Category: अदालत

  • वक्फ कानून के खिलाफ SC पहुंचे MP कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद, रद्द करने की मांग

    वक्फ कानून के खिलाफ SC पहुंचे MP कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद, रद्द करने की मांग

  • Bulldozer Action: ‘मंदिर हो या दरगाह, कोई भी धार्मिक इमारत लोगों की जिंदगी में बाधा नहीं बन सकती’, बुलडोजर एक्शन पर बोला सुप्रीम कोर्ट

    Bulldozer Action: ‘मंदिर हो या दरगाह, कोई भी धार्मिक इमारत लोगों की जिंदगी में बाधा नहीं बन सकती’, बुलडोजर एक्शन पर बोला सुप्रीम कोर्ट

    Supreme Court on Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बुलडोजर एक्शन केस पर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और सड़क, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाया जाना चाहिए। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हों।

    सुनवाई के दौरान यूपी सरकार के लिए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पहुंचे. हालांकि, वह मध्य प्रदेश और राजस्थान की तरफ  भी पेश हुए हैं। उन्होंने कहा, “मेरा सुझाव है कि रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए. 10 दिन का समय देना चाहिए. मैं कुछ तथ्य रखना चाहता हूं, यहां ऐसी छवि बनाई जा रही है, जैसे एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है.”

    ‘अवैध निर्माण किसी का हो, कार्रवाई होनी चाहिए’

    सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की दलील पर जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में हैं। अवैध निर्माण हिंदू का हो या मुस्लिम का… कार्रवाई होनी चाहिए. इस पर मेहता ने कहा कि बिल्कुल, यही होता है. इसके बाद जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर 2 अवैध ढांचे हैं और आप किसी अपराध के आरोप को आधार बना कर उनमें से सिर्फ 1 को गिराते हैं, तो सवाल उठेंगे ही। इस दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि मैं जब मुंबई में जज था तो खुद भी फुटपाथ से अवैध निर्माण हटाने का आदेश दिया था, लेकिन हमें यह समझना होगा कि अपराध का आरोपी या दोषी होना मकान गिराने का आधार नहीं हो सकता. इसे ‘बुलडोजर जस्टिस’ कहा जा रहा है।

    10 दिन का समय देने की बात पर सॉलिसीटर ने जताई आपत्ति

    सॉलिसीटर मेहता ने कहा कि नोटिस दीवार पर चिपकाया जाता है।  ये लोग मांग कर रहे हैं कि ऐसा गवाहों की मौजूदगी में हो. इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि अगर नोटिस बनावटी हो सकता है, तो गवाह भी गढ़े जा सकते हैं। कोई समाधान नहीं लगता. जस्टिस गवई ने कहा कि अगर 10 दिन का समय मिलेगा, तो लोग कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकेंगे. इस पर मेहता ने कहा कि मैं विनम्रता से कहना चाहूंगा कि यह स्थानीय म्युनिसिपल नियमों से छेड़छाड़ होगी। इस तरह से अवैध निर्माण को हटाना मुश्किल हो जाएगा।

    ‘हम वही समाधान देना चाहते हैं जो पहले से कानून में है’

    मेहता की दलील सुनने के बाद जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि किसी जगह रहते परिवार को वैकल्पिक इंतज़ाम के लिए भी 15 दिन का समय मिलना चाहिए. घर में बच्चे और बुजुर्ग भी रहते हैं। लोग अचानक कहां जाएंगे. इस पर मेहता ने कहा कि मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि कोर्ट को ऐसा समाधान नहीं देना चाहिए, जो कानून में नहीं है। इसके बाद जस्टिस गवई ने कहा कि हम सिर्फ वही समाधान देना चाहते हैं जो पहले से कानून में है। हम सड़क, फुटपाथ वगैरह पर हुए निर्माण को कोई संरक्षण नहीं देंगे।

    याचिकाकर्ता के वकील ने दी ये दलील

    याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने कहा कि मैं ऐसे कई उदाहरण दे सकता हूं, जहां FIR दर्ज होते ही अचानक घर पर बुलडोजर पहुंच गए. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी असम और गुजरात में अचानक बुलडोजर चलाए गए हैं. इस पर जज ने कहा कि हम ऐसा कोई आदेश नहीं देंगे जो अतिक्रमणकारियों के लिए मददगार हो। लिए बोलने को खड़े हुए. इसे देख तुषार मेहता ने मज़किया लहजे में कहा- “मैं हैरान हूं कि गरीब याचिकाकर्ता सिंघवी जी की फीस कैसे दे पा रहा है.” इस पर सिंघवी ने कहा, “आप भूल रहे हैं, हम कभी-कभी निशुल्क भी पेश होते हैं.”

    तुषार मेहता ने की सुप्रीम कोर्ट से ये अपील

    जस्टिस गवई ने कहा  कि  हम आगे की बात करते हैं। यह देखते हैं कि हमारे आदेश का क्या परिणाम निकलेगा। इस पर मेहता ने कहा कि आप जो उचित समझें आदेश दें, लेकिन कृपया ध्यान रखें कि उसका लाभ बिल्डर और व्यवस्थित तरीके से अवैध कब्ज़ा करने वाले लोग न उठा पाएं. इस दलील पर जज ने कहा कि हम ऐसा कोई आदेश नहीं देंगे जो अतिक्रमणकारियों के लिए मददगार हो /

    ‘तोड़ने की कार्रवाई तभी हो जब कोई विकल्प न हो’

    वकील सीयू सिंह ने कहा, “हम सिर्फ म्युनिसिपल नियमों के पालन की ही मांग कर रहे हैं. हाल में गणेश पंडाल पर पथराव की घटना हुई. तुरंत इलाके में बुलडोजर पहुंच गए. यह सब बंद होना चाहिए. यूपी में जावेद मोहम्मद का घर उनकी पत्नी के नाम था. जावेद पर भीड़ को लेकर हिंसा का आरोप लगा. पूरा 2 मंजिला मकान गिरा दिया गया. यह इतना आम हो गया है कि इन बातों को बता कर चुनाव भी लड़े जा रहे हैं.” दलील सुनने के बाद जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “हमारा मानना है कि तोड़ने की कार्रवाई तभी होनी चाहिए, जब यह आखिरी विकल्प हो.”

  • चंपारण : सामूहिक दुष्कर्म मामले में 20 वर्षों के सश्रम कारावास की सजा

    चंपारण : सामूहिक दुष्कर्म मामले में 20 वर्षों के सश्रम कारावास की सजा

    मोतिहारी । पॉक्सो एक्ट कोर्ट नंबर 1 के विशेष न्यायाधीश राजाराम संतोष कुमार ने सामुहिक दुष्कर्म मामले में नामजद दो अभियुक्तों में एक को दोष सिद्ध होने पर 20 वर्षों का सश्रम कारावास एवम आठ हजार रुपए अर्थ दंड की सजा सुनाए। अर्थ दंड नहीं देने पर अतिरिक्त सजा काटनी होगी। सजा गोविन्दगंज थाना के राजेपुर निवासी सारिक अंसारी को हुई। वहीं दूसरे अभियुक्त मुकुल दूबे उर्फ सुधीर दूबे भी 7 अगस्त को ही दोषी करार दिए गए,परंतु वह न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। आज सजा सुनाए जाने के समय अनुपस्थित रहने के कारण उसके वाद को पृथक कर न्यायालय ने अग्रतर कार्रवाई की। मामले में पिड़िता के पिता ने गोविन्दगंज थाना काण्ड संख्या 228/2022 दर्ज कराते हुए सारिक अंसारी एवं मुकुल दूबे उर्फ सुधीर दुबे सहित अन्य को नामजद किया था। जिसमें कहा था कि 11 जुन 2022 को उसकी नाबालिग पुत्री को ग्रामीण अनिता कुमारी बहला फुसलाकर नामजद लोगों के चुंगल में सौंप दी तथा उस हैवानों ने उसकी पुत्री के साथ सामुहिक दुष्कर्म किया। पॉक्सो वाद संख्या 58/2022 विचारण के दौरान विशेष लोक अभियोजक मणी कुमार ने आठ गवाहों को न्यायालय में प्रस्तुत कर अभियोजन पक्ष रखा। दोनों पक्षों का दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने सारिक अंसारी को उक्त सजा सुनाए। न्यायाधीश ने पीड़िता को पीड़ित घोषित करते हुए प्रतिकर अधिनियम के तहत मुआवजा देने की करवाई करने का निर्देश जिला विधिक सेवा प्राधिकार को दिया।

  • जा सकती है सपा सांसद की सांसदी, इलाहाबाद HC में होगी सुनवाई  

    जा सकती है सपा सांसद की सांसदी, इलाहाबाद HC में होगी सुनवाई  

  • रिजर्वेशन में जाति आधारित हिस्सेदारी संभव : सर्वोच्च न्यायालय

    रिजर्वेशन में जाति आधारित हिस्सेदारी संभव : सर्वोच्च न्यायालय

    अभिजीत पाण्डेय

    नयी दिल्ली / पटना। सुप्रीम कोर्ट नेअनुसूचित जाति-जनजाति कैटेगरी के लिए सब-कैटेगरी को मान्यता दे दी है। इसके साथ ही अब राज्य सरकारें समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद लोगों को पहले से मौजूद रिजर्वेशन में से कोटा दे सकेंगी।

    मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संवैधानिक पीठ ने अनुसूचित जाति-जनजाति कैटेगरी के लिए सब-कैटेगरी को मान्यता दे दी है। पीठ की ओर से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने चिन्नैया फैसले को भी खारिज कर दिया है। इसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का कोई भी सब-कैटेगरी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन होगा।

    पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला देकर यह भी साफ कर दिया है कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है और राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कैटेगरी के लिए सब कैटेगरी भी बना सकती हैं, लेकिन सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सब कैटेगरी संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करती, क्योंकि सब कैटेगरी को लिस्ट से बाहर नहीं रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ ने यह फैसला सुनाया है, उसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 15 और 16 में भी ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी जाति को सब कैटेगरी करने से रोकता हो।

    इससे पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में फैसला सुनाया था कि राज्य सरकारें नौकरी में रिजर्वेशन के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती हैं और सबसे पिछड़े वर्गों को रिजर्वेशन का लाभ दे सकती हैं। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने एससी , एसटी और ओबीसी कैटेगरी के भीतर विभिन्न सब- कैटेगरी को आरक्षण देने की व्यवस्था की है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकारें सब कैटेगरी रिजर्वेशन देने के लिए अहम कदम उठा सकती हैं और सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सब कैटेगरी में शामिल करके शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दे सकती हैं।

  • नीतीश सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका

    नीतीश सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका

    बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण का कानून रद्द

    राम नरेश

    पटना । बिहार में 65 प्रतिशत जातीय आधारित आरक्षण को पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। इसके तहत राज्य सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 65 फीसदी आरक्षण देने का कानून लाया गया था।

     

    पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण देने के कानून पर फैसला सुनाया है। इसे चुनौती देने वाली याचिकायों को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के द्वारा लाये गये कानून को रद्द करते हुए बड़ा झटका दिया गया है।

    इस मामलें में गौरव कुमार, मोहन कुमार एवं अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला 11मार्च, 2024 को सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया।

    चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ गौरव कुमार व अन्य याचिकाओं पर लंबी सुनवाई की थी।

    राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने ये आरक्षण इन वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण दिया था। राज्य सरकार ने ये आरक्षण अनुपातिक आधार पर नहीं दिया था।

    इन याचिकाओं में राज्य सरकार द्वारा 9 नवंबर, 2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी। इसमें एससी, एसटी,ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया था, जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा में नौकरी रखी गई थी।

    अधिवक्ता दीनू कुमार ने पिछली सुनवाईयों में कोर्ट को बताया था कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण रद्द करना भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6)(बि ) के विरुद्ध है। उन्होंने बताया था कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद जातियों के अनुपातिक आधार पर आरक्षण का ये फैसला लिया गया, न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर ये निर्णय लिया गया।

    दीनू कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा स्वाहनी मामलें में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था। जातिगत सर्वेक्षण का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के फिलहाल लंबित है।

    इसमें सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई, जिसमें उसने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी थी।

    इससे राज्य सरकार को इन वर्गों के लिए 65 फीसदी आरक्षण के निर्णय को कोर्ट ने रद्द कर दिया।वरीय अधिवक्ता दीनू कुमार ने अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए दलील दी कि जाति आधारित सर्वेक्षण के बाद जातियों के आनुपातिक आधार पर आरक्षण का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है, न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर।

    सरकार के सर्वेक्षण में यह तथ्य स्पष्ट है कि कई पिछड़ी जातियों का सरकारी सेवाओं में अधिक प्रतिनिधित्व है।

  • मुंगेर लोकसभा सीट के 45 बूथों पर दोबारा मतदान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इंकार

    पटना। बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट के 45 बूथों पर दोबारा मतदान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट मे मतदान केंद्रों पर धांधली का आरोप लगाते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने का निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की गई थीं।

    इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज ही सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई थी, उसमें मुंगेर लोकसभा सीट पर दोबारा मतदान कराने का निर्देश देने की मांग की है।

    सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता आरजेडी उम्मीदवार कुमारी अनीता को हाईकोर्ट जाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई में कहा कि बिना याचिका दाखिल किए हाईकोर्ट पर आरोप लगाना बिल्कुल ठीक नहीं है। हाईकोर्ट खुला है आप वहां जाइए हम इस पर सुनवाई नहीं करेंगे आरजेडी उम्मीदवार कुमारी अनीता ने कोर्ट में दाखिल याचिका वापस ले ली है।

    आरजेडी की उम्मीदवार कुमारी अनीता ने ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। जिसमें उन्होंने लोकसभा चुनाव में मुंगेर के 45 बूथ पर मतदान के दौरान जदयू कार्यकर्ताओं द्वारा मतदान अधिकारियों की मिली-भगत से बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया है। याचिका मे कहा गया है कि इसका विरोध करने पर याचिकाकर्ता के साथ मारपीट भी की गई। जिसको लेकर 13 मई को प्राथमिकी भी दर्ज करायी गई है।

    जब मामले पर जिला निर्वाचन अधिकारी से घटना को लेकर मुलाकात कर जानकारी दी गई तो उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया गया, लेकिन कुछ किया नहीं गया। इसलिए कुमारी अनीता ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर जिला निर्वाचन अधिकारी को सभी प्रशासनिक जिम्मेदारियों से हटाने का निर्देश देते हुए मुंगेर के 45 बूथों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान को सुनिश्चित करने का निर्देश चुनाव आयोग को देने की मांग की है।

  • पटना हाई कोर्ट ने खारिज की अनंत सिंह के नियमित पैरोल की अर्जी

    पटना हाई कोर्ट ने खारिज की अनंत सिंह के नियमित पैरोल की अर्जी

    रामनरेश

    पटना। पटना हाई कोर्ट ने बुधवार को पांच मई की सुबह पैरोल पर बाहर आए अनंत सिंह अनंत सिंह के नियमित पैरोल पर ब्रेक लगा दी है।
    अनंत सिंह ने जहां एक तरफ अपने जमीन जायदाद के बंटवारे को लेकर 15 दिनों की पैरोल की मांगी की थी, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने नियमित पैरोल की भी गुहार लगाई थी, जिसको लेकर पटना हाईकोर्ट ने उन्हें झटका दिया है।

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि जिस मामले में अनंत सिंह जेल में हैं वह मामला काफी संगीन है ऐसे में आपको नियमित पैरोल नहीं दी जा सकती।उधर एक टीवी चैनल ने बातचीत मे जब उनसे पूछा कि इस बार तो आप पैरोल पर बाहर आए हैं, लेकिन कब तक हमेशा के लिए सलाखों से बाहर निकलेंगे ? इस सवाल पर पूर्व विधायक अनंत सिंह ने कहा, ‘पैरोल को तीन दिन हो गया है। अगले डेढ़ महीने में वह हमेशा के लिए जेल से बाहर आ जाएंगे।

    अनंत सिंह ने कहा कि अपने लोगों से मिलकर अच्छा लग रहा है। उन्होंने कहा कि करीब 9 साल बाद इस इलाके में लोगों से मिलने आया हूं। उनके मुताबिक 5 साल से जेल में था और उससे पहले भी 2-2 साल बीच-बीच में जेल जाना पड़ा था, जिस वजह से मोकामा के बाहर के लोगों के बीच नहीं जा रहा था।

  • किसी राहुल गांधी या लालू यादव को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    किसी राहुल गांधी या लालू यादव को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    न्यूज़ फिफ्टीन ब्यूरो

    नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता कि उसका नाम किसी राजनेता का हमनाम है।

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता, क्योंकि उसका नाम किसी राजनेता के नाम पर है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यह मांग की गई थी उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने ने रोका जाए, जिसका नाम किसी राजनेता के नाम पर हो। तीन सदस्यीय बेंच का नेतृत्व जस्टिस बीआर गवई कर रहे थे। याचिका में यह मांग की गई थी कि दिशा में कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग को निर्देशित किया जाए।

    कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अगर कोई जन्म से राहुल गांधी या लालू यादव के साथ है, तो क्या हम उन्हें चुनाव लड़ने से रोक सकते हैं? कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति के वकील से पूछा कि क्या हम उनके अधिकारों का हनन नहीं कर रहे हैं।

    कोर्ट ने कहा कि अगर किसी राजनेता के समान नाम होने से अगर हम किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकते हैं, तो क्या यह उसके चुनाव लड़ने के अधिकारों के रास्ते में बाधा नहीं है? कोर्ट ने कहा कि क्या आपको पता है कि इस केस की किस्मत क्या है? इतना कहने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को केस वापस लेने की अनुमति दे दी।

  • आचार संहिता उल्लंघन मामले में भाजपा और कांग्रेस को नोटिस चुनाव आयोग ने 29 अप्रैल तक दोनों दलों से मांगा जवाब

    आचार संहिता उल्लंघन मामले में भाजपा और कांग्रेस को नोटिस चुनाव आयोग ने 29 अप्रैल तक दोनों दलों से मांगा जवाब

    ऋषि तिवारी
    नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने कथित तौर पर आचार संहिता उल्लंघन के मामलों को संज्ञान में लेते हुए भाजपा पार्टी और कांग्रेस पार्टी के नोटिस जारी किया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर नफरत और विभाजन पैदा करने का आरोप लगाया गया है। आयोग ने 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक दोनों दलों से जवाब मांगा है।

    प्राप्त जानकारी के अनुसार पहली बार है जब चुनाव आयोग ने आचार संहिता उल्लंघन मामले में स्टार प्रचारकों की बजाय पार्टी अध्यक्ष को नोटिस भेजा है। चुनाव आयोग का कहना है कि अपने भाषणों के लिए स्टार प्रचारक जिम्मेदार तो होंगे ही, लेकिन अब पार्टी अध्यक्ष की भूमिका भी तय की जाएगी। हालांकि, ये अलग-अलग मामले पर निर्भर करता है। आयोग का दावा है कि इससे पार्टी प्रमुखों पर जिम्मेदारी और तय कर दी गई है।

     

    जनप्रतिनिधि कानून के सेक्शन 77 के तहत भेजे गए नोटिस
    चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधि कानून के सेक्शन 77 के तहत दोनों पार्टियों के अध्यक्षों को नोटिस भेजा है और आयोग ने स्टार प्रचारकों की फौज उतारने के लिए पहली नजर में पार्टी अध्यक्षों को ही जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने दोनों दलों के अध्यक्षों से कहा है कि अपने प्रत्याशियों के कामों के लिए राजनीतिक दलों को ही पहली जिम्मेदारी उठानी चाहिए। खास तौर पर स्टार कैंपेनर्स के मामले में, ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के चुनावी भाषणों का असर ज्यादा गंभीर होता है।

     

    क्यों जारी हुए हैं ये नोटिस?

     

    भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राहुल गांधी के भाषणों पर आई शिकायत के बाद नोटिस जारी किया गया है। 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में पीएम मोदी ने जो भाषण दिया था, उसके खिलाफ कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग में शिकात दर्ज करवाई थी। उस रैली में पीएम मोदी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति छीनकर मुस्लिमों में बांटना चाहती है। मोदी ने यह भी कहा था कि अगर कांग्रेस सरकार में आई तो ‘मंगलसूत्र’ भी नहीं बचने देगी।

    दूसरी ओर भाजपा ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ शिकायत की थी, भाजपा ने अपनी शिकायत में कहा था कि केरल के कोट्टायम की रैली में राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर एक देश, एक भाषा और एक धर्म थोपने का आरोप लगाया था। इसके अलावा भाजपा ने यह भी कहा था कि तमिलनाडु के कोयम्बटूर में राहुल गांधी ने पीएम पर भाषा, इतिहास और परंपरा पर हमला करने का आरोप लगाया था।