लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जिस तरह से उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर हुए हुए मतदान में राजपूत समाज का गुस्सा दिखाई दिया। जिस तरह से नगीना में 12 प्रतिशत तो बिजनौर, मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में 8-10 प्रतिशत राजपूत हैं। ऐसे में पहले चरण के मतदान में बीजेपी का खेल गड़बड़ाता हुआ प्रतीप हो रहा है। नगीना में अपना समाज पार्टी के प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद भारतीय जनता पार्टी के ओम कुमार पर भारी पड़ बीजेपी का खेल बिगाड़ रहे हैं तो बिजनौर में बहुजन समाज पार्टी के बिजेंद्र सिंह ने आरएलडी के चंदन चौहान से मोर्चा लिया है। कैराना में सपा परत्याशी इकरा हसन और बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप चौधरी पर भारी पड़ती प्रतीप हुईं तो मुजफ्फरनगर में हरेद्र मलिक और संजीव बालियान के बीच लड़ाई मानी जा रही है।
सहारनपुर में इमरान मसूद और बीजेपी प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा के बीच टक्कर देखी जा रही है। मुरादाबाद में बीजेपी के सर्वेश सिंह और सपा की प्रत्याशी रुचि वीरा के बीच टक्कर मानी जा रही है। हालांकि मुरादाबाद में जिस तरह से सिंटिंग एमपी एसटी हसन का टिकट काटकर रुचि वीरा को दिया गया उसके हिसाब से मुरादाबाद के एसटी हसन के समर्थक रुचि वीरा से नाराज हैं। यदि ये मुसलमान बसपा प्रत्याशी मो. इमरान पर चले गये तो पलड़ा बसपा का भी हो सकता है। रामपुर में समाजवादी पार्टी इमाम मोहिबुल्लाह नदवी को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि रुचि वीरा को मुरादाबाद से टिकट देने बाद भी आजम खां दिल्ली पार्लियामेंट मस्जिद के इमाम को टिकट देने पर अखिलेश यादव से नाराज हैं। आजम खां और उनके समर्थकों की नाराजगी अखिलेश यादव से इतनी है कि अखिलेश यादव रामपुर में कोई चुनावी सभा नहीं कर पाये हैं। पीलीभीत पर मुकाबला भाजपा के प्रत्याशी जितिन प्रसाद और बसपा प्रत्याशी अनीश खान के बीच बताया जा रहा है। हालांकि अखिलेश यादव ने पीलीभीत पहुंच सपा प्रत्याशी भगवत शरण गंगवार के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है।
कुल मिलाकर पहले चरण के इन चुनाव में बीजेपी की एकतरफा जीत तो नहीं मानी जा रही है। हर सीट पर चुनाव फंसा हुआ है। कहीं पर बसपा प्रत्याशी ने चुनाव फंसा रखा है तो कहीं पर सपा ने और कहीं पर कांग्रेस ने। भारतीय जनता पार्टी भले ही 80 में 80 सीटों पर जीतने का दावा कर रही हो पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की बढ़त नहीं दिखाई दे रही है। यदि राजपूतों की नाराजगी का असर इन चुनाव में ठीकठाक रहा तो पश्चिमी उत्तर में बीजेपी का खेल बिगड़ भी सकता है। यदि आठ सीटों की समीक्षा करें किसान आंदोलन के बाद अब राजपूतों की नाराजगी भाजपा के लिए भारी पड़ सकती है। वैसे भी बेरोजगारी, महंगाई और भाजपा नेताओं की तनाशाही से लोगों में काफी समय से नाराजगी देखी जा रही थी। देखनी की बात यह भी है कि पश्चिमी उत्तर से जो दल बढ़त बना लेता है उसको पूरे चुनाव में फायदा मिलता है। अब देखना यह होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़त कौन लेता है।