वक्फ संशोधन विधेयक पर बढ़ेगी बीजेपी की टेंशन, चिराग, चंद्रबाबू के बाद नीतीश की पार्टी ने त्योरी भौंह

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दीपक कुमार तिवारी

पटना/नई दिल्ली। वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर बीजेपी को एक और सहयोगी से झटका लगता दिख रहा है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार सरकार बनाने में अहम सहयोगी जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) ने वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर चिंता जताई है। गौर करने वाली बात यह है कि एनडीए खेमे में जेडीयू तीसरी पार्टी है जिसने इस बिल को लेकर अपनी अलग राय रखी है। इससे पहले चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इस विधेयक पर सवाल उठा चुकी है। वहीं आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी इससे नाखुश है। माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की 18 फीसदी मुस्लिम आबादी को नाखुश नहीं करना चाहती है। इसलिए वह प्रस्तावित कानून में बदलाव चाहती है।
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर जेडीयू का रेड सिग्नल इसलिए मायने रखता है क्योंकि लोकसभा की कार्यवाही के दौरान केंद्रीय मंत्री और जेडीयू के संसदीय दल के नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने खुलकर इस बिल का समर्थन किया था। जेडीयू सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने इस महीने की शुरुआत में लोकसभा में एक बहस के दौरान कानून के पक्ष में बात की थी।
ललन सिंह ने संशोधनों को पारदर्शिता के लिए एक बहुत जरूरी उपाय बताया। हालांकि, तब से जेडीयू के गुटों में असंतोष है, राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद ज़मा खान ने कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताने के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात की है।
बताया जा रहा है कि जमा खान असहमति जताने वाले एकमात्र व्यक्ति नहीं हैं। बिहार में जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मुस्लिम समुदाय की आशंकाओं के बारे में बात की है। विजय चौधरी को व्यापक रूप से मुख्यमंत्री के करीबी सहयोगी के रूप में देखा जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, विधायक गुलाम गौस जैसे अन्य जेडीयू नेताओं ने भी संदेह व्यक्त किया है।
नए कानून की धाराओं पर बढ़ती आपत्ति के परिणामस्वरूप जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और जमा खान ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की। केंद्र ने प्रस्तावित बदलावों का बचाव किया है – जिसमें मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य करना और दानदाताओं को पांच साल या उससे अधिक समय तक प्रैक्टिस करने वाले मुसलमानों तक सीमित करना शामिल है। केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के प्रयास के रूप में बताया गया है।
सूत्रों का कहना है कि कुछ मुस्लिम मौलवियों की ओर से एक खतरनाक कहानी गढ़ी जा रही है। सूत्रों ने यह भी कहा कि विचार उन मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने का है, जो पुराने कानून के तहत इसके पीड़ित थीं। हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने प्रस्तावों की तीखी आलोचना की है और इसे कठोर उपाय, संघीय व्यवस्था पर हमला और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
विपक्ष के बोलने के बाद, किरेन रिजिजू ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पर मुद्दों को हल करने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘क्योंकि आप नहीं कर सके, हमें करना पड़ा। कुछ लोगों ने वक्फ बोर्ड पर कब्जा कर लिया है और यह विधेयक आम मुसलमानों को न्याय दिलाने के लिए लाया गया है।
आखिरकार वक्फ संशोधन विधेयक पर भयंकर विवाद के कारण इसे आगे की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। भाजपा सांसद जगदंबिका पाल के नेतृत्व में 31 सदस्यीय समिति ने गुरुवार को अपना पहला सत्र आयोजित किया। अगली बैठक 30 अगस्त को तय की गई है।

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