Category: अदालत

  • Got Justice : राजा छोड़ गये 20 हजार करोड़ की संपत्ति, 30 साल बेटियों ने लड़ी कानूनी लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

    Got Justice : राजा छोड़ गये 20 हजार करोड़ की संपत्ति, 30 साल बेटियों ने लड़ी कानूनी लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

    फरीदकोट महाराज की सपंत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। उनकी बेटियों की 30 साल कानूनी लड़ाई कामयाब हो गई। कोर्ट ने महाराज की वसीयत को गलत ठहराते हुए बेटियों को संपत्ति में हक दिया। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक ऐसा फैसला सुनाया गया, जिसके बाद 30 साल से चले आ रहे संपत्ति विवाद का निपटारा हो गया। मामला कोई छोटी-मोटी प्रापर्टी का नहीं था बल्कि फरीदकोट के महाराज की सपंत्ति लगभग 20 हजार करोड़ की है। इस मामले में हक के लिए उनकी बेटियां 30 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। इसमें हीरे-जवाहरात, किला, राजमहल और कई जगहों पर इमारतें शामिल हैं। आखिर में दोनों बहनों की जीत हुई और इस संपत्ति में बड़ा हिस्सा उन्हें देने का फैसला बरकरार रखा गया है। सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रविंदर भट्ट और जस्टिस सुधांशु धूलियां की बेंच ने कुछ सुधार के साथ हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को इस फैसले को सुरक्षित रख लिया था।

    क्यों था विवाद

    महारावल खेवाजी ट्रस्ट और महाराज की बेटियों के बीच की यह कानूनी जंग लीगल हिस्ट्री में सबसे लंबी चलने वाली लड़ाइयों में से एक है। महाराजा की वसीयत को खत्म करते हुए कोर्ट ने महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भी 33 साल के बाद डिजॉल्व करने का फैसला सुना दिया है। ट्रस्ट के सीईओ जागीर सिंह सारन ने कहा, हमें अब तक सुप्रीम कोर्ट का मौखिक फैसला का ही पता चला है, कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। जुलाई 2020 में ट्रस्ट ने ही सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के अब तक सुप्रीम कोर्ट का मौखिक फैसला ही पता चला है कि कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। जुलाई 2020 में ट्रस्ट ने ही सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया था और ट्रस्ट को देखरेख की इजाजत दी थी।
    साल 2013 में चंडीगढ़ जिला अदालत ने बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर के हक में फैसला सुनाया था। इसके बाद मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ट्रस्ट के लोग प्रॉपर्टी हथियाने के लिए साजिश रच रहे हैं और फर्जी बातें कर रहे हैं।

    क्या है कहानी

    साल 1918 में अपने पिता की मौत के बाद हरिंदर बरार को केवल 3 साल की उम्र में महाराजा बनाया गया था। वह इस रियासत के आखिर महाराज थे। बरार और उनकी पत्नी नदिंर कौर के तीन बेटियां थीं, अमृत कौर, दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर। उनका एक बेटा भी था, जिसका नाम हरमोहिंदर सिंह था। महाराज के बेटे की 1981 में एक रोड एक्सिडेंट में मौत हो गई थी। इसके बाद महाराज अवसाद में चले गये। इसके सात या आठ महीने बाद उनकी वसीयत तैयार की गई।

    बीमार महाराज की पत्नी और मां भी थी अंधेरे में

    महाराज की संपवि की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बना दिया गया। इस बात की जानकारी उनकी पत्नी और मां को भी नहीं थी। दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर को इस ट्रस्ट का चेयरपर्सन बना दिया गया। वहीं इस वसीयत में यह भी लिखा गया था कि सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की है। इसलिए उन्हें बेदखल किया जाता है। यह वसीयत तब सामने आई जब महाराज की 1989  में मौत हो गई।

    एक बेटी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत

    संदिग्ध परिस्थितियों में महाराज की बेटी महीपिंदर कौर की मौत हो गई। शिमला में उनकी मौत हुई थी। अमृत कौर ने १९९२ में स्थानीय अदालत में केस फाइल किया था। उनका कहना था कि हिंदू ज्वाइंट फैमिली होने की वजह से संपत्ति पर उनका अधिकार था, जबकि उनके पिता की वसीयत में सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट को दी गई थी। अमृत कौर ने इस वसीयत पर सवाल खड़े किये थे।

    कहां-कहां है महाराज की संपत्ति

    दरअसल आजादी के बाद महाराज को 20  हजार करोड़ की संपत्ति दी गई। इसमें चल अचल संपत्ति शामिल है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के अलावा चंडीगढ़ में भवन और जमीन है।

    फरीदकोर्ट का राजमहल

    फरीदकोर्ट का राजमहल 14  एकड़ में है। यह 1885 में बना था, अब इसके एक हिस्से में 150  बेड का चैरिटेबल अस्पताल चल रहा है। किला मुबारक, फरीदकोट-1775 में इस किले को राजा हमीर सिंह ने बनवाया था। यह 10 एकड़ में है जो इमारत अब बची है उसका निर्माण 1890 में हुआ था।

    नई दिल्ली का फरीदकोट हाउस

    नई दिल्ली में कॉपरनिकस मार्ग पर एक बड़ा भूमि का टुकड़ा है। केंद्र सरकार ने इसे किराये पर ले रखा है और हर महीने लगभग 17 लाख का किराया देती है। इसकी कीमत लगभग 1200  करोड़ रुपये नौ साल पहले थी। इसके अलावा चंडीगढ़ में मनीमाजरा किला, शिमला का फरीदकोट हाउस महाराजा की सपंत्ति में शामिल हैं। 1929 मॉडल रोल्स रॉयस, 1929 मॉजल ग्राहम, 1940 मॉडल बेंडली, जगुआर, डामलर, पैकार्ड भी हैं, जो कि अभी चालू हालत में हैं। इसके अलावा 9  हजार करोड़ के हीरे जवाहरात हैं जो कि मुंबई के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के पास सुरक्षित हैं।

  • Judiciary : उच्च दांव वाले आर्थिक मामलों पर जल्द फैसला करेगा SC

    Judiciary : उच्च दांव वाले आर्थिक मामलों पर जल्द फैसला करेगा SC

    द न्यूज 15 

    नए CJI ललित के रूप में अदालत के समक्ष भारी आर्थिक एजेंडा मामलों के निपटान में तेजी लाता है। कोर्ट व्हाट्सएप प्राइवेसी पॉलिसी, इलेक्टोरल बॉन्ड और फ्रीबीज की चुनौतियों पर विचार करेगा। रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटरों, किर्लोस्कर, ललित मोदी परिवार के विवादों के खिलाफ दाइची सांक्यो की याचिका भी तत्काल एजेंडे में है।
    उच्च-दांव वाले आर्थिक मामलों का एक समूह जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए जाने की संभावना है, क्योंकि भारत के 49 वें मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जिनका लगभग 74 दिनों का छोटा कार्यकाल है, निपटान के लिए “कड़ी मेहनत” करने का इरादा रखते हैं। एक दशक से अधिक समय से लंबित मामले

    मामले इस बात से लेकर हैं कि क्या केंद्र सरकार कृषि पर कानून बना सकती है या कोयला ब्लॉकों की नीलामी की उचित प्रक्रिया क्या है। ललित मोदी और किर्लोस्कर परिवार के पारिवारिक भाग्य पर विवाद सहित हाई-प्रोफाइल कॉरपोरेट मामले भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन हैं।
    8 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले CJI ने अपने पहले चार कामकाज में 1,800 से अधिक मामलों के निपटान के साथ एक बहुत ही आशाजनक शुरुआत की है। अपने पहले सप्ताह में ही, ललित ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण, व्हाट्सएप गोपनीयता नीति को चुनौती, और रिश्वत लेने के लिए आपराधिक अभियोजन से छूट का दावा करने वाले विधायकों के मुद्दे सहित आठ लंबित मुद्दों की जांच के लिए पांच-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया। सदन में भाषण दें या वोट दें।
    ललित को एक बड़े संवैधानिक मुद्दे की भी जांच करनी होगी – यदि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों (अब निरस्त) के खिलाफ किसानों द्वारा विरोध करने का अधिकार “पूर्ण अधिकार” है। 26 नवंबर, 2020 से अपना विरोध शुरू करने वाले किसानों को कानूनों पर रोक के बाद भी एक साल से अधिक समय तक दिल्ली की सीमाओं पर विरोध करते देखा गया।
    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह इस बात पर चर्चा करने के लिए सर्वदलीय पैनल का गठन करे कि मुफ्त में क्या होता है और इसका अर्थव्यवस्था और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ता है, अंतिम मंजूरी शीर्ष अदालत से ही आनी होगी, जो कि एक पुराने पर फिर से विचार करने के लिए भी आवश्यक है। 2013 का फैसला जिसमें कहा गया था कि मुफ्त उपहार देने का वादा भ्रष्ट आचरण नहीं है।

    शीर्ष अदालत ने हाल ही में चुनावी बांड योजना के माध्यम से राजनीतिक दलों के वित्त पोषण की अनुमति देने वाले कानूनों के खिलाफ 2017 की जनहित याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी। जनहित याचिका में राजनीतिक दलों के अवैध और विदेशी फंडिंग और सभी राजनीतिक दलों के खातों में पारदर्शिता की कमी के माध्यम से भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की तोड़फोड़ के मुद्दे उठाए गए थे।
    रैनबैक्सी लैब्स की 2008 में 4.6 बिलियन डॉलर की बिक्री के दौरान रैनबैक्सी लैब्स में गलत कामों के बारे में जानकारी छिपाने के लिए रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटरों मालविंदर और शिविंदर सिंह के खिलाफ 3,500 करोड़ रुपये के मध्यस्थता पुरस्कार को लागू करने के लिए जापानी फर्म दाइची सैंक्यो की याचिका से संबंधित मुद्दों पर एक उत्सुकता से प्रतीक्षित निर्णय है। .

    न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली पीठ स्वयं विभिन्न संबंधित मुद्दों की भी जांच करेगी, जिसमें फोर्टिस हेल्थकेयर की मलेशियाई कंपनी आईएचएच हेल्थकेयर को 4000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बिक्री सौदा और अनिवार्य खुली पेशकश, शेयर बेचने में बैंकों की भूमिका और सिंह द्वारा पैसे की हेराफेरी भी शामिल है।

    एक और फैसला झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों से कथित रूप से जुड़ी कुछ मुखौटा कंपनियों को खनन पट्टा देने में कथित अनियमितताओं की जांच करेगा। सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार, कार्यालय के दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं, जिन्होंने राज्य के खनन और पर्यावरण विभागों को संभालने के दौरान खुद को खनन पट्टा दिया था।
    एक और मामला जो लंबित है वह संविधान (एक सौ और तीसरा संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती है, जिसने 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम आय वाले व्यक्तियों के लिए सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण की शुरुआत की।

    दिसंबर 2019 में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के केंद्र के पारित होने से पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ था। संशोधन के खिलाफ लगभग 140 याचिकाएं दायर की गई हैं, जो अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाती हैं यदि वे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित हैं, और अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हैं।

    सुब्रत रॉय के नेतृत्व वाले सहारा समूह से संबंधित मामला, जो अपने 3.3 करोड़ निवेशकों से बांड के माध्यम से 24,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाने में कथित तौर पर मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए सेबी के साथ लंबी कानूनी लड़ाई में बंद है, अभी भी एक खुला अध्याय है।

    जस्टिस ललित को रिलायंस इंडस्ट्रीज की उस याचिका को भी समाप्त करना होगा, जिसमें सेबी के खिलाफ अवमानना ​​शुरू करने की मांग की गई थी, जो कि कुछ दस्तावेजों तक पहुंच प्रदान करने में विफल रही थी, जो मुकेश अंबानी फर्म का दावा है कि वह इसे और उसके 107 प्रमोटरों को कथित से संबंधित एक मामले में शुरू किए गए आपराधिक अभियोजन से बाहर कर देगा। 1994 और 2000 के बीच अपने स्वयं के शेयरों के अधिग्रहण में अनियमितताएं। अब तक सेबी ने उन तीन दस्तावेजों को साझा नहीं किया है जिन्हें एससी ने “तुरंत” साझा करने के लिए कहा था।

    हाल ही में, SC ने ललित के पिता के के मोदी के नाम पर एक ट्रस्ट संपत्ति पर लंबित पारिवारिक विवाद को हल करने के लिए व्यवसायी ललित मोदी और उनकी मां बीना मोदी के बीच ध्यान करने के लिए अपने पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन को नियुक्त किया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों विक्रमजीत सेन और कुरियन जोसेफ द्वारा मध्यस्थता का दौर विफल हो गया था।

    नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने देश भर में कई धर्मों द्वारा प्रचलित धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे और दायरे पर एक बड़ी पीठ के सवालों का हवाला दिया था। 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम और अन्य कानून पारित किए, जिन्होंने तत्कालीन राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया और संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावी ढंग से निरस्त कर दिया, जिसने तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा दिया।

  • UP News : सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) कानपुर के पूर्व ज़िलाध्यक्ष एवं RTI एक्टिविस्ट शंकर सिंह पर  जानलेवा हमला  

    UP News : सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) कानपुर के पूर्व ज़िलाध्यक्ष एवं RTI एक्टिविस्ट शंकर सिंह पर  जानलेवा हमला  

    शंकर सिंह एक पिछले कई वर्षों से RTI के माध्यम से RTO kanpur में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं। जिसके चलते कई बार RTO कार्यालय के अधिकारियों और दलालों पर प्रशासनिक कार्यवाही भी हो चुकी है। वर्तमान समय में भी शंकर सिंह आरटीओ में किसी बड़े मामले को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक शिकायत कर चुके हैं जिसमें कई बड़े अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों पर जांच बैठ सकती है। इसी के चलते दिनांक 26 अगस्त की शाम को जब शंकर सिंह लेबर ऑफिस, सर्वोदय नगर, कानपुर के पास से गुजर रहे थे तभी बाइक सवार कुछ लोगों ने इनपर लाठी डंडों से हमला कर दिया जिसमें शंकर सिंह के सर , हाथ और पीठ पर गंभीर चोटें आई है। शंकर सिंह ने कहा हेलमेट की वजह से उनकी जान बच गई नहीं हमले इतने तेज थे कि उनका बचना मुश्किल था।।

    शंकर सिंह इस हमले के पीछे भ्रष्ट अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों का हाथ मान रहे हैं जो अक्सर उन्हें धमकियां देते रहते हैं। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)  शंकर सिंह पर हुए हमले की कड़ी निंदा करती है और इस पूरे मामले की प्रशासनिक जांच की मांग करती है। इसी संदर्भ में पार्टी कानपुर इकाई द्वारा डॉ संदीप पांडे की अध्यक्षता में, दिनांक – 01 सितम्बर  22, दिन – बृहस्पतिवार को कानपुर कमिश्नर से मुलाक़ात कर इस मामले की प्रशासनिक जाँच एवं शंकर सिंह को सुरक्षा मुहैया करने से सम्बंधित एक ज्ञापन दिया जाएगा।

  • Sahara India : बिहार के नवादा में सुब्रत राय समेत तीन के खिलाफ वारंट जारी

    Sahara India : बिहार के नवादा में सुब्रत राय समेत तीन के खिलाफ वारंट जारी

    पटना/नवादा। बिहार के नवादा जिले में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने सुब्रत राय समेत 3 अधिकारियों के खिलाफ वारंट जारी किया गया। दरअसल नवादा के किशोर कुमार ने सहारा इंडिया की नवादा शाखा में 12.04 लाख रुपये जमा जमा किये थे। इसी प्रकार से इसी शाखा में नवीन कुमार ने भी सहारा इंडिया में 12 लाख 4 हजार रुपए जमा किये थे। जिला प्रतितोष आयोग ने 11 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान का आदेश सहारा इंडिया को दिया है। उधर कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में सुब्रत राय और 10 सहारा अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। मेरठ का मामला 25 लाख 5 हजार रुपए का निवेश का था।

  • Judiciary : जस्टिस यूयू ललित होंगे देश के नए मुख्य न्यायाधीश, एनवी रमना ने की सिफारिश

    Judiciary : जस्टिस यूयू ललित होंगे देश के नए मुख्य न्यायाधीश, एनवी रमना ने की सिफारिश

    जस्टिस यूयू ललित देश क अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने उनके नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर की है। जस्टिस यूयू ललित भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश होंगे।  इसी महीने एनवी रमना रिटायर हो रहे हैं। उसके बाद यूयू सुप्रीम कोर्ट के मुखिया के तौर पर कामकाज संभालेंगे। वरिष्ठता क्रम के अनुसार जस्टिस यूयू ललित ही मुख्य न्यायाधीश बनने के दावेदार थे।
    जस्टिस ललित देश के ऐसे दूसरे सीजेआई होंगे, जो बार काउंसिल से आकर जज बने और फिर चीफ जस्टिस बनने का मौका मिला। इससे पहले मार्च 1964 में ऐसा हुआ था, तब जस्टिस एसएम. सीकरी को बार काउंसिल से निकलकर जज बनने का मौका मिला था और फिर सीजेआई भी बने थे। जस्टिस एसएम. सीकरी जनवरी 1971 को देश के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस एनवी रमना 26 अगस्त को अपने पद से रिटायर होंगे। उसके अगले ही दिन जस्टिस यूयू ललित पदभार संभालेंगे। जस्टिस ललित देश के नामी वकीलों में से एक रहे हैं। उन्हें 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति मिली थी। तब से अब तक सुप्रीम कोर्ट के कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं। केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर के रख रखाव से जुड़े मामले में भी उन्होंने फैसला सुनाया था। यही नहीं पॉक्सो को लेकर भी अहम फैसला सुनाने वाली बेंच के भी जस्टिस यूयू ललित सदस्य थे। इस फैसले में कहा गया था कि यदि कोई गलत मंशा से बच्चे के प्राइवेट पार्ट्स को छूता है तो फिर उसे भी पॉक्सो एक्ट के तहत सेक्शन 7 के तहत यौन उत्पीड़न माना जाएगा।
    इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने कहा था कि यदि स्किन कांटेक्ट नहीं होता है तो फिर उसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। 9 नवम्बर 1947 को जन्मे जस्टिस यूयू ललित ने जून 1983 में एडवोकेट के तौर पर करियर की शुरुआत की थी। वह 1985 तक बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील थे। इसके बाद वह 1986 में दिल्ली आये थे और अप्रैल 2004 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट के तौर पर प्रैक्टिस की शुरुआत की थी। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उन्हें विशेष सरकारी अधिवक्ता के तौर पर सीबीआई का पक्ष रखने का मौका मिला था। जस्टिस यूयू ललित का चीफ जस्टिस के तौर पर कार्यकाल काफी छोटा होगा और वह 8 नवम्बर 2022 को रिटायर हो जाएंगे।

  • UP news : इलाहाबाद और लखनऊ खंडपीठ के 800 से अधिक सरकारी वकील बर्खास्त

    UP news : इलाहाबाद और लखनऊ खंडपीठ के 800 से अधिक सरकारी वकील बर्खास्त

    यूपी की योगी सरकार ने इलाहाबाद और लखनऊ खंड पीठ के 800 से अधिक सरकराी वकीलों को बर्खास्त कर दिया है। इसके बाद नए वकीलों को मौका मिलेगा। इस संबंध में आदेश जारी कर दिया गया है। दरअसल हर पांच साल पर सरकारी वकीलों को लेकर आदेश जारी होते हैं, जिसमें कुछ हटाए जाते हैं। इसके बाद नए को मौका मिलता है।
    ज्ञात हो कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों मिलकर करती हैं।

    वकीलों की नियुक्ति कौन सरकार करेगी वो इस बात पर निर्भर होगा कि आप कौन से कोर्ट में वकालत करना चाहते हैं। उच्च न्यायालय में या जिला स्तर के न्यायालय में । उच्च न्यायालय में सरकारी वकीलों की नियुक्ति उस स्टेट की सरकार और केंद्र की सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से विचार-विमर्श करने के बाद किया जाता है। वहीं जिला न्यायालय में वकीलों की नियुक्ति स्टेट की गवर्नमेंट द्वारा की जाती है।

  • justice served : फांसी पर झुलेगा 7 खून करने वाला ड्राइवर

    justice served : फांसी पर झुलेगा 7 खून करने वाला ड्राइवर

    justice served : एक साथ खत्म कर दी थी 3 पीढ़ी, 9 साल पुराने नरसंहार का न्याय

    गाजियाबाद में 9 साल पहले हुए उन नरसंहार में न्याय का इंतजार खत्म हो गया है, जिसमें कारोबारी के परिवरा की 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। लूट के इरादे से पूरे परिवार को मौत के घाट उतार देने वाले ड्राइवर राहुल वर्मा को अपर जिला जज की अदालत में फांसी की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने एक लाख रुपये का जुर्मान भी लगाया है। अदालत ने कहा कि परिवार के 7 सदस्यों की हत्या की घटना दुर्लभतम श्रेणी की अपराध है। कोर्ट ने शनिवार को राहुल को दोषी करार दिया था और सजा पर बहस के लिए 1 अगस्त की तारीख तय की थी 21 मई 2013 को घंटाघर नई बस्ती मोहल्ले में इस सनसनीखेज वारदात को अंजाम दिया गया था। कारोबारी सतीश गोयल का ड्राइवर राहुल वर्मा नरसंहार अंजाम देने के बाद लाखों रुपये के गहने और नकदी लेकर भागा था। वह करीब ९ साल से डासना जेल में बंद है।

    घंटाघर कोतवाली क्षेत्र में 21 मई 2013 की रात सनसनीखेज घटना हुई थी। घंटाघर नई बस्ती मोहल्ले में रहने वाले बुजुर्ग कारोबारी सतीश गोयल और उनके पूरे परिवार की चाकू से गोद कर हत्या कर दी गई थी। मृतक कारोबारी के दामाद सचिन मित्तल ने कोतवाली थाने में अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्याकांड का मुकदमा दर्ज कराया था। मृतकों में कारोबारी सतीश गोयल, उनकी पत्नी मंजू गोयल, पुत्र सचिन गोयल, पुत्र वधू रेखा गोयल और तीन पौत्र पौत्री शामिल थे। वरादात के बाद पुलिस ने विवेचना शुरू की और घटना के 10 दिन बाद सनसनीखेज हत्या के आरोप में राहुल वर्मा को घटना के अगले दिन ही 22 मई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

    पुलिस ने राहुल के पास से छह हजार रुपये नकद और सोनी चांदी के लाखों के जेवरात बरामद किये थे। कोतवाली पुलिस ने दो दिन बाद 24 मई को हत्यारे राहुल वर्मा को पुलिस रिमांड पर लेकर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने कपड़े भी बरामद किये। राहुल वर्मा कारोबारी का कार चालक था। राहुल घटना के करीब 15 दिन पहले कारोबारी सतीश गोयल के घर से साढ़े चार लाख रुपये चोरी कर फरार हो गया था। तब से नौकरी पर नहीं आ रहा था। पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता देवराज सिंह ने बताया कि 22 मई 2013 को सतीश चंद्र गोयल की किडनी ट्रांसप्लांट होनी थी। राहुल को इसके बारे में जानकारी थी उसे अनुमान था कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए घर में रखे 25 से 39 लाख रुपये मिल सकते हैं। इसी इरादे से राहुल को 21 मई की रात वारदात को अंजाम दिया था।

  • Justice Given to Mother : दो बहनों ने बाप को सजा दिलाने के लिए किया छह साल संघर्ष, कराई कर रहीं उम्रकैद

    Justice Given to Mother : दो बहनों ने बाप को सजा दिलाने के लिए किया छह साल संघर्ष, कराई कर रहीं उम्रकैद

    Justice Given to Mother : पुत्र की चाह में कर दी थी पत्नी की हत्या

    उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दो जांबाज बेटियों ने अपनी मां की हत्या का न्याय दिलाने के लिए अपने ही बाप के खिलाफ छह साल तक संघर्ष किया। इन दोनों बेटियों ने मां के हत्यारे पिता के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार कातिल को सजा दिलवाकर ही दम लिया। दरअसल इन दोनों लड़कियों के पिता ने पुत्र पैदा न होने पर इनकी मां को जिंदा जला दिया था। मामले में दोनों बेटियां जश्मदीद गवाह थी। बुधवार को एडीजे-6 ने आरोपी पिता को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई और 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट का फैसला आने के बाद बेटियों का कहना है कि उनकी मां को इंसाफ मिला है।

    छह साल से संघर्ष कर रही लतिका और तान्या की मां को जून 2016 में मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी। दोनों बच्चियों ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था और वो ही इस मामले में मुख्य गवाह थीं लतिका की उम्र उस वक्त महज १२ साल थी और तान्या की 14 साल, तब से वे दोनों अपनी मां को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही थीं। उनके वकील संजय शर्मा ने बताया कि इस मामले में मनोज के परिवार के सभी सदस्यों समेत सात अन्य आरोपी हैं। मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है, जिस पर सुनवाई अगस्त माह में होगी।
    संजय शर्मा ने बताया कि शादी के बाद लड़का पैदा न होने पर अनु की हत्या कर दी गई थी। ओमवती देवी ने 14 जून 2016 को नगर पुलिस को शिकायत देकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी। ओमवती ने बताया था कि उसकी बेटी की शादी मनोज बंसल के साथ साल 2000 में हुई थी। इसके बाद अनु को दो बेटियां लतिका और तान्या हुईं। मनोज को बेटा चाहिए था। वह पांच बार लिंग जांच कराने के बाद गर्भपात करा चुका था। मनोज ने 13 जून 2016 को फोन करके मायके वालों को बुलाया। मायके वालों को अनु को साथले जाने को कहा। उन्होंने साथ ले जाने से इनकार किया तो उसने हत्या की दमकी दी। 14 जून की सुबह लतिका बंसल ने सूचना दी कि पिता और अन्य लोगों ने मां को जिंदा दिया है। मौके पर पहुंचकर देखा तो अनु बुरी तरह से जली हुई आंगन में पड़ी थी। उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया गया। दिल्ली में उपचार के दौरान 20 जून 2016 को उसकी मौत हो गई थी। लतिका बंसल ने अपनी नानी और मामा के साथ मिलकर हत्यारे पिता को सजा दिलाने का प्रण लिया। लतिका और उसकी छोटी बहन तान्या ने पिता के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी। करीब छह साल तक संघर्ष के बाद उन्हें न्याय मिला और उनकी मां के हत्यारे को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

  • Suprim Court : योगी सरकार से पूछा-पत्रकार को कैसे कह सकते हैं, वो लिखे नहीं ? 

    Suprim Court : योगी सरकार से पूछा-पत्रकार को कैसे कह सकते हैं, वो लिखे नहीं ? 

    Suprim Court : मोहम्मद जुबैर को दी बेल, यूपी सरकार की एसआईटी भंग

    नई दिल्ली। ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। उत्तर प्रदेश मेंद र्ज सभी 6 एफआईआर के मामले में ऑल्ट न्यूज के संस्थापक को सवार्ेच्च न्यायालय ने बुधवार को अंतरिम जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी। मोहम्मद जुबैर ने अपने खिलाफ यूपी में दर्ज सभी 6 एफआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को क्लब करने और उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी छह एफआईआर को दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल को ट्रांसफर करने का निदेॅा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर के ट्वीट्स की जांच के लिए गठित एसआईटी को भंग कर दिया। हालांकि सुप्रीम कार्ट ने मामलों को रद्द करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोहम्मद जुबैर अपने खिलाफ दभी सभी या किसी भी एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट जा सकते हैं।

    जुबैर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश हुई वकील गरिमा प्रसाद ने का कि यह बार-बार कहा जाता है कि आरोपी पत्रकार है। लेकिन वह जर्नलिस्ट नहीं है। आरोपी खुद को फैक्ट लेकर कहता। फैक्ट चेकिंग की आड़ में दुर्भावनापूर्ण और भड़काऊ पोस्ट करता है। गरिमा प्रसाद ने कहा कि उन्हें ट्वीट्स के लिए पैसे मिलते हैं, जितने अधिक दुर्भावनापूर्ण ट्वीट, उतना अधिक पैसा जुबैर को मिलता है। उन्होंने यह माना। उन्हें दो करोड़ रुपये से ज्यादा रुपये मिले हैं। वह कोई जर्नलिस्ट नहीं है।

    उधर जुबैर की आरे से पेश हुईं वृंदा ग्रोवर ने कहा कि वास्तव में कौन भड़का रहा  है?  सुदर्शन टीवी चैनल द्वारा शेयर किया ग्राफिक मैंने एक फैक्ट चेकर के रूप में गाजा बमबारी की असल फोटो और असली मस्जिद की फोटो को शेयर किया। इसके लिए 153ए 295ए में एफआई दर्ज की गई।  यूपी सरकार द्वारा जुबैर को ट्वीट करने से रोकने की याचिका पर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, यह वकील को आगे बहस न करने के लिए कहने जैसा है। आप एक पत्रकार को कैसे कह सकते हैं कि वह लिख नहीं सकता ? जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, अगर वह ऐसा कुछ करता है जिससे कानून का उल्लंघन होता है, तो वह कानून के प्रति जवाबदेह है लेकिन कोई नागरिक आवाज उठा रहा है तो हम उसके खिलाफ अग्रिम कार्रवाई कैसे कर सकते हैं ? 

     

     

  • Suprim Court : जुबैर के सह संस्थापक के खिलाफ 20 तक कोई एक्शन न ले यूपी पुलिस

    Suprim Court : जुबैर के सह संस्थापक के खिलाफ 20 तक कोई एक्शन न ले यूपी पुलिस

    Suprim Court : वकील ने कहा-जुबैर को उत्तर प्रदेश में जान का खतरा 

    ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ 20 जुलाई तक उत्तर प्रदेश की पुलिस कोई एक्शन नहीं ले सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त हिदायत देते हुए कहा कि जुबैर ने उसके खिलाफ दर्ज सभी पांच केसों को खारिज करने की मांग की है। लिहाजा जब तक उसकी अपील पर अदालत कोई फैसला नहीं कर लेती तब तक यूपी पुलिस उसके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए।

    जुबैर के खिलाफ यूपी पुलिस ने 6 केस दर्ज कर रखे हैं। इनमें से लखीमपुर खीरी जिले में है तो दो हाथरस जिले मेंद र्ज किेय गय हैं। इनके अलावा मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद में भी विवादित ट्वीट्स को लेकर केस दर्ज हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की डबल बेंच ने सभी पक्षों को नोटिस भेजकर मामले को 20 जुलाई को सुनवाई तय की है। बेंच का कहना है कि जब तक अदालत जुबैर की अपील नहीं सुन लेती है तब तक एक्शन न हो। फिलहाल जुबैर को सीतापुर में दर्ज मामले के साथ दिल्ली केस में जमानत दी जा चुकी है। जुबैर के वकील वीरेंद्र ग्रोवर ने अदालत से तुरंत सुनवाई की अपील की थी। उनका कहना था कि यूपी पुलिस उनके क्लाइंट के खिलाफ खराब नीयत से काम कर रही है। उन्हें बेवजह प्रताड़ित किया जा रहा है। उनकी अपील थी कि कोर्ट आज ही मामले की सुनवाई करके जुबैर की याचिका पर फैसला सुनाए।
    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और एएस बोपन्ना की डबल बेंच ने कहा कि याचिका आज लिस्ट पर नहीं है तो सुनवाई नहीं की जा सकती है। बेंच ने रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वह 20 जुलाई को याचिका सूचीबद्ध करे। अदालत उस दिन सुनवाई करेगी कोर्ट ने कहा कि सभी केसों की भाषा लगभग एक जैसी है। हम इस मामले में जुबैर को जमानत देते हैं तो दूसरे में उसे रिमांड पर लेने की तैयारी शुरू हो जाती है। ऐसा लगता है कि ये एक कुचक्र है।
    हालांकि जुबैर के वकील वीरेंद्र ग्रोवर ने सीजीआई एनवी रमन्ना के सामने अपनी व्यथा रखी थी। उनका कहना था कि उनके मुवक्किल को हाथरस कार्ट ले जााय जा रहा है सीजेआई ने ग्रोवर से जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच के समक्ष अपील करने को कहा। ग्रोवर की मांग थी कि जुबैर को वापस दिल्ली की तिहाड़ जेल लााय जाए। यूपी में उनकी जान को खतरा है