अब परिवर्तन चाहिए,
हर घर से एक रक्षक चाहिए!
जो डिजिटल नहीं, वैचारिक हो;
जो वीर नायक, चरित्रवान योद्धा हो।
उसके हाथ में मोबाइल नहीं,
पर संकल्प हो!
उसकी आँखों में स्वप्न नहीं,
पर विवेक हो!
यदि भीतर बैठा भेदी ही,
किले की दीवारें तोड़ेगा—
तो शत्रु को क्या दोष दूँ मैं,
जब अपना ही रक्त धोखे छोड़ेगा!
अंतिम पुकार – राष्ट्र की आत्मा से
राष्ट्र की आत्मा रो रही है,
जन-गण-मन को जगाओ!
मात्रभूमि के चरणों में
आज फिर से शीश झुकाओ!
क्योंकि यह युद्ध तलवारों से नहीं,
चरित्र से जीता जाएगा—
और गद्दारी के इस अंधकार को
ओज से मिटाया जाएगा!
प्रियंका सौरभ