पप्पू यादव और प्रशांत किशोर की सियासी चाल में उलझा बीपीएससी छात्र आंदोलन

 आंदोलन के बहाने सियासी रणनीतियों का खेल

 छात्रों की चिंताओं पर नहीं कोई हल

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार में 70वीं बीपीएससी री-एग्जाम को लेकर छात्रों का आंदोलन अब सियासी चालों और मीडिया की सुर्खियों का अखाड़ा बनता जा रहा है। छात्रों की न्याय की लड़ाई में अब राजनीतिज्ञों की एंट्री ने इस मुद्दे को भटका दिया है। जहां छात्र अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे, वहीं अब उनके मंच पर पप्पू यादव और प्रशांत किशोर जैसी सियासी हस्तियां अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं।
गर्दनीबाग और गांधी मैदान के आंदोलनों में अचानक से सियासी चेहरे उभरने लगे। पहले कुछ कोचिंग संस्थानों के प्रमुखों ने मंच का इस्तेमाल किया, और अब प्रशांत किशोर और पप्पू यादव ने इसे सियासी मौका बना लिया। पटना के गर्दनीबाग में जब छात्रों पर लाठीचार्ज और वाटर कैनन का प्रयोग हुआ, तब ये सियासी चेहरे गायब थे।
पूर्णिया सांसद पप्पू यादव ने छात्र आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन उनके साथ ज्यादातर उनके राजनीतिक समर्थक थे, छात्र नहीं। रेल चक्का जाम जैसे प्रदर्शनों में छात्र कम, जबकि उनके समर्थक ज्यादा दिखे। उनकी अपनी कोई पार्टी या छात्र संगठन न होने के बावजूद वह खुद को छात्र हितैषी दिखाने में लगे हैं।
दूसरी ओर, प्रशांत किशोर गांधी मैदान में आमरण अनशन कर रहे हैं। लेकिन छात्रों की उपस्थिति के बजाय जन सुराज के नेता और समर्थक वहां नजर आते हैं। उनकी टीम आइपैक इस आंदोलन को सियासी मंच की तरह इस्तेमाल कर रही है। छात्रों ने गांधी मैदान में पीके के खिलाफ विरोध भी जताया, क्योंकि उन्हें यह आंदोलन छात्र हित से ज्यादा सियासत का खेल लग रहा है।
13 दिसंबर को पटना के परीक्षा केंद्र पर अनियमितताओं के विरोध से शुरू हुए इस आंदोलन का असली मुद्दा अब खोता दिख रहा है। बीपीएससी ने केवल एक परीक्षा केंद्र की परीक्षा रद्द कर 4 जनवरी को री-एग्जाम की घोषणा की है, लेकिन छात्रों की री-एग्जाम की व्यापक मांग को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
छात्रों ने देखा कि जब लाठीचार्ज हुआ, तब नेता नदारद थे। अब जब मीडिया का ध्यान खींचने का समय आया, तो सियासी चेहरों की भीड़ लग गई।
प्रशांत किशोर और पप्पू यादव के सियासी खेल में बीपीएससी छात्र आंदोलन अपनी दिशा और ताकत खोता दिख रहा है। छात्र अब यह समझने लगे हैं कि उनकी लड़ाई का इस्तेमाल केवल सियासी लाभ उठाने के लिए हो रहा है। नीतीश सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, जिससे छात्रों की चिंता और गहरी हो गई है।

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