चरण सिंह
यदि राजतंत्र और लोकतंत्र में अंतर न होता तो दुनिया में लोकतंत्र के लिए इतना बड़ा संघर्ष न होता। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि देश बाबर औरंगजेब की परंपरा से नहीं बल्कि राम कृष्ण की परंपरा से चलेगा। राजनीतिक दलों को यह समझना पड़ेगा कि बाबर औरंगजेब और राम कृष्ण परंपरा राजतंत्र के समय की है। अब देश में लोकतंत्र है। देश के आज़ाद होने के बाद बाबा साहेब की अगुआई में तैयार किये संविधान में क्या राम कृष्ण और बाबर औरंगजेब की परंपरा है ? नहीं न ? तो फिर देश संविधान से चलेगा। जगजाहिर है कि संविधान में सभी जाति और धर्मों के लोगों को समान अधिकार मिले हैं। सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म के हिसाब से रहने की आज़ादी है। मतलब भावनाओं से समाज तो चल सकता है पर देश तो संविधान से ही चलेगा।
बात योगी आदित्यनाथ की है नहीं बीजेपी यदि धर्म की बात कर रही है तो विपक्षी दल जाति की बात करते हैं। अखिलेश यादव ने पीडीए बना ली है तो कांग्रेस जातीय जनगणना की बात कर रही है। यह बात भी समझने की है कि यह सब किसी के भले के लिए नहीं बल्कि वोटबैंक के लिए हो रहा है। इसमें दो राय नहीं कि मुग़ल काल में मंदिरों को गिराकर मस्जिद बनाने की बात पढ़ते और सुनते रहे हैं। हिन्दुओं पर अत्याचार की बात भी सुनने में आती है। बात यह भी समझने की है कि हिन्दू राजा और जमीदार भी जनता का शोषण और दमन करते थे। शोषितों में हिन्दू और मुसलमान दोनों होते थे। मुग़ल शासक भी हिन्दू और मुसलमान दोनों का शोषण करते थे। मतलब राजा जनता पर राज करता था।
मतलब राजा शोषक था तो जनता शोषित। ऐसे ही आज की तारीख में नेता को शोषक माना जा रहा है तो जनता शोषित। जनता तब भी इस्तेमाल होती थी और आज भी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में जो माहौल देखने को मिला, उसमें राजतंत्र की बातें ज्यादा देखने को मिली। जय श्री राम और अल्लाहु अकबर नारे की बात की गई। देश कहां जा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन नारों के दम पर आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई वे नारे गौण होते जा रहे हैं और राजतंत्र के नारे हावी होते जा रहे हैं। संसद या विधानसभा में जय हिन्द, इंकलाब जिंदाबाद के नारे की बात क्यों नहीं होती।
मतलब राजा शोषक था तो जनता शोषित। ऐसे ही आज की तारीख में नेता को शोषक माना जा रहा है तो जनता शोषित। जनता तब भी इस्तेमाल होती थी और आज भी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में जो माहौल देखने को मिला, उसमें राजतंत्र की बातें ज्यादा देखने को मिली। जय श्री राम और अल्लाहु अकबर नारे की बात की गई। देश कहां जा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन नारों के दम पर आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई वे नारे गौण होते जा रहे हैं और राजतंत्र के नारे हावी होते जा रहे हैं। संसद या विधानसभा में जय हिन्द, इंकलाब जिंदाबाद के नारे की बात क्यों नहीं होती।
जमीनी हकीकत यह है कि धर्म के नायकों को याद किया जा रहा है पर आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले नायकों की बात करने को कोई तैयार नहीं। क्या बिना आज़ादी के देश का कोई आम आदमी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकता था ? क्या आज किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को अपने हिसाब से प्रदेश या देश चलाने का अधिकार मिला हुआ है तो वह किसी राजा की बनाई व्यवस्था नहीं है। यह अधिकार आज़ाद देश के अपने संविधान ने दिया है। जो लोग राम की बात करते हैं वे जरा यह तो बता दें कि राम ने कहां पर किसी से नफरत करने का संदेश दिया है।
निषाद को मित्र बनाने वाले भीलनी के झूठे बेर खाने वाले राम को युद्ध माद का प्रतीक बताया जा रहा है। इस बात से तो मैं सहमत हूं कि देश में सभी धर्म और जाति के लिए एक ही कानून होना चाहिए। जब संविधान की बात होती है तो शरीयत की बात नहीं होनी चाहिए। एक धर्म में दूसरी शादी करना अपराध है तो दूसरे धर्म अपराध नहीं। क्यों ? जब सभी धर्म के लिए एक ही कानून है तो फिर एक धर्म के लिए धर्म के आधार पर कानून क्यों ? बाबा भीम राव अम्बेडकर के संविधान से ही देश चलेगा।
दरअसल सोमवार को योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि यह देश राम-कृष्ण की परंपरा से चलेगा, न कि बाबर और औरंगजेब की परंपरा से चलेगा। देश के सभी लोगों को समझ लेना चाहिए कि क्या किसी धर्म के आधार पर पुलिस प्रशासन हो सकता है ? क्या बिना चुनाव के कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकता है ? क्या देश में हर व्यवस्था संविधान के हिसाब से नहीं हो रही है। यदि कोई गलत है। गलत काम कर रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर लोकतंत्र में राजतंत्र की परंपरा लागू नहीं की जा सकती है।