वोट कटुआ पार्टी बनकर रह गई है बीएसपी

0
117
Spread the love
चरण सिंह 

कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही मायावती इतनी मजबूर कर दी जाएंगी कि उनकी पार्टी और राजनीति पर ही संकट आ जाएगा। २०१९ में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली मायावती कांग्रेस के तमाम प्रयास के बावजूद इंडिया गठबंधन में नहीं आईं और आज की तारीख में मायावती पर बीजेपी की बी टीम की तरह काम करने का आरोप लग रहा है। मायावती जिस तरह से प्रत्याशी खड़े कर ही हैं उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि वह चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि हराने के लिए काम कर रही हैं। वह सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं बल्कि विपक्ष की पार्टियों को। मतलब मायावती भले ही अपने को धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करने का वाली नेता बना रही हों पर कारण कुछ हो पर वह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ काम कर रही हैं। यह मायावती की ढुलमुल राजनीति ही है कि आज की तारीख में बीएसपी वोट कटुआ पार्टी बनकर रह गई है।
कांग्रेस और सपा को हराने के लिए मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्र में मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी समर में उतार रही हैं। अमरोहा से मुजाहिद्दीन हुसैन, मुरादाबाद से इरफान सैफी, कन्नौज से अकील अहमद और पीलीभीत से अनीस अहमद खां को चुनावी समर में उतारा गया है। मायावती की रणनीति है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की फाइनल सीटें घोषित होने के बाद ही वह अपने पूरे प्रत्याशी चुनाव में उतारेंगी। मतलब जहां जहां इंडिया गठबंधन मुस्लिम प्रत्याशी उतारेगा वहां वहां बसपा भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारेगी। उधर असदुद्दीन ओवैसी भी उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर प्रत्याशी रहे हैं। ओवैसी ने विशेष रूप से समाजवादी पार्टी को घेरने की रणनीति बनाई है।
दरअसल असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों की राजनीति करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुस्लिम समाजवादी पार्टी के साथ बताये जाते हैं। हालांकि इन चुनाव में मुस्लिमों का रुझान कांग्रेस की ओर देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में आजमगढ़, बदायूं, संभल, मुरादाबाद, बिजनौर, नगीना, मुजफ्फरनगर और मेरठ सीट मुस्लिम बहुल मानी जाती है। ओवैसी की रणनीति है कि इन सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे जाएं। मतलब बीजेपी ने इंडिया गठबंधन को घेरने की रणनीति बना ली है।
देखने की बात यह है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर जाता है। उत्तर प्रदेश में ८० लोकसभा सीटें हैं। बीजेपी की रणनीति है कि उत्तर प्रदेश में सभी सीटों को हासिल कर लिया जाए। जिन सीटों पर २०१९ के चुनाव में बीजेपी हार गई थी। उन सीटों पर भी चुनाव जीतने की रणनीति बीजेपी ने बनाई है। उत्तर प्रदेश में २०१४ के चुनाव के बजाय बीजेपी २०१९ के चुनाव में कम सीटें जीती थी। इन सीटों में से अधिकतर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में थी। बीजेपी की रणनीति है कि बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मुरादाबाद और मेरठ सीटों पर जीत दर्ज की। ये सभी सीटें मुस्लिम बहुल हैं। यही वजह है कि इंडिया गठबंधन के वोट कोटने के लिए बीएसपी और ओवैसी को लगाया गया है। मतलब ओवैसी के साथ ही मायावती भी कांग्रेस और सपा का खेल बिगाड़ने के लिए चुनावी समर में उतर चुके हैं।
इसमें दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अपनी छवि है। योगी आदित्यनाथ ने कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर लोगों का दिल जीत रखा है। कोरोना काल में भी आदित्यनाथ ने दूसरे राज्यों के बजाय बहुत मेहनत की थी। अब किसानों के ट्यूबवेल के बिजली के बिलों को माफ कर दिया है। वैसे भी २०१७ में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ कर दिया था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here