ल की साज़िश का खुलासा किया है, तो ये साफ़ हो गया है कि डॉन देवा  के क़त्ल के पीछे उसी बाबूलाल गुर्जर का हाथ था। जिसका सीधे तौर पर मतलब था कि वर्चस्व। यानी के जिसका जितना वर्चस्व वो उतना बड़ा डॉन।

    यहां क्लिक कर आप इस कहानी का पूरा वीडियो हमारे YouTube Channel पे जा कर देख सकते हैं 

    इस वर्चस्व की लड़ाई में शायद कोटा सुकून की सांस ले रहा होगा। क्योंकि एक ओर डॉन देवा  का कत्ल हो गया तो दूसरी और कातिल बाबूलाल भी गिरफ्तार हो गया। साथ ही पुलिस ने बाबूलाल के गैंग को कई लोगों को भी गिरफ्तार किया है। लेकिन हम अकसर देखा है कि अपने सरगना की मौत का बदला भी लिया जाता है। ऐसे में बाबूलाल का जेल जाना ही शायद किसी गैंगवार को टाल सकता है। खैर आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में बताएं बाकी वीडियो को शेयर और लाइक जरूर करें।

  • रद्द हो सकती है लालू प्रसाद यादव की जमानत, चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की स्वीकार 

    रद्द हो सकती है लालू प्रसाद यादव की जमानत, चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की स्वीकार 

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली। जमानत मिलने के बाद भी लालू प्रसाद यादव की परेशानी कम नहीं हुई है। दरअसल उनकी जमानत को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकर कर लिया है। इस याचिका को स्वीकार करने के बाद लालू प्रसाद परिवार और उनके समर्थकों में बेचैनी बढ़ गई है। उच्चतम न्यायालय इस मामले की सुनवाई जल्द करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर लालू यादव से जल्द जवाब मांगा है।
    दरअसल सोमवार को जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच के सामने लालू यादव की बेल अर्जी के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूर कर लिया है। यह याचिका झारखंड सरकार की ओर से दायर की तै है। इसमें प्रदेश के हाई कोर्ट की ओर से दुमका राजकोष मामले में गत साल जमानत को चुनौती दी गई थी। साथ ही चाईबासा राजकोषीय मामले में भी 9 सितंबर, 2020 को लालू यादव को बेल दी गई थी। उसके खिलाफ भी याचिका दी गई है। दरअसल अविभाजित बिहार के  राजकोष से चारा घोटाले में लालू यादव दोषी पाए गए थे। लालू यादव से संबंधित चारा घोटाले से जुड़े 5 मामले हैं, इस मामले  में 950 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है।
  • साबरमती आश्रम में कंस्ट्रक्शन मामले पर महात्मा गांधी के परपोते की याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    साबरमती आश्रम में कंस्ट्रक्शन मामले पर महात्मा गांधी के परपोते की याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    द न्यू 15

    नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने साबरमती आश्रम के पुनर्विकास से जुड़े एक मामले में महात्मा गांधी के परपोते तुषार अरुण गांधी की याचिका पर सुनवाई करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील इंदिरा जयसिंह की शीघ्र सुनवाई की अर्जी स्वीकार करते हुए मामले को एक अप्रैल के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।
    इंदिरा जयसिंह ने गुहार लगाते हुए कहा है कि पुनर्निर्माण कार्य जल्द हो सकता है, इसलिए गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई की जरूरत है। याचिका में यह दावा करते हुए राज्य सरकार की पुनर्विकास योजना पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है।
    शीर्ष अदालत के समक्ष जयसिंह ने कहा, ‘निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा इसलिए इस मामले में वर्चुअल सुनवाई की जरूरत है।”
    गौरतलब है कि महात्मा गांधी के परपोते ने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। यह याचिका उच्च न्यायालय ने विचार करने से इनकार करने पर दायर की गई थी। इस याचिका में गुजरात सरकार की पुनर्विकास योजना में कई खामियां बताते हुए उस पर तत्काल रोक लगाने की गुहार की गई है।