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ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में निभाई थी अहम भूमिका 

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ब्राह्मण जाति के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अपनी महती भूमिका निभाई थी। क्रांतिकारी आंदोलन में अनेक ब्राह्मण जाति के युवाओं शामिल होकर कुर्बानियाँ दीं। कांग्रेस में शामिल होकर आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने में  ऐतिहासिक भूमिका अदा की। बाल गंगाधर तिलक,  गोपाल कृष्ण गोखले, गोविन्द बल्लभ पंत, मदनमोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरु आदि ने कांग्रेस का नेतृत्व किया। भारी संख्या में ब्राह्मण जाति के लोग आजादी के आंदोलन में शामिल हुए। RSS ने आजादी के आंदोलन को कमजोर करने, उसमें फूट डालने की कोशिश की। RSS के ब्राह्मण नेताओं के हिंदू मुस्लिम की नीति को ब्राह्मण नेताओं और जनता ने ठुकरा दिया था। आजादी के आन्दोलन का इतिहास पढ़ने से यही ज्ञात होता है। रामप्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां के साथ फांसी पर साथ साथ चढ़ते हैं। भगत सिंह के साथ राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद शहीद होते हैं। खान अब्दुल गफ्फार खान के साथ गोपाल कृष्ण गोखले, मोतीलाल नेहरू गोविन्द बल्लभ पंत साथ साथ आन्दोलन करते हैं जेल जाते हैं।
इस इतिहास का RSS विरोध कर रही है। कहती है कि ये इतिहास गलत लिखा। वामपंथियों ने लिखा है। RSS विरोध करती है तो समझ में आता है क्योंकि RSS ने आजादी के आन्दोलन का विरोध किया था। अंग्रेजों के साथ देने की उसकी कलई खुलती है। लेकिन ब्राह्मण वह भी पढे लिखे ब्राह्मण अपने पूर्वजों के इतिहास को गलत बता रहे हैं। RSS के जाल में फंसे हुए हैं। मोदी की तानाशाही व साम्प्रदायिक राजनीति का साथ दे रहे हैं।
उस ब्राह्मण जाति का बहुमत आजादी के आंदोलन के साथ था। साम्प्रदायिक RSS के खिलाफ था। आज ब्राह्मणों का बहुमत RSS की राजनीति के पीछे लामबंद है। जो आजादी की उपलब्धियों, मूल्यों आदि को खत्म करने वालों का साथ दे रहा है। यह एक सोचनीय विषय है।
ब्राह्मणों को आजादी के आन्दोलन में शहादत देने वाले पूर्वजों, आजादी के आन्दोलन को संगठित करने, नेतृत्व करने वाले पूर्वजों को जरूर याद करना चाहिए। RSS की आजादी के आन्दोलन में अंग्रेजों का साथ देने वाले RSS संगठन से बाहर आना चाहिए।

प्रस्तुति- गंगेश्वर दत्त शर्मा